फ़ाउस्ट – एक त्रासदी
योहान वोल्फ़गांग फ़ौन गोएथे
काव्यानुवाद - © अरविंद कुमार
७. समाधि
कंकाल
कौन है? किस ने चलाए थे फावड़े कुदाल?
किस ने बनाया है मकान – बदहाल?
कई कंकाल
नश्वर इनसान! क़फ़न के मेहमान!
तेरे लिए काफ़ी है यह मकान
कितना सुंदर महान.
कंकाल
खाली ख़ाली क्योँ है यह हाल?
न मेज़, न कुरसी – न कोई पुरसाहाल.
कई कंकाल
यहाँ रहना है गिनती के कुछ दिन.
कितने खड़े हैँ लगाए क़तार – जा गिन!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
पड़ा है मुरदा, जैसे ही निकलेगी आत्मा.
रोक लूँगा उसे, दिखा दूँगा शर्तनामा.
लगा है इस पर लहू से ठप्पा…
निकल आई हैँ नई से नई तदबीरेँ.
लोग बता देते हैँ शैतान को धता.
नई नई युक्तियोँ का हमेँ नहीँ कुछ पता.
पहले तो अंतिम श्वास के साथ निकल आती थी आत्मा.
आराम से खड़ा रहता था मैँ.
निकलते ही उसे चूहे सा दबोच लेता था मैँ.
पहले काफ़ी था मैँ अकेला.
अब पड़ती है सहायकोँ की ज़रूरत.
हर ओर बुरा है हमारा हाल.
परंपरा, रीति रिवाज़, पुराने अधिकार –
अब कोई किसी को नहीँ मानता.
अब – देर तक अटका रहता है दम.
छोड़ना नहीँ चाहता कोई पुराना घर.
शरीर की पुटिया काँपती है, थरथराती है.
लड़ झगड़ कर तत्व मारते हैँ लात,
करते हैँ बुरा हाल,
बड़ा बेआबरू कर देते हैँ कूचे से निकाल.
कई बार कई कई दिन तक करता हूँ इंतज़ार.
फिर भी अनिश्चित रहता है –
कब कैसे निकलेगी आत्मा.
सँभालूँ मैँ कौन सा द्वार.
कई बार तो बूढ़े यम का वार
हो जाता है बेकार.
मौत आई या नहीँ –
होती रहती है घंटोँ तकरार.
तन बदन अकड़ जाता है.
मैँ होने लगता हूँ ख़ुश.
सब धोखा था – बाद मेँ पता चलता है,
फिर से अंग प्रत्यंग करने लगते हैँ काम…
सावधान! तेज़ क़दम! आगे चल!
पीछे मुड़! यमदूत का दल!
लाओ नज़दीक! नरक मुँहफाड़!
एक नहीँ, अनेक हैँ नरक की दाढ़!
बाअदब! बामुलाहजा! होशियार!
आने वाला है नया किराएदार!
(बाईँ ओर नरक का भयानक द्वार खुलता है.)
चौड़ा खुला है मुखद्वार.
हलक़ से निकल रही है ज्वाला विकराल.
भीतर दूर! धधक रहा है लपटोँ का दुर्ग.
उबलता आ रहा है धुओँ और शोलोँ का लाल ज्वार.
तैर रहे हैँ पापी – निकलने को हाथ पैर रहे हैँ मार.
निगल रहा है वह भीमकाय सियार –
दाँतोँ से रहा है झिँझोड़.
गिरते पड़ते पापी उतर रहे हैँ दहकते विकराल गाल मेँ.
कोने कोने मेँ हैँ यातना के क्रूरतम हैँ यंत्रोँ के अंबार.
पापियोँ को कितना ही बताओ
कितना ही डराओ
वे समझते हैँ यह सब है कल्पनाप्रसूत भ्रामक प्रचार.
(बलिष्ठ यमदूतोँ से. उन के सीधे छोटे सीँग हैँ.)
मोटू यमदूत! तुम्हारे गाल हैँ लाल.
कौँध रही है तन पर गंधक की नारकीय ज्वाल.
