विक्रम सैंधव. अंक 4. दृश्य 3. शतमन्यु का शिविर

In Adaptation, Culture, Drama, Fiction, Poetry by Arvind KumarLeave a Comment

 

मानव जीवन मेँ जब कभी आता है ज्‍वार,

सफलता मिलती है उस की लहर

पर चढ़ कर. यदि खो दिया अवसर

तो मिलते हैँ, बस, छिछले ताल, कष्‍ट,

रुदन, पीड़ाजीवन भर.

 

शतमन्‍यु का शिविर.

(शतमन्‍यु और कंक आते हैँ.)

कंक

सुनिए आप का एक अन्‍याय. आपने

मेरे सहायक नकुलेश पर

लगाया आरोप, कहा कि उस ने

वसूली है खर्वट के लोगोँ से

चौथ. उस के बचाव मैँ ने आप को

पत्र लिखा. नहीँ दिया उत्तर

तक आप ने. यह तो सरासर अपमान

है मेरा.

शतमन्‍यु

         उस का बचाव ठीक नहीँ

था तुम्‍हारे लिए.

कंक

                        ठीक तो यह भी

हीँ था, संकट की इस घड़ी मेँ,

ऐसी बातेँ उठाएँ आप.

शतमन्‍यु

                                    यूँ तो

कहने वाले कहते हैँ, खुजलाती

है तुम्‍हारी भी हथेली. सिक्कोँ

पर हो रहे हैँ सरकारी पद नीलाम.

कैसिसय

खुजलाती है मेरी हथेली! क्योँ?

आप नायक शतमन्‍यु हैँ. बस, इसी

लिए जीवित हैँ आप. होता कोई

और, तो

शतमन्‍यु

           भ्रष्‍टाचार के साथ जुड़

रहा है कंक का नाम. मुँह छिपा

कर बैठा जाता है राजदंड

कंक

                                दंड!

शतमन्‍यु

यह है चैत्र और चैत्र की क्रांति?

जब बहा था विक्रम का लहू न्‍याय

की वेदी पर? था हम मेँ से कोई

दुष्‍ट तब जिस ने न उठाया हो हाथ

न्‍याय के नाम पर? क्‍या इसी लिए

गिराया था हम ने वह महामानव

कि आज हम भी करेँगे भ्रष्‍टाचार!

चंद सिक्कोँ के वास्‍ते डुबोएँगे नाम. सैंधव

न होता मैँ, काश, होता मैँ कुत्ता!

भौँकता रहता रात भर मैँ चाँद पर.

कंक

शतमन्‍यु, बस करो! यूँ मत भड़काओ

मुझे. यह नहीँ सहूँगा मैँ. तुम

भूल रहे होकौन हो तुम, जो यूँ कौंद

रहे हो मुझे. मैँ सैनिक हूँ. तुम

से अधिक अनुभवी हूँ, सक्षम

हूँ.

शतमन्‍यु

   हीँ है तू.

कंक

                     क्या कहा?

शतमन्‍यु

                                हीँ है तू.

कंक

और मत उकसाओ. भूल जाऊँगा मैँ

अपने को. कुछ तो ध्‍यान करो अपनी

जान का. बस, और मत उकसाओ मुझे.

शतमन्‍यु

नीच! पामर! जा, जा!

कंक

                                   अच्‍छा!

शतमन्‍यु

                                             जो कहना

है, कहूँगा मैँ. क्‍या घुड़कियोँ से

डरूँगा मैँ?

कंक

            देव! महादेव! यह सब

सहना होगा मुझे?

शतमन्‍यु

                                यही नहीँ,

और भी सहेगा तू, सुनेगा तू.

जा! जा! जा! गुर्गो को दिखा आँखेँ,

दासोँ पर चला जादू. तू समझता

है डरूँगा मैँ? झुकूँगा मैँ? तुझ

से? मेरे साक्षी हैँ देव महादेव!

