बचपन में मैं तख़्ती पर मुलतानी मिट्टी पोत कर उसे हिला हिला कर सुखाता था और फिर बुदके में क़लम डूबो कर काली स्याही से लिखता था, तो वह भी …
0019 समांतर कोश – शब्द महोत्सव
(ग्रंथ क्या है यह एक तिलिस्म है. जब तक दूर हैँ, तभी तक सम्मोहन से आप बचे हुए हैँ. एक बार इस तिलिस्म मेँ घुस भर जाइए, फिर उस से …
010 भगवान को भाषा मेँ कहाँ रखेँ?
हंस – मई 1991 अंक श्रव्य और दृश्य भाषा का हथियार ले कर मानव संपूर्ण सृष्टि की विजय यात्रा पर निकल पड़ा… आज किसी भी भाषा मेँ जो भी शब्द …
009 कुछ शब्द समूह… और भावक्रम की समस्या
हंस – अप्रैल 1991 अंक हंस – अप्रैल 1991 मुखपृष्ठ कुछ लोग थिसारस को पर्यायवाची कोश समझने की ग़लती कर बैठते हैँ. जब मैँ किसी साहित्यिक मित्र से अपने काम …
007 थिसारस और मैँ
जितना सहज मैँ ने समांतर कोश बनाना समझा था, उतना सहज यह निकला नहीँ. हंस – फ़रवरी 1991 अंक हंस फऱवरी 1991 अंक का मुखपृष्ठ पीटर मार्क रोजेट ने अपना …
006 समांतर सृजन गाथा
इस संभाग मेँ सब से पहले हैँ हंस मेँ फ़रवरी से जून 1991 तक छपे मेरे पाँच लेख. – थिसारस और मैँ: 1 – पीटर मार्क रोजेट के अद्भुत अँगरेजी …
005 टेढ़े मेढ़े रास्ते…
(शब्दवेध से) पंदरह मई 1978 की सुबह. नेपियन सी रोड पर प्रेम मिलन बिल्डिंग की सातवीँ मंज़िल से उतर कर नीचे अहाते मेँ हमारा सामान दिल्ली जाने के लिए माल …
004.1 कंपोज़िंग के केस
(शब्दवेध से) डिस्ट्रीब्यूशन सीखते समय मेरा काम था ज़मीन पर पालथी मार कर उस्ताद मुहम्मद शफ़ी के पास बैठना, छपे ‘मैटर’ से लिपी स्याही धो पोँछ कर टाइप फिर से …
मानक हिंदी वर्तनी
आज हिंदी लिखने पढ़ने वाले ‘अं’ ‘अँ’, ‘हंस’ ‘हँस’ की ही तरह ‘क’ ‘क़’, ‘ख’ ‘ख़’ और ‘ज’ ‘ज़’ जैसी ध्वनियोँ का अंतर लगभग भूल चुके हैँ. इस का एकमात्र …
004 जीवन बदल डालने वाली वह सुबह
(शब्दवेध से) सन 1973 के दिसंबर की 27 तारीख़ की जीवन बदल डालने वाली वह सुहानी सुबह हम कभी नहीँ भूल सकते. हम लोग बदस्तूर सुबह की सैर के लिए …
003 पूर्वपीठिका
(शब्दवेध से) – वह सुबह – 27 दिसंबर 1973. मुंबई की मालाबार हिल पर हैंगिंग गार्डन. मैँ ने कुसुम को बताया अपना एक पुराना सपना: हिंदी मेँ किसी थिसारस का …
002 शब्दवेध: एक परिचय
(शब्दवेध से) मैँ पौंडिचेरी (अब पुदुचेरी) की 2. वैश्यल स्ट्रीट पर देवी हाउस की तीसरी मंज़िल मेँ फ़्लैट के ड्राइंग रूम में. (लगभग सन 2000) मेरे जीवन मेँ कोई सतत …
001 मेरे पापा का बचपन – मेरठ तक
(शब्दवेध से) मेरठ का घंटाघर. (फ़ोटो लगभग 2014-15). पापा के बचपन मेँ यहाँ बीच वाला डिवाइडर नहीँ था. दाहिनी ओर अधिकतर साबुन की दुकानेँ थीँ जो सब अपने को ‘असली …
समांतर कोश छपा इस तरह
हिंदी के माथे पर ऐसे लगी सुनहरी बिंदी स्वभाव से मैँ बहुत संकोचशील हूँ, झिझकू स्वभाव के साथ कुछ कुछ डरपोक भी. किसी भी निजी या सरकारी पद पर बैठे …