कैरियर और अकादमिक लेखन

In Culture, Language, Literature by Arvind KumarLeave a Comment

मुझ से प्रश्न अँगरेजी मेँ पूछे गए थे. कारण था प्रश्नकर्ता के पास यूनिकोड हिंदी फ़ौंट न होना. मेरे उत्तर हिंदी मेँ होने थे, और हैं

 

·        Career opportunities in academic writing (in broad prospects).

·        मेरी राय मेँ अकादमिक लेखन साहित्यिक लेखन के मुक़ाबले सुनिश्चित आय देने वाला है और उस मेँ अवसर अधिक हैं. कारण यह है कि साहित्यिक लेखन मेँ प्रकाशन के अवसर यूँ तो बहुत हैं (हर नगर मेँ प्रकाशक मिल जाते हैं) लेकिन वे पुस्तकें बेच नहीं पाते. अधिकतर साहित्यकार उपेक्षित रह जाते हैं. अकादमिक पुस्तकों का बाज़ार विशिष्ट क्षेत्रोँ तक ही है लेकिन उस के ग्राहक बहुत और सुनिश्चित और उत्सुक हैँ.

·        In this writing, what is the new things happening today?

·        मुझे इस विषय पर अधिक जानकारी नहीं है. मैँ पिछले लगभग चालीस सालोँ से घर पर रह कर ही सपत्नीक (मेरी पत्नी कुसुम कुमार और मैँ) कोशकारिता करता रहा हूँ. अन्य लोगों से मेरा संपर्क न के बराबर है, और ज्ञान सीमित है.

·        Future of academic writing.

·        मेरी राय मेँ अकादमिक लेखन का भविष्य अत्यधिक उज्ज्वल है. हर तरह की संभावनाएँ हैं. हर क्षेत्र में नए नए सरकारी और निजी विश्व विद्यालय, विद्यालय खुल रहे हैं. हर विषय पर आधिकारिक पाठ्य और सहायक पुस्तकों की आवशक्यता बढ़ती रहेगी… दुगुनी… चौगुनी…

·        Which kind of problem faces by a academic writer?

·        मेरे अपने सामने समस्याएँ नहीं आईं. कोशों की बिक्री आजकल काफ़ी होती है, और प्रकाशक कोश ग्रंथ छापने को उतावले रहते हैं. मेरे सामने समस्या प्रकाशक चुनने की रही. समांतर कोश (1996) का प्रकाशन पहले ही तय हो गया था. माघुरी पत्रिका के संपादन से त्यागपत्र दे कर मैँ 1978 में सपरिवार दिल्ली-गाज़ियाबाद आ गया था. काफ़ी लोगों को हमारे रचनाधीन कोश के बारे मेँ पता था. 1993 के आसपास हंस पत्रिका में इस के बारे में मेरी लेखमाला प्रकाशित हुई. तभी नेशनल बुक ट्रस्ट के तत्कालीन निदेशक मेरे ही नाम वाले श्री अरविंद कुमार ने मुझ से संपर्क किया. तब कोश रचनाधीन था, और कहना मुश्किल था कि कब पूरा होगा. मैं ने कहा तैयार होते ही मैं संपर्क करूँगा. 1996 के मध्य मैं ने उन्हें लिखा कि शीघ्र ही मैं वह कोश प्रकाशनार्थ देने योग्य हो जाऊँगा. इस पर उन की तत्काल स्वीकृति आ गई. और भी कई प्रतिष्ठित प्रकाशन गृह इस के लिए उत्सुक थे. हम ने सरकारी संस्थान होने के नाते ट्रस्ट को वरीयता दी. यह थी मेरे जीवन की पहली पुस्तक जो मेरे 66वें वर्ष में प्रकाशित हुई.

·        Good and bad things related to this writing.

·        अच्छाई यह है कि बाज़ार तैयार है, उपभोक्ता वर्ग की आवश्यकता सुज्ञात है. बुराई यह कि बहुत से रचनाकार मेहनत नहीं करते. परिणाम यह होता है कि उनका समय और प्रकाशकों का पैसा दोनों पानी मेँ बह जाते हैं.