अपना विष पिएगा तू. जब भी तू

करेगा खोँ खोँ, हँसूँगा मैँ, बंदर!

कंक

अच्‍छा!

शतमन्‍यु

        तू सैनिक है? मुझ से अच्‍छा?

देख लेते हैँ अभीकैसे होते

हैँ वीर महावीर!

कंक

                        सरासर

अन्‍याय है यह. मैँ ने कहा, आप से

अधिक अनुभव है मुझे. नहीँ

कहा आप से अच्‍छा हूँ मैँ.

शतमन्‍यु

कहा भी होता तो क्‍या कर लेता?

कंक

इतना साहस विक्रम तक मेँहीँ

था जो ललकारे मुझे.

शतमन्‍यु

                                   रहने दे!

साहस तुझ मेँ ही नहीँ था विक्रम

से लड़ने का.

कंक

                     हीँ था?

शतमन्‍यु

                                    हीँ था.

कंक

हीँ ललकार सकता था मैँ उसे?

शतमन्‍यु

हाँ, हीँ ललकार सकता था तू?

कंक

और मत उकसाइए. तैश मेँ कुछ कर

न बैठूँ पछताना पड़े जिस पर.

शतमन्‍यु

पछताना पड़े जिस पर, वह तो कर

चुका है तू. तेरी धमकियोँ से

मैँहीँ डरता. ख़ाली हवा से

वे नहीँ हिलते, सत्‍य पर जो होँ

टिके. किस काम की है मित्रता

तेरी? बोल भत्ता सैनिकोँ को

मैँ कहाँ से दूँ? स्‍वर्णमुद्रा पेड़

पर उगती नहीँ हैँ. खेतीहरोँ,

व्‍यापारियोँ, कारीगरोँ को लूट

मैँ सकता नहीँ हूँ. आदमी भेजा

था तेरे पास माँगने को धन. लौट

आया हाथ ख़ाली. कर दिया इनकार

तू ने! है यही, बस, मित्रता का

दम? क्‍या कभी तुझ को किया इनकार

मैँ ने? गाज भी गिरती नहीँ मुझ पर!

कंक

मैँ ने किया इनकार?

शतमन्‍यु

                         हाँ.

कंक

                                धूर्त है

जिस ने भरे हैँ कान. तोड़ डाला आप

ने यह दिल. मित्रता का अर्थ हैहम

माफ़ कर देँ मित्र के छोटे बड़े

अपराध.

शतमन्‍यु

          अपराध यह तू ने

किया मुझ से.

कंक

                     अब आप को मुझ से

हीँ है प्रेम.

शतमन्‍यु

                    सह नहीँ सकता मैँ

किसी के दोष.

कंक

                      दोस्तोँ के दोष देखे

ही नहीँ जाते.

शतमन्‍यु

                      जो दोष ना देखेँ,

हीँ हैँ दोस्‍त, चमचे हैँ.

कंक

                                            आनंद!

भरत! कहाँ हो तुम लोग? आओ,

मारो मुझे, मारा मुझे संसार

ने. मैँ थक गया संसार से. दोस्तोँ

की दोस्‍ती बस नाम की है. विश्वास की

मुझ मेँ कमी है साथियोँ को. हर एक

पल मुझ पर नज़र है. आँकते हर दोष

मेरा, फिर गिनाते हैँ मुझे लो, यह

हृदय मेरा. लो. स्‍वर्ण से भी यह

खरा है. लो, तलवार लो. लो घोँप दो.

दोस्तोँ पर वार का अनुभव घना

है आप को. आप ही के वार से विक्रम

मरा था. वह चहेता आप का था,

था आप का मनमीत

शतमन्‍यु

                                  रख म्‍यान मेँ तलवार

अपनी. बंद कर बकवास. दूध जैसा क्योँ

उफनता है. देख कर तेरा बिफरना,

यह बिखरना, पेट मेँ पड़ जाएँगे बल.

