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ईश्वर

In Culture, Dictionary, Hindi, Hindi, History, Language, Spiritual by Arvind KumarLeave a Comment

 

ईश्वर

ईश्वर कहो, भगवान कहो, अल्‍लाह या गौड या कुछ और, वह जो भी है या नहीं है, सत्‍य है या मान्‍यता, विश्वास है या अंधविश्वास, साकार है या निराकार–किसी न किसी रूप में संसार के ९९ प्रतिशत से अधिक लोग उसे मानते हैं. ईश्वर का होना मानव मन के लिए संबल का काम करता है. दार्शनिक-क्रांतिकारी नेता वाल्‍तेयर ने कहा है कि ईश्वर न होता तो मानव उसे बना ही लेता. महान वैज्ञानिक आइंस्‍टाइन को उस की सत्ता में आस्‍था थी. हमारे वैज्ञानिक राष्‍ट्रपति डाक्‍टर ए पी जे अब्‍दुल कलाम ने विंग्‍स आफ़ फ़ायर में लिखा है, ‘मैं समझ नहीं पाता कि लोग क्‍यों कहते हैं कि विज्ञान मानव को ईश्वर से दूर ले जाता है. मेरी नज़र में तो विज्ञान का मार्ग हृदय के गलियारों से हो कर गुज़रता है… मेरे लिए साइंस हमेशा आध्‍यात्‍मिक उन्नति और आत्‍मबोध का मार्ग रही है…’

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पारसी ईश्वर अहुरमज़्द

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ईसाई ईश्वर

अमर कोश में शिव को ईश्वर कहा गया है. अद्वैत ब्रह्म को शिव कहते हैं. आम हिंदू राम पुकारता है तो उस का मतलब दशरथ के बेटे राम से नहीं ईश्वर से होता है. मेरी और मेरी पत्‍नी कुसुम कुमार की पुस्‍तक शब्‍देश्वरी (राजकमल प्रकाशन) में ईश्वर, देवेीदेवताओं, मनुओं, ऋषियों, राक्षसों आदि के नाम संकलित हैं. उस में ईश्वर वाले अध्‍याय में लिखा है : ‘ईश्वर अगुण और अनाम है. अगुण और अनाम के वर्णन में भाषा की सीमाओं के कारण मानव ने उस के नाम रखे हैं. जिस तरह ईश्वर अनंत है, उसी तरह उस के नाम भी अनंत हैं. सर्वे सर्वार्थ वाचकाः सिद्धांत के अनुसार सभी शब्‍द ईश्वर के नाम हैं. ब्रह्‍मा, विष्‍णु, विष्‍णु के सभी अवतारों और शिव के सभी नाम ईश्वर के भी नाम हैं.’ शब्‍देश्वरी में ईश्वर के लिए ५६२ शब्‍द हैं. उस में शिव के २,४११, विष्‍णु के १,६७६, राम के १२९, कृष्‍ण के ४४१ नाम हैं. ये सभी नाम ईश्वर के नाम भी कहे जा सकते हैं. समांतर कोश में ईश्वर के लिए केवल निम्‍न शब्‍द हैं :

