इस संभाग मेँ सब से पहले हैँ हंस मेँ फ़रवरी से जून 1991 तक छपे मेरे पाँच लेख.
- थिसारस और मैँ: 1 - पीटर मार्क रोजेट के अद्भुत अँगरेजी ग्रंथ थिसारस से मेरा पहला साबक़ा इस के प्रकाशन के एक सौ एक साल बाद 1953 मेँ पड़ा.
- हिंदी और थिसारस: 2 - थिसारस है क्या बला? उस की आवश्यकता क्योँ है?
- कुछ शब्द समूह… और भावक्रम की समस्या: 3 - थिसारस मात्र पर्यायवाची कोश नहीँ होता. वरना मुझे इस के निर्माण पर इतने सारे साल न लगाने पड़ते.
- भगवान को भाषा मेँ कहाँ रखेँ?: 4 - आज किसी भी भाषा मेँ जो भी शब्द है या होगा, उस के पीछे मानव भाषा का पूरा इतिहास खड़ा है.
- आत्मा से परमात्मा तक, ब्रह्मा से विष्णु तक: 5 – कितने रूप! कितने शब्द!
- समांतर कोश की रचना मेँ काम आए ये कोश – संक्षिप्त सूची.
- समांतर कोश का नाम कैसे बना – कमलेश्वर का योगदान.
- समांतर कोश छपा इस तरह - हंस मेँ लेखमाला का साइडइफ़ैक्ट.
- एक शानदार परंपरा: भारत और थिसारस - शब्द के रथ पर चढ़ कर ज्ञान विज्ञान सदियोँ के फ़ासले तय करते हैँ और मानव प्रगति के पथ पर बढ़ता है.
- स्वतंत्रता के पचासवेँ वर्ष मेँ: भाषा का शक्तिशाली उपकरण – आप को जो शब्द चाहिए, वह जीभ के किनारे कहीँ अटका है…
- समांतर कोश: प्रस्तुति - शब्द का अर्थ जानने के लिए हम शब्दकोश का सहारा लेते हैँ तो सही शब्द की तलाश मेँ हम थिसारस की शरण जाते हैँ.
- समांतर कोश का आविर्भाव - कन्हैया लाल नंदन ने लिखा: समांतर कोश का आना एक ऐतिहासिक क्षण था.
- समांतर कोश को पलटना शब्द महोत्सव मेँ से गुज़रने जैसा है - प्रो. महेश दुबे ने समांतर कोश को भारतीय वांग्मय की विशाल शब्द परंपरा से जोड़ा.
- बृहत् समांतर कोश: क्योँ और क्या - विश्वग्राम की कल्पना आज हिंदी वालोँ के लिए साकार हो चुकी है. समांतर कोश के परिवर्धित संस्करण की प्रस्तुति.
Comments