विक्रम सैंधव. अंक 5. दृश्य 5. सोमक्षेत्र. युद्धक्षेत्र. एक अन्य कोना

In Adaptation, Culture, Drama, Fiction, Poetry by Arvind KumarLeave a Comment

 

सैंधवोँ मेँ श्रेष्‍ठतम केवल वही थे.

षड्यंत्र मेँ शामिल बहुत थे,

देशप्रेमी न्‍यायप्रेमी बस वही थे.

सब सैंधवोँ का हो भलावह चाहते

थे. जीवन सहज था. मन मधुर था.

पंचभूतोँ का मिलन संपूर्ण था

उन मेँ. वे नरोँ मेँ अन्‍यतम थे.

 

सोमक्षेत्र. युद्धक्षेत्र. एक अन्‍य कोना.

(शतमन्‍यु, भंडारक, वासुकि, शंबूक और सुदामा आते हैँ. शतमन्यु क्षतविक्षत है. उस के सिर पर और दाहिने पैर मेँ चोट लगी है. वह लड़खड़ा कर चल रहा है. उसे सहारा दे रहा है वासुकि.)

शतमन्‍यु

बस यही है शेषजो भारी कटक

था. मित्रगण, आओ, यहाँ बैठो

शिला पर. दो घड़ी आराम कर लेँ.

वासुकि

बहुलाश्व बेचारा वह ख़बर

लेने गया था साथियोँ की. था

दिया संकेत उस ने लौट कर

हम तक न आ पाया. पकड़ा गया

या वीरगति उस को मिली है.

शतमन्‍यु

                                            ,

वासुकि, , बैठ पल दो पल. आजकल

तो वीरगति का ही चलन है सुन,

वासुकि

वासुकि

         आर्य स्‍वामी 

शतमन्‍यु

                                एक दिन

जाना सभी को है. सब गए. कंक,

चेतना थे क्रांति की. अश्वत्‍थ बालक

था वह गया

वासुकि

                        कलकवलित वीर सब

शतमन्‍यु

सब सिंधु माँ के लाल

भंडारक

                                कर्तव्‍य पर बलिदान.

शतमन्‍यु

यह पराजय! सामने है काल.

(शतमन्‍यु ध्‍यानमग्‍न हो जाता है.)

वासुकि

हाल यह देखा नहीँ जाता

भंडारक

                                देख

तो! संतप्‍त हैँ कैसे! शोक मुद्रा मेँ,

समाधिमग्‍न बैठे हैँ.

वासुकि

लहलहाता है हृदय मेँ शोक का

सागर. नयन से नीर बह आया.

(शतमन्‍यु आँखेँ खोलता है.)

शतमन्‍यु

सुदामा, बात सुन!

सुदामा

                    क्‍या बात है, स्‍वामी?

शतमन्‍यु

यही, बस. भूत विक्रम का आ चुका

दो बार खर्वट शिविर मेँ रात मेँ

देखा उसे आया यहाँ कल रात.

जानता हूँ मैँआ गया है काल.

सुदामा

हीँ, स्‍वामी, हीँ. नहीँ.

अभी तो शेष है जीवन

शतमन्‍यु

यही है सत्‍य केवल सत्‍य.

तू काल को पहचान. शत्रु ने

पहुँचा दिया हम को, है जहाँ पाताल.

(नेपथ्‍य मेँ हलका शोर.)

वासुकि

भागिए, स्‍वामी. दौड़िए, स्‍वामी.

शतमन्‍यु

चलो, सब चलो. आता हूँ मैँ भी

विदा, अलविदा, दोस्‍तो, अलविदा.

तुम्हेँ तुम्हेँ भी सुदामा.

शंबूक, तू सो रहा था अभी तक.

ले अलविदा, शंबूक मेरे देश के

लोगो, आप का, सब का, यही उपकार

है मुझ पर. थे आप मेरे मित्र जीवन

भर, और सब थे पूर्ण निष्‍ठावान. हार

कर भी आज गौरव मैँ कमाऊँगा

विदा, अलविदा, साथियो, अलविदा

मौन होना है मुझे. हो पूर्ण अब

इतिहास मेरा. अब नयन पर छा

रहा है बोझ भारी. अब चाहती हैँ

अस्‍थियाँ विश्राम.

