clip_image002.jpg

फ़ाउस्ट – भाग 2 अंक 1 दृश्य 3 – एक विशाल हाल

In Culture, Drama, Fiction, History, Poetry, Spiritual, Translation by Arvind KumarLeave a Comment

 

 

 


फ़ाउस्ट – एक त्रासदी

योहान वोल्‍फ़गांग फ़ौन गोएथे

काव्यानुवाद -  © अरविंद कुमार

३. एक विशाल हाल

उस से जुड़े हैँ कई कक्ष…

मुखौटोँ के नाच के लिए पूरी तरह सज्‍जित.

घोषक

मत समझेँ आप –

यहाँ देखने को मिलेगा जरमनी का घिसापिटा मेला

मौत का, मूर्खोँ का, शैतान का नाच और खेला.

आप देखेँगे आज नवीनतम उत्सव उल्लास नृत्य लास.

रोम गए थे जब हमारे सम्राट अभियान पर

अपने लाभ के लिए – आप के मोद के लिए

संकटोँ को झेलते आल्प्स के ऊँचे चढ़ान पर,

तो जीता था उन्होँ ने उल्लासपूर्ण हँसता गाता देश.

साथ ही धर्माधिकारी पोप के सामने नवाया था शीश.

नतमस्तक हो माँगा था वरदान,

शीश पर धारा था किरीट दैदीप्यमान.

आप ही के लिए ले आए थे वे

विदूषकी टोपा – मौजमस्ती का गान.

अब हम सब फिर से बन गए हैँ नौजवान

ऊँचे बड़े लोग जो शिष्ट हैँ शालीन –

आज वे भी भूल गए हैँ अपनी शान.

देखने मेँ लगता है हर कोई महामूर्ख,

वैसी ही बुद्धि का कर रहा है बरताव.

वह देखिए, मेरी आँखोँ से –

आ रहे हैँ दल के दल उधर से

कुछ प्रेमियोँ के जोड़े, गलोँ मेँ बाँहेँ डाले

आ रहे हैँ कुछ और मस्‍ती मेँ झूमते खेलते

दल के दल जैसे स्कूलोँ से छूटे होँ बच्चे.

आओ या जाओ, डरो मत, सहमो मत, झिझको मत.

अब है बस एक नियम

मूर्खोँ का मूर्खतापूर्ण खेला –

क्योँ कि यह दुनिया है मूर्खोँ का मेला.

कानन बालाएँ (मैँडोलिन पर गीत के साथ)

आईँ सब को हरषाने हम

धारे मोद मस्‍ती के बाने

फ़्लोरैंस नगर की बालाएँ हम

जरमन उत्सव दरबार सजाने

 

गुंफित हैँ केशोँ मेँ स्वर्णिम

हँसते खिलते सुमन सुहाने

झालर रेशम गुच्छे रेशम

चरणोँ मेँ गुंजल्क सुहाने

 

खुल कर खिलो, बजाओ ताली

इच्छा पूरी करो हमारी.

देखो हम ने जो फूल बनाया

इस पर सारा साल लगाया

 

रंग रंग का ओज जुटाया

कलियोँ का उल्लास समाया

पुष्पोँ सा आकार सजाया

हम ने सब का मन भरमाया

 

सौंदर्य जगे अब सब के मन

अंग अंग संपूर्ण हमारा

कानन बाला, सुंदर है तन

कलियोँ जैसा कोमल है मन

 

नारी का तन मन सुंदर है

जैसे मृदुल कला सुखकर है

घोषक

अपनी डलिया हमेँ दिखाओ,

पुष्पोँ के उपहार दिखाओ.

सुंदरतम मादक बालाओ,

पुष्पित तन पर, गुंफित सिर पर

बाँहोँ मेँ जो सुंदर माल – दिखाओ.

चुन लेँ सब जिस को जो भाए

कूचोँ मेँ गलियोँ मेँ कोने कोने मेँ

नव वसंत उपवन छा जाए.

फेरी वाली सुंदर बालाओ,

जन जन से तुम घिर जाओ.

कानन बालाएँ

माल मिलेगा अनमोल.

नहीँ होगी सौदेबाज़ी, नहीँ लगेँगे बोल.

थोड़े से बोलोँ मेँ बोलेँगे बोल –

कौन पाएगा क्या और उस का मोल.

फल लगी जैतून शाखा

नहीँ चाहिए मुझे बौर लगी डाली

कलह क्लेश से ऊपर हूँ मैँ

संघर्ष संकट की बैरन हूँ मैँ

फिर भी देशोँ की बन्नो हूँ मैँ

संगम सुहाग की आशा हूँ मैँ

भाले बरछी का न हो उपयोग

शांति का, शुभ का संदेश हूँ मैँ.

आज मिल जाए मुझे सौभाग्य

सज्‍जित हो मुझ से कोई सुपात्र.

सुनहरी अनाज की सिट्टी

कृषि देवी साइरीज़ प्रसन्न हैँ तुम पर.

सज्‍जित शोभित होँ तुम पर

उन के सुंदर मीठे दुर्लभ उपहार.

हम को जो भी प्रियतर है

सर्वाधिक वांछित है

वह बने तुम्हारा अलंकार.

गर्वीली पुष्‍पावली

रोमल मालव, कुसुम सुहावन सुंदरतम,

शैवालजन्य आश्चर्य विचित्रतम

जल थल मेँ जो भी है दुर्लभतम

प्रचलन से बनता है सर्वसुलभतम.

छमकछल्‍लो पुष्पगुच्‍छिका

क्या है हमारा नाम

बता नहीँ पाते स्वयं थियोफ्रास्तुस महान.

रंगबिरंगी दुलहन सी सजी हैँ हम

कंगले फटेहालोँ के लिए दुर्लभ हैँ हम

अनेक को हरषाने को बनी हैँ हम.

जो चाहे उस की बन सकती हैँ हम.

वार दे हम पर जो कोमल रेशम

जिस से सौभाग्य पा सकती हैँ हम

उस को विश्राम करवा सकती हैँ हम.

गुलाब की कली – चुनौती

चमचमाते लुभाते हैँ जो फूल

क्षणभंगुर फ़ैशन से अपने को सजाते हैँ जो फूल,

क़ुदरत ने बनाए नहीँ जो अनुकूल

ऐसे रूप मुखौटे धारते हैँ जो फूल,

हरी टहनी से चिपके सुनहरे दुकूल

दिखते हैँ अनगिनत केशोँ मेँ जो फूल.

दिखते हैँ, दिखते रहेँ वे फूल….

उन के पीछे छिपे रहते हैँ हम फूल!

भाग्यशाली हैँ वे, जो पाते हैँ ताज़े फूल

लौटता है जब फिर से वसंत गली गली

चटकती, जलती, खिलती है जब गुलाब की कली

कौन हैजो छोड़ दे चरम सुख का वरदान.

मधुर गंध, समर्पण कोमल,

वनदेवी का अर्पण सर्वोत्तम

तन को, मन को, आत्मा को उपहार चरमतम.

(हरियाली कुंजगलियोँ मे कानन बालाएँ अपनी शोभाओँ का शालीन प्रदर्शन कर रही हैँ.)