मोटी गुद्दी वाले साँड – मोड़ नहीँ सकते गरदन!
ताक, नीचे का छेद सँभाल.
अकसर मध्य मेँ रहती है आत्मा –
नाभि या नाफ़ा जिस का है नाम.
दिख जाए जो पारस की कौँध,
तो पकड़ ले – यह आत्मा है – पाप की इल्ली परदार.
नोँच ले पंख हो जा सवार
लगा कर ठप्पा मैँ जमा दूँगा अधिकार.
हो जाऊँगा सवार.
झोँक दूँगा जहाँ है नरक का धधकता भीषण दाहागार.
धौँकनी के पीपो, चूको मत! रहो सावधान.
निकल न भागे फ़ाउस्ट की आत्मा.
(सीँकिया यमदूतोँ से. उन के लंबे सीँग टेढ़े मेढ़े हैँ.)
पागल लंगूरो! नरक के कंगूरो!
लड़खड़ाते शूरवीरो!
उठंग कर उचको, हवा को सँभालो.
बढ़ा हाथ! बढ़ा पंजे! ओ गंजे!
उधर से न हो जाए उड़न छू!
बेचैन होगी निकलने को.
ऊपर का मार्ग अपनाती है
फ़ाउस्ट जैसे विद्वानोँ की आत्मा.
(ऊपर – दाहिने ज्योति चक्र.)
दिव्य सेना
आओ, देवदूत, आओ.
विमानोँ मेँ मँडराओ
मोरचे सँभालो…
पापियोँ को सँभालो
माटी मेँ जान डालो
हर जीव पर दया बरसाओ.
प्रेम सुधा सरसाओ.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
कैसा कर्कश है गान!
इसे लोग कहते हैँ प्रार्थना – प्रभु का गुणगान.
कैसा ऊबड़ खाबड़ खड़काऊ!
आकाश पर उतरता है अनचाहा दिन.
ये लड़के हैँ या लड़कियाँ?
जनाने हैँ लड़के – जैसे जनख़ोँ का मेला.
इन्हेँ पसंद कर सकते हैँ केवल उजड्ड गँवार.
देखो, इन चिकने चुपड़े, गाते बजाते, छोकरोँ को देखो.
कई बार छीन ले जाते हैँ ये हम से हमारा शिकार.
ऐसे वक़्त मेँ इन के काम आता है हमारा अपना हथियार.
यमदूत हैँ ये भी, बस, बदल रखा है इन्होँ ने भेस!
साथियो, पछताओगे जीवन भर जो आज गए हार.
अड़े रहो, डटे रहो जहाँ बन रहा है मज़ार.
देवदूत कोरस (गुलाब की पँखड़ियोँ की वर्षा करते हैँ.)
पाटल दल, लाल लाल
गंध फैलाओ
मिठास फैलाओ
सुख शांति सरसाओ
उतरो, छितराओ.
कलियो, खिलो शाखोँ पर
हँसो तुम – कली से खिलो
खिल कर निज रूप दिखाओ.
दो वसंत का संदेश
सोया जो राही है स्वर्ग उसे ले जाओ…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (शैतान सेना से -)
डरते हो क्योँ, काँपते हो क्योँ?
डग पीछे धरते हो क्योँ?
तुम! तुम्हीँ हो मेरे रण बाँकुरे – नरक के योद्धा.
वे समझते हैँ बिखेर कर फूल ये हिमानी
डर जाओगे तुम वीर सेनानी!
बिखेरने दो जो वे बिखेरते हैँ फूल.
तुम मारोगे फूँक! उड़ जाएँगे फूल.
मारो, मारो, ज़ोर से फूँक मारो…
बस! बस! देखा! झुलस गए फूल.
बंद करो थूथन, बंद करो नथने…
इतनी दूर उड़ा दिए फूल!
नहीँ सीख पाए कभी तुम
ठीक से करना कोई काम!
देखो, मुरझा गए फूल.
पड़ गए काले,
सिकुड़ कर झुलस गए फूल.