 (तूर्यनाद. शंखनाद. नेपथ्‍य मेँ शोर : दौड़ो, भागो.)

वासुकि

भागिए, स्‍वामी. दौड़िए स्‍वामी.

शतमन्‍यु

चलो, तुम चलो. आता हूँ मैँ भी.

(वासुकि, भंडारक, सुदामा जाते हैँ. शंबूक रुक जाता है.)

शंबूक, तू भी जा. कल्‍याण हो तेरा.

कुछ पल करूँगा ध्‍यान.

(शतमन्‍यु घायल पैर को बड़ी कठिनाई से मोड़ कर पद्मासन लगाता है. समाधि लगाना चाहता है.)

                                चला जा तू.

सब गए. तू भी बचा ले जान.

मैँ करूँगा ध्‍यान.

(शतमन्‍यु आँखेँ बंद कर के मन ही मन कुछ पाठ करता है. धीरे धीरे यह पाठ  मुखर हो जाता है.)

शतमन्‍यु

हरि ओम् तत्‍सत!

हरि ओम् तत्‍सत!

(शतमन्‍यु का पाठ वातावरण पर छा जाता है. उस के मुख मंडल पर ज्‍योति सी जागती है. मंच पर उस की रक्षा मेँ शंबूक प्रहरी सा खड़ा है.)

हो शांत अब विक्रम.

होँ शांत सब उत्‍पात.

(शतमन्‍यु अनंत समाधि मेँ समा जाता है.)

(शंबूक उस की रक्षा मेँ प्रहरी सा खड़ा है.)

(तूर्यनाद. शंखनाद. आनंद, भरत, शूरसेन, इंद्रगोप और सेना आते हैँ.)

(भरत शतमन्‍यु को हिलाता है. शतमन्‍यु गिर पड़ता है.)

भरत

यह कौन है?

शूरसेन

शंबूक है. स्‍वामी का सेवक.

शंबूक

दूर हैँ स्‍वामी पराजय से विजय से.

जब तक रहे, ऊँचे रहे. छू न

पाया कोई शत्रु देह स्‍वामी की.

इंद्रगोप

यही था योग्‍य स्‍वामी के. नमन

है, आर्य शतमन्‍यु, नमन है. देश का,

मेरा नमन है, आर्य शतमन्‍यु

भरत

आर्य के सहचर सभीअब रहेँगे

साथ मेरे. बोल, है स्‍वीकार तुझ को?

शंबूक

शूरसेन कहेँ तो

भरत

                       कहो, ना, शूरसेन.

शूरसेन

कैसे गए स्‍वामी हमारे?

शंबूक

आर्य ने भेजा सभी को. मुझ

से कहाजाओ. मैँ जा नहीँ

पाया.

शूरसेन

        धन्‍य हो तुम. लो, भरत, लो,

तुम इसे भी साथ ले लो. अंत तक

सेवा इसी ने की.

 आनंद

सैंधवोँ मेँ श्रेष्‍ठतम केवल वही

थे. षड्यंत्र मेँ शामिल बहुत थे,

देशप्रेमी न्‍यायप्रेमी बस वही थे.

सब सैंधवोँ का हो भलावह चाहते

थे. जीवन सहज था. मन मधुर था.

पंचभूतोँ का मिलन संपूर्ण था

उन मेँ. वे नरोँ मेँ अन्‍यतम थे.

भरत

पूर्ण आदर और निष्‍ठा अंत मेँ

उन को मिलेगी. सिंधु माँ की गोद

मेँ, सब सैंधवोँ के सामने, हो कर्म

उन का. मेरे शिविर मेँ वे करेँ विश्राम.

हम भी चलेँ, भोगेँ विजय के भोग.

वातावरण मेँ शांति पाठ

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