माली गण (घुमावदार दोतारे थियोरबोओँ पर गीत)

मंद मंद मुसकाते मोहक सुमन सुहाने

मन मस्तक पर बुनते मायावी ताने बाने

फल मेँ माया का, छल का, नाम नहीँ है

खाओ चखो कुछ भेद नहीँ है

 

धूप पके मुखमंडल पर सुखकर आकर्षण

चैरी, आलूचा, आड़ू, द्राक्षा, गुलबिया जामन

देते हैँ संदेश स्वास्थ्य का चरम चिरंतन

होते भ्रामक क्षणभंगुर नैनोँ के आकर्षण

 

आओ, है फल का सब को आमंत्रण

खाओ, चखो, पाओ आस्वाद मधुरतम

पाटल गुलाब पर काव्य रचो तुम अनगिन

लेकिन सेबोँ मेँ सेहत का संदेश अन्यतम

 

होने दो, होने दो, प्रिय, हम से

अपने मधुमय यौवन का संगम

होने दो सुखकर का सुंदर से

सहवासी जन सा मेल समागम

 

सुमन सुहावन पल्लव किशलय

लगते हैँ लताकुंज मेँ सुंदर

कलिका, फल, बतिया – सब निश्चय

सजते हैँ पुष्पोँ की सुंदर शय्या पर

(गिटार और थियोरबोओँ की लय पर कभी कानन बालाएँ, कभी माली, एक एक कर के अपने माल मंच पर ऊपर की ओर जाती सीढ़ियोँ पर सजा और दिखा रहे हैँ.)

माँ और बेटी

माँ

जग मेँ जब आईँ तुम, मुनिया

मैँ ने टोपे बुने सुहाने

गोरी चिट्टी कोमल गुड़िया

सुंदर मुखड़ा चुंबन बरसाने

मन ही मन देखे सुख सपने

देखा राजकुँवर थे कितने

आकुल थे सब के सब तुम को पाने

 

बीत गए पर मौसम कितने

निपट अधूरे हैँ सब सपने

चारोँ ओर घूम रहे वर

लेकिन तुझ से दूर खड़े वर

उस के साथ नाचीँ तुम अच्छा

इस को छेड़ा दिखलाई इच्छा

नहीँ मिला फिर भी कोई वर

 

मैँ ने कितने उत्सव जोड़े

मन ही मन कितने रिश्ते जोड़े

खेल जमाएराजा रानी प्यादे घोड़े

सब के सब फिर भी दूर निगोड़े

मुनिया, तू अब आँचल खोल

किस का मन कब जाए डोल

(सुंदर युवा कुमारियाँ, बालाएँ, कानन बालाओँ से मिल कर खेलती हैँ. हँसीख़ुशी बातचीत के परिचित से स्वर सुनाई पड़ते हैँ. मछेरे बहेलिए हाथोँ मेँ जाल, काँटे, डोरियाँ, रस्‍सियाँ तथा अन्य उपकरण लिए आते हैँ और कुमारियोँ के बीच बिखर जाते हैँ. सब आपस मेँ मान मनौवल, बचना भगना, पकड़ा पकड़ी कर रहे हैँ. इस से वार्तालाप के अवसर उभरते हैँ.)

लकड़हारे

दूर! दूर! सावधान!

बनेगा मैदान!

खेल का मैदान!

चौड़ा चकला सफ़ाचट मैदान!

 

हम काटेँगे पेड़

आओ मत पास

कुचलेँगे पेड़!

 

हम हैँ अनोखे

    निराले इनसान

सुनो जी, सुनो! सब

    खोल कर कान

हर देश मेँ, हर काल मेँ

    यह सत्य है महान

खटते नहीँ जो

    निर्धन इनसान

आती कहाँ से

    धनियोँ की शान!

 

सीखना है सब को

    समय का है पाठ

हम काटते नहीँ लकड़ी

    तो चूल्हे मेँ होता नहीँ काठ

हम बहाते ना पसीना

    जम जाते, जम जातेआप

    जब आता ठंढ का महीना!

पुल्‍सीनेली (जोकर) (सब उजबक से, बेडौल गँवारू)

पागल होसचमुच पागल तुम

बचपन से खटते, झुकते और बुढ़ाते

समझदारसच समझदार हम

दुनिया मेँ समझदार केवल हम

हम ना कोई बोझ उठाते!

 

ढीला टोपा, झोला ढिल्लम

गुदड़ी कथरी हलकी फुलकी

रहते हरदम ख़ुशखुर्रम हम

मारामारी धक्काधक्कम

मुँह निपोर देखते हैँ हम

 

उछलकूदते मस्‍ती करते

भाग निकलते मछली से हम

मौज मनाते चलते रहते

घिसते चप्पल लस्टम पस्टम

 

किस को अच्छे लगते हैँ हम

किस को पाजी लगते हैँ हम

हमेँ ना इस की कोई चिंता

मूरख है जो शोच करंता

परावलंबी टुकड़ख़ोर (गिड़गिड़ाते, लार टपकाते)

कड़ियल बोझा ढोने वालो

मस्त क़लंदर हँसने वालो

क्या रक्खा है इन बातोँ मेँ

बहसाबहसी मेँ, घातोँ मेँ

 

बातेँ करते हो उलटी, यार

सरदी हो या हो अंगार!

बेमलबकोरी बकवास!

 

बरसेँ नभ से लाखोँ अंगार!

मानो, प्यारे, सब बेकार!

बस, चूल्हे मेँ फबते अंगार

गरमागरम बने आहार

मुरग़ा मछली रोटी बोटी

चटपटी महकतीटपके लार

हम हैँ रसियोँ के सरदार

हम को है इस की पहचान

कब कौन बहाता रस की धार

हम करते उस का जयकार

जुग जुग जियो खिलावनहार

बने रहो मालिक, सरकार

खिलवाते रहो हमेँ पकवान

पियक्कड़ (मस्‍ती मेँ, बेहोशी मेँ)

चिंता पर बरसे अंगार

मन पर बोझ रहे ना भार

लाया मैँ मस्‍ती का आलम

नाचे गाए सारा आलम

हाथ मेँ है जाम

चढ़ा रहा हूँ मैँघूँट पर घूँट

    पियो, मेरे साथ

    पियो, पियो, जियो

        वक़्त न जाए छूट

ओ मेरे यार

क्योँ खड़े हो पीछे, ओ मेरे यार

आओ आओ मेरे पास

खनखाओ जाम

यह हुई न कोई बात, मेरे यार

    पियो, पियो, जियो

        वक़्त न जाए छूट

 

बोली, क्या बोलीमेरी घरवाली?

बोली नहीँ, क्या चीखीमेरी घरवाली?

मैँ रहा था झूम

पहने रंगबिरंगा सूट

नशेड़ी कहीँ का!

गिरता पड़ता झूलता ठूँठ!

मुझे देखो फिर भी, मेरे यार

मेरे हाथ मेँ है जाम

चढ़ा रहा हूँ घूँट पर घूँट

पियो मेरे झूमते ठूँठो, पियो

पियो, मेरे साथ

    पियो, पियो, जियो

        वक़्त न जाए छूट

 

मत कहना, मेरे भइया

कहाँ गया रस्ता मैँ भूल

मैँ वहाँ हूँ, मेरे भइया

जहाँ ग़म गया मैँ भूल

जो पिलाए ना शराब कलिहार, मेरे यार

तो देगी, देगी, हाँ देगी कलहारनउधार

नहीँ तो, मेरे यार,

कर लो, कर लो छोकरी से मनुहार

मुझे देखो फिर भी, मेरे यार

मेरे हाथ मेँ है जाम

चढ़ा रहा हूँ घूँट पर घूँट

पी लो पी लो तुम भी

पी लो और पिलाओ

बढ़ाओ, हाँ, बढ़ाओ

बढ़ता रहे जाम से जाम

मेरा तो, प्यारे यार, अब काम है तमाम

जैसा हूँ मैँजहाँ हूँ

ख़ुश हूँ मैँपड़ा हूँ

देखो मुझे फिर भी, मेरे यार

मेरे हाथ मेँ है जाम

रहने दो जहाँ हूँ

धरती पे पड़ा हूँ

कहाँ है होश मुझ को

जो पैरोँ पे खड़ा हूँ!

कोरस

पी लो! पी लो! जी लो! प्यारे यार!

हँसो और गाओ! प्यारे यार!

