सुनो, मेरे देश के लोगो, सुनो.
यह पतन विक्रम का नहीँ था.
यह पतन मेरा था, आप का था.
हम सब पर पंजे फैला रहा था ख़ूनी विश्वासघात.
धारावती. नगर चौक. जनमंच.
(नगरजनोँ के साथ शतमन्यु और कंक आते हैँ.)
सब नगरजन
हम जवाब चाहते हैँ. जवाब दो. जवाब दो.
शतमन्यु
तो आओ मेरे साथ… मित्रो, सुनो
मेरी बात… कंक, इन मेँ से
कुछ को आप ले जाएँ उस गली मेँ.
जो सुनना चाहेँ मुझे, वे यहाँ
रहेँ. आप मेँ से कुछ चले जाएँ
कंक के साथ. हम बतलाएँगे आप
को – क्योँ मरा हमारा विक्रम.
पहला नगरजन
मैँ शतमन्यु को सुनूँगा.
दूसरा नगरजन
मैँ कंक को सुनूँगा. देखेँ दोनोँ क्या कहते हैँ.
(कुछ नगरजनोँ के साथ कंक चला जाता है.)
(शतमन्यु मंच पर जाता है.)
तीसरा नगरजन
शतमन्यु मंच पर पहुँच गए हैँ. शांत, सब शांत!
शतमन्यु
आप लोग धैर्य से सुनिएगा मेरी पूरी बात.
सैंधवो, देशवासियो, मेरे हितैषियो!
सुनिए. मैँ बताता हूँ आप को पूरी बात. शांत रहिए. तभी सुन सकेँगे आप मेरी बात. विश्वास कीजिए मेरा, मेरी मर्यादा का. भरोसा रखिए मुझ पर, मेरी साख पर, मेरे मान सम्मान पर. तभी आप को विश्वास होगा मेरी बात पर. अपने विवेक से परखिए मुझे. जगाइए अपनी बुद्धि को. सोचिए, समझिए. फिर कीजिए फ़ैसला.
है कोई इस सभा मेँ विक्रम को चाहने वाला, उस का हितैषी? मैँ कहूँगा उस से – मैँ, शतमन्यु, किसी से कम नहीँ चाहता था विक्रम को. उस मित्र को अधिकार है, पूरा अधिकार है कि मुझ से पूछे : शतमन्यु, तू क्योँ उठा विक्रम के विरोध मेँ. तो यह है मेरी उत्तर : मुझे विक्रम से प्रेम कम न था. लेकिन सिंधु देश को अधिक चाहता था मैँ. बोलिए, क्या चाहते आप? क्या आप चाहते कि विक्रम जीवित रहे और हम सब उस के दास बन कर मर जाएँ? या आप चाहते कि विक्रम मर जाए और हम सब सम्मान के साथ सिर उठा कर जिएँ?
विक्रम मुझे चाहता था – इस के लिए मेरी आँखोँ मेँ आँसू हैँ. भाग्य विक्रम के साथ था – इस का अपार हर्ष है मुझे. विक्रम वीर था – इस के लिए आदर से नतमस्तक हूँ मैँ. विक्रम सत्ता का लालची था. इस के लिए मैँ ने उसे मार डाला. आँसू हैँ उस के प्रेम के लिए. हर्ष है उस के सौभाग्य के लिए. आदर है उस की वीरता के लिए. और मौत है उस के लालच के लिए.
है कोई इतना दीन, इतना हीन, जो दास बन कर जीना चाहता हो? कोई है, तो बोले. मैँ उस का अपराधी हूँ. है कोई इतना फूहड़, है कोई इतना अनार्य, जिसे अपने अधिकार से प्रेम न हो? कोई है, तो बोले. मैँ उस का अपराधी हूँ. है कोई इतना नीच, इतना कमीन जिसे देश से प्यार न हो? कोई है, तो बोले. मैँ उस का अपराधी हूँ. मैँ आप को पूरा अवसर देता हूँ. कोई है, तो उठे, यहाँ आए और बोले…
सब नगरजन
नहीँ हैँ. कोई नहीँ.
