कमलेश्वर का योगदान
हिंदी थिसारस का नाम समांतर कोश कैसे बना इस की भी एक कहानी है. इस पर काम शुरू किया था तो हम ने इस का नाम रखा था – शब्देश्वरी (बाद मेँ इस नाम से मेरा पौराणिक नामोँ का थिसारस शब्देश्वरी छपा – अरविंद, मार्च 2015). इसी नाम से हम बीस साल मेहनत करते रहे. जब हम इस हालत मेँ पहुँचे कि प्रकाशन के लिए पुस्तक दी जा सके, तो मैँ ने अनेक साहित्यकार मित्रोँ को पत्र लिखे. उन पत्रोँ मेँ मैँ ने अपनी ओर से प्रस्तावित शब्देश्वरी सहित कोई बीस और नाम लिखे थे. मित्रोँ से पूछा था कि इन मेँ से कौन सा नाम उन्हेँ पसंद है, या वे कोई नया नाम सुझाना चाहेँगे? किसी ने भी अपनी पसंद के नामोँ मेँ शब्देश्वरी की गिनती नहीँ की. बहुत से नए सुझाव आए. इन मेँ से एक था कमलेश्वर की ओर से शब्द समांतर. मुझे भी यह पसंद था.
कमलेश्वर के सुझाव और मेरी पसंद के पीछे एक कारण था. समांतर शब्द हिंदी मेँ प्रयोग मेँ नहीँ आता था. समानांतर की तर्ज़ पर इस की रचना मैँ ने की थी. समान और सम का एक ही अर्थ है, तो शब्द को लंबा क्योँ करेँ? जब हिंदी मेँ कला फ़िल्म आंदोलन का सूत्रपात हो रहा था, तो मैँ उस से काफ़ी निकट से जुड़ा था. माधुरी का एक पूरा अंक हम ने इसे समर्पित किया था. और उस मेँ मैँ ने इस आंदोलन को नाम दिया था – समांतर सिनेमा. बाद मेँ कमलेश्वर ने समांतर शब्द का उपयोग समांतर कहानी आंदोलन के लिए किया. अब वही शब्द कमलेश्वर मेरे थिसारस को दे रहे थे.
‘शब्द’ के बाद ‘समांतर’ बोलने मेँ ज़बान को पलटना पड़ता है. इस लिए मैँ कुछ हिचक रहा था. एक दिन अचानक मुझे सूझा समांतर को शब्द के बाद मेँ नहीँ पहले रखा जाए – समांतर शब्द. अब उच्चारण मेँ कोई रुकावट नहीँ थी. लेकिन अकेले ‘शब्द’ से लगता था कि जैसे यह किसी एक शब्द की बात हो, शब्दकोश की नहीँ. इस लिए मैँ ने इसे समांतर कोश कर दिया. एक ऐसा कोश जो शब्दार्थ न दे कर शब्दोँ और भावोँ को समांतर शब्द देने वाला कोश है.
कमलेश्वर का पत्र—
प्रिय अरविंद,
नाम के लिए दोस्त – मैँ तीन नाम सुझाता हूँ –
एक तो वही – जो हम दोनोँ को प्रिय रहा है – यानी पहला –
शब्द समांतर/ शब्द रत्नाकर/ शब्द महाकोश.
एकाएक बंगलौर से तुम्हारा पत्र पा कर कितना अच्छा लगा, तुम सोच भी नहीँ सकते. – और फिर इस ख़बर के साथ कि तुम ने थिसारस समाप्त तो नहीँ, पर पूरा कर लिया. अरविंद!… हिंदी मेँ तुम्हारा यह थिसारस भारतीय सांस्कृतिक एकता और भाषायी सद्भाव और एकात्मकता का रास्ता प्रशस्त करेगा! मेरी शत शत हार्दिक शुभकामनाएँ.
प्रकाशकोँ के जो नाम तुम ने दिए हैँ, वे सब महत्वपूर्ण हैँ, फिर भी मैँ एक नाम और सुझाता हूँ –
‘किताब घर’ फोन : 2371844, 3281244
श्री सत्यव्रत शर्मा, 24, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002
घर का फ़ोन : 2246695
अगर तुम चाहो तो इन्हेँ मेरा रैफ़रेंस दे सकते हो. यह स्वयं उभरे हुए गंभीर प्रकाशक हैँ और पुस्तकेँ बेच भी लेते हैँ – लेकिन फ़ैसला तुम ख़ुद करो, मेरी सिफ़ारिश तो मात्र सहायतार्थ है.
मैँ पिछले डेढ़ साल से डीडी-1 का सीरियल ‘चंद्रकांता’ लिखने को व्यस्त रहा हूँ – होश ही नहीँ रहता कि मैँ क्या कर रहा हूँ और क्योँ कर रहा हूँ – सफलता भी एक नशा है, और फ़िलहाल मैँ उस नश मेँ जी रहा हूँ !
पर दोस्त, तुम तो जानते हो कि अपनी आत्मा और सोच के किस स्तर पर हम साथ साथ जिए हैँ – आज हमारी दिशाएँ ‘समांतर’ फिल्मोँ से हट कर और ज्यादा क्रिएटिव बनने की राह पर हैँ – और उसे तुम ने तो थिसारस लिख के – संकलित कर के निभा दिया, पर मैँ अभी भी इस अपने ख़ूबसूरत और जीवंत देश मैँ कुत्ते की मौत से बचने के लिए ‘चंद्रकांता’ लिख रहा हूँ, ताकि जीने का पैसा उस से कमा कर – कुछ अपना लिख सकूँ!
तो और क्या हाल हैँ?
सुमीत कैसा है – उसकी शादी? बाल बच्चे?
मीता एक बार अलकनंदा पर मिली थी,
मुझे सब का पता दो – फ़ोन नंबर सहित !
और अंत मेँ – यह समांतर शब्द मात्र तुम्हारा और मेरा ही नहीँ है –
शब्द-समांतर
का अर्थ पर्याय है !
तो, जब तक आएगा फ़रवरी मेँ हम मिलेँगे, पहले से सूचना देना – तारीख़ोँ की!
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