जाम से जाम बढ़ने दो, प्यारे यार!

सँभलो, मेज़ पकड़ो,

सँभल के, मेरे यार!

जो धरती पे पड़ा है

हमारा है प्यारा यार!

(घोषक एक एक कर के अनेक प्रकार के कवियोँ का नाम ले कर आमंत्रित करता है – प्रकृति कवि, दरबारी कवि, चारण और भाट कवि, भावुकतावादी कवि, उत्‍साही कवि. इन प्रतियोगियोँ की भीड़भाड़ और धक्कमधक्का मेँ कोई किसी को कविता पाठ नहीँ करने देता. फिर भी एक आगे बढ़ कर कुछ शब्द कह पाता है.)

व्यंग्यकार

जानते हैँ आप, श्रीमान?

क्या है मेरी मनोकामना महान?

कर पाऊँ साहस, गा पाऊँ वह सब

सुनना नहीँ चाहता कोई जो अब.

(रात्रि कवि और गिरजाघर कवि घोषक से क्षमा याचना करते हैँ. वे दोनोँ नवोत्‍थित रक्तपायी शवपिशाच से एक बड़े रोचक वार्तालाप मेँ व्यस्त हैँ. इस वार्तालाप के परिणामस्‍वरूप एक नए काव्य वाद के उद्भव की संभावना है. अतः घोषक उन की प्रार्थना स्वीकार कर लेता है.)

श्रीआँ

clip_image002

आग्‍लाइया (दिव्या)

हम से शोभा पाता है जीवन

दोशुभ कर लो निज जीवन

हेजेमोनी (प्रभुता)

लेना शालीन कला है उत्तम

मिले कामना जीवन उन्नततम

यूफ्रोसेनी (हर्षा)

शांत सौम्य जब आए जीवन

नतमस्तक – कृतज्ञताज्ञापन

भाग्याएँ

clip_image004

आत्रोपोस (अपरिवर्तनीया)

clip_image006

मैँ ज्‍येष्ठा हूँ भाग्या

कातो कातोमुझ को आदेश मिला है

जीवन की डोरी कहती है

गुनो तुम्हेँ जो जीवन का वरदान मिला है.

 

धुनो, धुनो कपासउत्तम से उत्तम

जीवन डोर बने सुंदर कोमलतम.

जीवन धागा कातो महीनतम.

 

उच्छृंखलता यदि जीवन मेँ हो

खीँचा कस कर हर सुख को जो

याद रहेकाचा है धागा

टूटेगी डोरीसमझो ना समझो

क्‍लोथो (वस्‍त्रा)

सौँपा गया मुझे जो चीवर

घारण करती मैँ वह चीवर

बड़ी बहन की चालढाल से

चढ़ते थे मानव के तेवर

 

उलझे ताने बाने सुलझाती

शून्य गगन मेँ उन्हेँ सुखाती

आशा के सपने, भाग्य सुनहरे

अंधकार मेँ सब बिलमाती

 

जब मैँ थी कमसिन युवरानी

करती थी भूलेँ मनमानी

अब मैँ ने संयम धारा है

बात बड़ोँ की मैँ ने मानी

 

जब से रोकी उद्दाम भावना

समझीक्या होती है सत्य कामना

भोगो, सारे सुंदर सुख भोगो

वंश बढ़े, सीखो स्वयं साधना

 लाचेसिस (जीवनमापिनी)

केवल, मेरे हाथोँ मेँ केवल

है जीवन की डोर समुज्ज्वल

चुस्ती फुर्ती सर्राटा अविरल

संयम से चलती मैँ अचपल

 

धागे आते आते, रहते आते

मेरे हाथोँ सब सधते जाते

संभव नहीँ भूल ज़रा भी

चरखी पर सब चढ़ते जाते

 

भूलचूक हो यदि प्रमाद मेँ

डूबेगा मन गहन विषाद मेँ

घंटोँ की फिरकी, वर्षोँ की लच्छी

अच्छी लगती काया प्रसाद मेँ

घोषक

जिगर थाम के बैठिए, अब पधार रही हैँ हस्तियाँ महान.

आप होँ कितने ही विद्वान, कितना ही हो आप का पुराज्ञान.

सँभलिए, हो जाइए सावधान – इन का काम है अकल्याण.

फिर भी – आप मानेँगे – ये हैँ उपयुक्त मेहमान

 

महाक्रोधाएँ हैँ ये! नहीँ होगा आप मेँ से किसी को विश्वास.

देखिए इन्हेँ! होता है केवल मित्रता और सौमनस्य का आभास.

सुंदर हैँ, देहयष्टि है कमनीय, काया है सुकुमारता का आवास.

नागन सी फुफकारेँगी, निगल जाएँगी समूचा – आए जो पास.

clip_image008

वैर, बदला, प्रतिशोध, इंतकाम – यही है इन का काम

हर ओर है शान का बखान आज की शाम

फिर भी नहीँ है इन की चाहत – कोई माने इन्हेँ देवियाँ महान.

यही है इन की शान – ये बना देती हैँ हरे भरे देश को श्मशान.

महाक्रोधाएँ

आलेक्तो

चाहे जैसे जितना कर लो बदनामडरतीँ नहीँ हम.

सब को हो जाता है हम पर विश्वासजानती हैँ हम.

सुंदर हैँ हम, भोली सी भाली सी प्यारी सी बिल्लो हैँ हम.

आ गया किसी का किसी पर जो मनक्या करती हैँ हम?

 

अच्छी तरह भर देती हैँ हम उस के कान

किसी दूसरे पर वह छिड़कती रहती है जान

काना कुबड़ा लंगड़ा है वह, मूर्खोँ का प्रधान.

जो हो गई कुड़माईतो लड़की है अनाड़न अज्ञान.

 

दुल्हन को बहकाना तो है और भी आसान.

अभी पिछले हफ़्ते की ही तो है बात, तुम्हारे श्रीमान

कर रहे थे अपनी दूसरी से तुम्हारे दुर्गुणोँ का बखान!

हो जाए मान मनौवल, तो भी मनोँ मेँ आ ही जाती है कान.

मेजीरा

यह! यह तो है मेरे बाएँ हाथ का खेला!

हो जाए शादी, मैँ लगा देती हूँ बरबादी का मेला.

मैँ देती हूँ उजाड़भरा पूरा ख़ुशियोँ का संसार.

चलता रहता है काल, बदलते रहते हैँ मर्द के विचार.

 

कभी मरता था जिस पर, छिड़कता था जान

आलिंगन को जिस के रहता था बेचैन परेशान

भोग लेता है उसे जब एक नहीँ, कई बार,

ऊबता है, भागता है, तलाशता नई ठौर पाने को नया प्यार.

 

जानती हूँ मैँकैसे कर सकती हूँ मैँ अनिष्ट अकल्याण.

मेरे पीछे पीछे आता है अस्मोदीयहूदी असुरोँ का प्रधान.

उस का काम है करना संकटोँ की, आपदा की, बरसात

करना बरबाद जोड़ोँ मेँ बसी आदम की जात.

तीसीफनी

शब्द नहीँ, ज़हरी फौलाद करती हूँ तैयार

रगड़ती हूँ सान, मैँ चढ़ाती हूँ धार.

क्या आप को दूसरोँ से है प्यार?

नाश की लीला को हो जाएँ तैयार.

 

जीवन मेँ जो भी पल है सुंदर

कालकीट बैठा है उस के भीतर.

क्या भावताव, क्या सौदेबाज़ी

हर उत्तर का रक्तिम प्रत्‍युत्तर

 

क्षमादानकैसा, किस को, क्योँकर?

बदला! बदला! गूँजे हर पत्थर.

जो भी काँपा, रहता है मर कर.

जीते हैँ वे, जो रहते हैँ पक्के तत्पर.

