यह तू, मनमीत! निष्फल है जीना!
धारावती. संसद के बाहर.
(तूर्यनाद. शंखनाद. विक्रम, शतमन्यु, कंक, चाणूर, भगदत्त भट्टारक, महीधर वर्मन, गुणाकर, चंडीचरण, आनंदवर्धन, केतुमाल, नारदानंद, मंगल, गोपाल तथा अन्य आते हैँ. भीड़ मेँ हैँ नारदानंद और त्रिकालज्ञ.)
विक्रम
(त्रिकालज्ञ से) आ गई चैत्र संक्रांति!
त्रिकालज्ञ
हाँ, विक्रम… अभी गई नहीँ.
नारदानंद
विक्रम की जय! यह आवेदन पढ़ लेँ.
भगदत्त भट्टारक
यह विनम्र आवेदन गुणाकर
की ओर से है. सुविधा से पढ़ लेँ.
नारदानंद
पहले मेरा आवेदन लेँ. इस का
संबंध आप से है. अभी पढ़ लेँ.
विक्रम
मेरी बात है? तो सब के बाद मेँ.
नारदानंद
देर न करेँ. अभी पढ़ लेँ इसे.
विक्रम
सर फिर गया है इस का!
गोपाल
चल दूर हट!
विक्रम
यूँ राह मेँ मत थमाइए अपने
आवेदन. भीतर संसद मेँ चलेँ…
(विक्रम के साथ सब संसद मेँ जाते हैँ.)
मंगल
(कंक से) आप का कारज सफल हो!
कंक
क्क्कौन… कौन सा कारज?
मंगल
अच्छा! …तो नमस्कार!
(विक्रम के पास जाता है.)
शतमन्यु
क्या कह रहा था मंगल?
कंक
आप का कारज सफल हो!… भेद खुल गया
क्या हमारा?
शतमन्यु
सीधा जा रहा है
विक्रम के पास. ध्यान रखो उस पर.
कंक
चाणूर, जल्दी करो. डर है – हमेँ
धर न लिया जाए. शतमन्यु, अब
हम क्या करेँ? भेद खुल गया तो न
विक्रम हटेगा पीछे, न मैँ.
मार डालूँगा मैँ उसे.
शतमन्यु
धीरज धरो,
कंक. उधर देखो – दोनोँ कैसे
हँस रहे हैँ. विक्रम निश्चिंत है.
कंक
वाह गुणाकर!… शतमन्यु, देखो. ठीक
समय पर ले जा रहा है आनंद
को संसद के बाहर.
(आनंद और गुणाकर जाते हैँ.)
भगदत्त भट्टारक
कहाँ है महीधर? आगे बढ़े.
विक्रम से विनती करे.
शतमन्यु
तैयार है
वह. तुम भी बढ़ो. समर्थन करो.
चंडी
चाणूर, पहले वार के लिए तैयार.
विक्रम
सब तैयार हैँ? क्या देर है? संसद का
सत्र होता है आरंभ. है किसी
को कोई कष्ट? आगे आए, बोले.
विक्रम और संसद हैँ करने को दूर.
महीधर वर्मन
सर्वोच्च! महाबली! महागुणी!
महाकुलपति! विक्रम महाराज!
मैँ हूँ महीधर, आप के चरणोँ का
सेवक, आप के श्रीचरणोँ मेँ करता
हूँ झुक कर प्रणाम…
(झुकता है.)
विक्रम
क्या बकवास
है! क्या तमाशा है? चरण छूना!
यह… यह साष्टांग प्रणाम! इस से ख़ुश
होते होँगे साधारण शासक. मैँ
नहीँ. शासन नहीँ चलते ऐसे.
सरकार नहीँ है नाटक तमाशा.
परंपरा, व्यवहार, न्याय नहीँ हैँ
बच्चोँ के खेल! यूँ झुकने से नहीँ
बदलता है क़ानून. मत समझो यूँ
पिघल जाएगा विक्रम बातोँ से.
कुछ नहीँ होगा झुकने से, पिल्लोँ
सा पिनपिनाने से. तुम्हारे भाई
पुष्पदंत को दिया गया था
बनवास. उस ने ठगा था सुमेरु
के सार्थवाह को. सारे देश की साख
को लगाया थी ठेस. उस के लिए
बेकार है यह झुकना, गिड़गिड़ाना.
विक्रम करता नहीँ अन्याय.
अटल है विक्रम का न्याय.
महीधर वर्मन
है कोई माई का लाल, निर्बल का
बल. उन्मुक्त व्यापार का समर्थक!
आए, विक्रम को समझाए, मेरे
भाई को क्षमा दिलवाए?
