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फ़ाउस्ट – भाग 2 अंक 1 दृश्य 7 – विशाल सूरमा कक्ष. मद्धम प्रकाश

In Culture, Drama, Fiction, History, Poetry, Spiritual, Translation by Arvind KumarLeave a Comment

 

 

 


फ़ाउस्ट – एक त्रासदी

योहान वोल्‍फ़गांग फ़ौन गोएथे

काव्यानुवाद -  © अरविंद कुमार

७. विशाल सूरमा कक्ष. मद्धम प्रकाश

सम्राट और दरबारी आ चुके हैँ.

घोषक

घोषित करते रहना हर घटना – है मेरा हमेशा का काम.

जाने कैसी कोई शक्ति अनजानी रहस्यमय अपार

रोके जा रही है मुझे करने से मेरा काम.

मैँ करता हूँ प्रयास बार बार, लेकिन हर बार

हो जाता है कोई व्यवधान, पड़ जाती है बाधा.

कुरसियाँ लगी हैँ, दर्शक दीर्घा है तैयार.

आसीन हैँ सम्राट, उन के सामने है ऊँची प्राचीर,

जिस पर लटक रहा है पट प्राचीन.

आराम से देखते रह सकते हैँ महाराज

उस पर चित्रित अपनी महान विजय गाथा.

सब जन चुके हैँ पधार. राजे, सेनापति, दरबारी,

उन के साथी, अमला सरकारी, ग़ैरसरकारी.

उन के पीछे बेँच पर बेँच खचाखच भरी है.

प्रेमी युगलोँ मेँ सट बैठने की होड़ सी मची है.

सब लोग ठीकठाक उपस्थित हैँ, विद्यमान.

हम भी तैयार हैँ. अब हो जाएँ आत्माएँ भी वर्तमान.

(तुरही नाद.)

ज्योतिषी

आरंभ हो तमाशा! सम्राट आदेश दे चुके हैँ.

प्राचीरो, हो जाओ दोफाँक, खोलो विस्तार!

नहीँ है कोई व्यवधान, अवरोध. मायावी चमत्कार!

पट परदे मानो ज्वाला से जल कर विलीन हो चुके हैँ.

फट गईँ प्राचीरेँ, हट गईँ दीवारेँ. सामने है मंच,

जहाँ पर अभी तक था गहन अंधकार.

छा गया अनोखे मायादेश सा उजियार.

लीजिए मैँ भी चढ़ता हूँ सोपान, सँभालता हूँ मंच…

मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (प्रौंप्‍टिंग मंच मेँ बैठा दिखाई देता है)

और, हाँ, प्रौंप्टर की भूमिका सँभालता हूँ मैँ

पाने को आप सब से मान, सम्मान.

दूसरोँ की वाणी से बोलता है शैतान.

(ज्योतिषी से – )

उच्चाकाश के नक्षत्रोँ का आप को है ज्ञान.

आप समझेँगे ख़ूब जो कुछ बोलता हूँ मैँ.

ज्योतिषी

देखिए, मायावी शक्तियोँ का चमत्कार

हमारे सामने है दृश्यमान एक प्राचीन देवागार.

सुविशाल है मंदिर. दो भारी भरकम स्तंभ हैँ आधार

जिन पर टिके हैँ उपस्थ और शिखर गोलाकार –

जैसे ऐटलस देव ने धारा था धरा का भार.

स्‍थपति

तो यह है पुरातन! फूहड़पन का नमूना!

सामंजस्य से हीन – ऊपर से भारी, नीचे से सूना!

भदेस बन गया है शालीन, उजबक कुलीन.

मुझे तो रुचते हैँ गगनचुंबी स्तंभ पतले लंबाकार

जिन से आत्मा को होता है सर्वोच्च से साक्षात्कार.

ऐसे ही भवनोँ से हो सकता है मन का संस्कार.

ज्योतिषी

नक्षत्रोँ से पुनीत इस काल को कीजिए मन से स्वीकार

मायावी छलना से अभिमंत्रित हो बुद्धि का संस्कार.

अब हो शंबरी सम्मोहिनी का, संभ्रम का, सब पर अधिकार.

आप सब को जिस की थी लालसा, उत्कट मनोकामना

सब हो उठे साकार. सब का हो उस से सामना.

असंभव है यह, लगता है विश्वासातीत.

(मंच के दूसरे छोर पर फ़ाउस्ट ऊपर उठता दृश्यमान होता है.)

