सर ने मूँछ में अटके मच्छर को निकाल कर मसल फेंका, और बोले, ‘‘अब मच्छर ही को लो, वक़्त आने पर यह उड़ना कीड़ा भी शेर को पिदा सकता है।’’
‘अरे क्यों शान बघारता है। ख़ुद को जंगल का राजा समझता है! तेरी औक़ात ही क्या है, तेरी ताक़त ही क्या है! किस बूते अकड़ रहा है? कायरों के सामने अपनी हाँकता रहता है। तू ने वह कहावत नहीं सुनी कि घर में तो कुत्ता भी शेर होता है? यह जंगल तेरा घर है। मैं चाहूँ तो तुझे यहीं दिन में तारे दिखा दूँगा।’
अक्षय स्कूल की तरफ़ से ट्रिप पर छुट्टियों में जंगल की सैर पर आया था। साथ में थे कुछ सहपाठी, और देखरेख करने आए दो टीचर — हिंदी की मैम नीता और पी.ई. (फ़िज़िकल एजुकेशन) प्रशिक्षक लंबी लंबी मूँछों वाले राजसिंह। शाम का समय था। सब डाक बंगलो के बरामदे में बैठे थे। जंगल के जीवों की बात होने लगी। सवाल उठा, ‘‘जंगल का राजा कौन?’’ टीचर कुछ कहें इस से पहले अक्षय बोल उठा, ‘‘शेर, शेर, और कौन?’’ अन्य बच्चे भी एक स्वर से बोले, ‘‘शेर, शेर, शेर, शेर!’’
अचानक मच्छरों की भारी बौछार आई। सब परेशान हो उठे। पी.ई. सर राजसिंह को मच्छरों ने कई जगह काट खाया था। यूँ तो उन्हें अपनी बहादुरी पर बड़ा नाज़ था, पर मच्छरों से डरते थे। उन की लंबी मूँछों में एक मच्छर उलझा था। लगातार उसे निकालने की कोशिश कर रहे थे।
सर कहने लगे, ‘‘जंगल में कोई किसी का राजा नहीं होता। समय पड़ने पर कोई भी जानवर किसी पर भी भारी पड़ सकता है। उतनी देर के लिए वही अपने को सर्वशक्तिशाली राजा समझने लगता है। ‘’
सर ने मूँछ में अटके मच्छर को निकाल कर मसल फेंका, और बोले, ‘‘अब मच्छर ही को लो, वक़्त आने पर यह उड़ना कीड़ा भी शेर को पिदा सकता है।’’
नीता मैम को राजसिंह सर की बात काटने में बड़ा मज़ा आता था। वह चहक उठीं, ‘‘यह भी कोई बात हुई, कोर्स की सभी किताबों में लिखा है कि शेर ही जंगल का राजा है। हाँ, कुछ लोग हाथी को भी शेर का राजा मानते हैं। यह मच्छर… इस की क्या बिसात… सिवाए इस के कि इस के सामने आप की जान निकलती है!’’
राजसिंह सर बोले, ‘‘अपनी बात भूल गईं। काकरोच देखते ही कैसी चीखें निकालती हैं आप क्लासरूम में। ख़ैर, मैं एक क़िस्सा सुनाता हूँ—बिल्कुल सच्चा, सोलहों आने, सौओं पैसे सच्चा। किस तरह मच्छर ने शेर को बुरी तरह पिदा दिया, और अपने को जंगल का राजा कहने लगा।…
‘‘तो बच्चो, ध्यान दे कर सुनो—’’
तल्लीन हो कर बच्चे बड़ी उत्सुकता से सर की बातें सुनने लगे। सर कह रहे थे—
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गिरनार जंगल में एक बहुत भयानक शेर रहता था। उस का नाम ही पड़ गया था सिंहराज। सब जानवर उस से डरते थे। सिंहराज दहाड़ता तो दूसरे शेर भी दूर भाग जाते। छोटे मोटे जानवरों का तो कहना ही क्या… उन का दिल बैठ जाता, वे काँपने लगते, घिग्घी बँध जातेी। सब बिलों में दुबक जाते। सारे पक्षी पत्तों के पीछे छिप जाते। दहाड़ें मारता सिंहराज शान से सिर उठाए राजाओं की तरह छाती फुलाए घूमता रहता। जो भी अभागा जानवर शिकंजे में आता उसे लहूलुहान कर देता। कभी कभी खा ही जाता। उस के भय से हिरन तो गिरनार से भाग ही गए थे। आदमियों ने भेी गिरनार जाना छोड़ दिया था। बड़े से बड़ा शिकारी सिंहराज के नाम से काँपता था।