शतमन्यु
विक्रम
की जय हो. मित्र, क्षमा कर दो. कर
दो निरस्त पुष्पदंत का दंड.
विक्रम
तू भी… मनमीत… शतमन्यु!
कंक
दया! विक्रम!
दया! चरणोँ मेँ गिरता हूँ मैँ कंक.
विक्रम
तुम्हारे जैसा नहीँ है विक्रम.
चिकनी चुपड़ी बातोँ से बदलता
नहीँ है विक्रम. ध्रुव तारे सा
अटल, अविचल, निर्विकार.
आकाश मेँ चित्रित हैँ अनगिन खद्योत.
सब मेँ अगन है, चमचमाते हैँ सब.
सब घूमते हैँ जिस के चारोँ ओर
वह ध्रुव तारा है – अडिग, अटल,
अकेला, परिवर्तनहीन. धरती
पर हँसते गाते रोते रहते हैँ
लोग. डरते हैँ, गिड़गिड़ाते हैँ लोग.
उन मेँ बस एक मैँ हूँ न्याय पर अडिग,
अटल, परिवर्तनहीन. तुम जानते हो
सही था पुष्पदंत को बनवास.
किए का फल भोगना है उसे…
चंडीचरण
विक्रम!
विक्रम
डिगाया चाहते हो हिमालय पहाड़!
भगदत्त भट्टारक
विक्रम महान.
(शतमन्यु झुकता है.)
विक्रम
शतमन्यु, निष्फल है झुकना.
चाणूर
निष्फल नहीँ है तलवार. ले! विक्रम,
झेल!
(चाणूर, अन्य षड्यंत्रकारी और शतमन्यु विक्रम को तलवारेँ घोँपते हैँ.)
विक्रम
यह तू, मनमीत! निष्फल है जीना!
(विक्रम मरता है.)
चंडीचरण
मुक्ति! स्वराज्य! मर गया आतंक!
दोस्तो, दौड़ो. घोषित कर दो सड़कोँ
चौराहोँ पर, गाँव गाँव चौपालोँ पर –
मुक्ति! स्वराज्य! मर गया आतंक!
चाणूर
मंच पर चढ़ो, सब नारे लगाओ :
मुक्ति! स्वराज्य! फिर से गणराज्य!
शतमन्यु
भाइयो, सांसदो, डरो मत आप.
भागो मत… ठहरो, भाइयो, ठहरो.
सुनो – सम्राटी सपने… अब हो गए…
चकनाचूर…
चाणूर
शतमन्यु, जल्दी करो.
जनमंच को संभालो…
भगदत्त भट्टारक
कंक भी.
शतमन्यु
कहाँ हैँ गोपाल?
चंडीचरण
यह रहे – -यहाँ
बलवे से बदहाल.
महीधर वर्मन
साथ खड़े रहो.
कहीँ कोई साथी विक्रम का…
शतमन्यु
खड़े रहने का समय नहीँ है.
होश सँंभालो, गोपाल. अब निरापद
हैँ आप. निरापद हैँ सिंधु देश के
सब लोग. एक एक नर नारी. कुछ नहीँ
बिगाड़ सकता अब कोई किसी का.
जाइए, सुना दीजिए सब को
शुभ समाचार.
कंक
हम से दूर ही रहेँ
आप. बूढ़े हैँ, हमारे साथ आप भी
न आ जाएँ बलवे की चपेट मेँ.
शतमन्यु
यही करेँ आप. करनी हमारी
हैँ. हम ही भरेँगे इस का परिणाम.
(गुणाकर लौट कर आता है.)
कंक
कहाँ है आनंद?
गुणाकर
भाग गया घर –
बदहवास. कोहराम मचा है पूरे
नगर मेँ. नर, नारी, बच्चे, बूढ़े –
भाग रहे हैँ दिशाहीन. मानो, सिर
पर मँडरा रहा है महाकाल.
शतमन्यु
अभी पता चल जाएगा नियति
का निर्णय. हो कर रहती है होनी.
एक दिन मरना है सब को. तब तक हम
करते हैँ कर्म, गिनते हैँ दिन.
चाणूर
सच है. मौत से बीस वर्ष पहले मार
देना किसी को – मतलब है समय से
पहले खोलना मोक्ष का मार्ग…
शतमन्यु
यूँ देखो –
तो वरदान है वध. सच्चे मित्र हैँ
हम विक्रम के. मोक्ष दे दिया हम ने
उसे उस के समय से बहुत पहले.
सैंधवो! सांसदो! मित्रो! आओ,
विक्रम के लहू से लाल कर लो हाथ.