घोषक

अब, श्रीमान, कृपा कर के हट जाएँ एक ओर.

अब आ रहा जो – आप नहीँ हैँ उस के आदी.

आप देखेँगे – भीड़ को ठेलता घुसता आता पहाड़ –

उस के दोनोँ ओर झूलती झिलमिलाती झूल शानदार

शीश से निकलते दो दाँत विशाल, लंबी सूँड़ फनफनाता

रहस्य से भरपूर. – लेकिन मैँ हूँ न – भेद सब बताता.

देखिए, उस की गरदन – बैठी है उस पर एक कोमल नार.

हाथ मेँ छड़ी है – घुमाती है. उस को चलाती है यही नार.

देखिए – पीठ पर – सिंहासन पर खड़ी है एक और नार

भव्यता बिखराती, आँखेँ चुँधियाती, ज्योत की मीनार.

साथ साथ चलती हैँ – बंधनोँ मेँ जकड़ी हैँ दो और नारी.

आँसू बिसूरती, दुक्खोँ की टोकरी – एक है बेचारी,

दूसरी मगन है, खेलती सी हँसती, गाती सी चलती.

एक यह समझती है – बाँधे हैँ उसे बंधन.

दूसरी समझती है – नहीँ है कोई बंधन.

अब आप ही बताएँ – है आप से निवेदन –

बंधन मेँ कौन जकड़ी, नहीँ है किस पे बंधन?

आशंका

धुँआँ धुँआँ है मशाल

मद्धम है शमा, शमादान

बंधनोँ से हूँ मैँ बेहाल

मुस्कराते छलिया इनसान

 

बंद करो मौजमस्ती धूमधाम

कपटी है तुम्हारी मुस्कान

बग़ल मेँ छुरी सुबह शाम

लगते गले हँसते इनसान

 

अभी हँस रहा था

ज़रा दिल मेँ झाँका

छिपाए छुरा था

छिपा मुँह वो भागा

 

खुला हो कोई दर

मैँ भागूँ निकल कर

न रौरव हो बाहर

यही मुझ को है डर

आशा

बहनो, लो मेरा अभिनंदन

लगा मुखौटे खेले हम कल आज

सब ने भोगा सुंदर मनरंजन

कल खोलेँगे गुंठन की लाज.

 

दीपक क़ंदीलोँ के नीचे

मिली नहीँ जो मन की आस

मुझ को है पूरा विश्वास

पाएँगी हम नए सूरज के नीचे

 

आने वाले हैँ निर्मल दिन

महकेँ मधुवन कलरव गुंजन

सब साथ साथ या निपट अकेले

थके, रुके, हँसे, मिल खेले

 

चिंतहीन बनेगा जीवन

होगा स्वागत हर बस्ती हर घर

सच मानो कहता मेरा मन

हमेँ मिलेगा कुछ श्रेयस्कर

विवेकिनी

आशा, आशंकामानव की दुश्मन

साथ साथ जकड़े था इन को बंधन

मुक्त रहे इन से मानव मन

हटोदूर! खोल रही मैँ इन के बंधन

 

यह जो गज है, मंथर मंथर,

इस पर मेरा शासन हरदम

बोझ लदा है भारी भरकम

पार उतरता घाटी पर्वत नद नाले गह्वर

 

इस के ऊपरआप करेँ अवलोकन

देवी अत्युत्तम किए हुए चक्र दो धारण

निज आभा से करती चहुंदिश नित आलोकन

कैसे शुभतर हो जग जीवनहै इस का चिंतन

 

जगमग करती दिव्यरूपिणी

जगन्मोहिनी, विश्ववासिनी

शक्तिदायिनी, कर्मकारिणी,

जय की देवी, विजयदायिनी

ज़ोयलो – थेरसितेस

clip_image010

हो! हो! क्या ख़ूब! आ गया मैँ सही समय पर.

बुरे हैँ हम, हम सब का बुरा है हाल.

कौन है वह? विजय देवी है क्या – वहाँ ऊपर?

इसी की तलाश मेँ तो था बुरा मेरा हाल.

देखा – कैसे फैलाए खड़ी है रुपहले पर!

समझती है – गरुड़ है – नहीँ है किसी का ज़ोर इस पर!

जा सकती है चाहे जहाँ पर! पूरी धरा पर!

समझती है राज है इस का हर किसी पर!

होता है कुछ अनोखा, विलक्षण, जब भी कहीँ पर

तो धार लेता हूँ जिरह बख़्तर मैँ बदन पर –

गिरे को उठाता हूँ, दम लेता हूँ ऊँचे को गिरा कर.

टेढ़े को कर देता हूँ सीधा, रख देता हूँ सीधे को मरोड़ कर.

तभी होता है संतोष मेरे मन को

होता रहे ऐसा ही जग मेँ – अच्छा लगता है मेरे मन को.

घोषक

तो, पाजी कहीँ के! झेल यह वार,

जादुई है मेरा दंड, भारी है इस की मार!

नाच! तड़फड़ा कर नाच! फटेहाल!

अरे! क्या हो गया इस का हाल!

दोहरा कुबड़ा था, बौना था. हो गया कमाल!

बन गया फिरकी सा गोला! भयंकर.

बन गया अंडा, फूला, फूटा बिखर कर.

उस मेँ से निकले जुड़वाँ जानवर

एक है नाग, एक चमगादड़!

एक चलता है धरती पर रेँग कर, सरक कर.

दूसरा उड़ता है छत से टकरा कर, लगाता है चक्कर.

देखो, दोनोँ मिल रहे हैँ लिपट कर.

मैँ? क्या करूँगा उन से मिल कर!

फुसफुसाहटेँ

चलो उधर, नाच है मस्त, मस्‍ती का चक्कर! –

ना, जी, दूर रहना है बेहतर! –

क्या लगता है तुम्हेँ भी? भटकती रूहेँ लगा रही हैँ चक्कर? –

क्या था – जो फड़फड़ाया मेरे बालोँ के ऊपर? –

उई माँ, पैरोँ के नीचे से कौन निकला सरक कर? –

बिगड़ा नहीँ कुछ किसी का! –

डर से बुरा हाल है हर किसी का! –

सारा मज़ा हो गया गुड़ गोबर! –

यही तो चाहता था वह पाजी जानवर!

घोषक

आप जो कर रहे हैँ छद्म मनोरंजन

आज बन आप का घोषक, मैँ कर रहा हूँ उस का संचालन.

मेरी पैनी नज़र है द्वार पर –

घुस न आए कोई आपदा छिप कर.

करता रहा हूँ दायित्व का पालन, पूरी तरह तत्पर.

उठा नहीँ रखी है मैँ ने कहीँ भी कोई भी क़सर.

एक ही लगा रहता है मुझ को डर –

खुले हैँ खिड़कियोँ के चौड़े कपाट

उधर से आ न जाए कोई भूत या पिशाच.

मेरे पास उन की नहीँ है कोई काट..

पहले तो चला आया वह बौना दिखाने नाच.

देखिए, देखिए, अब उधर से कर रहा है

एक अनोखा मायावी आश्चर्य प्रवेश.

देखिए, देखिए, वह जो चला आ रहा है –

वर्णित करना पड़ेगा मुझे उस का रूप, आकार और वेश.

उस का सौंदर्य है वर्णनातीत –

ज्ञान से परे – अर्थातीत, शब्दातीत.

लो आ गया जन समूह के पार और उस से अतीत –

शक्तिशाली शक्राश्व शकटेश.

आ गया! भीड़ को दिया चीर – चार चार युगंधरोँ से है युक्त.

हुआ नहीँ कोई भी आहत, क्षत विक्षत.

दूर दूर सतरंगी टिमटिमा रही हैँ ज्योत.

चमचमा रहे हैँ तारे जैसे खद्योत.

धड़धड़ाता बढ़ा आ रहा है.