कंक

हँस रहे हैँ आप? मैँ खो बैठा था आपा.

शतमन्‍यु

हीँ था आपे मेँ मैँ भी.

कंक

                                    यह बात

है? दीजिए हाथ.

शतमन्‍यु

                    ले दिल भी.

कंक

आर्य शतमन्‍यु!

शतमन्‍यु

                     बोल, क्‍या है?

कंक

                                             फिर कभी

इस तरह बकने लगूँ, तो कोप मत

करना. उतावला है स्‍वभाव. देन

है माँ की. कुछ पलोँ को मैँहीँ

रहता मैँ

शतमन्‍यु

           ठीक है, कंक, अब कभी जब

तू चलाएगा चो, करेगा

चीँ चीँ, तो मैँ साध लूँगा चुप्‍पी.

समझूँगाहीँ बोल रहा तू, स्‍वर्ग

से चहक रही है महतारी.

(नेपथ्‍य से आवाज़ें)

भाट

छोड़ो. जाने दो मुझे. सेनापतियोँ

से मिलने दो मुझे. झगड़ा है उन

मेँ, निपटाने दो मुझे.

इंद्रगोप

हीँ, तुम नहीँ जा सकते.

भाट

मौत ही रोकेगी मुझे.

(भाट आता है. उस के पीछे इंद्रगोप, गजदंत, पिपीलक.)

कंक

क्‍या है? कौन है?

भाट

शर्म करो, सेनापति, शर्म करो!

लड़ो मत. सुनो लाख टके की बात

मिलो, रहो साथ, महान बनो तुम

मानो मेरी बात, नादान हो तुम.

कंक

वाह. क्‍या तुक भिड़ाई है कविता

के कलंदर ने.

शतमन्‍यु

                      जा! मुँहफट, गँवार!

कंक

छोड़ो भी. यह तो स्‍वभाव है इस का.

शतमन्‍यु

स्‍वभाव सुहाता है सही अवसर

पर. मैदान मेँ क्‍या काम है तुक्‍कड़

का? जाइए, महाराज, जाइए?

कंक

जा, चला जा, फूट!

(भाट जाता है.)

शतमन्‍यु

इंद्रगोप, गजदंत. नायकोँ से

कहोसेनाएँ अब विश्राम करेँ.

कंक

गजदंत, शूरसेन को लेते आना

अपने साथ

(इंद्रगोप और गजदंत जाते हैँ.)

शतमन्‍यु

पिपीलक, अब मदिरा

(पिपीलक जाता है.)

कंक

सहनशीलता खो बैठते हैँ आप भी.

शतमन्‍यु

कंक, मुझे हैँ कई शोक.

कंक

                                शोक और

हर्ष से ऊपर होते थे आप. क्योँ

विचलित करने लगीं आप को छोटी

मोटी ऊँचनीच?

शतमन्‍यु

                       कौन सहेगा इतना

शोक? हीँहीँ देवी रत्‍ना

कंक

                                            हीँ

हीँ देवी रत्‍ना?

शतमन्‍यु

                       हीँहीँ वे.

कंक

कैसे बचा मैँ आप के हाथोँ? मौत

को उकसाया तो बहुत मैँ ने. शोक,

महाशोक! क्‍या रोग था उन्हेँ?

शतमन्‍यु

                                            रोग था

मेरा वियोग. और मुझे है यह शोक

सेना प्रबल हो गई है भरत

और आनंदवर्धन की दोनोँ संदेश

मिले हैँ आज ही त्रस्‍त थीँ वे.

दास घर मेँहीँ थे. ज्‍वाला पी ली

देवी ने.

कंक

          ज्‍वाला पी गईँ? सच?

शतमन्‍यु

                                            हाँ.

कंक

शिव! शिव!

(पिपीलक मदिरा और दीपदान ले कर आता है.)

शतमन्‍यु

उन की बात मत करो. लो मदिरा

पात्र. डूबो देँ सब दुःखोँ को.

