गज्‍जू, कोको और काली दोस्‍त बने…

In Culture, Fiction, For children by Arvind KumarLeave a Comment

भुसुंडी नाम का वह कौआ देखने से ही बड़ा चालाक और दुष्‍ट मालूम पड़ता था। वह था भी बड़ा चालाक और दुष्‍ट। कई बार जब चिड़िया और चिड़े दाना चुगने चले जाते तो वह उन के घोंसलों में घुस जाता और कमज़ोर बच्‍चों को चोंच में दबा कर उड़ जाता। मौक़ा पाते ही उन्‍हें खा जाता। आज भी उस ने सोचा कि मौक़ा अच्‍छा है।

 

गज्‍जू को नहाना बहुत पसंद था। नदी किनारे जा कर वह सूँड से शरीर पर पानी उलीचता था। आसपास नहाने वाले हाथियों पर भी पानी की बौछार करता था। उस की मम्‍मी भी उस पर पानी डालती थी। अच्‍छी तरह नहा कर अब गज्‍जू मस्‍ती में चला जा रहा था। उस का पूरा नाम तो है गजराज, पर सब उसे प्‍यार में गज्‍जू ही कहते हैं। अपने साथी हाथियों से अलग हो कर जंगल में अकेले घूमना उस का शौक़ था। इस का एक कारण यह था कि हाथियों के साथ निकलने पर वह जंगल के अन्‍य जानवरों के साथ नहीं खेल पाता था। सब डर जाते थे। उस का कहना था, ‘यह क्‍या कि हमेशा हाथियों के ही बीच रहो! दूसरों से भी तो मिलना हिलना चाहिए!

गज्‍जू मस्‍ती में झूमता चला जा रहा था। अचानक उस ने देखा कि ऊपर से कोई चीज़ नीचे गिरी – फड़फड़ाती। गज्‍जू रुक गया। यदि वह न रुकता तो वह चीज़ उस के पैरों के नीचे आ कर पिच जाती। गज्‍जू ने झुक कर देखा। यह कोई चिड़िया को छोटा सा बच्‍चा था। अभी उस के पंख भी पूरी तरह नहीं निकले थे। बच्‍चा ज़मीन पर पड़ा तड़फड़ा रहा था।

गज्‍जू ने सिर उठा कर देखा। वहाँ कोई नहीं था। खुला आसमान था। हाँ, दूर, बहुत दूर एक चील उड़ी जा रही थी। गज्‍जू समझ नहीं पाया कि चिड़िया का नन्‍हा सा पोटा वहाँ आया कहाँ से। लेकिन सोचने का समय नहीं था। पोटे को तत्‍काल सहायता नहीं दी गई तो वह मर जाएगा।

गज्‍जू ने बड़ी सावधानी से सूँड नीचे कर दी, जहाँ पोटा धरती पर पड़ा था। सूँड से हलका गरम साँस उस पर छोड़ा। इस से पोटे के शरीर को कुछ गरमी पहुँची। सेंक मिलने पर पोटे में कुछ जान आई।

गज्‍जू ने सोचा कि पहले तो पोटे के माँ बाप को तलाशना चाहिए। उस ने पोटे को अपने सिर पर बैठा लिया। वह ज़ोर ज़ोर से पुकारता आगे बढ़ने लगा, ‘किसी का बच्‍चा खो गया हो, तो ले ले। मुझे यह बच्‍चा धरती पर पड़ा मिला है।

वह बहुत देर तक आवाज़ लगाता रहा। तरह तरह के जानवर बिलों में से मुँह निकाल कर देखने लगे। लेकिन कोई कुछ नहीं बोला। पेड़ों पर रहने वाले बंदरों ने देखा। पर उन के सब बच्‍चे उन के पास थे। पेड़ों पर कई तरह की चिड़ियाओं के घोंसले भी थे। अकसर चिड़िया दाना चुगने गई थीं। एक खुटकबढ़ैया पेड़ में छेद कर रही थी। उस ने पलट कर देखा। वह नया घोंसला बना रही थी। घोंसला बन जाने पर वह उस में अंडे देने वाली थी। पर अभी तो उस का कोई बच्‍चा था ही नहीं। वह फिर से अपने काम में लग गई।

गज्‍जू ने फिर आवाज़ लगाई, ‘है कोई जो इस बच्‍चे को पालना चाहे। यह चिड़िया का बच्‍चा है।

दूर एक पेड़ में गौरैया घोंसला बना रही थी। गज्‍जू की पुकार सुन कर वह आई। पर पोटे को देख कर चली गई। अभी उस का भी कोई बच्‍चा नहीं था।