शब्‍दांतर : ईश्वर

अंतक, अंतर पुरुष, अंतर्यामी, अकर्मा, अकाम, अकाय, अकाल पुरुष, अक्षय, अक्षर, अखंड, अखिलेश, अगोचर, अचल, अचिंत्‍य, अच्‍युत, अजन्‍मा, अजर अमर, अज्ञेय, अथाह, अदिति, अदृश्‍य, अधिदेव, अधीश्वर, अनंत, अनंताभिधेय, अनाकार, अनादि, अनाम, अनेकरूप, अन्नदाता, अपार, अमर, अमूर्त्त, अलक्ष्य, अलख निरंजन, अलभ्‍य, अल्‍लाह, अविनाशी, अव्‍यक्त, अशरण शरण, आत्‍मभू, आदिदेव, आप्‍तकाम, इंद्रियातीत, ईश, ईश्वर, उत्तम पुरुष, ऊपर वाला, एक, एक ओंकार, करतार, करुणानिधि, कर्ता, कर्तार, काल पुरुष, कालाध्‍यक्ष, कुंभकार, कूटस्‍थ, क्षेत्रज्ञ, गुणातीत, गोस्‍वामी, गौड, घटकार, घटघटवासी, चतुर्मूर्ति, चतुर्वेद, चिंतामणि, चित्रकार, चिन्‍मय, चैतन्‍य, जगदात्‍मा, जगदीश, जगदीश्वर, जगन्नाथ, जगन्नियंता, जनार्दन, जीवेश, ज्ञान गोचर, ज्ञानपति, ज्‍येष्‍ठ, तत्त्वज्ञ, तत्‍पुरुष, तपोमूर्ति, त्रिगुणातीत, त्रिधामूर्ति, त्रिभुवनेश्वर, त्रिमूर्ति, त्रिलोकी नाथ, त्रिलोकेश्वर, दयामय, दाता, दातार, दानी, दीनानाथ, दुर्गम, देव, देवाधिप, दैव, धाता, नारायण, निरंजन, निराकार, निर्गुण, निर्विकार, निष्‍कर्म, निष्‍काम, पतितपावन, परम, परम पिता, परम हंस, परमात्‍मा, परमानंद, परमेश्वर, परात्‍पर, परेश, पुरुष, पुरुषोत्तम, प्रजापति, प्रणव, प्रभु, फलाध्‍यक्ष, बनावनहार, बेअंत, भगवंत, भगवद, भगवान, भवभंजन, भूतादि, मंगलालय, महद्-, महात्‍मा, महाप्रभु, मायावी, मुक्त, मूर्तिकार, रचेता, रब, रमैया, लिंगी, वह, वासु, विधना, विधाता, विधि, विभु, विरंचि, विश्वंकर, विश्वंभर, विश्वकर्मा, विश्वनाथ, विश्वपाल, विश्व साक्षी, विश्वात्‍मा, विश्वाधिप, विश्वेश्वर, वैराज, वैश्वानर, शब्‍दातीत, शाश्वत, शिव, शेष, सच्‍चिदानंद, सत्‍य, सद्गुरु, सनातन, सर्जनहार, सर्वज्ञ, सर्वतोमुख, सर्वदर्शी, सर्वनियंता, सर्वव्‍यापी, सर्वांतर्यामी, सर्वेश्वर, साईँ, साक्षी, साजन, साहू, सिरजनहारा, सुजान, सूक्ष्म, सृष्‍टा, स्‍वयंप्रकाश, स्‍वयंप्रभ, स्‍वयंभुव, स्‍वयंभू, स्‍वामी, हृषीकेश.

भावांतर : ईश्वर

भाषाक्षेत्रे में हर बार शब्‍दों के अर्थांतर दिए जाते रहे हैं. इस बार से यदा कदा एक ही वस्‍तु के शब्‍दांतरों में जो भावांतर होता है, वह देने की कोशिश की जाएगी. श्रीगणेश करते हैं ईश्वर के कुछ नामों से–

भगवान. ईश्वर की अणिमा आदि विभूतियों को भग कहा जाता है. इस लिए भगवान का अर्थ है इन विभूतियों से संपन्न शक्ति. वैसे भग के कई अन्‍य अर्थ भी हैं.

वाहिद. ईश्वर अद्वैत है. अखंड है. एक है. उस के अलावा कोई और ईश्वर नहीं है. ला इलाह इल्‍लिलाह. ईश्वर की एकता को इस्‍लाम में ‘वहादत’ कहा जाता है, और ईश्वर को ‘वाहिद’.

जेहोवा. Jehova. हिब्रू भाषा में ईश्वर का नाम है ‘आदोनाई’ Adonai –स्‍वामी, लार्ड… ईश्वर इतना उच्‍च, आदरणीय और महान है कि उस का नाम ज़बान पर नहीं लाना चाहिए. वह अकथ्‍य, अवाच्‍य, अनुच्‍चार्य है. ठीक वैसे ही जैसे हमारे यहाँ बड़ों को उन के नाम से नहीं पुकारते, बल्‍कि आप आदि शब्‍दों से काम चलाते हैं. इसलिए आदोनाई के स्‍वर अक्षरों ए ओ ए आई का चतुर्वर्णीकरण बनाया गया वाई ऐच डब्‍लू ऐच. इस का उच्‍चारण होता है इहोवा या यिहोवा. अँगरेजी में इस का रूप और उच्‍चारण है ‘जेहोवा’.