ज्योतिषी

पूजा के परिधानोँ से सज्‍जित, किरीटी, परम विलक्षण

एक जन ने धारा था जो संकल्प गहन आस्था से भर कर,

करता है आज समापन. देखेँ आप सभी सम्मानित जन.

देखेँ – पावन त्रिकुंड – पाताल तलोँ से आता है ले कर.

उठता है त्रिकुंड से गंधित निर्धूम, समीर सा बहता.

वह आता है महासाधना का निष्पादन करता.

उस के श्रीचरणोँ मेँ रहती है सदा सफलता.

फ़ाउस्ट (महानायकोँ जैसे अंदाज़ मेँ – )

मातृकाओ, नमन करो स्वीकार.

जहाँ है अनंत आकाश, जहाँ है निरंतर एकांत,

फिर भी जहाँ नहीँ है नितांत एकांत,

वहाँ है आप का सिंहासन, आवास.

आप के शीश के चारोँ ओर है जीवनबिंबोँ का चक्र,

जीवित और अजीवित, जो भ्रमणशील है निरंतर.

वह सब जो कभी था, हो कर नैसर्गिक आभा से मंडित,

अमरत्वाभिलाषी, आप के चतुर्दिक रहता है उपस्थित.

महाशक्तिधारिणी – आप – उस को करती हो प्रदान

रात का गुंबज, दिन का वितान.

किसी को मिलता है जीवन सरिता का अभिराम वरदान.

कुछ को ग्रस लेता है मायावी रेरिहान.

और फिर वह करता है प्रदर्शन –

हर किसी के सामने शांबरी विद्या का विज्ञापन.

ज्योतिषी

दिपदपाती कुंजी का पाते ही संस्पर्श

उठने लगे पावन धूम के कुहरित मेघांबर,

गंध बिखेरते, मँडराते, घेरते दिगंतर.

उमड़ते, घुमड़ते, फैलते, मिलते, विलगते, लगाते चक्कर.

देखिए, रहस्य जगत का महानतम चमत्कार –

गंधमेघोँ से निकलती संगीत की झंकार.

वायवी तानोँ ने बना दिया –  क्या है यह? क्या है?

जा रहे हैँ गंधमेघ, झरझर है संगीत का निर्झर!

स्तंभयष्टि से फूट रहे हैँ गीत के स्वर.

स्वतः देवमंदिर है संगीत से गुंजायमान.

हट रहा है कोहरा, मिट रही है धुंध. देखिए चमत्कार –

झिलमिली मेँ से निकल आया यौवन का साक्षात अवतार

धरता है नाप नाप कर चरण. आवश्यक नहीँ है, श्रीमान,

मैँ आप को बताऊँ महानायक पैरिस का नाम!

(पैरिस सामने आता है.)

एक महिला

कितना सुंदर नौजवान. रूप और यौवन का भव्य प्रतिमान!

एक अन्य महिला

                     सेब सा ताज़ा! रस की खान!

तीसरी महिला

प्रतिमा सा अंकित! अधर लाल लाल! मदिरा के प्याले!

चौथी महिला

कौन है जो इस के नाम पर जाम पर जाम ना चढ़ा ले!

पाँचवीँ महिला

हाँ, सुंदर तो है. लगता नहीँ – है परिष्कृत, शालीन…

छठी महिला

काश, होता वह कोई उच्चवंशी, कुलीन…

एक सामंत

तब का लगता है यह रूप – जब था वह अजापाल.

लगता नहीँ राजकुमार. नहीँ है राजसी चाल ढाल.

एक अन्य सामंत

अधनंगा सा नौजवान – देखने मेँ सुंदर.

और भी अच्छा लगता जो धारे होता देहत्राण.

एक महिला

कितना सहज! किस शान से रहा है बैठ!

एक सामंत

शायद! बड़े हर्ष से आप जाएँगी उस के अंक मेँ बैठ!

एक अन्य महिला

शीश पर कैसे धर लिया हाथ!

चैंबरलेन

असभ्य गँवार!

एक महिला

दरबारी लोग! खोज ही लोगे कोई न कोई खोट, विकार.

एक और चैंबरलेन

सम्राट के सामने! अँगड़ाई! जानता नहीँ शिष्टाचार.

एक महिला

अकेला है. कर रहा है खिलवाड़!

एक चैंबरलेन

सम्राट के सामने खिलवाड़ मेँ भी चाहिए शिष्टाचार!