कंक

लबालब है मन पिपीलक, भर

दे ऊपर तक प्‍याला. जी भर के

पी लूँ मैँ शतमन्‍यु का प्‍यार.

शतमन्‍यु

आओ, गजदंत.

(पिपीलक जाता है.)

(शूरसेन और गजदंत आते हैँ.)

                       आइए, शूरसेन.

दीपक से सट कर बैठेँ हम. सोचेँ

हम रणनीति.

कंक

                     देवी रत्‍ना के नाम.

शतमन्‍यु

                                            बस

करो. होश मेँ आओ शूरसेन, मुझे

मिले हैँ ये संदेश. भरत सैंधव

और आनंद ला रहे हैँ महा

कटक. शीघ्र पहुँचेँगे वे लोग

सोमक्षेत्र.

शूरसेन

           मुझे भी मिले हैँ

ये पत्र

शतमन्‍यु

         और क्‍या लिखा है इन मेँ?

शूरसेन

भरत, आनंद और केतुमाल

ने उतार दिए हैँ सो से भी ऊपर

सांसद मौत के घाट!

शतमन्‍यु

                                   मेरे मेँ

लिखा है मारे गए हैँ सत्तर

सांसद और मारे गए केदार.

शूरसेन

बेचारे केदार! अपने घर से

कोई पत्र तो नहीँ आया आप को?

शतमन्‍यु

हीँ तो, शूरसेन.

शूरसेन

                    कोई समाचार?

शतमन्‍यु

हीँ तो, शूरसेन.

शूरसेन

                    अनोखी बात है!

शतमन्‍यु

क्योँ पूछते हो, शूरसेन? तुम्हेँ मिला

कुछ समाचार?

शूरसेन

                       कुछ तो नहीँ,

सेनापति शतमन्‍यु.

शतमन्‍यु

                    वीर सैंधव हो तुम.

सच बताओ.

शूरसेन

                     तो फिर वीर सैंधवोँ

की भाँति दृढ़ रहने की शक्ति

साधिए. देवी रत्‍ना नहीँहीँ. अंत

अनोखा था उन का.

शतमन्‍यु

                                अलविदा, रत्‍ना.

मरना सभी को है, शूरसेन. उन्हेँ

भी मरना था एक दिन. फिर शोक कैसा?

शूरसेन

हाँ, सत्‍य है! महापुरुषों को

सहने होते हैँ महाशोक.

कंक

                                जानता

हूँ मैँ. पर धीरज नहीँ है मुझ मेँ.

शतमन्‍यु

जीवित हैँ हम, तो जीते जी जीवन

के काज सभी करने हैँ

क्‍या राय है? हम बढ़ चलेँ सोमक्षेत्र?

कंक

ठीक नहीँ होगा.

शतमन्‍यु

                       कारण?

कंक

                                    ठीक तो यह

होगाशत्रु हमेँ खोजे, फिरे

मारा मारा. इस मेँ नष्‍ट होँगे

उस के साधन. थकेँगे, रेँगे

उस के सैनिक. हम यहाँ बैठे हैँ

आराम से, चौकस, सचेतन

शतमन्‍यु

अच्‍छे तर्क का होना चाहिए

सुदृढ़ आधार. खर्वट और सोमक्षेत्र

के बीच रहते हैँ जो लोग, हमारे

साथ नहीँ हैँ वे. उन को सताया

है हम ने, वसूली है चौथ. उन के

बीच जब बढ़ेगा शत्रु, देँगे वे

उस का साथ. मिलेगा उसे नया

उत्‍साह, नया मनोबल. उसे तुम

दूर ही रहने दो जनजातियोँ से.

बढ़ना चाहिए हमेँ यहाँ से

आगे

कंक

        सुनिए तो आप मेरी बात.