लगा लो मस्तकोँ पर विजय का
रक्तिम टीका. हम निकलेँगे धारा
की सड़कोँ पर, लहराते तलवारेँ,
लगाते नारे –
शांति! मुक्ति! फिर से स्वराज्य!
कंक
आइए, हम झुकेँ. भावी सम्राट
के नाश की लीला मेँ सब शामिल होँ.
इस महान लीला को आने वाले
युगोँ मेँ दोहराएँगे लोग. खेलेँगे
नाटक, दूर दूर देशोँ मेँ, अनजानी
भाषा मेँ…
शतमन्यु
खेल तमाशोँ मेँ
जाने कितनी बार बहेगा विक्रम
का लहू. छूना चाहता था आकाश,
अब पड़ा है धरती पर माटी सा,
महाभोज की प्रतिमा के चरणोँ मेँ.
कंक
जितनी बार खेला जाएगा यह खेल,
उतनी ही बार लोग कहेँगे – हमीँ
ने दिलवाई थी देश को आज़ादी.
भगदत्त भट्टारक
तो अब चलेँ?
कंक
हाँ, सब के सब. नए
नायक शतमन्यु के पीछे चलेँगे हम.
सब – सैंधव गण के लाड़ले वीर सपूत.
(एक सेवक आता है.)
शतमन्यु
ठहरो! कौन आया? …आनंद का सेवक.
सेवक
महानायक शतमन्यु, यूँ झूकने,
यूँ शीश नवाने का आदेश दिया
है स्वामी ने. कहा है धरती पर
गिर कर करना यूँ साष्टांग प्रणाम.
कहना : महान हैँ परम आदरणीय
शतमन्यु. गुणवान हैँ, वीर हैँ, नीति
की खान हैँ शतमन्यु. महाबली
विक्रम थे साहस की मूरत. राजा
थे गुणोँ मे. मुझ पर कृपालु थे.
स्वामी ने यह भी कहा है, कहना :
नायक शतमन्यु का प्रशंसक हूँ
मैँ भी. ग्राहक हूँ उन के गुणोँ का.
कहना : मैँ विक्रम से डरता भी था,
आदर भी करता था उन का. मन से
चाहता भी था उन्हेँ. यदि महान
शतमन्यु आज्ञा देँ, और वचन देँ
जीवन की रक्षा का, तो स्वामी ने
कहा – वे स्वयं हाज़िर होँगे
आप के सामने. आप से सुनेँगे
वे – क्योँ वध का पात्र था विक्रम.
त्याग देँगे मृत विक्रम सैंधव को,
साथ देँगे जीवित शतमन्यु का.
सैंधवोँ के इतिहास मेँ, अनिश्चय की
इस घड़ी मेँ, अनुपालन करेँगे
नए नायक का – तन, मन, वचन से.
यह था निवेदन जो मेरे स्वामी
आनंदवर्धन ने मेरे द्वारा
आप से किया है.
शतमन्यु
वे विवेकी हैँ,
गुणी हैँ, वीर सैंधव हैँ. इस से कम
उन्हेँ कभी नहीँ माना मैँ ने.
जाओ, दूत, उन से कह दो – स्वागत है
उन का. मेरा वचन है – अभयदान
है उन को. जैसे आएँगे वे यहाँ,
वैसे ही जाएँगे वे यहाँ से.
सेवक
अभी ले आता हूँ उन्हेँ आप की
सेवा मेँ.
(सेवक जाता है.)
शतमन्यु
मुझे विश्वास था – आ मिलेगा हम से.
कंक
ऐसा ही हो. पर शंकित हूँ मैँ.
सच निकलती है शंकाएँ मेरी.
( आनंदवर्धन आता है.)
शतमन्यु
लो, आ गया, आनंद…
स्वागत है, मित्र आनंदवर्धन.
आनंद
महाबली विक्रम! यूँ पड़ा है तू?
परंतप, तेरे अभियान, गुणगान,
जयकारे – सब सिमट गए इतने
मेँ. विदा, मित्र, विदा, अलविदा…
सज्जनो, आप का मनोरथ क्या है?
और कौन हैँ आप की सूची मेँ? मैँ भी
हूँ? तो हाज़िर है बंदा. विक्रम के
साथ चला जाऊँ – मुझ अकिंचन का
सौभाग्य इस से बढ़ कर क्या होगा?
महान हैँ वे तलवारेँ जिन्होँ ने
चखा है संसार का महानतम लहू,
घोँप देँ वही आप मेरे सीने मेँ.
अभी कर दीजिए आप अपने
ख़ूनी पंजोँ से मेरा काम तमाम.