हटो, बचो! जी मेरा घबरा रहा है.

किशोर सारथी

रुको, अश्वो, ठहरो, थामो, गतिचक्र थामो.

मानो, रश्मि रज्जु का आदेश मानो.

ठहरो! आदेश है मेरामानो!

जब मैँ चाहूँ दौड़ो, जब चाहूँ गति थामो.

उत्सव का क्षेत्र है, करो सम्मान!

देखो, देख रहे हैँ तुम्हेँ एकत्रित जन महान.

प्रशंसा से परिपूर्ण हैँ जन गण मन के गान.

घोषक, यहाँ आओ. अपनी भाषा मेँ करो बयान

क्या हैँ हम, कैसे हैँ, इस से पहले कि हम करेँ यहाँ से प्रयाण.

कुछ नहीँ हैँहम हैँ मात्र प्रतीक, उपमान.

बताओ हमारा नाम, करो गुणगान.

घोषक

बताऊँगा कैसे – अज्ञात है आप का नाम.

हाँ, कर सकता हूँ आप के वर्णन का प्रयास.

किशोर सारथी

तो आरंभ हो प्रयास!

घोषक

तो सब से पहली बात है, श्रीमान

आप हैँ रूप की, सौंदर्य की अंतहीन खान.

ललन से किशोर हैँ आप सुकुमार

हर नारी चाहेगी – आप होते – वयसंधि के पार.

पूर्ण यौवन से भरपूर – शक्तिबल पाठे कुमार.

मुझे तो लगता है – रसिया हो आप, मन मेँ है छल,

मन्मथ हो, चलाते हो हर सुमुखि पर बाण पल प्रतिपल.

किशोर सारथी

हाँ, हाँ, कहते रहो! यहाँ तक तो नहीँ हो तुम असफल.

खोल दो जो भी है – कूट पहेली मेँ छिपा सुंदर हल.

घोषक

काले गहरे नयनोँ मेँ दामिनी है काली.

काले काले केशोँ मेँ आभा है काली,

जिन मेँ सुंदर चमचम मुकुट है चमकता.

मंद समीरण से सुमनोँ सा चंचल वेश लहरता.

कामकेतु सा रेशमी परिधान फहरता

स्वर्णखचित रक्तनील नीलारुण वर्ण दमकता.

बार बार आभास होता है आप हैँ नारी.

आप को पाना चाहेगी हर नारी.

प्यार का ककहरा सिखाना चाहेगी हर नारी.

किशोर सारथी

और कैसे हैँ वह – हैँ जो रथ मेँ सिंहासन पर.

घोषक

राज है इन का इलीसियम के नैसर्गिक सुखक्षेत्र पर.

इन के होने मात्र से बहती संपदा है.

धन्य हैँ वे जिन पर इन की कृपा है.

पाने को कुछ और नहीँ इन को बचा है.

जो भी अभाव है, जहाँ है, जितना है

दीठ से इन की कहीँ भी ना छिपा है.

दानी हैँ वरदानी, संकोच नहीँ लेश है.

राज मेँ इन के कहीँ भी ना क्लेश है.

किशोर सारथी

अपर्याप्त है – कहना मात्र इतना.

विवरण से कहो – जो और भी है कहना.

घोषक

वर्णनातीत हैइन का प्रताप इतना

मुखमंडल इन का है पूर्णचंद्र जितना

अनोखी सी मूरत हैस्वस्थ हैँ, ओज है,

अधर हैँ लाल, और लाल ही कपोल हैँ.

सिर पर बँधा जो किरीट हैसुंदर, अमोल है

लहराता आँचल हैचंचल है, लोल है.

लगता है जैसे जाने पहचाने ये नरेश हैँ.

किशोर सारथी

प्लूटस हैँ ये – धन के अंधे देवेश हैँ.

साजबाज धारे अब यहाँ हैँ पधारे.

राजा यहाँ के – क्या नहीँ थे इन को पुकारे?

घोषक

कुछ तो बताएँ आप – नाम धाम अपना.

किशोर सारथी

समृद्धि हूँ मैँ, काव्य हूँ मैँ. हूँ ऐसा कवि पूर्णकाम

खोल चुका हो जो गहनतम अंतर्तम अपना.

मैँ भी धनी हूँस्वामी हूँ मैँ भी अकूत संपदा का.

समझोसमकक्ष प्लूटस का हूँ मैँ.

सँवारता, सजाता, चमचमाता हूँ भोग प्लूटस का.

जो नहीँ है इन के पास, वह देता हूँ मैँ.

घोषक

अच्छे लगते हो बघारते शान. कहे देता हूँ मैँ –

दिखाओ तो अपने भी दो एक हाथ.

किशोर सारथी

लो, चटकाता हूँ मैँ उंगलियाँ, फैला कर हाथ.

देखो, रथ के चारोँ ओर – जगमग ज्योत की माल.

देखो – उड़ती फिरती – मुक्तामाल!

(हर दिशा मेँ उंगलियाँ चटकारता रहता है.)

यह कंठमाल, यह कर्णफूल

केशपाश, कंघी, किरीट अमूल्य

रत्नजटित मुद्रा, आभूषण प्रभूत

सब के सब अद्भुत, अश्रुत, अभूत.

साथ साथ लो बरसाता मैँ ज्वाला झलाझल.

देखो, उस से क्या कुछ हो उठता है प्रज्वल!

घोषक

कैसी है यह उठापटक, भागदौड़!

पाने को सब कुछ सब रहे दौड़!

घेर लिया सब ने दाता को भी.

सपने पूरे करता सा वह देता जाता फिर भी.

शाला विशाल मेँ कैसा यह खेला!

छीनाझपटी का रेलमपेला!

लेकिन यह क्या! कैसा यह नव चमत्कार! खेला!

दौड़े झपटे पकड़े थामे कोई कितना

पाता नहीँ कहीँ कोई भी इतना.

जितने भी उपहार मिले हैँ

मानो उन को पंख मिले हैँ

उड़ते बचते भागे फिरते हैँ

हाथोँ से बच कर नभ मेँ हैँ उड़ते

मुट्ठी मेँ जो बचता है – हैँ कीड़े.

फिरता भँवरा है इस की मुट्ठी

उस के सिर पर उड़ती तितली.

बड़ी बड़ी बातेँ थीँ, आशा थी

स्वर्ण नहीँ था, केवल आभा थी.

किशोर सारथी

समझ गया मैँ – तुम घोषक हो कोरे दरबारी.

छद्म मुखौटोँ तक सीमित है पहुँच तुम्हारी.

जो कुछ ऊपर से दिखता है – पढ़ सकते हो,

उस के नीचे जो भी है – देख नहीँ सकते हो.

चाहिए जो गहराई – तुम से, प्यारे, बहुत दूर है.

झगड़ा टंटा, बहसाबहसी मेरे मन से बहुत दूर है.

अब मैँ करता हूँ देवेश प्लूटस से दो बातेँ.

(प्लूटस की ओर मुड़ता है – )

क्या नहीँ था मुझे आप का आदेश

मैँ दूँ आप के अश्वोँ के प्रभंजन को आदेश?

क्या नहीँ है आप को मेरी क्षमता मेँ विश्वास?

क्या नहीँ था यहाँ तक आप को लाने का मुझे आदेश?

क्या महा अभियानोँ मेँ मैँ ने धारे नहीँ आप के चक्र?

क्या जीता नहीँ मैँ ने जो आप के हाथ मेँ है चक्र?

जब भी गया मैँ युद्ध मेँ आप के साथ

क्या दिया नहीँ भाग्य ने साथ?

शोभित है जिस से आप का उन्नत भाल

मेरे हाथोँ ने सँवारी नहीँ क्या वह जयमाल?