शतमन्यु
तब मैँ ने कोई अपराध नहीँ किया. मैँ ने वही किया विक्रम के साथ, जो आप मेरे साथ कर सकते हैँ. विक्रम की मौत के कारण संसद की कार्रवाई मेँ लिख दिए हैँ हम ने. उस के जो गुण थे, वे भी लिख दिए हैँ हम ने. उस की शान को, उस की आनबान को कम कर के नहीँ बताया है हम ने. उस का वह पूरा अधिकारी था. कहीँ उस के अपराधोँ को बढ़ा चढ़ा कर नहीँ बताया है हम ने. उन का फल भोग चुका है वह.
( आनंद और साथी विक्रम की शवद्रोणी लाते हैँ.)
लीजिए. यह आ गई विक्रम की अरथी. विक्रम की मौत पर शोक प्रकट करेँगे आनंद. विक्रम की मौत मेँ ये हमारे साथ नहीँ थे. पर हम ने तय किया है – विक्रम की मौत का लाभ इन्हेँ भी मिलेगा. नए शासन मेँ इन्हेँ भी सम्मान मिलेगा, पूरा सम्मान मिलेगा, ऐसा सम्मान जिस से आप सब को ईर्ष्या हो सकती है… अब मैँ आप से आज्ञा लेता हूँ. मैँ ने मार डाला अपना मनमीत विक्रम – धारावती के लिए, आप सब के भले के लिए. सैंधव गण के लिए, अपने भले के लिए, यही तलवार आप मेरे सीने मेँ उतार सकते हैँ.
सब नगरजन
आर्य शतमन्यु महान हैँ!
महान हैँ! महान हैँ!
पहला नगरजन
चलो, शतमन्यु की सवारी निकालेँ.
दूसरा नगरजन
चलो, मूर्ति लगाएँ शतमन्यु की.
तीसरा नगरजन
शतमन्यु को सम्राट बना देँ.
चौथा नगरजन
सम्राटोँ वाले सभी गुण हैँ शतमन्यु मेँ.
पहला नगरजन
चलो. नारे लगाएँ. जयकार करेँ. नायक शतमन्यु की सवारी निकालेँ.
शतमन्यु
मेरे देशवासियो…
दूसरा नगरजन
शांत. सब शांत. शतमन्यु बोल रहे हैँ…
पहला नगरजन
शांति! शांति!
शतमन्यु
भले मानसो, अकेला ही जाने देँ
मुझे. मेरी बात मानिए. अभी
यहीँ ठहरेँ सब लोग आनंद के
साथ. श्रद्धा सुमन अर्पित करेँ आप
विक्रम सैंधव को. सुनेँ विक्रम का
गुणगान. हम ने अनुमति दी है –
आनंद को. आप से निवेदन है…
कोई न हिले उस के भाषण
मेँ. हाँ, आप मुझे चला जाने देँ.
(शतमन्यु जाता है.)
पहला नगरजन
ठहरो, सुनो, आनंद का भाषण.
तीसरा नगरजन
जनमंच पर जाने दो उसे. हम सब
सुनेँगे, उस की बात… आनंद, मंच
पर जाओ.
दूसरा नगरजन
शांति! शांति! आनंद को सुनो.
आनंद
महामहिम शतमन्यु की कृपा
से आभारी हूँ मैँ आप का.
चौथा नगरजन
शतमन्यु का क्या है?
तीसरा नगरजन
कह रहा है – शतमन्यु की कृपा से आभारी है हम सब का.
चौथा नगरजन
ठीक! शतमन्यु की निंदा न करे वह.
पहला नगरजन
पूरा दुःशासन था विक्रम.
तीसरा नगरजन
बिल्कुल. चलो, हमारी जान छूटी उस से.