हज़ारोँ युग तक भी मरने की इस
से अच्छी घड़ी नहीँ होगी. बस,
यही चाहिए मुझे – विक्रम के
साथ मरूँ , आप के हाथोँ मरूँ. आप सब
ठहरे इस युग के महान उद्धारक!
शतमन्यु
आनंद, यूँ हम से मौत की भीख मत
माँग. माना हमारे हाथ हैँ लाल,
देखने मेँ लगते हैँ हम हत्यारे.
हमारे हाथ मत देख, हमारे मन
मेँ झाँक. हमारे मन मेँ दया है.
सैंधव गण के कष्टों से द्रवित हैँ
हमारे मन. देश प्रेम के नाम पर
हमेँ करना पड़ा विक्रम पर वार.
पर, आनंद, तेरे लिए खुट्टल
है हमारी तलवार की धार. हाथोँ
मेँ तलवार सही, बाँहोँ
मेँ स्वागत है तेरा – सादर, सप्रेम.
कंक
नए शासन मेँ, पदोँ के वितरण
मेँ, हम लेँगे तुम से परामर्श.
शतमन्यु
कुछ समय धीरज धरो. अशांत
है जन मन. शांत होने दो इस को.
फिर बैठेँगे, शांत मन से करेँगे
बात. विक्रम मनमीत था मेरा भी. क्या
किया मैँ ने, क्योँ किया मैँ ने – अभी तुझ
को बताना है.
आनंद
जानता हूँ मैँ आप
के मन की बात. आप सब बढ़ाइए
अपने रक्तरंजित हाथ. पहले मैँ
मिलाऊँगा हाथ आप से, आर्य शतमन्यु.
अब, कंक, बढ़ाओ हाथ. अब, आओ,
भगदत्त. और तुम, महीधर. दो हाथ,
वीर शिरोमणि चाणूर! और अब तुम,
गुणाकर, सब के बाद, लेकिन प्रेम मेँ
सब से बढ़ कर… मित्रो, क्या कहूँ मैँ?
आप सब हैँ गणमान्य, प्रतिष्ठित.
मैँ ठहरा प्रतिष्ठाहीन. दलदल मेँ
धँसा हूँ मैँ. आप समझेँगे मुझे –
कायर, चाटुकार या दलबदलू…
सच! विक्रम प्यारा था मुझे. मैँ था
विक्रम की आँखोँ का तारा. आसपास
मँडरा रही होगी विक्रम की आत्मा.
विक्रम, मैँ जानता हूँ तेरी पीड़ा.
तू सोचता होगा – तेरा आनंद
जो मिला शत्रु से. देखो! मिला
रहा है उन के ख़ूनी पंजोँ से
हाथ! और वह भी – तेरे शव के आगे!
विक्रम अच्छा तो यह था – जितने लगे
थे तेरे घाव, मेरे होतीँ उतनी
आँखेँ, उन सब से बहते लहू के
धारे. लेकिन मैँ? धिक्कार है! मैँ कर
रहा हूँ समझौता हत्यारोँ से.
क्षमा करना, विक्रम. यहाँ घेरा
गया था तुझे. यहाँ हुआ था
तेरा आखेट. यहाँ गिरा था तू.
यहाँ खड़े हैँ तेरे शिकारी
तेरे ख़ून से लथपथ. संसार, तू था
इस हिरने का खुला मैदान. संसार, यह
था तेरे हिय का प्यारा हिरनौटा.
सचमुच, संसार, यह पड़ा है
तेरा हिया – हिरने सा बन कर इन
आखेटकोँ का शिकार.
कंक
आनंदवर्धन…
आनंद
क्षमा करना, मित्र कंक.
विक्रम के शत्रु भी यही कहते.
मैँ था मित्र. ठीक था मेरे लिए
विक्रम का गुणगान…
कंक
यहाँ तक तो ठीक
है. पर बताएँ – अब आप किधर हैँ?
अब भी आप विक्रम के साथ हैँ? या अब
आप हैँ हमारे साथ?
आनंद
इसी लिए
तो मैँ ने आप सब से मिलाए थे
हाथ. बस, बह गया आवेश मेँ, देखा
जो विक्रम को. मित्रो, मैँ आप के
साथ हूँ. आप का स्नेही हूँ. मेरी है
एक शर्त – बताएँगे आप मुझे
विक्रम भयानक क्योँ था, कैसे था?
उस का वध आवश्यक क्योँ था?
शतमन्यु
वरना
हमारा किया माना जाएगा करतूत.