प्लूटस

चाहिए यदि किसी को कोई कैसा भी प्रमाण,

तो कहता हूँ मैँतू है मेरे प्राणोँ का प्राण.

मेरे मन मेँ रहता है तेरा हर काम.

मुझ से बढ़ कर है तेरा धन धाम.

देने को तेरी सेवाओँ का पुरस्कार

अपने स्वर्ण मुकुट से ऊँची मैँ रखता हूँ तेरी पुष्पमाल धार.

सब सुनेँ मेरा यह उच्चार

तू मेरा है पूत, मेरे मन का है प्यार.

किशोर सारथी (जन समूह से)

लीजिए, अब बरसते हैँ मेरे हाथ से उपहार.

देखिए – फैलते बिखरते सर्वोत्तम उपहार.

कितनोँ के शीश पर दमकती है ज्वाला.

मैँ ने ही इसे है सब पर उछाला.

गिरती है फिसलती बदलती आकार.

टिकती है वहाँ पर, हटती है वहाँ से साकार.

लेकिन एक पल को भी किरणोँ का जाल

ऊपर को उछलता नहीँ लगा कर उछाल.

क्षणभंगुर नहीँ है, फिर भी कोई पाता नहीँ इस को धार.

बुझता है, बनता है गहन से गहनतर घोर अंधकार.

महिलाओँ की चटर पटर

मदारी है – रथ पर है जो सवार.

नहीँ है कुछ – बस, खेलोँ का दिखावनहार.

उस के जो पीछे छिपा है – विदूषक है, जोकर है.

भूखा है, प्यासा है – सीँकिया बहादुर है.

भुक्‍खड़

भागो, गर्हित, घिनौनी महिलाओ की सेना.

जब भी आता हूँ मैँ – चाहती हो मुझे भगाना.

जब घर और चूल्हा था औरतोँ का काम

तब लालच था मेरा नाम.

तब घर होते थे सुख समृद्धि के धाम.

आता बहुत था, नहीँ जाता था दाम.

मुझे भी रहता था बस कोशागार से काम.

तुम्हारे लिए उस का है कोई गंदा सा नाम.

जब से घरवाली ने कर दिया मितव्यय का विसर्जन

करने लगी सरकारी विद्वानोँ सी खुले हाथ व्यय का समर्थन,

जब से इच्छाएँ हैँ अधिकतम और आय है न्यूनतम,

तब से पति को दुःख ही दुःख हैँ कठिनतम

देखता जिधर है, पसारे हाथ दिखता है महाजन.

ख़र्च करती है वह, जो भी लाता है वह.

यार पाता है सब, जो भी लाता है वह.

खाती है ख़ूब, पीती है ख़ूब

छिनालोँ के साथ जीती है ख़ूब.

महँगा है धन – कमाना है काम

मर्द हूँ मैँ, लालच है नाम.

महिला प्रमुख

जैसा सर्पराज, वैसा ही नागराज!

कोरी बकवास – उलटा है काज!

मर्दोँ को उकसाने भड़काने का है काम.

वैसे ही वे क्या कम धरते हैँ हमारे नाम?

महिला दल

काला है कव्वा! दो रथ से इसे धक्का!

चला कैसे आया – यह चोर! यह उचक्का!

जैसे इस के डर से लगेगा हमेँ धक्का!

काग़ज़ का नाग है, तन है इस का गत्ता!

आ! झेल! होने दे गुत्थम गुत्था!

घोषक

शांत, रहो शांत! सँभलो! सँभालो मेरा डंडा!

लेकिन, देखो तो, क्या करेगा मेरा डंडा!

घिरे आ रहे हैँ पंखदार नाग, डैने पसार

क्रोध से काँपते करते फुंकार.

मुँह से निकल रही है लपकारती जीभ सी ज्वाल.

शल्क सी खनखनाती है केँचुली और खाल.

शांत, सब हो गया शांत.

चली गई भीड़. सब कुछ है शांत.

(प्लूटस रथ से उतरता है.)

घोषक

लो गरिमा से उतरते हैँ वह! कैसी है शान!

किया एक संकेत, नाग हैँ शांत.

रथ से लौह मंजूषा रहे हैँ उतार.

स्वर्ण से परिपूर्ण, लालच है सवार.

देखिए, देवेश के चरणोँ मेँ रख दिया भंडार.

कैसे किया यह सब? भारी था भार.

प्लूटस (सारथी से)

तू ने अब दिया है यह बोझ उतार.

जा, जहाँ चाहे, जा, जा – अपने देश.

यह नहीँ है तेरा देश, तेरा परिवेश.

मतिभ्रामक, मायावी बिंब – उत्तेजक घनघोर

मँडरा रहे हैँ हमारे चारोँ ओर.

जा, जहाँ सुविज्ञात हैँ शांत हैँ दृश्य

जा, जहाँ उद्घाटित है – शिवं सौंदर्य.

जा, भोग एकांत. रच मनचाहा अपना संसार.

किशोर सारथी

मैँ हूँ तेरा दूत – विश्वासपात्र अवधूत.

तू है मेरा निकटतम प्रियतम, मैँ हूँ तेरा पूत.

तू है जहाँ, समृद्धि है वहाँ.

मैँ जाता हूँ जहाँ.

सुख का साम्राज्य हर कोई पाता है वहाँ.

पल पल परिवर्तित है जीवन.

ग्रसता रहता है सब को यह भ्रम

माँगेँ तुझ से या मुझ से सुखजीवन.

तेरे वरदानी, करते नादानी, बिसराते श्रम.

जो मेरे पीछे चलता है, करता है निरंतर श्रम.

खुल्लमखुल्ला है मेरा हर काम.

नहीँ है कैसा भी कहीँ कोई छद्म.

श्वास श्वास मेँ है मेरा आवास.

जाता हूँ मैँ, करता हूँ प्रणाम.

तुम ने मुझे दिया है सुख का वरदान.

धीमे से लो मेरा नाम

पाओगे मुझे अपने पास तत्काल.

(जैसे आया था, वैसे ही चला जाता है.)

प्लूटस

आ गया है समय – खोल दूँ स्वर्ण का भंडार.

घोषक के दंड से लगाता हूँ तालोँ पर मार.

खुल गया कोश. देखिए, लोहे की केतली…

उबलती, उफनती स्वर्ण की धार बह निकली.

किरीट, आभूषण, मुद्रिका, छल्ला, शृंखला…

भीड़ मेँ से एक के बाद एक स्वर

देखो, देखो, उफनते बहते आभूषण देखो!

लबालब भर गई मंजूषा!

आहा! स्वर्ण की मंजूषा पर मंजूषा!

टंकशाला से बह निकली जैसे धातु की धारा!

खनखनाता है उछलता कूदता सिक्के पर सिक्का!

हाय! धड़का मेरा दिल – धड़का फड़का!

पूरी हो गई मन की हर इच्छा!

और! और! निकल रहे हैँ और पर और!

धरती पर बिखरे पड़े हैँ और पर और!

हमारे लिए है! मूरख बनो मत, शरमाओ मत और!

उठा लो, चाहे जितना – फुरती से उठा लो हर ठौर!

बन जाओ धनवान! न रह जाए अरमान!

कर लो, कर लो पूरी मंजूषा पर अधिकार.

घोषक

क्या है, मूर्खो! बनो मत मूर्ख!

मेले का यह है एक मज़ाक़ और!

धारो, आज की रात मन पर संयम.

क्या समझ बैठे हो तुम सब लोग?

मिल जाएँगे तुम्हेँ धन और मनचाहे भोग!

देखा नहीँ इस खेल मेँ सिक्के हैँ आशातीत.

मोहक है सपना, हो जाएगा व्यतीत!

था प्यारा सा झूठ. सच समझे तुम लोग!

क्या है सत्य? माया से घिरे हो तुम लोग.