उस दिन पेड़ के नीचे खड़ा सिंहराज दहाड़ रहा था। पास ही जोहड़ के गंदे पानी पर भिनकते छोटे से भिनभिन मच्छर से न रहा गया। उड़ता उड़ता वह शेर के कान पर पहुँचा और भुनभुन करता कहने लगा, ‘अरे क्यों शान बघारता है। ख़ुद को जंगल का राजा समझता है! तेरी औक़ात ही क्या है, तेरी ताक़त ही क्या है! किस बूते अकड़ रहा है? कायरों के सामने अपनी हाँकता रहता है। तू ने वह कहावत नहीं सुनी कि घर में तो कुत्ता भी शेर होता है? यह जंगल तेरा घर है। मैं चाहूँ तो तुझे यहीं दिन में तारे दिखा दूँगा।’
भिनभिन मच्छर अभी इतना ही कह पाया था कि शेर ग़ुस्से में भर उठा। गरदन इधर उधर घुमाता बोला, ‘अरे बेवकूफ़, कौन है तू? लगता है आज तेरे सिर पर मौत तुझे मँडरा रही है। अभी मैं तेरा काम तमाम किए देता हूँ।’
मच्छर बोला, ‘सच तो यह है कि मेरे सर पर मौत नहीं मँडरा रही, मैं तेरे सिर पर मँडरा रहा हूँ। तू ठहरा जंगल का राजा! तेरे सामने मैं भला क्या हूँ? फिर भी हो जाएँ दो दो हाथ! तुझ जैसे घमंडी मेरा मुक़ाबला किस दम पर कर सकते हैं! तू मेरी मूँछ को एक भी बाल बाँका नहीं कर सकता। आज मैं ने तुझे छठी का दूध नहीं याद करा दिया तो मेरा नाम भिनभिन नहीं। तुझे नीचा न दिखाया तो मूँछें नीची कर के जंगल से चला जाऊँगा। ले सँभल, मैं तुझ पर वार करता हूँ। फिर न कहियो कि चेताया नहीं!’
यह कहते ही मच्छर शेर के कान में घुस कर घूँ घूँ करने लगा। पहले तो सिंहराज मच्छर की भुनभुन से ही परेशान हो गया।
इस बीच भिनभिन सिंहराज के कान के कोमल भाग पर बैठ गया। भिनभिन की थूथनी इंजैक्शन से भी ज़्यादा नोंकीली थी। वही उस ने पैनी ज़हरीली सूईं की तरह घोंप दी। और लगा काटने। एक बारगी शेर के मुँह से चीं निकल गई। उस ने पंजा उठा कर कान पर दे मारा! मच्छर तो पहले से ही तैयार था। एक दम उड़ गया। अपने ही नाख़ूनों से शेर ने अपने कान पर घाव कर लिया।
अब भिनभिन उड़ता हुआ शेर की आँखों के आगे नाचने लगा। शेर के पलक अपने आप मुँद जाते। उसे दिखाई देना बंद हो जाता। मच्छर को मुँह में पकड़ने के लिए शेर बार बार उछलता, लेकिन मच्छर बड़ी चालाकी से बच निकलता।
खिलखिल करते सारे बच्चे मज़े ले कर तालियाँ पीटने लगे। नीता मैम राजसिंह सर की कहानी पर नाकभौं सिकोड़ रही थीं।
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राजसिंह सर कहानी को आगे बढ़ाने लगे—
पेड़ पर बैठे सारे पक्षी पत्तों में से झाँक झाँक कर तमाशा देख रहे थे। शेर को उछलते नाचते देख वे पंख फड़फड़ा कर और चीं चीं कर के शोर मचाने लगे। शेर का ग़ुस्सा और भी बढ़ता गया। उसे ताव आने लगा।
अब मच्छर शेर के नथुने के अगले कोमल हिस्से पर बैठ गया। शेर पंजा ऊपर उठाता तो मच्छर उड़ जाता। एक बार तो भिनभिन शेर की नाक में घुस कर बाहर निकल आया। शेर को बड़े ज़ोर की छींक आई। मच्छर छींक से उछल कर दूर जा पहुँचा। लेकिन वह फिर लौट आया और शेर को तंग करने लगा। शेर तरह तरह से मच्छर से पीछा छुड़ाने की कोशिश करता। उसे मारना चाहता, लेकिन वह भिनभिन मच्छर का कुछ नहीं बिगाड़ पाया।
एक बार फिर जब भिनभिन शेर की नाक पर बैठ गया, और भुनभुन करने लगा तो शेर ने सोचा कि पंजे से काम नहीं चलेगा। धोखे से मैं अपनी नाक पेड़ से रगड़ दूँगा तो मच्छर का कचूमर निकल जाएगा।
