फ़ाउस्ट – एक त्रासदी
योहान वोल्फ़गांग फ़ौन गोएथे
काव्यानुवाद - © अरविंद कुमार
२५. जेल
फ़ाउस्ट.
हाथोँ मेँ चाभियोँ का गुच्छा और मोमबत्ती. सीख़चोँ वाले दरवाज़े के बाहर खड़ा है.
फ़ाउस्ट
भूले बिसरे भय से आतंकित कण कण.
मानव पीड़ा से सिंचित है मेरा मन.
दीवारेँ काली गीली पथरीली –
इन के पीछे है मेरी प्रिय ग्रेचन.
तुम हो सुंदर, सुकुमार, निष्पाप, सपनीली –
बस, यह था अपराध तुम्हारा, ग्रेचन.
क्या? भीतर घुसने से डरता हूँ?
उस से मिलने से डरता हूँ?
बढ़ूँ, मौत बढ़ती आती है.
(ताले मेँ कुंजी लगाता है. भीतर से गाने की आवाज़.)
मार्गरेट
मेरी माँ छिनाल
दे गई मुझे काल.
मेरा बाप पिशाच –
नोँच नोँच खा गया मांस.
बहना, मेरा गहना
दे गई मुझे क़ब्र की सीली माटी मेँ रहना.
मैँ तो, राजा,
बन की चिरैया!
उड़ जा, चिरैया!
उड़ जा, चिरैया!
फ़ाउस्ट (ताला खोलता है – )
क्या जाने बेचारी – प्रीतम आया द्वार
सुन रहा है करुण क्रंदन, पुकार.
फूस के बिस्तर की खड़कार
बेड़ी की झनझन झंकार.
(भीतर जाता है.)
मार्गरेट (बिस्तर मेँ दुबकती है – )
आ गए मौत के काले दूत!
फ़ाउस्ट
शांत! शांत! मैँ हूँ. आया हूँ छुड़ाने.
मार्गरेट
दया कर, दया कर, मानव के पूत.
फ़ाउस्ट
चुप! हो जाएँगे पहरेदार सयाने.
(ज़ंजीर खोलना चाहता है.)
मार्गरेट
जल्लाद! किस ने दिया तुझे अभी आने?
अभी तो रात है आधी. सुबह है दूर.
दया कर! अभी रहने दे. देख. मुझे देख.
देख! मैँ हूँ जवान. जीवन से भरपूर.
क्योँ आ गई मौत मिटाने जीवन की रेख?
सुंदर थी मैँ – यही था मेरा काल.
दूर है मीत, कभी था पास.
टूट गई माला. बिखर गए फूल.
मत खीँच हाथ. मत आ पास.
अरे, आहिस्ता!
बोल, तेरा क्या बिगाड़ा मैँ ने?
बता – कभी तुझे देखा मैँ ने?
फ़ाउस्ट
और नहीँ सह सकता यह पीर!
मार्गरेट
अरे! बस मेँ हूँ तेरे – मैँ बेबस!
पिला लेने दे दूध. हूँ लाचार.
रात भर छाती से चिपकाया – बार बार निहार.
छीन कर ले गए, छोड़ गए मुझे रोती.
सब के सब लगाते हैँ मुझे दोष –
तू ने मारा कलेजे का मोती.
छीन ली हँसी, छीन लिया होश.
ये सब लोग हैँ निर्दय कठोर –
लगे हैँ मुझ दुखिया को सताने
गाते हैँ गाने, देते हैँ ताने.
दुःखोँ की कहानी
है सदियोँ पुरानी –
मेरा क्या दोष?
फ़ाउस्ट (उस के चरणोँ मेँ झुकता है – )
तुम्हारे चरणोँ मेँ झुका हूँ मैँ
प्रीतम तुम्हारा…
तोड़ने दो दुःखोँ के बंधन.
मार्गरेट (उस के साथ झुकती है – )
हाँ, चलो झुक जाएँ हम,
करेँ संतोँ का वंदन.
देखो – ज़ीने के पीछे
फ़रश के नीचे
धधकता नरक है.
नाच रहे हैँ पिशाच – दाँत फाड़ फाड़
सुनो, सुनो – दहाड़, चिंघाड़…
फ़ाउस्ट (ज़ोर से – )
ग्रेचन! ग्रेचन!
मार्गरेट (ध्यान से सुनती है – )
मेरे मीत ने पुकारा!
(एक दम उठती है. ज़ंजीरेँ गिर जाती हैँ.)
हाँ, मेरे मीत ने पुकारा. मेरे मीत की पुकार…
कहाँ है वह? आज़ाद हूँ मैँ.
अब नहीँ रोक सकता कारागार.
उड़ूँगी उस के पास
लूँगी उस की बाँहोँ मेँ दम.
हाँ, उन्होँ ने पुकारा : ग्रेचन.
