(दयानंद हद से ज़्यादा सहजदिल बंदा है. जो बात उस मेँ ख़ास है, वह है रीकाल recall – ऐसी छोटी छोटी चीज़ेँ याह रख पाना और फिर वक़्त पड़ने पर …
शब्द की नाव में, भाषा की नदी का सौंदर्य और बिंब विधान रचते अरविंद कुमार
–दयानंद पांडेय अरविंद कुमार संघर्ष, मेहनत, सज्जनता, सहजता, विनम्रता और विद्वता का संगम देखना हो तो अरविंद कुमार से मिलिए। मैं मिला था उन से पहली बार 1981 …
क्या है शब्दवेध
शब्दवेध भारत को थिसारस देने वाले अरविंद कुमार की नई किताब है. शब्दवेध अरविंद कुमार की शब्दोँ के संसार …
शब्दवेध–क्या, किस के लिए
शब्दवेध: क्योँ, किस के लिए शब्दवेध सब के लिए एक अत्यंत रोचक सत्यकथा है. कैसे कोई अपनी मेहनत और लगन के, निष्ठा, संकल्प और प्रतिबद्धता के बल पर कमतरीन से …
What is ShabdVedh
What is ShabdVedh? ShabdVedh is the latest book by India’s Thesaurus Man Arvind Kumar. Shabdvedh is the story of Arvind’s 70-year journey in the creative world of words. A journey …
करामाती कोशकार
मंज़िल दूर होती गई, इरादा मज़बूत होता गया मोहन शिवानंद (रीडर्स डाइजेस्ट के भारतीय संस्करण के प्रधान संपादक हैं) प्रकाशनालय दिल्ली प्रैस का वह नौजवान पत्रकार अरविंद कुमार हिंदी कहानी …
भाषा शिक्षण मेँ कोश और थिसारस का उपयोग
अक्षरम् द्वारा आयोजित छठे अंतरराष्ट्रीय उत्सव 1-2-3 फ़रवरी 2008 नई दिल्ली के हिंदी अध्ययन और अनुसंधान सत्र के लिए मैट्रिक मेँ नवीं कक्षा वाले शास्त्रीजी का नाम मुझे …
अक्षय कुमार जैन
हिंदी के आधुनिकतम पत्रकार अक्षय जी ने कहा कि प्रश्न उन की निजी सहमति या असहमति का था ही नहीँ. प्रश्न था कि क्या हमेँ भिन्न विचारोँ और अभिव्यक्तियोँ को …
रुकना मेरा काम नहीं
दास्ताने अरविंद मैं एक साप्ताहिक समाचार पत्र में काम कर रहा था। उसकी दो-तीन प्रतियां ले गया था। वे अरविंदजी को दीं। वह त्यागीजी से अधिक मुझसे बात करते रहे। …
Global Wordbank–First Steps
An English Hindi Wordbank And the need for a Global Wordbank Arvind Kumar A Global Wordbank, would make the generation of bilingual or multilingual thesauruses of any number of …
हिंदी — अगस्त 1947 से 2007 तक…
उस ज़माने के लेखकों कवियों की और आज के लेखकों की वेशभूषा मे में जो अंतर है वही अंतर तब की और अब की भाषा में भी कहा जा सकता …
द्रोणवीर कोहली
जीवन संध्या बीज का देरी से सही, बेहतरीन फल देना साइकिलों पर बदहवास पैडल मारते तीन हज़ार छात्र सप्ताह में छः दिन ठीक समय पर पहुँच जाते। कपड़े कम हों …
हिंदी के बारे मेँ कुछ अकारण चिंताएँ
सीधे आज की बात करें. शुद्धताप्रेमी भाषाविदों में आज गहरी चिंता व्याप रही है–हिंदी न्यूज़पेपर और टीवी चैनल अँगरेजी से लार्जस्केल पर वर्ड इंपोर्ट कर के हिंदी को अशुद्ध …
हिंदी रुकने वाली नहीं है, रुकेगी नहीं
हिंदी–दशा और दिशाएँ… ऐसा नहीँ हैँ कि आज लोग हिंदी का महत्त्व नहीँ जानते या हिंदी की प्रगति और विकास रुक गया है या रुक जाएगा। मैं समझता हूँ कि …
जाना महावीर अधिकारी का
एक औघड़ मलंग की याद में अधिकारी स्वतंत्र भारत के उदय के साथ हिंदी पत्रकारिता में धूमकेतु के समान अचानक उभरे और सिक्के पर सिक्के जमाते चले गए. ‘नवयुग’ …
हिंदी पत्रकारिता के छह दशक
एक निजी विहंगावलोकन —अरविंद कुमार टाइम्स आफ़ इंडिया की वे प्रसिद्ध पत्रिकाएँ कहाँ हैँ, जो हिंदी का गौरव कहलाती थीँ. सब बंद हो गईं या कर दी गईं. हिंदी ही …
निरंतर बेचैनी का नाम भीमसेन
न जाने क्योँ, शायद उस के व्यक्तित्व मेँ ही कुछ ऐसा था कि वह शुरू से भीम रहा, तुम रहा, आप कभी था ही नहीँ, न बन पाया यह …
क़ब्र मेँ क़ैद एक कारवाँ
महावीर अधिकारी जीने की ललक, भरपूर भोगने की चाह, जीवन रस को तलछट तक सोख़ जाने की कुलबुलाहट – मात्र इतनी ही हो सकती है अधिकारी की परिभाषा. …