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002 शब्दवेध: एक परिचय

In Memoirs, ShabdaVedh by Arvind KumarLeave a Comment

(शब्दवेध से)

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मैँ पौंडिचेरी (अब पुदुचेरी) की 2. वैश्यल स्ट्रीट पर देवी हाउस की तीसरी मंज़िल मेँ फ़्लैट के ड्राइंग रूम में. (लगभग सन 2000)

मेरे जीवन मेँ कोई सतत थीम है, तो वह है शब्दोँ से लगाव, हिंदी से प्रेम, हिंदी के लिए कुछ अनोखा करने की तमन्ना, हिंदी को संसार की समृद्धतम भाषाओँ मेँ देखने की अभिलाषा.

रोजेट के इंग्लिश थिसारस जैसी कोई हिंदी किताब बनाने के लिए माधुरी पत्रिका से त्यागपत्र दे कर मैँ 1978 मेँ मुंबई से दिल्ली चला आया था. कई साल बीत जाने पर भी वह किताब बन ही रही थी. तेरह चौदह साल बाद सन 1991 मेँ दिल्ली के हिंदी जगत मेँ यह विस्मय का विषय बना हुआ था. थिसारस क्या होता है–यह जिज्ञासा तो थी ही, यह अचरज भी कम नहीँ था कि इतने साल बीत गए और किताब बन ही रही है! ऐसी क्या किताब है! ऐसे मेँ मेरे घनिष्ठ मित्र राजेंद्र यादव ने आग्रह किया कि मैँ उन की पत्रिका हंस मेँ लेखमाला के ज़रिए उस के बारे मेँ बताऊँ. उन्होँ ने लेखमाला को शीर्षक दिया–शब्दवेध. अब वह इस किताब का नाम है.

इस की सामग्री नौ संभागोँ मेँ विभाजित है. एक संभाग अगले संभाग तक सहज भाव से ले जाता है. ये हैँ:

1 पूर्वपीठिका. 2 समांतर सृजन गाथा. 3 तदुपरांत. 4 कोशकारिता. 5 सूचना प्रौद्योगिकी. 6 हिंदी. 7 अनुवाद. 8 साहित्य. 9 सिनेमा.

इन मेँ संकलित हैँ समय समय पर लिखे गए मेरे अपने लेख और कुछ वे लेख जो लोगोँ ने मेरे काम के बारे मेँ लिखे. स्वाभाविक है कि कुछ प्रसंगोँ का कई स्थानोँ पर दोहराव है. वे निकालने की मैँ ने भरसक कोशिश की है. कई स्थानोँ पर विषय विशेष मेँ संदर्भ क्रम टूट जाने पर वह अनर्गल सा लग सकता है. इस लिए कुछ दोहरावोँ को मेरी मजबूरी समझ कर क्षमा करेँ.

मेरे जीवन मेँ जो कुछ भी उल्लेखनीय है, वह मेरा काम ही है. मेरा निजी जीवन सीधा सादा, सपाट और नीरस है. कोई प्रवाद मेरे बारे मेँ कभी नहीँ हुआ. इस लिए मैँ शब्दवेध को शब्दोँ के संसार मेँ सत्तर साल–एक कृतित्व कथा कह रहा हूँ.

साहित्य से मेरा जुड़ाव कुछ बहुत अधिक नहीँ रहा. कुछ छुटपुट कविताओँ, कहानियोँ, लेखोँ, समीक्षाओँ और साहित्यिक अनुवादोँ तक ही सीमित रह पाया मैँ.

कोशकारिता से मेरा जुड़ाव 1973 मेँ किए गए एक संकल्प से हुआ. अपने पूरे परिवार के सहयोग से ही मैँ समांतर कोश (1996) और उस के बाद कई कोशोँ की रचना कर पाया, सब अपनी अलग तरह के. उन का पूरा लेखाजोखा यहाँ मौजूद है.

शब्दवेध सुहृदोँ को पसंद आ पाएगा–इस आशापूर्ण संभावना के साथ,

—अरविंद कुमार, 17 जनवरी 2016

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