खड़े थे वहाँ – द्वार…
शैतान की अत्याचारी सेना के पार.
हाँ, यह थी मेरे मीत की
मादक विषैली पुकार.
फ़ाउस्ट
हाँ, मैँ हूँ, मैँ.
मार्गरेट
तुम हो? – फिर कहो एक बार…
(उसे पकड़ती है – )
वही हैँ! कहाँ गई मेरी पीर?
मेरा संताप, बेड़ियाँ, कारागार!
तुम्हीँ हो! तुम हरोगे मेरी पीर,
करोगे मेरा उद्धार?
हो गया मेरा उद्धार!
वह रही गैल –
वहाँ देखा था तुम्हेँ पहली बार.
और वह? वह रहा उपवन!
कैसे खिले हैँ फूल! कैसी है बहार!
मार्था और मैँ करते थे वहाँ तुम्हारा इंतज़ार.
फ़ाउस्ट (अलग होना चाहता है – )
चलो! चलो मेरे साथ.
मार्गरेट
ठहरो, ठहरो, कुछ देर.
याद है?
ठहरे रहते थे हम
ठहरा रहता था काल.
फ़ाउस्ट
जल्दी!
तुम ठहरीँ तो फँस जाएँगे हम.
मार्गरेट
क्या! नहीँ है एक भी चुंबन?
इतने ही दिनोँ मेँ भूल गए चुंबन!
कैसा है – यह आलिंगन?
कैसा भय, कैसा कंपन?
याद हैँ मुझे – तुम्हारे नैनोँ की हाला
तुम्हारे बैन, सुख चैन.
और… कैसे बरसाते थे चुंबन!
सच! घुटने लगता था मेरा दम!
चूम लो मुझे!
नहीँ तो मैँ चूम लूँगी तुम्हेँ.
हाय! यह क्या है?
ये होँठ हैँ शीतल!
कहाँ गया वह जोश?
कहाँ खो गया?
किस ने चुरा लिया वह जोश?
(मुँह फेर लेती है.)
फ़ाउस्ट
धीरज धरो, चलो. अब चलेँ हम.
फिर मिलेँगे हम
होगा हज़ार गुना जोश.
अभी तो, बस, मेरे साथ चलो तुम.
मार्गरेट (उस की तरफ़ मुड़ती है – )
तुम? तुम्हीँ तो हो?
सच. तुम तुम्हीँ हो?
फ़ाउस्ट
हाँ. चलो, चलो!
मार्गरेट
तुम खोलोगे मेरे बंधन?
करोगे मेरा आलिंगन?
जानते हो, मेरे मीत, तुम ने
खोले हैँ किस के बंधन?
फ़ाउस्ट
चलो, जब तक शेष है रात…
मार्गरेट
मेरी माँ – मैँ ने मार डाली.
मेरी संतान – मैँ ने डुबो डाली.
तुम्हारी भी थी वह संतान.
तुम्हेँ दे दिया मैँ ने बंधन.
तुम? तुम्हीँ हो ना मेरे साथ?
होता नहीँ भरोसा! दो हाथ.
हाँ, हाँ. नहीँ है सपना.
मेरा प्यारा प्यारा हाथ! गीला है हाथ.
पोँछ दो! – ख़ून से सना है यह हाथ.
हे भगवान! किस पर उठा यह हाथ?
म्यान मेँ डाल लो तलवार.
माँगती हूँ भीख फैला कर हाथ.
फ़ाउस्ट
होनी थी! हो कर रही.
काटती है तुम्हारी हर बात.
मार्गरेट
नहीँ, नहीँ! जीना है तुम्हेँ मेरे बाद.
मैँ बताती हूँ –
कैसे बनाना हमारी समाध.
तुम्हेँ माननी है मेरी यह बात.
कल ही कर डालना यह काम.
सब से पहले चुनना – सब से अच्छी थाँह.
मेरी माँ को देना – सब से अच्छी थाँह.
उस के बिलकुल पास वाली थाँह – लेगा मेरा भाई.
और सुनो, उस से कुछ दूर,
लेकिन नहीँ बहुत दूर,
लिटाना मुझे. और, हाँ, मेरा नन्हा –
पियेगा मेरा दाहिना दूध.
और कोई नहीँ
और कोई नहीँ होगा मेरे पास.
लेटना तुम्हारे पास
कभी थी मेरी आस,
मेरा सुख, मेरा सब कुछ.
अब खो गया है सब कुछ.
अजनबी से बन गए हो तुम.
मैँ भी नहीँ आ पाती तुम्हारे पास.
फिर भी वही हो तुम
मेरे अपने, मेरे सपने.
मेरे घोर अंतर्तम के अभिलाषी.
फ़ाउस्ट
मैँ हूँ – मानती हो तुम. चलो बाहर.
मार्गरेट
बाहर! कहाँ?
फ़ाउस्ट
मुक्ति है जहाँ…
मार्गरेट
क्या समाधि है वहाँ? मौत है वहाँ?