गज्‍जू ने धीरज नहीं छोड़ा। वह फिर से आवाज़ लगाने लगा, ‘भगवान के नाम पर कोई इस बच्‍चे को ले लो… इसे पाल पोस कर बड़ा करो।

इस बार उस की आवाज़ एक कौए ने सुनी। उड़ते उड़ते वह गज्‍जू के ऊपर आ गया। उस ने देखा कि गज्‍जू के सिर पर चिड़िया का पोटा बैठा है। भुसुंडी नाम का वह कौआ देखने से ही बड़ा चालाक और दुष्‍ट मालूम पड़ता था। वह था भी बड़ा चालाक और दुष्‍ट। कई बार जब चिड़िया और चिड़े दाना चुगने चले जाते तो वह उन के घोंसलों में घुस जाता और कमज़ोर बच्‍चों को चोंच में दबा कर उड़ जाता। मौक़ा पाते ही उन्‍हें खा जाता। आज भी उस ने सोचा कि मौक़ा अच्‍छा है। खाने को नया कोमल और स्‍वादिष्‍ठ शिकार मिलेगा।

वह गज्‍जू के सामने आ गया। पोटे के पास जा कर रोवनी आवाज़ में बोला, ‘अरे, मेरे लाल! कहाँ खो गया था, रे, तू! मैं तो तुझे कब से ढूँढ रहा हूँ।

अब वह गज्‍जू से बोला, ‘यह तो मेरा कागा है। पता नहीं कब मेरे घोंसले से निकल गया! बड़ी देर से मैं इसे तलाश रहा हूँ। ला, भैया, मुझे दे दे।

गज्‍जू कोई भोलाभाला हाथी नहीं था। वह बड़ा सयाना था। उसे बहकाना बहुत कठिन था। उसेे भुसुंडी कौए की सूरत पर ही शक था। उस की आवाज़ तो और भी बनावटी लग रही थी। गज्‍जू ने कहा, ‘पहले तुम कोई पहचान बताओ, जिस से पता चले कि यह पोटा तुम्‍हारा ही बच्‍चा है।

भुसुंडी कुछ देर सोचता रहा। फिर बोला, ‘छोटे बच्‍चों में ऐसा कोई ख़ास निशान तो होता नहीं, जिस से उन्‍हें पहचाना जा सके। लेकिन मैं सच कहता हूँ कि यह मेरा बच्‍चा है। बस, जल्‍दी से मुझे दे दो। इस की मम्‍मी रो रो कर आसमान सिर पर उठाए है।

गज्‍जू बोला, ‘एक पहचान तो पक्षी के हर बच्‍चे में होती है। तुम भी जानते हो, हर पक्षी के पंखों का रंग अलग होता है।

भुसुंडी ने कहा, ‘देख लो, मेरे पंख भी काले हैं, और इस के भी।

गज्‍जू ने पोटे को एक बार फिर धरती पर लिटा दिया। उस के पंखों को बड़े ध्‍यान से देखा। फिर भुसुंडी के पंख ध्‍यान से देखे। दोनों का रंग काला था। पर पता नहीं क्‍यों उसे भुसुंडी की बात पर भरोसा नहीं हो रहा था। उस ने एक बार फिर दोनों के पंखों को ध्‍यान से देखा। अब गज्‍जू ने बड़े नाटकीय अंदाज़ में कहा, ‘हाँ, हाँ, तुम दोनों के पंख तो काले हैं। लो, तुम इसे ले जाओ।

जैसे ही भुसुंडी धरती पर से पोटे को उठाने को बढ़ा तो गज्‍जू ने उस पर सूँड से वार कर दिया। काँव काँव करते भुसुंडी को उड़ना पड़ा। भुसुंडी की चोंच में थोड़ी सी चोट भी लग गई थी। वह बोला, ‘क्‍या करते हो! मेरा बच्‍चा चुरा लिया है, और मुझे मारते हो!

गज्‍जू बोला, ‘मक्‍कार! तू ने क्‍या समझा है मुझे? बच्‍चा! उम्र में तो मैं बच्‍चा हूँ लेकिन मूरख नहीं हूँ! देख तो सही तेरे पंख लंबोतरे हैं और इस के छोटे और रोएँदार। यह तेरा बच्‍चा हो ही नहीं सकता। और फिर अपनी चोंच तो देख! तेरी चोंच और इस की चोंच में कितना अंतर है? अब मैं समझ गया यह बच्‍चा तेरा नहीं है, यह तो किसी कोयल का बच्‍चा है। तू इसे खाना चाहता है। जा! भाग जा! नहीं तो जंगल के सारे हाथियों से तेरा घोंसला ही मिटवा दूँगा!