आनंद
सिंधु देश के भले लोगो…
सब नगरजन
शांत! सुनो, शांत!
आनंद
मित्रो! सैंधवो! देशवासियो!
सुनो मेरी बात… नहीँ करना है
मुझे विक्रम का गुणगान. मैँ आया हूँ
करने विक्रम का संस्कार. उस के गुण
नहीँ गाने हैँ मुझे. सद्गुण? वे
सभी जला दिए जाते हैँ आदमी के
साथ. उस के अवगुण रह जाते हैँ याद.
हाँ, यही विक्रम के साथ होने दो.
शतमन्यु महान का कहना है आप से –
सत्ता का लालची था विक्रम. था, तो
यह बड़ी भयानक भूल थी उस की.
बड़ा भयानक फल भुगता है भूल
का उस ने. शतमन्यु महान की कृपा
से, उन के साथियोँ की कृपा से –
परम आदरणीय हैँ शतमन्यु. उन
के साथी भी हैँ परम आदरणीय –
मैँ आया हूँ विक्रम के संस्कार मेँ
बोलने. वह मेरा मित्र था.
कसौटी का सच्चा था. न्यायवान था.
शतमन्यु का कहना है – वह सत्ता का
लालची था. शतमन्यु हैँ आदरणीय.
विजय यात्राओँ मेँ बार बार लाया
था विक्रम बंदीजन. मिलता था उन
की फिरौती से बेशुमार धन. उस
से भर जाता था हमारा गणकोश.
यही था उस का सत्ता का लालच?
ठेस लगती थी किसी निर्धन को, तो
रोता था विक्रम. सत्ता का लालची
क्या होता है कोमल? और शतमन्यु? वे
कहते हैँ विक्रम लालची था सत्ता
का. शतमन्यु ठहरे परम आदरणीय.
आप सब ने देखा था अपनी आँखोँ –
मदन महोत्सव मेँ तीन बार दिया
था मैँ ने मुकुट. ठुकरा दिया तीन
बार विक्रम ने. क्या यही था उस का
सत्ता का लालच? इस पर भी शतमन्यु
कहते हैँ विक्रम सत्ता का लालची
था. हाँ, हाँ. शतमन्यु ठहरे आदरणीय,
परम आदरणीय! शतमन्यु की बात
नहीँ काट रहा हूँ मैँ. वही कह
रहा हूँ मैँ, जो जानता हूँ मैँ. एक
समय था विक्रम को दिल से चाहते
थे आप. निराधार नहीँ था आप का
प्रेम. फिर उस का शोक मनाने से क्योँ
कतराते हैँ आप? नष्ट हो गया
है विवेक. खो गई है लाज शरम.
क्षमा करना, मित्रो, रुँध गया है
मेरा गला. भटक गया है मन
विक्रम के शव मेँ. पलट आने देँ
उसे…
पहला नगरजन
इस की बातोँ मेँ दम है…
दूसरा नगरजन
पर
पूरी तरह सोचो विचारो, तो
विक्रम मेँ बड़े खोट थे…
तीसरा नगरजन
क्या खोट थे,
भला? उस की जगह जो बैठेगा
वह क्या दूध का धुला होगा?
चौथा नगरजन
सुना
कुछ? विक्रम ने तीन बार ठुकरा दिया
था मुकुट. यह सच है, तो सत्ता का
लालची तो नहीँ था विक्रम.
पहला नगरजन
यह सच
है तो किसी न किसी को भोगना
पड़ेगा करतूत का फल…
दूसरा नगरजन
देखो तो –
कैसे रो रहा है! देखो उस की
आँखेँ अंगारे सी लाल.
तीसरा नगरजन
आनंद है
सिंधु देश मेँ सब से महान.
चौथा नगरजन
सुनो.
अब फिर से बोल रहा है आनंद.
