फ़ाउस्ट – भाग 1 दृश्य 19 – रात

In Culture, Drama, Fiction, History, Poetry, Spiritual, Translation by Arvind KumarLeave a Comment

 

 

 


फ़ाउस्ट – एक त्रासदी

योहान वोल्‍फ़गांग फ़ौन गोएथे

काव्यानुवाद -  © अरविंद कुमार

१९. रात

मार्गरेट के द्वार के सामने.

मार्गरेट का सिपाही भाई वैलंटाइन.

वैलंटाइन

सब साथी मिलते गाते

हँसते सब शोर मचाते

नारी जन के गुण गाते

अपने करतब के ढोल बजाते

 

सुन उन की फ़तहोँ के क़िस्से

मैँ मन ही मन मुस्काता

हाथोँ मेँ जाम उठाता

बड़े गर्व से कहता –

 

सब ढोल बजाओ अपने

धरती की सारी लड़की

मेरी बहना ग्रेचन के

आगे भरती हैँ पानी.

 

सहमत हो कर सब कहते

सच्ची है इस की कथनी

सब ग्रेचन के गुण गाते

सब ज़ोर ज़ोर से गाते –

 

ग्रेचन नारी का – गौरव!

ग्रेचन सर्वोत्तम नारी!

फीकी पड़ जातीँ उन की

नज़रोँ मेँ सारी नारी.

 

अब? – मैँ बालोँ को नोचूँ

मैँ धरती पर सिर पटकूँ.

हर लुच्चा और लफंगा

देता अब मुझ को ताने.

 

हर तरफ़ बरसते ताने.

शीश झुकाना पड़ता.

कितना ही मैँ झगड़ूँ

सच्चे हैँ उन के ताने –

 

(फ़ाउस्ट और मैफ़िस्टोफ़िलीज़ मंच पर आते हैँ.)

कौन है? कौन… कौन हो?

लगते हैँ दोनोँ ग्रेचन के दीवाने…

निकला वही,

तो मुश्किल है इस का जीना.

चाक चाक कर दूँगा इस का सीना!

फ़ाउस्ट

गिरजाघर का दीपक – जलता है दिन राती

जब घिरता घोर अँधेरा – मद्धम पड़ती है ज्योति

अंधकार से डर कर – कंपित है मेरा मन भी.

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

लेकिन मैँ? मैँ मदमाते बिल्ले सा

अंधकार मेँ चलता – दीवारोँ पर चढ़ता.

जो कुछ भी कुटिल कलुषित – मैँ उस पर ही जीता.

 

है अंगोँ मेँ नव जीवन…

बस, दो दिन हैँ बाक़ी – होगी उत्सव की राती

होगा पिशाच का मेला – आनंद भोग का मेला…

फ़ाउस्ट

उत्सव मेँ सचमुच होगा वह सब

जो तू मुझे बताता रहता?

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

शांत! ठहरो! धीरज रखो!

लो, दिख गया गड़ा ख़ज़ाना

मन ही मन मैँ ने झाँका.

वह रही – चमचम करती मंजूषा!

फ़ाउस्ट

है उस मेँ कोई आभूषण?

आरसी? कोई अँगूठी, छल्ला?

ग्रेचन को पहना दूँ?

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

हाँ, कुछ दिखता तो है.

हूँ! सुंदर मणियोँ की माला…

फ़ाउस्ट

चलो कुछ तो है. रीते हाथोँ

अच्छा नहीँ ग्रेचन के पास जाना.

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

क्या पड़ता है अंतर?

क्या करना है क़ीमत दे कर?

जब माल मिले मुफ़्ती मेँ!

सुंदर सितारोँ की इस रात –

हो जाए संगीत की सौग़ात.

गाऊँगा अभिसार का गीत.

हो जाएगी ख़ुश – सुनेगी जब गीत.

(गाता है.)

कैथरीन, प्यारी!

सुन, कैथरीन प्यारी,

प्यार की मारी!

 

होने वाला है भिनसार

रुक मत, प्यारी

साजन के द्वार

 

साजन है छलिया

करेगा मनुहार

प्यारी बलैयाँ

वादे लच्छेदार

 

जाएगी भीतर

तू कन्या कुँवारी

आएगी बाहर

रहेगी ना कुँवारी

 

ठहर मत द्वार

चली जा तू दूर

मान मेरी बात

रह लालच से दूर

 

सताता है प्यार

सताने दे प्यार

उठाने से पहले साए का पल्ला

पहन के रहियो शादी का छल्ला

 

कैथरीन, प्यारी!

सुन, कैथरीन प्यारी,

प्यार की मारी!

ओ प्यार की मारी!

वैलंटाइन (आगे बढ़ कर टोकता है – )

किस के लिए है यह गीत?

