फ़ाउस्ट – एक त्रासदी
योहान वोल्फ़गांग फ़ौन गोएथे
काव्यानुवाद - © अरविंद कुमार
८. गहरी पर्वतीय घाटियाँ, वन, शिखर, मरुथल.
ईसाई हठयोगी – साधु संन्यासी
पर्वत स्तरोँ पर और कंदराओँ और गह्वरोँ मेँ बिखरे हैँ.
कोरस और गूँज
जंगल घनघोर
वन प्रांत विभोर
उन्नत शिखर कूट
गहन तल गह्वर
तीखे शिलाखंड
सघन लता कुंज
विशाल तरुवर
ओट मेँ कंदर
गिरिगुहा कोटर
दयाल हैँ सिंह
मौन हैँ सिंह
रक्षक वन पावन
रक्षित उपवन.
पितृ तन्मयानंद (इधर उधर तैरता हुआ)
प्रेम की ज्वाला
जलता उल्लास
हिया मेँ कसके
मिलन की आस
भगवान की आस
तीर, छेद छेद तन
भाले, भेद भेद तन
डंडे, तोड़ तोड़ तन
पत्थर, फोड़ फोड़ तन
तत्व हो मटियामेट
तत्व हो चकनाचूर
उड़ जाए माटी, उड़ जाए धूल
शून्य, शून्य, सब शून्य
दम दम दमके
प्रेम अनंत.
पितृ गहनानंद (गहन तल मेँ)
मेरे चरणोँ मेँ
गिरि गह्वर मेँ
शत शत झरने
चंचल प्रपात
जलप्लव आकुल
मिलने को व्याकुल
उठते देवदार
ऊपर, ऊपर, ऊपर
छूने को नभ विशाल
प्रेम है अगम अनश्वर
प्रेम है सब का कर्ता
सब का पालनहार
प्रेम का है सब को उपहार –
प्रेम है सब का सर्जनहार.
जंगल मेँ, खाई मेँ
कण कण मेँ पिर कर
गर्जित है विकल स्वर
गोमुख से झर झर
विकल हो जलधार
सुनती है घाटी की पुकार
चलती करती है शोर
बहती है नीचे की ओर
बुझाने को घाटी की प्यास
दमकती है दामिनी
भरती है आकाश
ओज से उजास
जीवन से सराबोर
सब प्रेम के दूत
एक है संदेश
सर्जना है प्रेम
जगमग कोर कोर
चमचम पोर पोर
मन की भटकन
चेतना है शून्य
अस्तित्व है शून्य
बंधन ही बंधन
चुभन ही चुभन
सर्वशक्तिमान
हे भगवान
दे दो मिठास
मन को प्रकाश.
(निष्पाप बालदूत फ़ाउस्ट की आत्मा को स्वर्ग ले जा रहे हैँ.)
पितृ शरभानंद (मध्य क्षेत्र मेँ)
सनोवर की फुनगी पर
झूमती झूलती फुनगी पर
बादल का फाहा
क्या जानूँ क्या लाया –
आया, शिशुदेवोँ का दल आया.
स्वर्गनिवासी शिशुदेव कोरस
कौन हैँ हम, बाबा, बताओ
कहाँ है हम, बाबा, बताओ
सुखी हैँ हम, हैँ साथ साथ
हमारा जीवन कोमल उल्लास.
पितृ शरभानंद
बच्चो! तुम जन्मे थे आधी रात.
खोल नहीँ पाए थे इंद्रियोँ के कपाट.
रुँध गया तुम्हारे माँ बाप का मन –
भाग्य मेँ था रुदन.
देवदूतोँ के बन गए उल्लास.
प्रेमल हृदय है तुम्हारे पास.
आओ, आओ, मेरे पास.
भाग्य था प्रसन्न – बच गए तुम
जीवन के कंटक से.
आओ, मेरी अँखियोँ मेँ आओ.
मेरी अँखियोँ से देखो, संसार देखो.
(उन्हेँ अपने मेँ समेटता है.)
उपवन मनहर,
वृक्ष, शिलाएँ पत्थर,
झरते प्रपात,
चट्टान,
मुड़ती जल धार.
स्वर्गनिवासी शिशुदेव (भीतर से)
दृश्य है महान –
निरुल्लास और उदास.
हमेँ लगता है भय
हमेँ होता है विस्मय.
बाबा जी, जाने देँ हमेँ.
पितृ शरभानंद
चढ़ो, और ऊपर सिधारो.
मानस मेँ गुप्त ज्ञान धारो.
निर्मल है अनंत
ईश्वर की सत्ता.
आत्मा का संबल
विशुद्ध है पवन.
कालातीत प्रेम
ज्ञान का उद्घाटन.