·        As an academic writer free lance writing is better or a job? Please describe in detail…

·        अभी तक हमारे यहाँ प्रकाशन उद्योग सही मानों में नियोक्ता नहीं बन पाया है. अच्छे अकादमिक लेखक में पूरी योग्यता होनी चाहिए. ऐसे लेखक से वैतनिक स्तर पर लिखवाने के लिए मासिक देय आकर्षक होना चाहिए, जो कोई प्रकाशक देना नहीं चाहता और दे नहीं सकता, न ही वह ग्रंथ न बन पाने का जोख़िम उठाना चाहता है. साथ ही अधिकतर विशेषज्ञ लेखक नहीं होते और अपनी रचना सुपाठ्य नहीं बना पाते. अयोग्य अच्छे लेखक नहीं होते. इस प्रकार दोनों ही तरह वैतनिक रोज़गार ठीक सिद्ध नहीं होता. और यदि फ़्रीलांस बेसिस पर लिखें तो अच्छा लिखने के बाद लेखक प्रकाशक को मोहताज़ हो जाता है. वह उस के हाथ की कठपुतली बन कर रह जाता है और अपने शोषण का द्वार खोल देता है. अतः दोनों ही तरह अकादमिक लेखन साँसत में रहता है. परिणाम यह है कि किसी विषय की विदेशी रचनाओँ का हीनस्तरीय रीहैश (rehash) ही सामने आता है… विशेषकर हिंदी में…

·        Who is suitable for it?

·        हर वह आदमी जो बात विषयानुसार गंभीरता और संजीदगी से सहज भाषा में लिखने मेँ सक्षम हो.

·        Skills required.

·        लेखक को अपने विषय का संपूर्ण और अपटुडेट ज्ञान होना चाहिए.

·        Types of academic writing.

·        विज्ञान, तकनीक, किसी भी शास्त्र (साहित्य शास्त्र भी)… हिंदी में अकसर साहित्यिक समालोचनाएँ ही अकादमिक लेखन मानी जाती हैं. विज्ञान गणित शास्त्र आदि के हज़ारों पंडित हमारे पास हैं. पर कितने प्रकाशक इन विषयों पर हिंदी में छापते हैं!

·        Monthly income (from starting days to being a professional).

·        मुझे तो बिना किसी आर्थिक सहायता के घर बैठे तन पेट काट कर पूरे बीस साल काम करना पड़ा. कोई आय नहीं थी, पुरानी बचत खा रहे थे, या बेटे बेटी की सहायता से गुज़ारा कर रहे थे.

·        Key of success

·        सफलता के तीन गुर हैं 1. मेहनत. 2. लगन. 3. लगातार ज्ञानवर्धन…

Questions related to publishing a book

·        When did you start writing (means which age)?

·        मैं ने पत्रकारिता छोड़ने का निश्चय करने के बाद 43 वर्ष की अवस्था में पहले अंशकालिक काम शुरू किया, बाद में 46-47 की अवस्था में मुंबई (तब बंबई) से दिल्ली आ कर पूर्णकालिक काम करने लगा. बीच में फुटकर लेखन से अनियत और अनिश्चित आमदनी होती रही…

·        Are you only a writer or do you do something other for your livelihood?

·        मैं केवल लेखक हूँ… पर मेरी राय है कि यह काम विशेषज्ञों को अपनी प्रोफ़ैसरी या वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ अंशकालिक स्तर पर करना चाहिए, ताकि वह अपनी शर्तों पर प्रकाशकों से बात कर सकें…

·        Who is your favourite writer?

·        पता नहीं, जानता नहीं. कोशकारों में मेरे प्रिय है डा हरदेव बाहरी और डा बदरीनाथ कपूर…

·         Who inspired you for writing? Or who is your inspiration?

·        मुझे प्रेरणा मिली इंग्लिश का सुप्रसिद्ध रोजट्स थिसारस देख कर 1952-53 में (तब मैं बाईस तेईस साल का था) और उस के जैसा हिंदी थिसारस बना पाने योग्य नहीं था. मेरी प्रेरणा सब से पहले मैं स्वयं हूँ, फिर रोजट हैं, और मेरी पत्नी कुसुम..

·        Name of books which have been published yet.

·        कोशकारिता के क्षेत्र में मेरी प्रकाशित पुस्तकें हैं समांतर कोशहिंदी थिसारस (दो खंड) (नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया), अरविंद सहज समांतर कोश (राजकमल प्रकाशन), शब्देश्वरीदेवीदेवताओं के नामों का समांतर कोश (राजकमल प्रकाशन), पेंगुइन इंग्लिश-हिंदी/हिंदी-इंग्लिश थिसारस ऐंड डिक्शनरी (तीन खंड) (पेंगुइन इंडिया). अन्य पुस्तकें रचनाधीन हैं. संभवतः अगले वर्ष आएँगी.

·        Does debutant writer gets cheated by publisher in terms of money, royalty etc?