अकर्मा. सब कुछ करते हुए भी ईश्वर कुछ नहीं करता. इस लिए वह अकर्मा है.

निर्विकार. ‘विकार’ का अर्थ आम तौर पर लोग ‘बिगाड़’ समझते हैं. विकार का मुख्‍य अर्थ है ‘परिवर्तन’. ईश्वर परिवर्तनहीन है, निर्विकार है.

निर्गुण. ईश्वर गुणातीत है. वह न यह है न वह है. उस की परिभाषा नहीं है. उसे देखा नहीं जा सकता. उसे बताया भी नहीं जा सकता. सत्त्व, रजस् और तमस् गुण उस से परे हैं.

सगुण. ईश्वर निर्गुण है, लेकिन हमारी बुद्धि उस निर्गुण भाव को आत्‍मसात् नहीं कर पाती. इस लिए हम उसे रूप देते हैं, आकार देते हैं, उस में गुणों की स्‍थापना करते हैं.

अहुर्मज़्‍द. पारसी ईश्वर. असुरमघ, उरमज़्‍द, गरुड़ाकार, धर्म नेकी और प्रकाश का देवता, प्रकाशपति, बुद्धि देवता, मग, मघ, मज़्‍द, विवेकात्‍मा.

अर्थ क्‍या है?

नीचे चार शब्‍दों के सामने चार चार संभावित अर्थ लिखे हैं. इन चारों अर्थों के अतिरिक्त इन के कुछ अन्‍य अर्थ भी हो सकते हैं. लेकिन जो अर्थ यहाँ लिखे गए हैं उन में से केवल एक अर्थ सही है. आप को अपना शब्‍द ज्ञान जाँचने के लिए इन में से वह सही अर्थ पहचानना है–

हिरण्‍यगर्भ. १. हिरण रूपी ईश्वर की नाभि. २. संसार. ३. प्रकृति का मूल तत्त्व. ४. सूर्य देवता.

पुरुष. १. मर्यादा पुरुषोत्तम राम. २. वैराज. ३. काल. ४. आत्‍मा.

निरूप. १. निराकार. २. अनुपम. ३. ईश्वर की परिभाषा. ४. अज्ञान.

भवभीत. १. आवागमन चक्र. २. पुनर्जन्‍म से भयभीत. ३. मोक्ष मार्ग. ४. मंदिर की दीवार.

उत्तर

हिरण्‍यगर्भ. ३. प्रकृति का मूल तत्त्व. हिरण्‍य के अर्थ हैं : बहुमूल्‍य धातु, स्‍वर्ण, नित्‍य पदार्थ, आदि. ‘हिरण्‍यगर्भ’ का शब्‍दार्थ है सोने के अंडे में से उत्‍पन्न. दर्शन में यह सृष्‍टि के आदि कारणों में से माना गया है. इस के कुछ पर्याय कहे गए हैं : जीवघन, पृथ्‍वी आकाश का समाहार, ब्रह्‍म, ब्रह्मा (क्‍योंकि उस की उत्‍पत्ति सोने के अंडे से मानी गई है), भूतात्‍मा, सूक्ष्म शरीरधारी आत्‍मा.

निरूप. १. निराकार. अकरण, अकल, अकाय, अनंत, अनादि, अमूर्त, अरूप, अलक्ष्य, अलख, आकारहीन, निराकार, निरूप, मूर्तिहीन, रूपहीन. निरूप के अन्‍य अर्थ हैं : कुरुप, वायु, आकाश, देवता.

पुरुष. २. वैराज–ईश्वर-प्रकृति का प्रथम अवतार, अप्रकृति, असंग, सांख्‍य में वर्णित पच्‍चीस तत्त्वों का निर्माण तत्त्व– छब्‍बीसवाँ तत्त्व.

भवभीत. २. पुनर्जन्‍म से भयभीत. ‘भवभीति’ का अर्थ है पुनर्जन्‍म का भय. अनेक धर्मों में ईश्वर भक्ति का मूल आधार आवागमन चक्र से मुक्त होने की लालसा ही है.

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