फ़ाउस्ट – एक त्रासदी
योहान वोल्फ़गांग फ़ौन गोएथे
काव्यानुवाद - © अरविंद कुमार
६. दीपोँ से जगमग अनेक विशाल कक्ष
सम्राट और राजे. विचरणशील दरबार.
चैंबरलेन (मैफ़िस्टोफ़िलीज़ से)
तुम्हारा वादा था – वह आत्माओँ का दृश्य – अभी तक अधूरा.
महाराज हो रहे हैँ अधीर. मायादृश्य दिखला दो पूरा.
महाकक्षाध्यक्ष
अभी अभी मुझ से पूछ रहे थे स्वयं महामहिम सम्राट.
अब लगाओ मत देर. अप्रसन्न न हो जाएँ सम्राट.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
मेरे मित्र गए तो हैँ. कठिन है अभियान.
कैसे कब होगा आरंभ – उन्हीँ को है ज्ञान.
एकांत मेँ साध कर पूरा तन मन ध्यान
इसी पर लगा दिया है उन्होँ ने अपना बल तमाम.
साध पाना यह अनमोल सौंदर्य कोश – नहीँ है आसान.
इस को चाहिए महानतम कला और ऋषियोँ का ज्ञान.
महाकक्षाध्यक्ष
करो जो भी तंत्र मंत्र – मेरे लिए हैँ सब एक समान.
सम्राट का कहना है – शीघ्र हो जाना चाहिए प्रदर्शन.
एक स्वर्णकेशिनी (मैफ़िस्टोफ़िलीज़ से)
सुनिए तो, एक पल. देखते हैँ आप मेरा निष्कलंक आनन
जब आता है ग्रीष्म निदाघ, इस मेँ हो जाता है परिवर्तन
उग आते हैँ लाल भूरे सैकड़ोँ चकत्ते
नरगिसी त्वचा के जैसे उड़ गए परखचे.
बताइए ना कोई उपचार.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
च्, च्! बिगड़ जाता होगा सारा शृंगार.
दमक दाग़ दाग़, सुंदर चेहरा चित्तीदार
जैसे चीतल वन मार्जार.
कोई बात नहीँ. लीजिए मेँढकोँ के अंडे, बेँगची की जीभेँ.
दोनोँ को मिला कर घोँटेँ, बार बार उबालेँ…
फिर पूनम की रात मेँ सुरा सा खीँचेँ, काढ़ेँ…
और अमावस की रात वह मिश्रण मुखड़े पर लगाएँ.
अगले वसंत तक दाग़ोँ का रहेगा नाम न निशान.
एक पिंगलकेशिनी
घेरने आप को चली आ रही है पूरी सेना…
इस से पहले उपचार आप मुझे बता देना.
जड़ हो गया है मेरा यह पैर
दुखता रहता है यह, यह अकड़ा पैर…
ना कर सकती हूँ नाच, न झुक कर प्रणाम. है कोई उपचार?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
बस, सहनी होगी मेरी लात की हलकी सी मार.
जब मैँ जमा दूँ आप की लात पर लात.
पिंगलकेशिनी
हटिए भी! कैसी करते हैँ आप बात!
यह तो है प्रेमियोँ का प्रणय व्यवहार!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
एक और भी काम करती है मेरी लात की मार.
कहा है – समे साम्यं समाचरेत… विष ही करता है विष पर प्रहार,
अंग से होता है अंग का उपचार.
आइए, आइए पास. सँभल कर. लीजिए मार.
बदले मेँ मत कर बैठिएगा मुझ पर प्रतिघात!
पिंगलकेशिनी (पीड़ा से चीख़ती है)
हाय! हाय! दुखता है! भारी थी मार –
जैसे किसी घोड़े ने मार दी हो लात!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
लेकिन लात लगी तो हो गया रोग का उपचार.
अब जब चाहेँ नाच सकती हैँ आप
और चाहेँ तो मेज़ के नीचे प्रेमी से लड़ा लेँ लात.
एक महिला (भीड़ को धकेलती आगे चली आती है)
रास्ता दो. रास्ता दो. मेरा रोग है भारी.
कल तक उस की नज़र मेँ थी ख़ुमारी.
आज उस ने फेर ली हैँ मुझ से निगाहेँ –
किसी दूसरी पर जमी हैँ उस की निगाहेँ.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
मामला है बेढब, बहुत ही गंभीर!
सुनिए, मैँ बताता हूँ बेचूक तरक़ीब.
चुपचाप, दबे पाँव जाइए उस के पास
डालिए उस पर प्रेमभरी दीठ और छोड़िए उसाँस.
लीजिए, यह कोयला, खीँच दीजिए लकीर
छोटी सी, कहीँ भी, दामन पर, कंधे पर, बाँह के पास.
उस के दिल मेँ उठेगी एक टीस, जाएगा पसीज.
हाँ, असली बात यह है – आप फौरन के फौरन
सटक लेँ यह कोयला. आप को रखना है ध्यान
ऊपर से पीएँ ना एक भी घूँट पानी या शराब.
रात पड़ते ही आन खड़ा होगा वह – देखेँगी आप –
आप के दर बुझाने को प्यास.
महिला
विषैला तो नहीँ है यह कोयला?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (नाराज़ हो कर – )
क्या कहती हैँ आप? साधारण नहीँ है यह कोयला.
पाने के लिए यह कोयला – कई कोस चलना होता है हम को.
मसान मेँ जलती चिता हो, तो फूँकते हैँ उस को.
जलती अगन मेँ से नंगे हाथ खीँचते हैँ कोयला.
युवा सेवक
मन ही मन हो गया है मुझे प्यार
लेकिन लड़कियाँ समझती हैँ अभी तक मुझे सुकुमार.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (स्वतः)
समझ मेँ नहीँ आता किस की सुनूँ
और किस की न सुनूँ मैँ मनुहार.
(किशोर सेवक से)
जवान छोरियोँ पर मत टपका अभी लार
प्रौढ़ा प्रगल्भा देँगी तुझ पर सब कुछ वार.
(मैफ़िस्टोफ़िलीज़ के चारोँ तरफ़ जमघटा लग गया है.)
इतने सारे लोग! सब को चाहिए उपचार!
बुरा हो गया मेरा हाल. एक ही जुगत आएगी काम –
अब लेना ही पड़ेगा नग्न सत्य से काम…
मातृकाओ! मातृकाओ!
अब तो भेज दो फ़ाउस्ट को वापस!
(चारोँ ओर निगाहेँ दौड़ाता है)
बड़े कक्ष मेँ मद्धम है प्रकाश.
उस ओर ही जा रहा है सारा दरबार –
चल रहे हैँ सब अपने अपने पद के अनुसार
लंबे गलियारोँ से, ऊँचे मेहराबोँ से, सावकाश.
अब सब एकत्रित हैँ वहाँ जिसे कहते हैँ सूरमा कक्ष.
विशाल है यह भवन, फिर भी बचा नहीँ अवकाश.
खचाखच भरा है चित्रित दीवारोँ वाला महाकक्ष.
लटक रहे हैँ बहुमूल्य क़ालीन शोभाशाली.
कोने कोने मेँ खड़े हैँ जिरहबख़्तर ख़ाली.
ऐसे मेँ क्योँ हो मायावी चमत्कार दरकार
भूत प्रेतोँ का यहाँ अपने आप ही जुड़ता है दरबार.
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