विक्रम सैंधव. अंक 3. दृश्य 3. धारावती. एक जनमार्ग

In Adaptation, Culture, Drama, Fiction, Poetry by Arvind KumarLeave a Comment

 

मैँ चंडीचारण हूँ. मैँ चंडी कवि हूँ.

घटिया कविता करता है यह. फाड़ डालो रद्दी कविता के जैसा.

धारावती. एक जनमार्ग.

(कवि चंडीचारण आता है.)

 

चंडीचारण

रोती धरती, रोता बादल

  रोता है कवि का मन पागल

धरती का नायक नहीँ रहा

  जन गण है दुःख से पागल

 

सपने मेँ मुझ से बोला विक्रम

  न्‍योता है, आना मेरे घर

घर से तो मैँ आया पागल

  लगता लेकिन पग पग पर डर

 

अनहोनी सवार है मेरे सिर

पर. घर से नहीँ निकलना था आज

मुझे, फिर भी निकल आया हूँ मैँ

(जन समूह आता है.)

पहला नगरजन

क्‍या नाम है तेरा?

दूसरा नगरजन

कहाँ जाता है?

तीसरा नगरजन

कहाँ रहता है?

चौथा नगरजन

गृहस्‍थ है या ब्रह्‍मचारी?

दूसरा नगरजन

बोल. जवाब दे तत्‍काल.

पहला नगरजन

जल्‍दी और छोटा.

चौथा नगरजन

सोच कर, समझ कर.

तीसरा नगरजन

सच, केवल सच.

चंडीचारण

क्‍या नाम है मेरा? कहाँ जाता हूँ? कहाँ रहता हूँ? गृहस्‍थ हूँ या ब्रह्‍मचारी? हर प्रश्‍न का उत्तर तत्‍काल. जल्‍दी और छोटा. सोच कर समझ कर. सच, केवल सच. सोच समझ कर कहता हूँमैँ ब्रह्‍मचारी हूँ.

दूसरा नगरजन

तो तेरा मतलब है जो गृहस्‍थ हैँ वे सोचते समझते नहीँ? ले, इसी बात पर यह टोला. (सिर पर टोला मारता है.) आगे बोल. सीधे.

चंडीचारण

सीधे? मैँ जा रहा हूँ विक्रम के संस्‍कार मेँ.

चौथा नगरजन

मित्र है या शत्रु?

चंडीचारण

मित्र.

दूसरा नगरजन

यह हुआ सीधा उत्तर.

चौथा नगरजन

कहाँ रहता है?

चंडीचारण

दुर्ग प्राचीर के पास.

तीसरा नगरजन

सच सच बता. क्‍या नाम है तेरा?

चंडीचारण

सच. मेरा नाम है चंडीचारण.

पहला नगरजन

फाड़ डालो, चीर डालो. ग़द्दार है यह.

चंडीचारण

मैँ चंडीचारण हूँ. मैँ चंडी कवि हूँ.

चौथा नगरजन

घटिया कविता करता है यह. फाड़ डालो रद्दी कविता के जैसा.

चंडीचारण

भाइयो, मैँ ग़द्दार चंडीचरण नहीँ हूँ, मैँ कवि चंडीचारण हूँ.

पहला नगरजन

कोई बात नहीँ. इस का नाम तो चंडी है. खीँच डालो इस का नाम इस की काया से. फिर पठा दो यमलोक.

तीसरा नगरजन

काटो! काटो! फाड़ो! लाओ ज्‍वाला. ज्‍वाला लाओ, चलो. शतमन्‍यु को जला दो. कंक को फूँक दो. चाणूर को भून दो. मणिभद्दर को भस्‍म कर दो. चलो! चलो!

(नगरजन चंडीचारण को घसीटते चले जाते हैँ.)

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