सबल है हमारा आधार. यदि
तू विक्रम का पूत भरत भी
होता, तो सुन कर हमारी बात
हो जाता सहमत…
आनंद
यही चाहता हूँ
मैँ. एक और विनती है – ले जाने देँ
मुझे विक्रम का शव नगर चौक. मित्र के
नाते संस्कार मेँ बोलने देँ मुझे.
करने देँ मुझे विक्रम का गुणगान.
शतमन्यु
ऐसा ही होगा, आनंदवर्धन.
कंक
एक पल
सुनिए मेरी बात…
(कंक शतमन्यु को अलग ले जाता है.)
आप नहीँ जानते किस बला को न्योत
रहे हैँ आप. मत करने देँ उसे
विक्रम का गुणगान. भड़क सकती है
उस के भाषण से आग.
शतमन्यु
लेकिन उस से
पहले बोलूँगा मैँ. समझा दूँगा –
क्योँ मरना पड़ा हमारे विक्रम
को. कहूँगा – देखिए, अब भी हम
दे रहे हैँ विक्रम को मान. इसी
लिए छूट है आनंद को – खुल कर
करे विक्रम का गुणगान. बढ़ेगी
इस से हमारी साख.
कंक
देख लेँ आप.
मुझे डर है – क्या पता क्या हो!
शतमन्यु
तो,
आनंदवर्धन, लेँ विक्रम का शव.
खुल कर करेँ विक्रम का गुणगान. हाँ,
नहीँ देँगे आप हमेँ कोई दोष.
बता देँगे हमारी कृपा से
बोल रहे हैँ आप. वरना विक्रम के
संस्कार से दूर रहेँगे आप… और, हाँ,
पहले बोलूँगा मैँ, मेरे बाद आप.
आनंद
बस, नहीँ चाहता मैँ कुछ और.
शतमन्यु
तो शवद्रोणी बनवाइए आप.
हमारे पीछे ले आइए आप.
(शतमन्यु आदि जाते हैँ. मंच पर रह जाता है विक्रम के शव के साथ आनंदवर्धन.)
आनंद
क्षमा, ओ रुधिर बहाती माटी.
क्षमा, जो मैँ झुका हत्यारोँ के
आगे. साधारण माटी नहीँ है
तू. भवसागर के उत्ताल ज्वार ने जो
महानतम मानव जन्मा, तू उस नर
पुंगव की थाती है. पछताएँगे
वे हाथ, उठे जो तेरी काया पर.
तेरे ये घाव… नहीँ, ये घाव नहीँ
हैँ… लाल अधर हैँ रक्त कमल से.
ये माँग रहे हैँ मेरी वाणी.
सुनो, दिशाओ, मानव अंगोँ पर
गाज गिरेगी. कुटिल काल का तांडव
होगा. नगर नगर मेँ कलह
मचेगी. धू धू सारा देश जलेगा.
इतना अत्याचार बढ़ेगा, पुत्रोँ
के तत्काल मरण की मन्नत माँएँ
माँगेँगी. इस धरती की छाती को
विक्रम का भूत दलेगा. गिन गिन कर
सब से बदले लेगा. रणचंडी के
साथ हँसेगा. इतनी लोथेँ बिखरेँगी
धरती पर… नहीँ बचेगा कोई
चिता जलाने वाला…
(भरत सैंधव का सेवक आता है.)
कौन? तुम तो भरत सैंधव के चर हो?
सेवक
जी, हाँ, आनंदवर्धन श्रीमंत.
आनंद
विक्रम ने उन्हेँ बुलाया था.
सेवक
जी,
आदेश मिला था. स्वामी बढ़े आ
रहे हैँ. लाया हूँ उन का संदेश…
अरे! विक्रम! कुलनायक!
आनंद
विशाल है तेरा मन. रोना है, तो
हट कर रो. छूत की तरह फैलता है
अवसाद. तेरी आँखोँ के मोतियोँ
से भर आईँ मेरी भी आँखेँ… कब
आएँगे तेरे स्वामी?
सेवक
आज रात वे
धारावती से सात कोस पर होँगे.
आनंद
तुरंत दौड़ जा वापस. जा, बता
दे यहाँ जो कुछ हुआ है. शोकमग्न
है धारा नगरी. निरापद नहीँ
नहीँ है भरत सैंधव का आना.
जा, जा कर बता दे… ठहर. अभी
मत जा. नगर चौक तक चल मेरे
साथ. देखते हैँ – क्या होता है?
मेरे भाषण के बाद जनता इन हत्यारोँ
का क्या करती है? तभी जा कर तू
भरत को बताना सब हाल.
तब तक तू बँटा मेरा हाथ.
(विक्रम का शव ले कर जाते हैँ.)
Comments