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004.1 कंपोज़िंग के केस

In ShabdaVedh by Arvind KumarLeave a Comment

(शब्दवेध से)

डिस्ट्रीब्यूशन सीखते समय मेरा काम था ज़मीन पर पालथी मार कर उस्ताद मुहम्मद शफ़ी के पास बैठना, छपे ‘मैटर’ से लिपी स्याही धो पोँछ कर टाइप फिर से सामने रखे केसोँ मेँ फेँकना. यह कोई आसान काम नहीँ था. ‘केस’ के किसी ख़ाने मेँ कौन से अक्षर का टाइप रखा जाता है, पहले यह याद करना था. फिर यह जानना था कि टाइप कई तरह के होते हैँ. उन के फ़ौंट होते हैँ. फ़ौंट यानी अक्षर लिखने की शैली – अखरावट. किसी भी फ़ौंट मेँ सामान्य (रैग्युलर), बोल्ड (मोटा), आइटैलिक (तिरछा) और बोल्ड आइटैलिक (मोटा तिरछा) रूप होते हैँ.

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आजकल छपाई का काम कंप्यूटर पर होता है. उस मेँ टाइपोँ का काम नहीँ होता. इस लिए आज के लोग नहीँ जानते कि छापेख़ाने का केस क्या होता था, कैसा होता था – शब्दोँ मेँ यह समझाना मेरी क्षमता से बाहर है. इस लिए तस्वीरेँ दे रहा हूँ. आप देख रहे हैँ किसी भी फ़ौंट के इंग्लिश टाइपोँ को रखने के दो केस. इन मेँ से ऊपर वाले केस को अपर केस कहते थे. इस मेँ दाहिनी ओर के निचले हिस्से मेँ अकारादि क्रम से इंग्लिश अक्षरोँ के कैपिटल जैसे A B अक्षर रखे जाते थे और उपरले हिस्से मेँ @ और % जैसे चिह्न रखे जाते थे. यहीँ ऊपर से नीचे तीसरे ख़ाने मेँ हैँ ऐम और ऐन डैश आदि. इस के बाएँ हिस्से मेँ नीचे हैँ स्माल कैपिटल a b आदि. ये कैपिटल अक्षरोँ से ऊँचाई मेँ कम होते हैँ और इन्हेँ स्माल कैप्स (यानी छोटे कैपिटल अक्षर) कहते हैँ. ऊपर तरह तरह के अन्य चिह्न भी होते थो जो छपाई मेँ हर जगह काम मेँ आते हैँ.

अब निचले केस पर ध्यान दीजिए. यहाँ इंग्लिश के तथाकथित छोटे अक्षर रखे हैँ. क्योँ कि इन की जगह निचले केस मेँ है, तो इन का नाम अभी तक लोअर केस (ऐलसी, lc) है. यहाँ ये अकारादि क्रम से नहीँ हैँ. जो अक्षर भाषा मेँ जितनी बार आता है, उस का औसत निकाल कर बड़े और छोटे आकार के ख़ानोँ मेँ इन्हेँ कंपोज़ीटर की सुविधा के ख़्याल से रखा गया है. आप देखेँगे कि z x q के ख़ाने सब से छोटे हैँ, y p w b l v के ख़ाने उन से दुगुने आकार के हैँ. बाक़ी अक्षरोँ मेँ सब से बड़ा ख़ाना e का है. अब हम आते हैँ स्पेस पर. स्पेस माने ख़ाली जगह. छपने वाले टाइपोँ की ऊँचाई सब से अधिक होती थी, और उन पर ऊपर उठे हिस्से मेँ उस के मनोनीत अक्षर का चिह्न बना होता था. लेकिन स्पेस के टाइप की ऊँचाई कम होती थी. मतलब यह कि छपाई के समय उस पर स्याही नहीँ लगेगी और दो शब्दोँ के बीच मेँ ख़ाली जगह दिखाई देगी. स्पेस वाले टाइप कई मोटाई के होते थे. सब से छोटा होता था – थिन स्पेस, फिर नार्मल या सामान्य स्पेस, एन स्पेस से बढ़ते बढ़ते यह कई ऐम तक होती थी. उसे कहते थे क्वाड. इन का एक उद्देश्य छापे की किसी एक लाइन को वांछित चौड़ाई तक फैलाना भी होता था.

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आप देख रहे हैँ – कंपोज़ीटर के हाथ मेँ स्टिक. सामान्य भाषा मेँ इंग्लिश शब्द स्टिक का मतलब होता है छड़ी. छापेख़ाने मेँ इस का मतलब था वह उपकरण जिस पर कंपोज़ीटर एक एक कर के अक्षर जोड़ता पहले शब्द फिर पंक्ति फिर पैरा बनाता था. एक शब्द को दूसरे से अलग करने के लिए उन के बीच स्पेस वाला टाइप डाला जाता था. इस चित्र मेँ कंपोज़ीटर ने एक पंक्ति की लंबाई स्थिर कर रखी है. हम जानते हैँ कि अक्षरोँ की चौड़ाई बराबर नहीँ होती (m के मुक़ाबले i बहुत छोटा होता है). तो हर पंक्ति की चौड़ाई बराबर करने के लिए आवश्यकता अनुसार छोटी या बड़ी स्पेस के ख़ाली टाइप डाले जाते थे.

हर फ़ौंट मेँ कई साइज़ के टाइप होते हैँ. यहाँ साइज़ से मतलब है टाइप की ऊपर से नीचे तक की कुल लंबाई. यह पाइंटोँ मेँ बताई जाती है. एक इंच मेँ बहत्तर (72) पाइंट होते हैँ. बारह पाइंट का एक पाइका होता है. पाइका का साइज़ बारह पाइंट के कैपिटल M की चौड़ाई और ऊँचाई तय की गई. इस लिए पाइका को ऐम भी कहते थे. उस का आधा होता था N. इंग्लिश मेँ हाइफ़न होता है. दो शब्दोँ को जोड़ने वाला चिह्न (-). इसी तरह का एक और चिह्न होता है ऐम डैश (—) फ़ौंट के ऐम के बराबर. ऐम डैश का आधा होता था (–) ऐन डैश होता था. छोटे से छोटा टाइप उस प्रैस मेँ इंग्लिश का साढ़े पाँच पाइंट था.

डिस्ट्रीब्यूशन सीखने और करने के अलावा मेरा एक काम और था. उस्ताद के लिए चाय बीड़ी ले आना – क्योँ कि मैँ बलबीर से जूनियर था. उस्ताद और बलबीर के मुक़ाबले मैँ सीँकिया पहलवान था.

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