उन से उठती है ज्वाला – काली विकराल.
भागते हो इन से डर कर!
यहाँ आ गए सिमट कर!
निकल रही है जान,
टूट रहा है दम!
यमदूतोँ के नथुनोँ मेँ है भयावनी गंध.
(मैफ़िस्टोफ़िलीज़फिलीज़ और दिव्यदूतोँ की सेना के बीच संघर्ष. फूल काले पड़ जाते हैँ. उन से ज्वाला उठती है. शैतानी दूत डर कर पीछे हटते हैँ.)
देवदूत
वरदान के फूल
सौंदर्य की ज्वाला
भक्ति की माला
प्रेम का प्रकाश
मन का उजाला
सत्य का संदेश
निर्मल आकाश
दैवी आदेश
जगमग प्रकाश
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
नाश हो! बुरा हो!
सब के सब – उज़बक गँवार
यमदूत हो? या अनाड़ी सिपहसालार!
खाते हो चक्कर! लगाते हो चक्कर!
गिरते होँ औँधे – मुँह है नीचे, ऊपर हैँ चूतड़!
चख लिया मज़ा! भूल गए औसान!
मुझे देखो. मैँ खड़ा हूँ डट कर.
(गुलाब की उड़ती पंखड़ियोँ से लड़ता है.)
दूर हटो! फूल हो या चिंगारी!
चिंगारी की औलाद! मँडराते हो मेरे पास.
नहीँ होते दूर! हटो! हटो! दूर!
नहीँ सुना! मैँ कहता हूँ दूर! दूर! दूर!
ये चिपट रहे हैँ मेरी गरदन से, जला रहे हैँ तन
देवदूत कोरस
छोड़ दे, जो नहीँ है तेरा.
संभव नहीँ जिस को सहना
रख दूर, अपने से दूर रख ना.
जो तू सकता नहीँ सँभाल
क्योँ फैलाता है उस पे जाल?
ज़ोर से दबोचेगा तू
ज़ोर से वह देगा उछाल.
प्रेम का पंथ है निराला.
चलती है आँधी – उड़ती है धूल
तिन का जाता है तिन के पास!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
जल रहा है मेरा जिगर, कलेजा.
फट जाएगा मेरा भेजा.
यह कोई तत्व है विकराल.
नरक की ज्वाला से तीखी है इस की नोँक
तीखा है यह त्रिशूल,
तभी तो रिरिया रहे तो तुम, मेरे वीर!
तुम पर चल गया है प्रेम का तीर!
बार बार रहे हो इन मायावी छोकरोँ को घूर.
क्या हुआ? मेरा सिर भी मुड़ रहा है इसी ओर.
जानी दुश्मन हूँ मैँ इन का
देखते ही उमड़ता था मन मेँ घृणा का वारापार.
क्या किसी मोहिनी शक्ति ने बदल दिया है मेरा स्वभाव?
सुंदर हैँ ये बालक. प्रेम के छौने! शावक दल कोमल.
बार बार इन्हेँ देखने को करता है मन.
क्या रोक रहा है मुझे?
क्योँ नहीँ दे पाता इन्हेँ मैँ शाप?
मैँ ही निगल गया चारा इन का
तो कौन होगा मुझ से बड़ा मूर्ख?
(देवदूत सारा स्थान घेर लेते हैँ.)
बदज़ात छोकरो – तुम से था मेरा नफ़रत का व्यवहार.
क्योँ आ रहा है अब तुम पर प्यार?
छोकरो, तुम से है मेरा सवाल –
क्या हो तुम, जो नहीँ हो लूसीफ़र का अवतार?
सुंदर है सूरत, माहिनी है काया
क्या है यह माया? तुम पर जी मेरा आया.
आओ, कर लेँ हम चुंबन, प्रतिचुंबन.
अच्छा हुआ जो अब तुम आए.
साथ साथ मन का चैन तुम लाए.
सुंदर हो तुम, सुंदरतर हो तुम, सुंदरतम हो तुम.
लगता है हज़ारोँ बार मिले हैँ हम तुम.
