विक्रम सैंधव. अंक 2. दृश्य 4. धारावती. शतमन्यु के घर के बाहर

In Adaptation, Culture, Drama, Fiction, Poetry by Arvind KumarLeave a Comment

 

यह भनभनाहट सी क्‍या है?

दंगे के शोर जैसी? दूर, दुर्ग की ओर.

 

दुर्ग. शतमन्‍यु के घर के बाहर मार्ग.

(रत्‍ना और पिपीलक आते हैँ.)

 

रत्‍ना

दास, जा. संसद भवन तक हो आ.

जा, जल्‍दी जा. गया क्योँहीँ अभी तक?

पिपीलक

पूछना हैक्‍या करना होगा, देवी?

रत्‍ना

बस जा, और जा कर लौट आ. बस.

(स्वगत) धीरज, मेरा साथ मत छोड़. मेरे मन

और जीभ के बीच खड़ा कर दे पहाड़.

मन तो मेरा पुरुषों सरीखा है.

पर मनोबल? नारी सरीखा! कितना

कठिन है औरतोँ को पेट की बात

पेट मेँ पचाना. (पिपीलक से) अरे, अभी

तक तू गया नहीँ!

पिपीलक

बस इतना आदेश है? दौड़ कर

जाना दुर्ग तक? करना कुछ नहीँ!

लौट आना आप तक? करना कुछ नहीँ!

रत्‍ना

लौट कर बतास्‍वामी ठीक हैँ? गए

थे तो कुछ ढीले से थे हाँ! यह भी

ध्‍यान से देखनाविक्रम क्‍या कर रहे

हैँ? कौन कौन प्रार्थी हैँ उन के पास. जा.

अरे, सुन यह शोर कैसा?

पिपीलक

                                कहाँ?

रत्‍ना

                                            ठीक

से सुन. यह भनभनाहट सी क्‍या है?

दंगे के शोर जैसी? दूर, दुर्ग की ओर.

पिपीलक

शांत, देवी, शांत. कुछ भी नहीँ.

(त्रिकालज्ञ आता है.)

रत्‍ना

सुनिए. कहाँ से आ रहे हैँ

आप?

त्रिकालज्ञ

         घर से.

रत्‍ना

                     क्‍या बजा है?

त्रिकालज्ञ

                                            लगभग नौ.

रत्‍ना

विक्रम संसद गए क्‍या?

त्रिकालज्ञ

                                              अभी तक

हीँ. उन्हेँ देखने निकला हूँ मैँ.

रत्‍ना

कोई आवेदन देना है उन्हेँ? है न?

त्रिकालज्ञ

जी, देवी. विक्रम सुनेँ तो बस

कहना हैसावधान! मित्रोँ से सावधान!

रत्‍ना

क्योँ? क्‍या आप को पता है कुछ होने

वाला है विक्रम को?

त्रिकालज्ञ

                                  पता तो नहीँ है.

डर हैकुछ हो कर रहेगा. अच्‍छा!

नमस्‍कार. चलूँ. यहाँ गली तंग

है. विक्रम के साथ चलती है बड़ी

भीड़सांसद, प्रार्थी, छोटे बड़े लोग,

आवेदक. भीड़ मेँ भुरकुस बन जाएगी

यह काया. खुला मार्ग तलाशूँगा.

मुझे विक्रम से कहना है :

सावधान! विक्रम, सावधान?

(त्रिकालज्ञ जाता है.)

रत्‍ना

चलूँ. मैँ भी भीतर चलूँ. कितना

कच्‍चा होता हैनारी, तेरा मन!

आर्यपुत्र, आप का कारज सफल हो!

(स्‍वगत) हीँ पिपीलक ने तुन तो नहीँ ली

मेरी मंगल कामना? (पिपीलक से) तेरे स्‍वामी

को करनी है विक्रम से कुछ याचना.

क्‍या पता विक्रम स्‍वीकार करेँगे

या नहीँ? (स्‍वगत) शिथिल हो रहे हैँ गात.

(पिपीलक से) पिपीलक, जा! जा! दौड़ कर

जा. जा, स्‍वामी को बताठीक हूँ मैँ.

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