एक महिला

निद्रा की देवी कर रही है छबीले पर प्रहार.

एक चैंबरलेन

अभी लेने लगेगा खर्राँटे! ज़ाहिल गँवार!

एक युवा महिला (पूरी तरह मोहित)

कैसी है सुगंध की बयार! मन मेँ कामना जगाती.

एक प्रौढ़ महिला

तन को बीँधती, सहलाती!

एक वृद्ध महिला

यौवन का उन्मेष. वसंती सुरा सा उफनाता,

पवन मेँ अमृत सा बरसाता…

(हेलेना सामने आती है.)

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

तो यह है वह!

इस के लिए मैँ तो करने से रहा नीँद हराम.

क्या है इस मेँ विलक्षण? हाँ, सुंदर है, ललाम.

ज्योतिषी

अब मेरे लिए शेष नहीँ है कुछ काम.

जो सामने है, मैँ करता हूँ स्वीकार –

लीजिए – साक्षात सुंदरता रही है पधार.

असंभव है करना – रूपराशि का बखान.

सौदर्य की शान मेँ गूँजते रहे हैँ गान.

जो भी देखता है इसे – रह जाता है ठगा सा.

जिस ने पाई थी यह नार – सौभाग्यशाली था जो भी था.

फ़ाउस्ट

क्या अब भी हैँ मेरी आँखेँ? कैसा यह मेरे सम्मुख –

परम सुंदरम् का अंतर्तम पर सत्यम् उद्घाटन?

सौंदर्य सरित् का अजस्र स्रोत झरता निर्झर सा सत्वर

महाविकट था पंथ, कठिन था दुर्गमतम,

ले आया जो मुझे, जहाँ लक्ष्य है यह अंतिमतम.

महाशून्य था, बंद मार्ग था, था अन्वेषण पर गहरा बंधन.

महाप्रसाद पाया अब – जब से त्यागा अर्चन अध्यापन.

कुछ था तो – कमनीय यही था –

सुदृढ़, सुस्थिर, ध्वंसहीन, औ सतत, चिरंतन.

हो जाए मेरे मानस के संपूर्ण सत्व का भ्रंशन –

पावन कर्तव्योँ से डिग कर जो मैँ तुझ को परित्यागूँ.

कभी विगत मेँ, मायावी दर्पण मेँ –

मैँ ने जो देखा था रूप मनोरम

तुहिन जाल मेँ फेनिल सी छाया थी उस की

जो है अब मेरे नयनोँ के सम्मुख.

तू है, केवल तू ही तू है, जिस को है

मेरी उद्दाम भावनाओँ का सर्वस्व समर्पण –

कल्पना! कामना! प्रेम! पूजा! उन्माद!

ले! तुझ को मेरा सारा अपनापन अर्पण.

मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (प्रौंप्‍ट कक्ष से – )

शांत! शांत! आप रहे हैँ निज भूमिका भूल!

आप को नहीँ होना है यूँ कोमल!

प्रौढ़ महिला

तन्वंगी है, सुडौल है काया, पर शीश छोटा है पाया…

युवा सुंदरी

पैर तो देखो! कैसे कुडौल!

एक राजनयिक

मैँ ने देखीँ हैँ ऐसी अनेक रानियाँ – सुकुमार!

शिख से नख तक सुंदरता साकार!

एक दरबारी

जा रही है सोते नौजवान के पास –

लजाती सी, स्वयं चालाकी को लजाती सी.

एक महिला

इस रूपसि के सामने लगता है पूरा गँवार!

एक कवि

इस के रूप की आभा से हो उठा जाज्वल्यमान!

एक महिला

सुंदर तस्वीर – चंद्रिका और एंडिम्योन!

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एक कवि

बिल्कुल सही! देखिए, झुक रही है रूप की रानी

मानो पी लेगी उस के श्वास का प्याला.

कैसा सौभाग्य! चुंबन! भर गया प्याला.

आचार संरिक्षका

देखो तो! सब के सामने! व्यभिचार!

फ़ाउस्ट

नौजवान के वास्ते आशंकित सा वरदान!

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

शांत! मौन! करने दो छाया को मनभावन!

दरबारी

जा रही है अभिसारिका – दबे पाँव. जाग गया नायक!

महिला

यही सोचा था मैँ ने. फिर से डाल रही है मनमोहिनी चितवन.

दरबारी

वह रहा है घूर! जो हुआ, उस के लिए है चमत्कार.