भुसुंडी कौआ चला गया।

पोटे को लेने वाला कोई नहीं मिल रहा था। अब गज्‍जू के सामने समस्‍या यह थी कि पोटे का क्‍या करे? रात होने का आई थी। यूँ ही छोड़ देगा तो जंगल में कोई भी उसे खा जाएगा।

गज्‍जू ने ज़मीन में एक छोटा सा गड्ढा बनाया। उस पर घास डाल कर कोमल बिस्‍तर बनाया और उस पर पोटे को रख दिया। पास ही उस ने एक बड़ा सा पत्ता ढूँढ़ निकाला। पोटे को घास के बिस्‍तर पर लिटा कर उस ने पत्ते से ढँक दिया।

अब गज्‍जू घर जाने लगा। पर उसे ख़याल आया कि यदि रात में पोटे की रखवाली नहीं की गई तो कोई न कोई जानवर उसे मार कर खा जाएगा। इस लिए वह फिर वहीं पोटे के पास आ गया। रात भर वह गड्ढे के चारों ओर सूँड का घेरा बनाए लेटा रहा। वह सोचता रहा कि मेरी मम्‍मी को मेरी चिंता हो रही होगी। पर बेचारे पोटे को अकेला छोड़ कर जाने को वह तैयार नहीं था।

धीरे धीरे सुबह हो गई। लाल लाल सूरज निकल आया। हर तरफ़ चिड़ियाएँ चहचहाने लगीं। एक बार फिर गज्‍जू ने आवाज़ लगाई, ‘किसी चिडिया का बच्‍चा खो गया हो, तो ले ले। मुझे यह बच्‍चा कल घरती पर पड़ा मिला था।

सभी चिड़ियाँ अपने अपने काम से जा रही थीं। सब को अपने अपने बच्‍चों के लिए चुग्‍गा लाना था। किसी ने गज्‍जू की बात पर ध्‍यान नहीं दिया। गज्‍जू ने देखा कि एक पेड़ पर चिड़िया अपने बच्‍चों को दाना खिला रही थी। गज्‍जू को ध्‍यान आया कि बेचारा पोटा भी भूखा होगा। लेकिन वह सूँड से पोटे को खाना नहीं खिला सकता था। उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्‍या करे। तभी उस ने देखा कि एक छोटी सी चींटी अनाज का कण पकड़े पकड़े जा रही है। वह चींटी से कहने लगा, ‘चींटी, चींटी, तुम एक दो दाने पोटे की चोंच में भी डाल दो, नहीं तो यह भूखा मर जाएगा।

काली नाम की यह चींटी बड़ी दयालु थी। वह झट से राज़ी हो गई। उस ने एक दो नहीं, बारी बारी से कई दाने पोटे को खिलाए। इस तरह काली, गज्‍जू और पोटा आपस में दोस्‍त बन गए। गज्‍जू और काली ने मिल कर पोटे का नाम रखा – कोको।

गज्‍जू ने कोको और काली को अपने सिर पर बैठा लिया और जंगल की सैर कराने लगा। वह यह भी भूल गया कि उस की मम्‍मी परेशान हो रही होगी।

गज्‍जू की मम्‍मी का नाम था – मातंगी। जब गज्‍जू रात भर घर न लौटा तो वह उसे आवाज़ देती जंगल में घूमने लगी। आख़िर गज्‍जू उसे मिल ही गया। वह एक पेड़ के नीचे कोको को उड़ना सिखा रहा था। बार बार उसे सिर पर बैठाता और फिर सिर को ऐसे झटकता कि कोको गिर पड़े। गिरता गिरता कोको पंख फड़फड़ाता था। धीरे धीरे उसे पंख मारने की आदत पड़ती जा रही थी। हर बार ताली बजा कर काली कोको का हौंसला बढ़ाती थी। जब कोको ठीक तरह उतरता तो वह उस की चोंच में एक दाना डाल देती।

गज्‍जू को काली और कोको से खेलता देख कर मातंगी को बड़ा ग़ुस्‍सा आया। वह उसे झिड़कने लगी, ‘कहाँ था रात भर? मैं और तेरे पिता मतंग राज तेरे लिए फ़िकर करते रहे और तू यहाँ मस्‍ती कर रहा है!

गज्‍जू ने मम्‍मी को सारी बात बताई। सुन कर मम्‍मी बड़ी प्रसन्न हुईं। वह बोलीं, ‘कोई बात नहीं। अब घर चल। साथ में अपने नए दोस्‍तों को भी लेता चल! अब यह भी हमारे साथ रहेंगे और तेरे साथ खेला करेंगे। लेकिन नहाते समय इन पर पानी मत डालना, वरना ये दोनों तेरे खेल खेल में मर जाएँगे!

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©अरविंद कुमार

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