फ़ाउस्ट – भाग 2 अंक 5 दृश्य 3 – महल

In Culture, Drama, Fiction, History, Poetry, Spiritual, Translation by Arvind KumarLeave a Comment

 

 

 


फ़ाउस्ट – एक त्रासदी

योहान वोल्‍फ़गांग फ़ौन गोएथे

काव्यानुवाद -  © अरविंद कुमार

३. महल

विशाल राजप्रासाद. चौड़ी गहरी नहर.

बहुत बूढ़ा फ़ाउस्ट विचारमग्न है, चहलक़दमी कर रहा है.

लिंसियस (प्रहरी) (ऊपर मीनार पर खड़ा है. भौँपू से घोषणा – )

अस्त हो गया सूर्य!

अंतिम पोत आ रहे हैँ बंदर की ओर.

नहर मेँ पोत पथ पर बढ़ रहा है

एक हलका पोत खुले बंदर से ऊपर

रंगबिरंगी झंडियाँ लहराता.

मज़बूत मस्तूलोँ की उन्नत बल्लियाँ

कर रही हैँ आप को नमस्कार.

धन्य हैँ ये नाविक जिन्होँ ने इतनी शाम भी

जीता है आप के लिए यह पुरस्कार.

 

(टीले के गिरजाघर की घंटियाँ बजती हैँ.)

फ़ाउस्ट (अब वह सौ साल का हो चुका है – )

अभिशप्त है यह स्वर.

कर्कश कठोर है यह स्वर.

कानोँ मेँ किसी ने जैसे विष घोला.

गरजता है जैसे तोप का गोला.

सामने है मेरे साम्राज्य का विस्तार –

लेकिन मेरी पीठ पर – हँसता है यह – हो कर सवार…

मेरी सत्ता का अस्वीकार.

चुभता है कोख मेँ, दिलाता है याद बार बार –

मेरा स्‍वामित्व नहीँ है निर्बाध.

लिंडन का झुरमुट, कुंज, मढ़ैया पुरानी,

जर्जर गिरजाघर – वही पुरानी कहानी –

हैँ अभी तक सुरक्षित, जैसे मंजूषा मेँ कोश.

कैसे बैठ जाऊँ ख़ामोश, कर लूँ संतोष?

हर शाम पराई छाया जब बढ़ती है मेरी ओर

छिद जाता है तन बदन,

व्याकुल कर देती है मन की चुभन.

काश! चला जाऊँ, यहाँ से दूर…

प्रहरी (ऊपर से – )

झंड़ियोँ से सजा पोत

बढ़ रहा है बंदर की ओर –

शाम के ज्वार की लहरोँ पर चढ़ कर,

उठती ताज़ी हवा के झोँकोँ से बढ़ कर.

दौलत से है मालामाल उस का गोदाम

रत्नोँ से भरी हैँ पेटियाँ बोरियाँ तमाम.

(शानदार पोत दिखाई देता है. – उस मेँ झंडियाँ लगी हैँ और देश विदेश का माल लदा है.)

(मैफ़िस्टोफ़िलीज़ के साथ तीन बलवंत.)

कोरस

लदा है पोत

लगा है तट पर

भगवान की जय हो

मालिक की जय हो

(माल उतारा जाता है.)

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

अदा कर दी है हम ने नमक की क़ीमत.

मालिक, थपथपा देँ पीठ

ख़ुश हो जाएँगे हम.

हमारे पास थे दो पोत जब गए थे हम.

बीस पोत लाए हैँ हम.

बड़े बड़े काम करते हैँ हम.

कह रहा है अपनी कहानी अपने आप

जो माल लूट कर लाएँ हैँ हम.

सागर पर है अब आप का राज.

करे सामना है किसी की मज़ाल.

हम होते हैँ स्वच्छंद जब होते हैँ सागर पर.

किसी का कोई बंधन होता नहीँ हम पर.

हर निर्णय लेना पड़ता है तत्काल.

बस, चाहिए औसान –

पकड़ेँ हम चाहे मछली, चाहे जहाज़.

जब हाथ मेँ आ जाएँ तीन जहाज़,

चौथा पकड़ा ही जाता है अपने आप.

पाँचवाँ हो जाता है बदहाल.

लाठी है जिस के पास

ताक़त है उस के पास.

जो चाहेँ कहेँ आप –

आप को है इतना मतलब -

क्या काम करते हैँ हम.

आप को नहीँ है मतलब

यह सब कैसे करते हैँ हम.

सागर के व्यापार के तीन हैँ सरोकार –

युद्ध, तस्करी, व्यापार!

तीनोँ बलवंत

नहीँ मिली शाबाशी

नहीँ मिला धन्यवाद.

बदबूदार सागर मेँ की

हम ने मेहनत बरबाद.

मालिक की त्यौरी चढ़ी है

चेहरा है उदास.

हमारे माल ने पूरी नहीँ की

मालिक की आस.

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

और ईनाम की मत करो आस.

पहले ही ले चुके हो

तुम अपना भाग.

पुरुष

जो लिया था हम ने

वह था लूट का भाग.

अभी चाहिए हमेँ और

उतना ही भाग.

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

ऊपर है गोदाम –

पहले माल पहुँचाओ,

तरतीब से लगाओ,

लूटी दौलत की

नुमाइश लगाओ.