स्वर्गनिवासी शिशुदेव कोरस (उच्चतम शिखर पर मँडराते हुए – )
हाथ मेँ हाथ
हर्ष का गीत
हर्ष के नाम
भक्ति का भाव
नभ गुंजायमान
पावन ज्ञान
निर्द्वंद्व विश्वास
जिस की चाह
उस के पास.
देवदूत (फ़ाउस्ट का अनश्वर सत्व लिए उच्चतर गगन मेँ उड़ते हुए – )
महान है यह विशुद्ध आत्मा – महान.
पाश से मुक्ति का मिला है वरदान.
जो भी करता है कर्म अविश्राम –
पा सकता है वह भी मोक्ष वरदान.
पुनर्जीवित प्रेम करे जब समर्थन
स्वर्ग के सभी जन हो कर समूहित
उमड़ पड़ते हैँ करने को स्वागत –
सुस्वागतम! सुस्वागतम! सुस्वागतम!
नवयुवा देवदूत
जब ग्लानि हो सच्ची और निर्मल
पावन प्रेम बरसाए प्रेम के पाटल –
देने को हमेँ बल, करने को सामना,
बचाने को यह आत्मा.
डर गए यमदूत.
भाग गए शैतान के दूत.
आदी थे भोगने के वे नरक की यातना.
पहली बार भोगी उन्होँ ने प्रेम की यातना.
पँखड़ियोँ ने छेदी शैतान की संतान.
हम से काँप गया स्वयं शैतान.
मिली हमेँ जीत – व्यर्थ नहीँ था प्रयास!
अधिक परिष्कृत देवदूत
पार्थिव अवशेष से त्रस्त हैँ हम.
भारी है भार – उठा पाते नहीँ हम.
छूटती नहीँ है छूत – कलुषहीन होँ जन.
आत्मा मेँ स्फूर्त जब होता है चेतन
जब जड़ से जुड़ जाता है शुद्ध चेतन
तत्वोँ से हो जाता है घनघोर संगम.
द्वंद्वोँ का बंधन नहीँ काट सकते हम.
संसार की भीत तोड़ता है –
प्रेम – सनातन चिरंतन.
युवा देवदूत
शिखरोँ पर जैसे तुहिन कण –
तिरती है चेतना दिव्य चिरंतन
क्षीण सघन घन.
पापहीन शिशुदेवोँ के गण –
धराभार से उन्मोचित विचरण
सुख आनंद संलिप्त मगन मन
लोक उच्चतर
लगाते चक्कर.
उल्लास वसंत नव
अनुभव जीवन नव
आरंभ पुनर् नव -
शुभ से होने दो –
चेतन का संगम.
शिशुदेव
अभी था वह हेमकोश
ले आए हम उसे खोज.
हर्षित है नयन कोश
पाने को दिव्य ज्योत.
खोल दो झिल्ली
खोल दो बंधन.
पावन है देश.
पावन है जीवन.
पावन से चमचम –
चोला जो जीवन.
डाक्टर मारियानस (उच्चतम पवित्रतम प्रकोष्ठ मेँ – )
मुक्त है विहान.
चेतना का उत्थान.
बढ़े आ रहे हैँ स्वर्ग की ओर
अनेक नारी आकार.
मध्य मेँ हैँ तारकाओँ की माल
बीच मेँ है सब के ऊपर
स्वर्ग की रानी – कन्या सुकुमारी
(हर्षातिरेक)
जाज्वल्यमान दैदीप्यमान
सुकुमारी माता महारानी.
निसर्ग का नील विहान
बरसा देँ कृपा, महारानी.
मानव मन हो अभिभूत
कोमल, धीर, अनन्य –
पहचानें प्रेम का परिपूत
उद्घाटित समन्वय.
आप का हर आदेश
निर्भय पालेँ जन पावन
पाते ही नव संदेश
होते हैँ शांत सु-मन.
निष्कलंक गर्भधारिणी
माता सुकुमारी
स्वर्ग श्रीधारिणी
शाश्वत माँ हमारी.
आप के चहुँ ओर
कंपित दल बादल
चरणोँ मेँ हैँ विभोर
क्षमाप्रार्थी नारी दल
वायवी सम्मेलन
माँग रहे क्षमादान
कीजिए कृपादान.
आप को मिला ईश से वरदान.
विशुद्ध थीँ आप, अनुपम.
भूल हुई जिन से अनजान
मिले निर्भय अभयदान.
हाड़मांस की पुतलियाँ हैँ वे.
कठिन है उन का निर्वाण.
असहाय कौन झेले प्रलोभन?
कीचड़ मेँ कितनी सहज है फिसलन.
कौन रोक पाता है -
नयनोँ का निमंत्रण?
अधरोँ का आवाहन?
वाणी का प्रलोभन?
(दिव्य माता मरियम उच्चाकाश मेँ तिरती हुईं.)
अनंत आकाश मेँ विचरती हैँ आप – माता हमारी.