तो… तुम हो – चिड़ीमार! औरतबाज़!

भाड़ मेँ जाए तुम्हारा इतराना, गाना बजाना…

(हमला करता है.)

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

टूट गया मेरा तार!

वैलंटाइन

और अब तेरी खोपड़ी

कर दूँगा दोफाड़!

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

डटे रहो! डाक्टर! जल्दी!

खड़े मत रहो – निकालो तलवार!

मैँ करूँगा पैँतरेबाज़ी – तुम करो वार.

वैलंटाइन

तो ले! ले, सँभल!

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

         ले!

वैलंटाइन

                यह ले!

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

                        और यह!

वैलंटाइन

तेरी तलवार मेँ है शैतान.

मेरा हाथ! टूट गटा मेरा हाथ!

मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (फ़ाउस्ट से – )

घोँप दो! मारो!

वैलंटाइन (गिरता है.)

         हे भगवान!

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

पिद्दी बन गया फ़ौजी जवान!

जल्दी करो! भागो! ठहरो मत!

अभी मच जाएगा शोर – ख़ून! ख़ून!

पुलिस से बच निकलना है आसान!

फाँसी के फंदे पर झूलना है भारी.

मार्था (खिड़की से – )

आओ! दौड़ो!

मार्गरेट (खिड़की से – )

रोशनी! मशाल!

मार्था

लड़ाई! तकरार! मारपीट!

लोग

मर गया बेचारा!

मार्था (आती है – )

किधर गए – खूनी, हत्यारे?

मार्गरेट (आती है – )

कौन है बेचारा?

लोग

तेरी माँ का जाया!

मार्गरेट

हे भगवान! बचाओ!

वैलंटाइन

चुप कर! क्योँ मचा रही है शोर!

सुन! सुन मेरा कहना…

(सब उस के आसपास इकट्ठा हो जाते हैँ – )

सुन! ग्रेचन! मेरी बहना.

कमसिन है तू! भोली भाली है तू.

नहीँ जानती दुनिया के छलछंद.

तेरा हर काम पड़ा है उलटा!

सुन, कान मेँ सुन!

जब तू हो ही गई है छिनाल!

समझ बूझ से कर धंधा पेशा!

मार्गरेट

भैया! क्या कहते हो! हे भगवान…

वैलंटाइन

रहने दे भगवान को – भगवान के धाम.

जो होना था हो चुका – चलता ही रहेगा संसार.

गुपचुप कर लिया तू ने – पहला ख़सम.

अब लग जाएगी – दर पर भीड़!

दर्जनोँ भोगेँगे तुझे – भोगेगा सारा गाँव.

 

लांछन जब घुस आता है बिस्तर मेँ,

तो ग़ैरोँ से छिपाते हैँ हम –

रात की चादर तान लेते हैँ हम.

पाप को छिपाते हैँ हम.

चाहते हैँ कर देँ पाप का काम तमाम.

लेकिन पाप बढ़ता है दिनो दिन – खुले आम

जैसे जैसे बिगड़ती जाती है रंगत

छूटती जाती है हया और शर्म.

 

दिखाई दे रही है मुझे वह घड़ी, वह दिन –

तुझ से दूर भागेगा हर भला इनसान, पापिन!

छिनाल! भागेँगे सब तुझ से दूर.

समझेँगे तुझे सड़ती लाश बदबूदार.

लोग नहीँ मिलाएँगे तुझ से नैन,

ना तेरा पाप कचोटेगा तेरा मन.

 

नहीँ चढ़ेगी तू विवाह की वेदी पर…

नहीँ मिलेगा एक पल हर्ष उल्लास…

दुबकेगी अँधेरे कोनोँ मेँ विपदा की मारी…

छिपती फिरेगी जहाँ होते हैँ कोढ़ी भिखारी…

क्षमा कर भी दे तुझे भगवान

तू भोगेगी जीवन भर अभिशाप.

मार्था

कुफ़्र से डर – भगवान के बंदे.

दे रहा है शाप मरते मरते.

वैलंटाइन

चुप कर, कुटनी! पाप की दूती!

नहीँ है ताक़त – कर देता बोटी बोटी.

तेरी हत्या का पाप क्षमा कर देँगे भगवान.

मार्गरेट

मेरे भैया! इस से बढ़ कर

क्या होगी नरक की पीड़ा?

वैलंटाइन

मत बहा टसुए. तू ने त्याग दिया सम्मान.

मौत की घाटी मेँ मिलेगा मुझे आराम.

कर दिया तू ने ख़ंजर – जिगर के पार!

सिपाही हूँ मैँ, रहा मरते दम तक सिपाही.

(मरता है.)

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