आनंद
अभी कल तक विक्रम की वाणी से
थर थर काँपती थी धरती. आज धरती
पर मौन पड़ा है विक्रम. नहीँ है
एक भी रोने वाला… आप स्वामी हैँ.
आप को मैँ भड़काऊँ, तो शामत आ
जाएगी शतमन्यु की, कंक की.
वे दोनोँ ठहरे परम आदरणीय!
भाड़ मेँ जाए विक्रम, मैँ, आप, सब सैंधव!
न आने पाए शतमन्यु पर, कंक पर, आँच!
ये दोनोँ ठहरे परम आदरणीय!
यह देखते हैँ आप? यह अभिलेख! इस
पर यह मुहर है विक्रम की. मुझे
यह मिला था विक्रम के भवन मेँ.
यह है – उस की वसीयत. आप क्षमा
करेँ – यह पढ़नी नहीँ है मुझे.
यह सुन ली आप ने तो चूम लेँगे आप
विक्रम का एक एक घाव. पावन है उस का
लहू. इस लहू मेँ डूबो लेँगे आप
रूमाल. अनुनय विनय करेँगे
आप. माँगेँगे आप विक्रम के शीश का
एक, बस, एक बाल बनाने को ताबीज़,
कंठहार. लिखेँगे अपनी वसीयत –
अपनी संतान को पीढ़ी दर पीढ़ी
सौँप जाएँगे अनमोल सौग़ात –
विक्रम की याद!
चौथा नगरजन
सुनेँगे हम. वसीयत पढ़ो.
सब
वसीयत! वसीयत! विक्रम की वसीयत.
आनंद
भले मानसो. मत पढ़वाओ मुझ
से वसीयत. अच्छा नहीँ होगा
यह बताना – विक्रम को आप से प्रेम
था कितना. आप नहीँ हैँ ईँट या
पत्थर. मानव हैँ आप! मानव हैँ आप!
सुन कर विक्रम की वसीयत, भड़क
जाएँगे आप. पगला जाएँगे आप.
भला इसी मेँ है कि न जानेँ आप –
विक्रम के वारिस हैँ आप. चल गया
जो पता – जाने कैसी प्रलय हो!
चौथा नगरजन
वसीयत! हम सुनेँगे वसीयत!
पढ़ो! विक्रम की वसयीत!
आनंद
रहने दो, मित्रो. विवश मत करो
मुझे. क्योँ कर बैठा मैँ वसीयत
का चर्चा? अपराधी हूँ मैँ उन का
जो हैँ आदरणीय, विक्रम के हत्यारे!
चौथा नगरजन
ग़द्दार कहीँ के! परम आदरणीय!
सब नगरजन
वसीयत! वसीयत! वसीयत!
दूसरा नगरजन
मक्कार हैँ वे! ख़ूनी हैँ! हत्यारे!
वसीयत पढ़ो. वसीयत पढ़ो.
आनंद
नहीँ मानेँगे आप? तो आइए
पहले हम सब दर्शन कर लेँ
दानवीर विक्रम के. उतर आऊँ मैँ?
आने देँगे आप मुझे?
सब नगरजन
आइए.
दूसरा नगरजन
उतरिए.
(आनंदवर्धन मंच से उतरता है.)
तीसरा नगरजन
आइए… आइए…
चौथा नगरजन
घेरा बना लो. घेरा बना लो.
पहला नगरजन
द्रोणी से दूर रहो. विक्रम से दूर.
दूसरा नगरजन
रास्ता दो. आनंद को रास्ता दो.
महान है आनंद!
महान है! महान है!
आनंद
ना! ना! यू मत धकेलिए मुझे.
थोड़ा पीछे हट कर खड़े होँ आप.
सब नगरजन
पीछे हटो. पीछे! पीछे! पीछे!
आनंद
नैनोँ मेँ आँसू होँ, तो बहने देँ आप.
आप पहचानते हैँ यह परिधान?