सुनिए याचना हमारी, अभ्यर्थना हमारी – माता हमारी.
अनसूया हैँ आप – देवी दया की हैँ – माता हमारी.
कृपा की करुण बरसात हैँ आप – माता हमारी.
मैग्ना पैकात्रिज (ल्यूक ७.३६)
आप को शपथ है उस के प्रेम की
जिस ने पखारे आप के पूत मसीह के चरण
अश्रु धार से. सहे पापियोँ के व्यंग्य बाण.
शपथ उस भांड की जिस के कगार पर
उठती है गंध – सुगंधित लोबान,
जिस ने सुखाए थे पावन अंग प्रत्यंग…
मूलिअर सामारीताना (जान ४)
उस पनघट की शपथ –
जहाँ से भगाए गए थे अब्राहम के वंशधर,
उस कुंभ की शपथ जिस ने दिया था
प्यासे मसीहा को शीतल जलपान,
उस पावन अनंत जलस्रोत की शपथ
जहाँ से सतत प्रवाहित है संसार का जीवन जल.
मारिया ईजिप्तियाका (आक्ता सांक्तोरम)
उस चैत्य की शपथ
जहाँ रखे थे साईँ के पार्थिव अवशेष.
उस हाथ की शपथ जिस ने लौटा दिया –
उस चैत्य के द्वार से धमका कर.
उन चालीस वर्षोँ का वास्ता
जो बिताए मैँ ने मरुथल मेँ तड़प कर.
उस विदा वाक्य का वास्ता –
जो मैँ ने लिखा था रेत पर.
पश्चात्तापिनी नारियाँ (प्रार्थना)
पावन प्रेम कीजिए स्वीकार
निष्कलंक गर्भधारिणी
माँ सुकुमारी – शाश्वत महारानी
कीजिए कृपादान
विशुद्ध थीँ आप
निष्कलंक निष्पाप
हो गई जिन से भूल
कीजिए कृपादान
पावन प्रेम को दीजिए वरदान.
हाड़माँस की पुतलियाँ हैँ वे
फिसल जाना है कितना आसान
कौन रोक पाता है –
नयनोँ का निमंत्रण
अधरोँ का आवाहन
वाणी का सम्मोहन…
माँ सुकुमारी – शाश्वत महारानी
कीजिए कृपादान – मिले अभयदान…
क्षमाप्रार्थिनी (पूर्ववर्ती मार्गरेट) (सटती हुई – )
वर दे, माँ सुकुमारिनी
निष्कलंकिनी, ज्योतिर्दायिनी
मेरे सुख को जगमग ज्योतिर्मय कर दे
वर दे, माँ अनुपमे, वर दे.
सुकुमारिणी, निष्कलंकिनी.
तप कर जग के कष्टोँ से निर्मम
लौटा है मेरा परदेसी प्रीतम
वर दे, माँ अनुपमे, वर दे.
सुकुमारिणी, निष्कलंकिनी.
शिशुदेव (निकट उमड़ते आते हैँ.)
वर्धमान है उस का आकार
हो गया हम से बढ़ कर.
हमेँ देगा वह पूरा ध्यान
उस पर हमारा है अधिकार.
पृथ्वी से हमेँ लिया था छीन.
अनुभव है उस के पास.
देगा वह हमेँ ज्ञान का आधार.
क्षमाप्रार्थिनी (पूर्ववर्ती मार्गरेट)
दिव्य संगीत.
नव जीवन का गीत.
उभरता है नवागत मेँ नव ज्ञान.
पा रहा है वह नव जीवन, नई पहचान.
दिव्य से हो रहा है एकाकार.
देखिए फेँक दिया उस ने पार्थिव चोला.
देखिए उस का दिव्य परिधान.
नव यौवन के जागरण का नव गान.
आज्ञा देँ - मैँ दूँ उसे नव ज्ञान.
अभी तक चकाचौँध कर रहा है उसे नया विहान.
दिव्य माता
उठो. उच्चतर व्योम को चलो.
उसे भी लो साथ –
वह आएगा तुम्हारे साथ.
डाक्टर मारियानस (धरती पर बिछ कर, आह्लादपूर्क – )
पश्चात्तापिनो, देखो – हर्षित हो, देखो -
देखो – दया की देवी को देखो.
देखो – माँ बरसाती वरदान…
माँ, हमारा मन, चिंतन – हो तुम्हेँ अर्पण.
परम पावन कुँवरानी, माँ, महारानी,
ईश्वरी, करो कल्याण.
रहस्य कोरस
जो था – माया था नश्वर.
जो नहीँ था – अब सत्य है सुखकर.
जो अगम्य था – है उद्घाटित, मानो गोचर…
शाश्वत सत्ता, ओ नारी – ले चल ऊपर, ऊपर, ऊपर…
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