हर नज़र मेँ बढ़ रहा है आकर्षण.
आओ, इधर आओ, फेँको इधर भी चितवन.
देवदूत
आते हैँ हम, हटते हो तुम.
क्योँ झिझकते हो तुम?
आते हैँ हम, डटे रहो तुम.
(देवदूत आगे आते हैँ. सारा मंच घेर लेते हैँ. मैफ़िस्टोफ़िलीज़ एक कोने मेँ धँस गया है.)
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (घिर जाता है – वह बिलकुल कगार तक आ गया है)
तुम कहते हो हमेँ शैतान!
तुम नहीँ हो पूरे शैतान?
तुम्हारा जादू चलता है नर पर नारी पर.
तुम हो व्यभिचार के साक्षात अवतार!
क्या यही है प्रेम का सार?
ज्वाला का आगार बन गया मेरा तन!
देख नहीँ पाया – जल गई गरदन.
तुम मँडरा रहे हो चारोँ ओर.
नीचे उतरो, आओ मेरे पास,
झुको नीचे – मानता हूँ तुम मेँ है आकर्षण महान.
नयनोँ मेँ भर लूँ बस तुम्हारी मुस्कान.
देख लूँ एक बार, याद रखूँगा हज़ार बार.
वैसे ही देखो, जैसे देखते हैँ प्रेमी बार बार.
होँठ की कोर पर रेखा हो, गड्ढा हो –
चल जाता है नज़र का तीर!
ओ छोकरे, छरहरे कमसिन!
तुझे तो चाहिए नग्न वेश!
अच्छा नहीँ लगता तुझ पर यह पादरी का भेष!
पलट रहे हैँ वे, दिखा रहे हैँ पीठ.
कच्चा चबा जाऊँगा तुम को यकबार!
देवदूत
प्रेम की ज्योतियो
चलो, प्रेम के पास.
सत्य करेगा सब का उद्धार.
जिन्होँ ने त्याग दिया पाप
वे होँगे सर्वोच्च से एकाकार.
होगा उन का उद्धार.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (होश मेँ आता है.)
क्या हुआ है मुझे – कैसा यह विकार!
मेरी ख़ाल पर फुंसी फोड़ोँ की भरमार?
मेरा शरीर – सिर से पाँव
बन गया रिसता घाव.
अपने से हो रही है घिन.
पर भीतर ही भीतर बढ़ रहा है आत्मविश्वास.
शैतानी अंग प्रत्यंग हैँ सब ठीकठाक, बेआँच!
ऊपरी है – प्रेम के भूत की मार.
बुझ गई हर ज्वाला, अब शांत है ख़ाल.
तुम सब पर गिरे मेरी कोप की गाज!
देवदूत
हमारा कवच है
पावन उजास
पाएँगे पुण्यवान
अंतहीन उल्लास
सब मिल कर उड़ो
ऊपर आकाश
पावन पवन
पावन उजास
अक्षय विश्राम
(फ़ाउस्ट का सूक्ष्म शरीर ले कर देवदूत उड़ जाते हैँ.)
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (इधर उधर देखता है – हैरानी से – )
क्या हुआ! कैसे हुआ! कहाँ गए वे लोग?
अधकचरे बच्चे, दे गए ग़च्चा!
ले गए स्वर्ग – मेरा शिकार!
इसी लिए मँडरा रहे थे वे – जहाँ है मज़ार.
लुट गया मैँ! लुट गया मेरा अनमोल पुरस्कार!
सौदा था पक्का.
मुहरलगा दस्तावेज़ था पक्का.
कहाँ जाऊँ, खटखटाऊँ किस अदालत का द्वार?
कौन दिलवाएगा मुझे मेरा न्यायोचित अधिकार?
तू समझता था, अपने को खिलाड़ी पक्का!
खा गया धोखा.
लापरवाही थी मेरी अपनी
फिर गया मेहनत पे पानी.
प्रेम की छोटी सी चितवन –
काफ़ी थी ठगने को मुझ जैसा शैतान
Comments