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अब तक शेर और मच्छर की लड़ाई की ख़बर दूर दूर तक फैल गई थी। तरह तरह के जानवर, जो शेर से डरा करते थे, आ कर गोल घेरा बना कर तमाशा देखने लगे। पहले तो वे डर के मारे दूर ही रहे। लेकिन ज्यों ज्यों शेर की परेशानी बढ़ती गई, वे नजदीक आते गए। कुछ ही देर में चारों तरफ़ ऐसे खड़े हो गए जैसे बाजीगर का तमाशा देखने के लिए तुम लोग खड़े हो जाते हैं।
हाँ, तो शेर क्रोध में अंधा हो कर पेड़ से नाक रगड़ने के लिए आगे बढ़ा। ग़ुस्से में वह यह भी देखना भूल गया कि पेड़ में काँटे हैं। शेर को पेड़ की तरफ़ बढ़ता देख कर उस पर बैठे पक्षी उड़ गए। आख़िरी मौक़े पर भिनभिन शेर की नाक से हट गया। शेर ने जो पेड़ से नाक रगड़ी, तो कँटीले काँटे उस के मुँह में चुभ गए। एक काँटा तो उस की आँख में घुस गया। दर्द के मारे शेर कराह उठा।
दर्द बढ़ने के साथ साथ शेर का ग़ुस्सा भी बढ़ता जा रहा था। वह पागल सा हो कर इधर उधर दौड़ने और दहाड़ने लगा। जिधर शेर जाता भिभिन भी उस के कान के पास अपना भुनभुन राग छेड़ता वहीं पहुँच जाता। जब तब मच्छर शेर को काट भी खाता।
इसी देर तरह बहुत देर तक भाग दौड़ चलती रही। आख़िर दर्द और थकान के कारण शेर अधमरा हो गया। आँखें नीची कर के वह सर झुका कर बोला : ‘भाई मच्छर, मैं आप से हार मानता हूँ। मुझे छोड़ दो। मैं तुम से नहीं लड़ सकता। आज से मैं आप का सेवक हूँ और आप जंगल के राजा!’
यह सुन कर जंगल के सब जानवर तालियाँ बजाने और ख़ुशियाँ मनाने लगे। वे मच्छर के काटने से तो डरते थे, लेकिन यह भी जानते थे कि मच्छर उन्हें जान से नहीं मार सकता।
मच्छर घमंड के मारे फूल कर कुप्पा हो गया था। जंगल के राजा को अकेले हराना कोई छोटी बात नहीं थी। वह शान से हवा में नाचने लगा और छाती फुला कर अपनी जीत का गीत गाने लगा :
मैं ने शेर पछाड़ा
मैं जंगल का राजा
राजा, राजा, राजाऽ
शेर है मेरा सेवक
मैं जंगल का राजा
राजा, राजा, राजाऽऽऽ
लेकिन बच्चो, यह मत समझ लेना कि मच्छर सचमुच जंगल का राजा बन गया था।
‘‘आप कहना क्या चाहते हैं,’’ नीता मैम ने टोका। ‘‘अभी तो आप कह रहे थे कि भिनभिन जंगल का राजा बन गया और अभी कह रहे हैं कि वह राजा नहीं बना…’’ हीं हीं हीं हीं…
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राजसिंह सर ने कहानी आगे बढ़ाई—
मच्छर के गाने से ऊब कर जानवरों की भीड़ तितर बितर होने लगी थी कि अचानक ही एक अजीब घटना घटी।
भिनभिन भूल गया था कि उस की कोई ताक़त नहीं है। वह तो छोटा सा मच्छर ही है। हुआ यह कि वह पास ही के पेड़ पर बने मकड़ी के जाले में जा फँसा। बेचारे ने बहुत हाथ पैर पटके, पंख फड़फड़ाए। जितनी ही वह निकलने की कोशिश करता उतना ही फँसता जाता। ज़्यादा हिलने डुलने से शिकारिन मकड़ी चौंकन्नी हो गई। फौरन ही वह मच्छर के पास आई और देखते देखते उसे हड़प गई। मच्छर की शान धरी की धरी रह गई।
बच्चो, इसी लिए कहा है कि शान में नहीं आना चाहिए। शेर को मच्छर ने हरा दिया तो शानची मच्छर को मकड़ी निगल गई।
सोने का समय हो गया था। सब बच्चे मसहरियों में घुस कर सो गए। नींद में भूल गए कि कुछ देर पहले तक वे मच्छरों की भुनभुन भिनभिन से परेशान हो रहे थे। और राजसिंह सर अपनी मूँछ में फँसे एक और मच्छर को निकाल कर मसल रहे थे।
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और अपने परिचितोँ को भी बताएँ.
©अरविंद कुमार
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