शतमन्‍यु

क्षमा करेँ, कंक. जानते

हैँ आपतंग आ चुके हैँ हम से

हमारे दोस्‍त. विशाल है हमारी

सेना. न्‍याय है हमारे साथ. हर दिन

बढ़ रहा है शत्रु का बल. लेकिन

अभी तक उस से बढ़ कर हैँ हम. कल

बदल सकता है संतुलन. मानव

जीवन मेँ जब कभी आता है ज्‍वार,

सफलता मिलती है उस की लहर

पर चढ़ कर. यदि खो दिया अवसर

तो मिलते हैँ, बस, छिछले ताल, कष्‍ट,

रुदन, पीड़ाजीवन भर. वैसी ही

उत्ताल लहर पर अब खड़े हैँ हम.

आओ, निकल चलेँ. नहीँ, तो हम

डूबेंगे तट पर.

कंक

                      तो यही सही.

कल निकल पड़ेँगे हम. सोमक्षेत्र मेँ

होने दो टक्‍कर.

शतमन्‍यु

                       गहरा गई है

रात. प्रकृति का पालना पड़ेगा

आदेश. थोड़ी देर कर लेँ विश्राम

और कुछ?

कंक

           हीँ. शुभरात्रि. भोर

मेँठेँगे हम. फिरमहा कूच.

शतमन्‍यु

पिपीलक!

(पिपीलक आता है.)

            मेरा चोलक

(पिपीलक जाता है.)

                                  अच्‍छा! शुभरात्रि

शूरसेन. शुभरात्रि, गजदंत.

कंक, शुभरात्रि. आज रात कर लेँ कुछ

विश्राम.

कंक

          प्रिय बंधुवर, बड़ा ही

अशुभ आरंभ था आज की शाम का

फिर कभी न हो हमारे बीच यूँ

अशोभन विवाद.

शतमन्‍यु

                       जो हुआ, सो हुआ.

कंक

शुभरात्रि, सेनापति.

शतमन्‍यु

                                 शुभरात्रि,

प्रिय बंधु.

गजदंत, शूरसेन

                    शुभरात्रि, सेनापति.

शतमन्‍यु

अलविदा, प्रिय मित्रो.

(शतमन्‍यु को छोड़ कर सब जाते हैँ.)

(पिपीलक चोलक ले कर आता है.)

                                   ला, चोलक दे.

कहाँ है तेरी वीणा, पिपीलक?

पिपीलक

हीँ शिविर मेँ.

शतमन्‍यु

                       वाणी अलसाई

सी है तेरी. बेचारा पिपीलक.

दोष नहीँ है तेरा. काम का बोझ है

तुझ पर. चीनक के साथ बुला ले

कोई और भी. यहीँ सोएँगे मेरे

शिविर मेँ.

पिपीलक

            तुरुष्क! चीनक!

(तुरुष्क और चीनक आते हैँ.)

तुरुष्क

                                स्‍वामी!

शतमन्‍यु

आज रात आप सोएँ यहाँ पर, मेरे

शिविर मेँ. हो सकता है मुझे रात

मेँ भेजने पड़ेँ संदेश बंधुवर

कंक के पास.

तुरुष्क

जो आज्ञा, स्‍वामी. यहाँ खड़े हैँ

हम आप के आदेश की प्रतीक्षा मेँ.

शतमन्‍यु

हीँ, यह नहीँ होगा. यहाँ लेट

जाएँ आप. शायद न ही जगाऊँ

मैँ आप को.

(तुरुष्क और चीनक लेटते हैँ.)

                     देखा, पिपीलक! यहाँ

मिली वह पुस्‍तक मेरे चोलक मेँ.

कभी मैँ ने जेब मेँ रखी होगी.

पिपीलक

मैँ न कहता था, स्‍वामी ने नहीँ

दी मुझे.

शतमन्‍यु

         कुछ दिन और सह ले,

भले बच्‍चे. कुछ याद नहीँ रहता

मुझे. कुछ देर जाग सकता है और? छेड़

सकता है वीणा के तार?