महिला

होगा उस के लिए! इस के लिए है सामान्य सा व्यवहार!

दरबारी

देख रही है मुड़ कर, पूरी गरिमा से.

महिला

पढ़ा कर रहेगी प्रेम का पाठ!

ऐसियोँ के सामने मर्द बन जाते हैँ मेमने.

वह तो समझेगा – पहला है उस के उपहार पाने वाला.

सामंत

राजसी, सुंदर, भव्य, वैभवशाली! मनमोहिनी!

महिला

छिनाल! बेहया, असभ्य, अश्लील!

युवा सेवक

काश, मैँ होता वहाँ!

दरबारी

कौन नहीँ फँसना चाहेगा! मादक मदिर है जाल!

महिला

कई हाथोँ से निकल चुका है यह माल!

उतर चुका है मुलम्मा और माल!

एक अन्य महिला

बिगड़ गई थी – जब लगा था दसवाँ साल!

सामंत

सभी धो लेते हैँ बहती धारा मेँ हाथ.

मेरे लिए तो काफ़ी है जितना बचा है माल!

नीरस विद्वान

निश्शंक, मैँ करता हूँ स्वीकार जो है दृश्यमान.

पर संदिग्ध है कि यही है असली माल.

बढ़ा चढ़ा कर देखते हैँ हम – जो भी है वर्तमान.

मैँ मानता हूँ उसे – जो पुरातन है, लिखित है,

जो है सर्वमान्य, और सब को स्वीकार्य.

मैँ ने पढ़ा है, जब इस का यौवन नहीँ हुआ था ध्वस्त

ट्रौय के दढ़ियल हो गए थे इस के दीवाने.

मैँ कह सकता हूँ, कोई मान या न माने,

और आज जो देखा है – यह है सत्य, केवल सत्य.

अब मैँ नहीँ हूँ जवान, फिर हूँ तृप्‍त, कृतकृत्य.

ज्योतिषी

इतना भी नहीँ है वह किशोर! साहस की मूरत, दबंग!

पकड़ ली नार. अपनी रक्षा मेँ बेचारी – असमर्थ, लाचार!

उसे घेर रहा है तूफ़ान! हाथ हैँ बलवान! उठा लिया है अधर!

क्या ले जाएगा उठा कर?

फ़ाउस्ट

पागल छोकरे! छोड़ दे! छोड़ दे!

यह दुस्साहस! सुनता नहीँ? छोड़ दे!

मानना पड़ेगा मेरा आदेश!

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

यह मायावी नाटक! रचना तुम्हारी अपनी!

ज्योतिषी

एक और शब्द, श्रीमान! जो देखा है हम ने आज

मैँ कहूँगा उसे – हेलेना का बलात्कार!

फ़ाउस्ट

क्या? बलात्कार! क्योँ हूँ मैँ यहाँ? बेकार!

देने को मेरा साथ, अभी तक कुंजी है मेरे पास.

भयानक प्रदेशोँ से, बीहड़ोँ से, मरुथलोँ से,

हो कर लहरोँ पर सवार, निकाल कर एकांतोँ से

यह लाई है मुझे यहाँ – मैँ खड़ा हूँ जहाँ.

यह है मेरा आधार! यथार्थ का केंद्र है यहाँ!

पौरुष, मनोबल, साहस को मन मेँ धार,

होगा संघर्ष, हो जाए द्वैत का संसार तैयार!

दूर थी वह, हो नहीँ सकती और अधिक पास!

बचा लूँगा मैँ इसे, इस पर होगा मेरा दोहरा अधिकार.

सावधान! मातृकाओ, दो वरदान!

एक बार इस को जिस ने लिया जान

नहीँ कर पाएगा इस के मोह का परित्याग.

ज्योतिषी

क्या कर रहे हैँ आप? फ़ाउस्ट! फ़ाउस्ट!

पकड़ ली पूरे बल से नार!

विलीन हो रहा है आकार.

युवक की ओर घुमा दी कुंजी!

लो! देखिए! छू रहा है उसे! हो गया बंटाढार!

(धमाका. फ़ाउस्ट धरती पर गिरता है. आकार कोहरे मेँ विलीन होता है.)

मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (फ़ाउस्ट को कंधोँ पर उटाते हुए)

देख लिया! परिणाम मूर्खोँ से व्यवहार का!

अंततः बन जाता है कारण शैतान की भी हार का!

(अंधकार. कोलाहल.)

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