प्लूटस के मुखौटे! छलियोँ के सरताज!

मैदान से हटा दे ये सारे लोग!

प्लूटस

काफ़ी है तुम्हारा डंडा.

लाओ, थमा दो मुझे अपना डंडा!

इस उबलते घोल मेँ डुबो डाला मैँ ने यह डंडा!

लो, सँभलो, मस्तीसभरे मुखौटो! देखो यह डंडा!

देखो! देखो! चमका, दमका, भभका यह डंडा!

घूमता है बिखेरता, छितराता शोले यह डंडा!

जो आएगा पास, जला देगा डंडा!

रहो दूर आता हूँ मैँ घुमाता हुआ डंडा!

चीत्कार और भगदड़

हाय! हाय! बुरा है हाल!

बचो, नहीँ है कोई पुरसाहाल!

भागो! दौड़ो! बचा लो जान!

पीछे हटो! रहो दूर! हट पीछे!

जला दी मेरी आँख!

आन पड़ा मुझ पर जलता हुआ डंडा!

मर गए! मर गए हम! मिलता नहीँ दम!

पीछे! पीछे! मुखौटियो, खिलाड़ियो!

भीँचो मत! धकियाओ मत!

पीछे! पीछे! भागो! भागो!

होते पंख, उड़ जाते बचते बचाते!

प्लूटस

हाँ, अब चली गई भीड़ पीछे.

और, हाँ – झुलसा नहीँ है कोई.

चली है भीड़ पीछे

ज्वाला से सहमा सा डरा है हर कोई.

अनुशासन का करने स्थापन –

लो, खीँचता हूँ मैँ – संयम की रेखा.

घोषक

आज की रात आप का काम था महान!

मैँ करता हूँ आप की बुद्धि का, शक्ति का, गुणगान.

प्लूटस

सँभाले रहो अभी धन्यवाद ज्ञापन.

अभी तो और होने हैँ गड़बड़ घोटाले!

लालच

चाहेँ तो हम चैन से करते रह सकते हैँ रूप का दर्शन –

आगे, सब के सामने, आने को करता है नारियोँ का मन.

जहाँ तक प्रश्न है मेरा – हर सुंदर नारी है सुंदर.

यहाँ मौजूद हैँ इतनी नारियोँ के टोले पर टोले.

चाहो जितनियोँ से कर लो प्रेम प्रदर्शन!

भीड़ बड़ी है,

बड़ी भीड़ मेँ सुविधा और असुविधा भी बड़ी है.

कान पड़े सुनाई नहीँ देती किसी की बात.

हाँ, हावभाव से कर सकता हूँ मैँ

मन के भावोँ का उन्मुक्त प्रदर्शन.

हाथ, पाँव, अंगमुद्रा – सब हैँ नाकाफ़ी.

इसी लिए मैँ अपनाऊँगा हुड़दंगी नाटक!

सोने को मैँ माटी सा ढालूँगा.

जैसे चाहूँ मैँ – अब सोने का ढालूँगा.

घोषक

सीँकिया विदूषक! क्या कर रहा है यह विदूषक?

भुक्कड़ – क्या बन सकता है मसखरा – विदूषक!

सारे का सारा सोना! बना डाला गीली माटी!

भीँचता है, खीँचता है, रौँदता है माटी!

भौँडी की भौँडी – लेकिन अभी तक माटी!

अब औरतोँ को घूरता है पाजी!

सब दूर दूर भागीँ – घबराई सी घिन्नाती.

सब को है सताता, शालीनता मिटाता

मसखरा है पाजी! मानेगा कैसे पाजी?

चुप रहूँगा मैँ – तो – रुकेगा नहीँ पाजी!

दो, मुझ को दो मेरा डंडा – भगा दूँगा मैँ पाजी.

प्लूटस

बाहर के जो डर हैँ – यह उन से बेख़बर है.

रहने दो, इस को छोड़ो – जो करता है, करने दो.

आने वाला संकट है भारी – भूलेगा सारी मक्कारी.

शासन है शक्तिशाली –

अपनी ग़रज मगर है उस से भी शक्तिशाली.

कोलाहल और गीत

आए, आए, बर्बर आए

शोर मचाते, आग लगाते

जंगल जंगल पर्वत घाटी

गाँव मिटाते, नगर मिटाते

आए, आए, बर्बर आए

आए, आए, शामत लाए

पैन देव की पूजा करते

जिस की ताक़त है मायावी

आए, मैदान घेरते आए.

 

 

 

प्लूटस

मैँ जानता हूँ तुम्हेँ, तुम्हारे पैन का भी है मुझे ज्ञान.

दोनोँ ने मिल कर मचाया है घमासान.

जो नहीँ जानते सब लोग – उस का भी है मुझे ज्ञान.

तुम्हारे वास्ते मैँ ने ख़ाली करा दिया है मैदान.

दो, इन्हेँ दो सौभाग्य का वरदान.

होने वाला है कुछ अनोखा, अनजाना.

कहाँ जा रहे हैँ ये – नहीँ है इन्हेँ ज्ञान.

क्या होगा आगे – इन्होँ ने ना सोचा, ना पहचाना.

वन्य गीत

दिखावा, सजावट!

है कोरी भरावट!

आए हैँ बर्बर, गंदे, बेढंगे

पैरोँ मेँ फुरती, बाँहोँ मेँ ताक़त

उछलते, कुदकतेकरते हैँ दंगे.

 

अजदेव (फ़ाउनुस)

clip_image012

फ़ाउन जोड़ेमुकुट बलूती

ऊपर नीचेकूदे, नाचे

झबरीला सिरकान तिकौने

थूथन मोटीमोहँड़ा चौड़ा

सुंदर हर नारी मोद मनाती

हाथ बढ़ाता जब नर फ़ाउन

क़दम मिलाती नाचे गाती

अश्वदेव (सातुरोस)

clip_image014

आए, अब आए सातुरोस

लंबे तगड़े पगजंघा मांसल

 

चुस्त क़दमकूदेँ भर कर दम.

साँभर से शिखरोँ पर हरदम

कूद फाँद करते रुकते थम

कभी ताकते मस्त गगन

मुक्त क़दमडग भरते हम.

 

नर नारी बच्चोँ पर हँसते

घाटी धूएँ मेँ घुटते जो हरदम

समझ रहे हैँ इस को जीवन!

ऊपर नभ चुंबित हर्षित हम

बाधाहीन है शुद्ध पवन.

वामन (नोम)

clip_image016

आते हैँ, आते इठलाते

एक एक कर भीड़ लगाते

जोड़े इन को ज़रा न भाते!

 

काही के बाने, दीपक चमकाते

हिलते, मिलते, चुस्ती दिखलाते

अपनी अपनी जगह बनाते!

 

जुगनूँ दल से सब मँडराते

यहाँ वहाँ रिल दौड़ लगाते

श्रम करते, कर के दिखलाते

सब को श्रम का पाठ सिखाते!

 

जो सज्जन हैँउन के हैँ रक्षक

चट्टानोँ के हैँ हम तक्षक

शिखरोँ पर हम ताज चढ़ाते

गिरिकंदर मेँ खान बनाते!

 

गहन गुहा मेँ, धरा कोख मेँ

जितना भी जो खनिज अयस है

ख़ाली करते बाहर लाते!

 

ख़ुश होते फिर मौज मनाते

करते हल्ला, जाम उठाते

खाते पीते, पीते गाते!

 

सुंदर हैँ वे शब्द सुहाने

सब सज्जन हैँ मीत हमारे

हम ने खोजे स्वर्ण ख़ज़ाने!

 

मानव लड़ते, हैँ धकियाते

हरते, लड़ते, मरते…

लोहा हम ने खोज निकाला

हत्यारोँ का मीत निराला!