मुझे याद है, विक्रम ने यह पहना था –
पहली बार गांधार मेँ. सुहानी
शाम थी. उस दिन जीता था गांधार.
देखिए – यहाँ घुपी थी कंक
की तलवार. और यह निशान है द्रोही
चाणूर के वार का. और देखिए यहाँ,
हाँ, यहाँ घुपी थी तलवार मनमीत
शतमन्यु की. तलवार बाहर खीँची
शतमन्यु ने, तो कैसे बह निकली थी
विक्रम के लहू की धार! मानो
दौड़ पड़ी हो बाहर यह देखने कि
यह वार क्या सचमुच मनमीत शतमन्यु ने
किया है. जानते हैँ आप – शतमन्यु था
विक्रम का प्यारा. देवताओ, साक्षी
हो तुम! कितना प्यारा था विक्रम को
शतमन्यु. यही था सब से तीखा,
सब से गहरा वार! विक्रम महान ने
जब देखा यह वार – ऐसे अनेकोँ
विद्रोह झेल सकता था विक्रम. उसे
मारा एक दोस्त की ग़द्दारी ने –
तो देख कर यह वार फट पड़ा विक्रम
का कलेजा. ढाँप लिया विक्रम ने
चेहरा. महाभोज की प्रतिमा के
नीचे बह रहा था लहू. गिर
पड़ा विक्रम वीर. सुनो, मेरे देश
के लोगो, सुनो. यह पतन विक्रम
का नहीँ था. यह पतन मेरा था,
आप का था. हम सब पर पंजे फैला
रहा था ख़ूनी विश्वासघात. आप रो
रहे हैँ. अनमोल हैँ - आप के नैनोँ
के मोती. अभी तक तो आप ने देखा
है विक्रम का परिधान. देखिए…
यह रहा स्वयं विक्रम – क्षत विक्षत,
ग़द्दारोँ की तलवारोँ का शिकार.
पहला नगरजन
हाय! यह हालत!
दूसरा नगरजन
विक्रम महान!
तीसरा नगरजन
हमेँ देखना था यह दिन.
चौथा नगरजन
हाय! ग़द्दार! निर्दयी हत्यारे!
पहला नगरजन
यह ख़ून! यह ख़ूनी परिधान!
दूसरा नगरजन
बदला! बदला!
सब नगरजन
बदला! बदला! चलो! ढूँढ़ो! जला
दो! मारो! काटो! एक एक ग़द्दार को
ढूँढ़ो, मारो. काटो.
आनंद
देश प्रेमियो, ठहरो. रुको. सुनो.
पहला नगरजन
शांति. शांति. सुनो, सब आनंद
महान को सुनो.
दूसरा नगरजन
हाँ, सुनेँगे हम,
आनंद का कहा करेँगे हम.
आनंद कहे तो मर मिटेँगे हम.
आनंद
भले दोस्तो, आप को भड़काना नहीँ
है मुझे. जिन की यह करतूत है, वे
हैँ आदरणीय. उन्होँ ने विक्रम का
क्योँ मारा… मैँ तो अभी तक नहीँ
समझा. समझदार हैँ वे, आदरणीय
हैँ वे. बतलाएँगे वे आप को – क्योँ
मार डाला उन्होँ ने आप का विक्रम!
दोस्तो, मैँ आप को भड़काने नहीँ
आया. बातोँ के धनी शतमन्यु जैसा
मुझे नहीँ आता भाषण झाड़ना.
आप जानते हैँ मुझे – सीधा सादा
मुँहफट इनसान, यारोँ का यार. जानते
हैँ वे भी, जिन्होँ ने मुझे बोलने
को कहा है. वे ख़ूब जानते हैँ… न
कोई मूल्य है मेरा. न कर्म
है, न वाणी है. न शक्ति है मुझ
मेँ लोगोँ का लहू खौलाने की.
