विक्रम सैंधव. अंक 4. दृश्य 1. धारावती. आनंद के भवन का एक कक्ष

In Adaptation, Culture, Drama, Fiction, Poetry by Arvind KumarLeave a Comment

 

बड़े लोग जो बना देते हैँ चलन,

रचते हैँ जो कलाएँ, और फिर छोड़

देते हैँ जो जूठन, उन्हेँ सहेज

कर रखते हैँ केतुमाल जैसे लोग.

 

धारावती. आनंद के भवन का एक कक्ष.

(आनंद, भरत और केतुमाल.)

 

 आनंद

तो इन लोगोँ को मारा जाएगा. इन के

नाम पर निशान लगा दिया है.

भरत

तुम्‍हारा भाई भी मरना चाहिए, केतुमाल.

सहमत हो तुम?

केतुमाल

                       सहमत हूँ मैँ.

भरत

लो दाग़ दो इसे, आनंद.

केतुमाल

                                एक शर्त पर,

मित्र आनंद. नहीँ बचेगा तुम्‍हारा

भांजा गोपाल भी.

 आनंद

                    लो दाग़ दिया मैँ ने

उसे भी. केतुमाल, विक्रम के घर जा कर

वसीयत ले आओ. देखेँ तो

क्‍या बचा सकते हैँ हम अपने वास्‍ते

केतुमाल

हीँ मिलोगे?

आक्‍टेवियस

                      यहाँ या संसद.

(केतुमाल जाता है.)

 आनंद

गुणहीन बंदा है यह. बस, चाकरी

जोगा है संसार की संपदा को

बाँटना तीन भागोँ मेँ, और उन मेँ से

एक दे डालना इसेक्योँ, ठीक है क्‍या?

भरत

आप ही का तो विचार था यह. आप ने

ही माँगा था काली सूची मेँ उस

का परामर्श.

 आनंद

                    भरत, वह चाल थी

नीति की. हम ने लादे हैँ उस पर

मान सम्‍मान, क्योँ कि लादना था उस पर

मेँ अपनी निंदा का बोझा.

लद्दू खरहे के जैसा ढोएगा

वह हमारा बोझा, हाँफेगा वह,

पसीने से तरबतर होगा. जब

जैसे जिधर चाहेँगे, हाँकेँगे

हम. लक्ष्य पर पहुँच कर माल

उतारेँगे हम. फिर हकाल देँगे

हिनहिनाने को और चरने को घास.

भरत

जो चाहेँरेँ. है वह भरोसे

का सैनिक.

 आनंद

            हाँ, वह तो मेरा घोड़ा

भी है. इस के लिए मैँ देता हूँ

उसे उत्तम दाना पानी. उसे

मैँ साधता हूँ, सिखाता हूँ दम रोकना,

दौड़ना, कूदना, झपटना. अनुशासन

मेरा है उस पर. बस, वैसा ही है

केतुमाल! उसे साधो, उस से काम

लो. अपनी चेतना नहीँ है उस मेँ.

बड़े लोग जो बना देते हैँ चलन,

रचते हैँ जो कलाएँ, और फिर छोड़

देते हैँ जो जूठन, न्हेँ सहेज

कर रखते हैँ केतुमाल जैसे लोग.

उसे स्‍वतंत्र मत समझो. वह एक

वस्‍तु है. उस का उपभोग करो यह

सब छोड़ो, सुनो बड़े समाचार!

शतमन्‍यु और कंक कर रहे हैँ

शक्ति का संचय. हम भी चेतेँ,

अपनी ताक़तेँ मिलाएँ, रोँ को

साथ लाएँ. अज्ञात संकटोँ को समझेँ.

जो ज्ञात हैँ, उन आपदाओँ को झेलेँ.

भरत

हाँ. तत्‍काल. दाँव पर लगे हैँ हम.

शत्रु से घिरे हैँ हम. ऊपर से

जो हमारे मित्र हैँ, उन के भी

मन मेँ छिपे हैँ घातक इरादे. 

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