 

हरना, लड़ना, मरना

जो यह तीन नहीँ कर पाए

ऐसा जन है बड़ा निकम्मा

उस का नहीँ हमारा ज़िम्मा!

दैत्य

वन के वहशी इन का नाम

हार्ट्ज़ दरी मेँ ऊँचा नाम

नंगा लोकपुरातन धाम

एक एक डग महाविशाल

हाथोँ मेँ तरुवर लिए विशाल

 

जंघा ढाँपे रोमल कोपीन

तन के वसन लता तरु पात

इन वसनोँ से पोप विहीन!

परियोँ का कोरस (उन्होँ ने महान पैन देवता को घेर रखा है)

देव हमारा पैन है!

सब से बड़ामहान हैँ!

उस की शक्ति महान है!

 

जो हैँ मस्तमलंग हैँ

आएँ अबसब आगे आएँ

धूमधाम नाच हो गान

मस्त हमारे गान हैँ!

देव हमारा पैन है!

धारे धीरमहान है!

 

उस की केवल एक कामना

मानव करता नाच है!

मानव करता गान है!

 

खुला पैन का धाम है

ऊपर गगन विशाल है

तन मेँ नहीँ थकान है

नहीँ नीँद से काम है

सरिता का जो गान है

पैन को प्यारी तान है!

 

चलती जब मंद बयार है

चढ़ता सिर जब घाम है

करता पैन आराम है

औषध पल्लव छाँह मेँ

उस के सुख का धाम है!

 

वन प्रांतर सब शांत है

मंद पवन अब शांत है

चंचल परियाँ शांत हैँ

करती वे विश्राम हैँ!

 

जग जाता जब पैन है

वज्रोँ सा करता नाद है

लहरोँ सा गहन निनाद है

लगता वह तूफ़ान है

छिपता हर इनसान है

बचता हर इनसान है

सेना की डिगती जान है

जो भी वीर महान है

छिपता और बचाता जान है!

 

देव हमारा पैन है!

उस की शक्ति महान है!

करना उस का गान है

जो सब से बड़ा महान है!

 

हम जो तुम तक आए हैँ

हम को लाया पैन है

देव हमारा पैन है!

वामनोँ (नोमोँ) का प्रतिनिधि मंडल (महादेव पैन से)

शिला शिला की रग़ रग़ मेँ

छिपा हुआ जो द्रव धन है

सिद्धोँ की मायावी संटी

बतलाती है कितना धन है

 

पाताल भवन है कंदर वासी

छिप रहते हम घात लगाए

दिन के तीखे ताप घाम मेँ

तू उस को बाँटे सिरे लगाए

 

नैन हमारे देख रहे हैँ

धरा कोख मेँ अनुपम स्रोता

आसानी से हम को तू देगा

पाना कठिन जिसे ना होता

 

लो! हमेँ निकालो

कहता है यह गुप्त ख़ज़ाना

जो भी तुम अब खीँच निकालो

सारी धरती को दिलवाना

प्लूटस (घोषक से)

हमेँ धारना होगा अब संकल्प महान

होगा ही अब जो होना है –

अज्ञात, अचीता, घोर, घमसान.

तेरे साहस की होगी अब सच्ची पहचान.

जो होगा – है बहुत भयंकर,

ना जग मानेगा, ना इतिहास.

इसी लिए सुन, ओ उद्घोषक,

लिखना इस का सच्चा इतिहास.

घोषक (पैन के हाथोँ मेँ जो उस का दंड है, उसे पकड़ लेता है)

वामन बड़े आराम से ला रहे हैँ

पैन महान को निकट, और निकट

जहाँ है अग्नि का कूप कुंड भयंकर.

अधर तक उफनता बलबलाता है वह.

फिर अचानक तल तक बैठ जाता है वह.

अंधकार से भर उठता है काला धरा का चषक.

और फिर उबलता है, दमकता है घन घोर.

निकट ही खड़े हैँ पैन, विहँसते से,

देख रहे हैँ ज्वाला का विलक्षण कुंड – हो कर विभोर.

दाहिने, बाएँ, उड़ रहे हैँ मोतियोँ से झाग.

कैसे कर पा रहे हैँ वह – इस माया मेँ विश्वास?

वह मुड़े, झुके, कूप मेँ झाँका –

महादेव पैन ने कूप मेँ ताका.

हाय! देखिए – गिर गई उन की दाढ़ी!

किस की है – यह चिकनी चुपड़ी ठोढ़ी?

उन के हाथोँ ने ढाँप लिया, छिपा लिया उस को.

फिर जो हुआ – हाय, – बतलाऊँ कैसे मैँ – आप सब को?

जलती धधकती दाढ़ी – ऊपर उड़ आई

शीशहार मेँ, सिर मेँ, छाती मेँ दाढ़ी ने आग लगाई!

धू धू जलने लगी ज्वाला – हाय, क्या कर डाला?

मंगल मेँ अमंगल! रंग मेँ भंग! क्रीड़ा मेँ पीड़ा!

दौड़ा, हर कोई दौड़ा, बुझाने आग दौड़ा.

इस पर, उस पर, सब पर, दौड़ पड़ी ज्वाला.

यहाँ वहाँ, इधर उधर दौड़ती, विकराल थी ज्वाला.

ज्वाला मेँ घिरा था, मुखौटोँ का दल घिरा था.

बन गया राख – ऐसा वह जला था.

सुनो! सुनो! समाचार कैसा बुरा दौड़ा!

मुँह से मुँह, कान से कान – दौड़ा!

बुरा हो, कुलक्षण थी रात

लाई है शाप की, दुःखोँ की बरसात.

कल – हाँ, कल – हर कोई सुनेगा वह बात

सुनना नहीँ चाहता है कोई जैसी बात.

आहत हैँ, तड़पते हैँ हमारे सम्राट!

काश, ग़लत हो, झूठी हो यह बात!

जलते हैँ सम्राट. जलता है दरबार.

बुरा हो जिस ने यह जोड़ा था दरबार.

शीश पर जा गिरे जलते पतंगे,

हवा दी, भड़का दी – सारे मेँ आग.

एकदम भभकी बिफर कर – जैसे भूसे मेँ आग.

कर डाला नाश – सब का सब सत्यानाश.

जवानी है दीवानी – करती है सत्यानाश.

मस्‍ती के आलम मेँ कुछ तो चाहिए लगाम

जो क़दमोँ को रोके, जो जोश को ले थाम.

सम्राट! हे शक्ति के आधार!

अब करेगा कौन जग के मार्ग का निर्धार?

लकड़ी से लकड़ी जलती है

ज्वाला लपलप करती है! – कड़ियोँ से जा लगती है

क्या प्रलय अगन जलती है! – ग़म का प्याला भरती है.

भभक उठी सब कक्षा – अब कौन करेगा रक्षा?

जो शाही गौरव था – बन गया राख की ढेरी.

प्लूटस

बस! बहुत हो गई देरी. – आतंक हो चुका काफ़ी.

अब संकटमोचन करना है. – सब का दुःख हरना है.

मायावी छड़ी, सुनो अब – धरती से टकराओ.

वर्षावात चलाओ – सजल मेघघन लाओ.

लाओ, जलधर लाओ – घनघोर घटाएँ लाओ.

लाओ, वर्षा लाओ – ज्वाला थामो, रोक लगाओ.

बरसो, बरसो, जलधर – टपको, जलधार बहाओ.

उमड़ो, घुमड़ो, बरसो, घन बरसो – अगन बुझाओ.

घेरो सब को, कर दो शीतल – कोमल बिजली चमकाओ.

चमको! तड़को! फड़को! धड़को! बरसो! हरषाओ!

इस महा अगन को – ज्वाला क्रीड़ामय कर दो!

जब तक मन मेँ था – भावोँ का उद्दीपन

चमत्कार का माया ने दिखलाया दर्शन.

Comments