पिपीलक

                                जी, होगा

मन शांत.

शतमन्‍यु

           हाँ, पुत्र. बहुत सताया

है तुझे. सब सहता है तू.

पिपीलक

                                काम है

मेरा.

शतमन्‍यु

    हर समय जोतना तुझेठीक

हीँ है. कम उम्र को चाहिए

आराम भी.

पिपीलक

                    सो चुका हूँ मैँ, स्‍वामी.

शतमन्‍यु

ठीक किया. अभी फिर सो जाना तू.

अधिक नहीँ रोकूँगा मैँ तुझे.

जीवित बच रहा मैँ, तो कर दूँगा

कल्‍याण.

(पिपीलक गाता है.)

पिपीलक

वीणा मधुर मधुर कुछ घोल

शतमन्‍यु

नींद से बोझिल है यह तान. अरी

घातिनी नींद, क्योँ सुला दिया तू

ने उसे जो गा रहा था गीत तेरे

लिए?… सो जा, सो जा. मत हिला सिर.

टूट जाएँगे तार. ला, ला, मुझे दे

वीणा. सो, बेटे, सो देखूँ कहाँ

था मैँ? हाँ. यही है वह पन्ना जो

मोड़ा था मैँ ने. हाँ, हाँ, यही है!

(विक्रम का भूत आता है.)

कैसे काँप रही है दीपशिखा!

क्क्‍कौ कौन है? क्‍या है? आँखोँ का धोखा

है? कैसा भयानक आकार है. बढ़

रहा है मेरी ओर. तू क्‍या है?

देवता है? यमदूत है? राक्षस है तू?

जम गया है लहू. सिहरता है

रोम रोम बता, तू क्‍या है?

भूत

तेरा विद्रूप, शतमन्‍यु!

शतमन्‍यु

                                  क्योँ आया है तू?

भूत

यह बतानेएक बार फिर मिलेँगे हम

सोमक्षेत्र मेँ.

शतमन्‍यु

                    क्‍या? फिर मिलेँगे हम?

भूत

हाँ, सोमक्षेत्र मेँ.

शतमन्‍यु

                       ठीक है. तो अब हम

सोमक्षेत्र मेँ मिलेँगे. ठीक है न?

(भूत जाता है.)

मेरा साहस लौटा तो भाग चला!

दुरात्‍मा, ठहर! बात कर जाता

कहाँ है?… अरे, छोकरे! पिपीलक!

तुरुष्क! चीनक! जागो! चीनक!

पिपीलक

तार ढीले हैँ, स्‍वामी, वीणा के.

शतमन्‍यु

                                            वाह!

समझ रहा है अभी तक बजा

रहा है वीणा! पिपीलक, जाग. जाग!

पिपीलक

जी, स्‍वामी.

शतमन्‍यु

सपना देखा था क्‍या? क्योँ चीखा तू?

पिपीलक

मैँ चीखा था क्‍या?

शतमन्‍यु

हाँ, चीखा था तू. कुछ देखा था क्‍या?

पिपीलक

कुछ नहीँ, स्‍वामी.

शतमन्‍यु

तो, जा, फिर सो जा. चीनक, तुरुष्क!

भले मानस, जाग.

तुरुष्क

                    स्‍वामी?

चीनक

                                स्‍वामी?

शतमन्‍यु

तुम दोनोँ नींद मेँ क्योँ चीख रहे थे?

तुरुष्क, चीनक

हम चीखे थे?

शतमन्‍यु

कुछ देखा था तुम ने?

तुरुष्क

हीँ, स्‍वामी.

चीनक

                     न ही मैँ ने, स्‍वामी.

शतमन्‍यु

जाओ, बंधुवर कंक को प्रणाम

दो हमारा. कहो, तत्‍काल प्रयाण

रेँ सेना सहित. पीछे पीछे

आते हैँ हम भी.

तुरुष्क, चीनक

जो आज्ञा, स्‍वामी.

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