मालिक जब देखेँगे – लूट आलीशान,

जब लगाएँगे – लाभ का मीज़ान,

तो खिल जाएँगी बाँछेँ,

कर देँगे मालामाल…

कल आएँगी तट पर तितलियाँ रंगीन,

हरी हो जाएगी तबीअत हमारी शौक़ीन.

(माल ले जाते हैँ.)

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

क्योँ छाई है ललाट पर गहरी छाया?

आप ने देखा है बढ़ रही है हमारी माया.

है आप की बुद्धि का परिणाम

जो आप के मस्तक पर है ताज.

जल थल मेँ है शांति का राज.

बंदर से दूर सागर की लहरोँ तक

हर ओर होता है हमारा स्वागत.

आप कह सकते हैँ इस तट से

वहाँ तक, और फिर वहाँ तक…

हमारे अधीन है पूरा संसार.

इस सब का आरंभ था यही तट –

यहाँ पर लगा था पहला तंबू.

यहाँ पर बनी थी पहली कुटिया.

पहले बनी थी छिछली खाड़ी

जहाँ अब चलते हैँ बड़े बड़े पोत.

आप की बुद्धि और उन के हाथ

छीन लाए समुद्रोँ और महाद्वीपोँ का ठाठ

सारे जहाँ का…

फ़ाउस्ट

नाश हो सारे जहाँ का!

देखते हो? यहाँ का ही है मेरे मन पर बोझ.

होशियार हो तुम, समझदार हो तुम.

तुम्हीँ से कह सकता हूँ मैँ मन का बोझ –

मेरे हृदय मेँ है काँटे की चुभन…

एक पल चैन नहीँ पाता मेरा मन.

वे जो बुड्ढे बुढ़ियाँ हैँ –

मुझे चाहिए उन की हार.

यह पराया झुरमुट गड़ता है आँखोँ मेँ.

वहाँ, उन वृक्षोँ की चोटी पर

मैँ चाहता हूँ बनाना मचान.

उस पर चढ़ कर देखूँगा मैँ

अपनी उपलब्धियोँ का अंतहीन विस्तार.

मैँ देखना चाहता हूँ –

बुद्धि-मानव का संपूर्ण कृतित्व.

कैसे करता है वह बुद्धि का उपयोग

कैसे बनाता है अनगिनत साथियोँ के लिए नए उपनिवेश

काँटोँ भरी है सेज.

समृद्धि मेँ है अभाव का संकेत.

गिरजे की घंटी, वृक्षोँ के फूल

घिरते आते हैँ जैसे – क़ब्र की काली दीवार.

मेरी आकांक्षा के बलशाली आदेश

टूट जाते हैँ इस रेतीले टीले पर –

जैसे तट पर टूट जाती है बलशाली जलधार.

जब तक मौजूद हैँ ये – ले नहीँ सकता मैँ साँस.

बजती है घंटी तो भभकता है साँस.

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

ठीक ही है – भारी संताप है यह.

तीखे काँटे की चुभन है यह.

जीवन का स्वाद हो जाता है क्षार.

जिन कानोँ मेँ बजते हैँ सुमधुर स्वर,

उन मेँ खटकेगी ही यह कर्कश आवाज़ –

हर शाम यह शोरभरी टनटन खटखट

आकाश मेँ घोल देती है कड़वाहट.

संगीत के स्वर मेँ घुल जाता मौत के घंटे का शोर.

जीवन विश्राम बन जाता है धक्कम धक्का.

एकांत का आनंद मार्ग बन जाता है भीड़ भड़क्का.

फ़ाउस्ट

यह ज़िद, यह अड़ियलपन, यह घमंड –

इसे देख कर मन मेँ होने लगता है अफ़सोस.

आने लगता है अपनी न्यायप्रियता पर क्रोध.

कोई कब तक सह सकता है यह सब?

इतने अड़ियल, कमअक़्ल, अदूरदर्शी क्योँ होते हैँ लोग?

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

यहीँ पर आप क्योँ करते हैँ संकोच?

बरसोँ से आप ने छीने है देश, बनाएँ हैँ उपनिवेश.

फ़ाउस्ट

तो जाओ – दूर कर दो उन्हेँ नज़रोँ से.

बना कर रखा है मैँ ने कब से

उन के वास्ते –

सुंदर सा घर, सुंदर उपवन.

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

अभी उठा दूँगा उन्हेँ.

नई जगह बसा दूँगा उन्हेँ.

पलक झपकते मिल जाएगा उन्हेँ नया परिवेश.

हमेँ दिखाना पड़ेगा बल, छल और बाज़ुओँ का ज़ोर.

बदले मेँ वे पाएँगे कितना सुंदर मकान.

(ज़ोर से सीटी बजाता है. तीनोँ आते हैँ.)

चलो! मालिक ने कहा है –

कल मनाया जाएगा नौसेना का उत्सव.

तीनोँ

बूढ़े मालिक का स्वागत था कम

कल की दावत मिटा देगी ग़म.

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

अब जो होने वाला है – नहीँ है नूतन.

पहले कभी – जब थे बाइबिल के दिन

जीतने को रानी इज़ाबेल का मन

इजराइल का राजा आहाब

मिटा चुका है नाबोथ का उपवन.

Comments