विक्रम सैंधव. अंक 5. दृश्य 4. सोमक्षेत्र. युद्धक्षेत्र का एक अन्य भाग

In Adaptation, Culture, Drama, Fiction, Poetry by Arvind KumarLeave a Comment

 

मित्र होने योग्‍य हैँ नरवीर सब ऐसे.

 

सोमक्षेत्र. युद्धक्षेत्र का एक अन्‍य भाग.

(तूर्यनाद. शंखनाद. युद्धरत सैनिक आते हैँ. फिर शतमन्‍यु, अश्वत्‍थ, इंद्रगोप तथा अन्‍य.)

 

शतमन्‍यु

देशप्रेमियो, सैंधवो, वीरो, उठो फिर

सिर उठाओ, ध्‍वज उठाओ. बढ़ो. जीतो.

(जाता है.)

अश्वत्‍थ

उठो. माँ के लाल हो तुम. चलो

मेरे साथ. संग्राम मेँ घोषित करूँगा

मैँ आज अपना नाम. अश्वत्‍थ हूँ मैँ.

शत्रु का मैँ काल हूँ. पुत्र हूँ मैँ

महावीर नंद का

(सैनिक आते हैँ. युद्ध.)

इंद्रगोप

और मैँ हूँ शतमन्‍युआर्य शतमन्‍यु.

मैँ शतमन्‍यु हूँ, देश का दीवाना. मैँ

हूँ आज़ादी का परवाना. दोस्‍तो,

आज मुझे समझो शतमन्‍यु

अश्वत्‍थ! वीर बालक! गिर गए तुम? धन्‍य

हो तुम. वीर हो, महान. गजदंत

समान. वीर थे अश्वत्‍थ, तुम वीर की संतान.

पहला सैनिक

बोल, क़ैद या मौत?

इंद्रगोप

मौत, बत मौत. मार दे. ले

धन.

(धन देता है.)

   मार दे तत्‍काल. शतमन्‍यु हूँ मैँ.

मार दे मुझ को, कमा ले यश.

पहला सैनिक

हीँ, मारना नहीँ है. बड़ा शिकार है.

दूसरा सैनिक

मार्ग दो. मार्ग दो. सेनापति आनंदवर्धन

को बताओ, पकड़ा गया शतमन्‍यु.

पहला सैनिक

हाँ, मैँ दूँगा समाचार. लो आ गए सेनापति.

( आनंद आता है).

शतमन्‍यु पकड़ा गया! पकड़ा गया शतमन्‍यु!

 आनंद

कहाँ है?

इंद्रगोप

          आनंद, वे सुरिक्षत हैँ, दूर हैँ तुम

से. जो उन्हेँ पकड़े, अभी जनमा

हीँ कोई. देवता अपमान उन का

इस तरह होने नहीँ देँगे. जब,

जहाँ, जीवित, अजीवितमिलेँगे

वे तुम्हेँ, वे अजित होँगे. आर्य

शतमन्‍यु! वीर शतमन्‍यु!

 आनंद

हीँ है, शतमन्‍यु नहीँ है यह. पर नहीँ

है कम किसी से. मत मारना इस को.

रखो सम्‍मान से. मित्र होने योग्‍य

हैँ नरवीर सब ऐसे. चलो, आगे

बढ़ो. ढूँढ़ो, कहाँ हैँ आर्य शतमन्‍यु.

भरत के शिविर मेँ आ कर

ख़बर दो

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