·        जी हाँ, अकसर हिंदी प्रकाशक अविश्वसनीय हैं. कहा जाता है कि प्रतिष्ठित हिंदी प्रकाशक भी पूरी तरह भरोसे लायक़ नहीं हैं. आएदिन कई बातें सुनने को मिलती हैं. सामान्य हिंदी कोशकारों का अनुभव कड़ुआ ही रहता है. विश्वसनीय स्रोतों ने मुझे बताया था (उन में से एक सज्जन तो एक बहुत ही नामवर प्रकाशनालय में वेतनभोगी थे) कि हमारे सब से माननीय कोशकार हरदेव बाहरी को जब समय पर या पहले एडवांस के बाद से रायल्टी नहीं मिलती रही तो उन्हों ने एकमुश्त राशि ले कर कोश देना मंज़ूर किया. जब कि उन के कई कोशों की बिक्री साल में साठ साठ हज़ार तक होती है. यहाँ मैं कहना चाहूँगा कि दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे संस्थान अपनी प्रकाशित अकादमिक पुस्तकों पर साठ-सत्तर लाख तक की रायल्टी दे पाते हैं.

·        What kind of alertness is required for a writer when he or she offers his or her book to a publisher for publishing–to prevent any kind of cheating?

·        लेखक को बाक़ायदा रायल्टी का दस्तावेज़ बनवाना चाहिए… और प्रकाशन अधिकार सीमित अवधि के लिए ही देना चाहिए और पहली बार ही पुस्तक की प्रतियों की अधिकतम सीमा भी तय कर देनी चाहिए. मैं ने एक निजी प्रकाशनालय को कोशों की अवधि तीन साल रखी है. कब तक वह कहेगा कि पुस्तक नहीं बिकी? तीन साल पूरे होने पर फिर से छापने पर उसे पूर्वलिखित अनुमति लेनी होती है. अरविंद सहज समांतर कोश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति हाल ही में दी है. नेशनल बुक ट्रस्ट से समांतर कोश का चौथा रीप्रिंट इसी साल हुआ. ज्ञातव्य है कि 1996-97 में पहला प्रिंट 15,000 प्रतियों का था. उस के बाद हर रीप्रिंट 2,000 प्रतियों का होता रहा है. रायल्टी हर साल आती है. पेंगुइन वाले रायल्टी का हिसाब हर छठे महीने चुकता करते हैं.

एक लेखक ने मुझे बताया कि उसे रायल्टी के नाम पर कुछ भी नहीं मिलता. प्रकाशक से जितनी प्रतियाँ वह ले पाता है उन्हें वह स्वयं ही जितना बेच ले, वही उस की रायल्टी है. यह बात मैं एक सुप्रसिद्ध प्रकाशक की कर रहा हूँ. आम तौर पर लेखक नाम होने के लालच में ही पुस्तक प्रकाशित करवाता है. और कुछ प्रतियाँ मिलने पर ही संतोष कर लेता है.

·        Kinds of marketing which makes a book bestseller.

·        नेशनल बुक ट्रस्ट ने 96 में प्रकाशन पूर्व सभी हिंदी दैनिकों में विज्ञापन दिए. प्रकाशन के साथ ही अनेक इंग्लिश तथा हिंदी दैनिकों में बड़े बड़े विज्ञापन दिए. हिंदी पत्रिका अहा! ज़िंदगी में कई बड़े प्रकाशक पूरे पूरे पेज के विज्ञापन दे कर अच्छी बिकरी कर रहे हैं. लेकिन आम प्रकाशक विज्ञापन का महत्त्व अभी तक नहीं समझ पाया है.

·        Does a publisher help writer during marketing?

·        क़ायदे में बिकरी का विभाग प्रकाशक का है. वह निष्क्रिय रहता है. बेचारा लेखक ही समीक्षा आदि कराने के पचड़े में पड़ा रहता है…

·        How should a debutant writer approach a publisher?

·        लेखक को पहले अपनी पुस्तक का संक्षिप्त प्रस्ताव बना कर प्रकाशक को भेजना चाहिए. साथ में नमूने के तौर पर कोई एक अध्याय संलग्न करना चाहिए. मैं ने पेंगुइन को प्रस्ताव भेजा तो लगभग तत्काल उन की ओर से स्वीकृति की सूचना मिल गई… पहले फ़ोन पर, बाद में एक दो मुलाक़ात के बाद लिखित समझौते के रूप में. साथ में कुछ अग्रिम रायल्टी भी…

·        On what basis does a publisher give money to a writer?

·        आम तौर पर अग्रिम रायल्टी के रूप में. यह प्रस्तावित प्रकाशित प्रतियों की आधी रायल्टी होनी चाहिए. अगले रीप्रिंट का समझौता फिर से होना चाहिए… कोई कोई प्रकाशक सभी प्रतियों की रायल्टी समझोते के साथ ही देते हैं. पर नेगोशिएट करना होता है…

·        Negotiation tips

·        वही जो ऊपर लिखे हैं..

–अरविंद कुमार

07 अक्तूबर 2009

 

आज ही http://arvindkumar.me पर लौग औन और रजिस्टर करेँ

©अरविंद कुमार

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