तो चलो बाहर मिलता हो जहाँ
अनंत विश्राम…
वरना नहीँ रखूँगी एक भी क़दम.
जा रहे हो, हेनरिख!
काश, चलती मैँ भी -
फ़ाउस्ट
चलो, चलो! तुम भी. खुला है द्वार.
मार्गरेट
छोड़ नहीँ सकती मैँ कारागार.
बेकार है आस. भागना है बेकार.
माँगना दो कौर, भटकना दर दर, खाना ठोकर,
अपराध का बोझ हर दम रखना सिर पर.
बेकार है पराए देस मेँ सड़ना.
फिर भी है – क़ानून के हाथ मेँ पड़ना.
फ़ाउस्ट
तो नहीँ जाता मैँ भी.
मार्गरेट
जल्दी! जल्दी! दौड़ो.
नन्हे को बचा लो. ऊपर, पर्वत के पार…
नदी वाली घाटी मेँ.
हाँ, वहाँ, उस लट्ठे के पार…
पेड़ोँ के झुरमुट मेँ –
नीली झील के जल मेँ –
वहाँ… घाट के छोर पर…
पकड़ लो. उठा लो.
हाँ. हाँ. डूबा नहीँ.
मारता है हाथ पैर. देखो!
बचा लो. बचा लो.
फ़ाउस्ट
बहक रही हो तुम.
बस, एक क़दम… आज़ाद हो तुम.
मार्गरेट
काश, कर लेँ हम वह पर्वत पार.
वह मेरी माँ! बैठी है शिला पर.
काँप उठती हूँ मैँ.
वह – मेरी माँ! बैठी है शिला पर
भारी है उस का सिर.
हिलती डुलती नहीँ वह.
बैठी है गुम मथान.
दुखता है उस का सिर.
सोई है बड़ी देर से
नहीँ जागेगी अब एक भी बार.
सोती रही, सोती रही –
हम कर रहे थे प्यार!
भोग रहे थे सुख संसार!
फ़ाउस्ट
बेकार है विनती, बेकार मनुहार.
उठाना पड़ेगा तुम्हेँ ले जाने को उस पार.
मार्गरेट
छोड़ दो! मत करो ज़ोर.
पकड़ो मत, तुम्हारे हाथ हैँ कठोर.
इस के सिवा मैँ ने मानी हर बात.
फ़ाउस्ट
लो चमक उठा दिन. प्रभात की कोर.
मार्गरेट
दिन! निकल आया दिन! उदास है भोर.
आज! आज के दिन होना था ब्याह.
किसी से मत कहना
पहले ही पा चुके थे तुम ग्रेचन.
बिखर गया मेरा सिंगार.
होनी थी. हो कर रही.
नहीँ होना था हमारा ब्याह.
फिर मिलेँगे हम – कहीँ दूर, कहीँ और.
बढ़ने लगी भीड़. न हँसी, न शोर.
भर गया आँगन.
उमड़ पड़ी गैल.
बज उठे घंटे!
लो! तोड़ दी क़लम.
पकड़ लिया मुझे.
जकड़ दिए बंधन.
वेदी पर रख दी गरदन.
चमक रहा है गँडासा – गिरेगी गाज.
समाधि के जैसा – शांत है संसार!
फ़ाउस्ट
दिन क्या निकला, हो गया खेल तमाम.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (बाहर दिखाई देता है – )
चलो! नहीँ तो हो जाएगा काम तमाम.
छोड़ो जनानी बड़बड़
चटर पटर भड़भड़.
रात रही है बीत,
डर से काँप रहे हैँ जादुई घोड़े.
मार्गरेट
यह कौन उठा? पाताल से, गहरे से…
वह? वह! भेज दो उसे!
आज क्या चाहिए उसे?
वह! लेने आया है मुझे…
फ़ाउस्ट
कुछ नहीँ होगा तुम्हेँ.
मार्गरेट
मेरे रक्षक हैँ भगवान.
लो मेरा समर्पण, भगवान.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
चलो! चलो! छोड़ो इसे.
नहीँ तो छोड़ दूँगा मैँ तुम्हेँ और इसे.
मार्गरेट
परम पिता, तुम्हारी हूँ मैँ.
आओ, प्रकाश के दूत, आओ, आओ!
आओ. बचाओ, बचाओ…
हेनरिख! तुम से काँपता है मेरा मन.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
हो कर रहेगा इस का पतन.
आकाशवाणी
हो गया इस का उद्धार.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (फ़ाउस्ट से – )
यहाँ, इधर, मेरे पास.
(फ़ाउस्ट के साथ अंतर्धान होता है.)
आवाज़ (भीतर से मरती हुई – )
हेनरिख! हेनरिख!
(वातावरण मेँ आवाज़ गूँजती रहती है. कहीँ कोई नहीँ है.)
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