बस, बिना सोचे समझे कहे जा
रहा हूँ. अरे, यह सब तो स्वयं
जानते हैँ आप. दिखा रहा हूँ आप
को विक्रम के घाव. घाव ख़ामोश हैँ! काश,
बोल सकते घाव और कह देते वह सब
जो कहना चाहिए था मुझे. काश,
मैँ होता शतमन्यु और शतमन्यु होता
आनंद, तो वह आनंद झकझोर डालता
आप की अंतर्तम चेतना को. विक्रम
के एक एक घाव को देता वह ऐसी
ओजस्वी वाणी जो धारावती की एक एक
ईँट को बना देती विद्रोह का
धधकता भड़कता अंगारा.
सब नगरजन
विद्राह! विद्रोह! क्रांति! क्रांति!
पहला नगरजन
जला दो, शतमन्यु की हवेली.
तीसरा नगरजन
चलो, ग़द्दारोँ को ढूँढ़ो. चलो!
आनंद
ठहरो. सुनो. मेरी बात सुनो.
सब
शांत, सब शांत. सुनो, आनंद
की बात. सुनो, जी, आनंद की बात.
आनंद
कहाँ, क्या, क्योँ करने चल पड़े आप?
मात्र नायक नहीँ था विक्रम, जन
गण मन का अधिनायक था विक्रम.
पर क्योँ? यह नहीँ जानते हैँ आप.
भूल गए आप विक्रम की वसीयत?
सब नगरजन
अरे, हाँ! वसीयत! हम सुनेँगे.
आनंद
यह रही वसीयत! अंकित है इस
पर महानायक विक्रम की मुद्रा.
धारावती के हर नागरिक को, आप मेँ से
हर एक को, उस ने दी हैँ पचहत्तर
स्वर्ण मुद्राएँ…
दूसरा नगरजन
महान था विक्रम.
बदला! बदला!
तीसरा
हाँ, राजा था विक्रम.
आनंद
आप धैर्य से सुनिए पूरी बात.
सब नगरजन
शांति! शांति!
आनंद
केवल यही नहीँ, उस ने दिए
हैँ अपने सारे उपवन उद्यान जो
सिंधु नदी के इस तट पर हैँ. अब
ये सब आप के हैँ, आप के बालगोपाल
के हैँ. इन मेँ सैर कीजिए और मौज
मनाइए. यह था आप का हृदय
सम्राट विक्रम! जाने फिर कब मिले
ऐसा सम्राट!
पहला नगरजन
कभी नहीँ, कभी
नहीँ. चलो, धर्मस्थान चलो. विक्रम
का दाह संस्कार करो. उस की चिता
की लकड़ियोँ से जला दो इन सब
ग़द्दारोँ के घरबार. चलो, कंधा दो.
दूसरा नगरजन
चिंगारी ले आओ.
तीसरा नगरजन
कठहरे
बाड़े – सब तोड़ डालो.
चौथा नगरजन
उखाड़ डालो.
उन के मकानोँ के द्वार गवाक्ष.
(शव को ले कर नगरजन जाते हैँ.)
आनंद
अब होने दो जो होगा. भड़की है
ज्वाला. लपकने दो, जहाँ भी ले
जाए समय का झोंका… कौन? क्या है?
(एक सेवक आता है.)
सेवक
श्रीमान भरत आ चुके हैँ.
आनंद
कहाँ हैँ वे?
सेवक
वे और श्रीमान केतुमाल
अब नायक विक्रम के भवन मेँ हैँ.
आनंद
मैँ भी वहीँ चलता हूँ. मन्नतेँ
पूरी हुई जाती हैँ. भाग्य है
प्रसन्न. भर देगा हमारी झोली.
सेवक
आप ने सुना क्या? धारावती से
भाग गए हैँ शतमन्यु और कंक
रख कर सिर पर पाँव.
आनंद
सुन लिया होगा उन्होँ ने – जगा
दिया है मैँ ने जन मानस. चलो,
चलेँ भरत के पास…
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