फ़ाउस्ट – भाग 1 दृश्य 16 – मार्था का उपवन

In Culture, Drama, Fiction, History, Poetry, Spiritual, Translation by Arvind KumarLeave a Comment

 

 

 


फ़ाउस्ट – एक त्रासदी

योहान वोल्‍फ़गांग फ़ौन गोएथे

काव्यानुवाद -  © अरविंद कुमार

१६. मार्था का उपवन

मार्गरेट. फ़ाउस्ट.

मार्गरेट

वचन दो, हेनरिख.

फ़ाउस्ट

जो कुछ भी है मेरे बस मेँ.

मार्गरेट

कहो, धर्म पर क्या हैँ तुम्हारे विचार?

तुम हो सीधे सच्चे इनसान

लेकिन धर्म मेँ नहीँ है तुम्हारा ध्यान.

फ़ाउस्ट

मत उठाओ, बालिके, यह प्रश्न.

तुम जानती हो – सच्चा है मेरा प्रेम.

प्रेम की वेदी पर दे सकता हूँ जान.

धर्म? मैँ बस यही कह सकता हूँ. – धर्म –

हर आदमी का अपना विश्वास और कर्म

और उन पर चलने का अधिकार.

मार्गरेट

फिर भी – कोई तो होना चाहिए पंथ – धर्म.

फ़ाउस्ट

सच?

मार्गरेट

    काश, समझा पाती तुम्हेँ यह मर्म…

तुम पूजन अर्चन मेँ नहीँ हो गंभीर.

फ़ाउस्ट

मैँ करता हूँ इन का आदर.

मार्गरेट

लेकिन पूरा नहीँ.

बताओ कब किया था तुम ने गिरजाघर मेँ पश्चात्ताप?

पिछली बार कब सुना तुम ने पादरी का धर्मालाप?

है तुम्हेँ ईश्वर मेँ विश्वास?

फ़ाउस्ट

कौन है जो कह सकता है

मुझे है ईश्वर मेँ विश्वास?

किसी भी पुजारी पादरी से पूछो

करेँगे वे शब्दोँ से खिलवाड़.

यह होगा प्रश्नकर्ता का उपहास.

मार्गरेट

तो तुम्हेँ नहीँ है विश्वास?

फ़ाउस्ट

बालिके!… समझो मेरी बात.

क्या मानव धार सकता है ईश्वर का नाम?

कौन है जो बलपूर्वक कर सके ईश्वर मेँ विश्वास का ज्ञापन!

और कौन है इतना ज्ञानी जो कह सके

नहीँ है उसे ईश्वर मेँ विश्वास?

वह सब का पोषक, सब का आधार,

क्या नहीँ धार रखा उस ने

तुम्हेँ, मुझे और अपना आप?

नहीँ है हमारे सिर पर आकाश?

धरती नहीँ है हमारे पैरोँ का आधार?

नहीँ निकलता अनश्वर तारा मंडल हर रात?

नहीँ फेँकता हम पर वह किरणोँ की सौग़ात?

जब डालते हैँ हम तुम नयनोँ मेँ नयन

तो उफनती नही हमारे तन मेँ सृष्टि की सिहरन?

क्या है यह –

रहस्योँ से परिपूर्ण ताना बाना –

जितना जाना समझा देखा पहचाना,

उतना ही अनदेखा अनबूझा अनपहचाना?

तो भर लो अपने आप को, अपने मन को,

कल्याण की अनंत संपदा से.

हो जाने दो सुख की जनुभूति से सराबोर.

फिर चाहे जो भी दो इस को नाम!

सुख! सौंदर्य! प्रेम! भगवान!

लेकिन मैँ नहीँ जानता एक भी ऐसा नाम

जो मैँ दे सकूँ इस को.

जो कुछ है, तो है बस एक अनुभूति.

क्या है नाम? बस, क्षणभंगुर आवाज़.

एक तुहिन कण जिस मेँ छिप जाता है स्वर्ग दैदीप्यमान.

मार्गरेट

यह सब सुनने मेँ लगता है अच्छा.

तुम्हारे शब्द और हैँ,

पादरी जो देते हैँ उपदेश

उस का भी यही है सारांश.

फ़ाउस्ट

बात है वही, भिन्न होती है सब की भाषा.

मार्गरेट

ऐसे कहो, तो सब कुछ लगता है ठीक.

पर लगता है कहीँ कुछ कमी है, कुछ ग़लत है.

तुम्हारा नहीँ है ईसा का धर्म.

फ़ाउस्ट

प्रियतमा मेरी, बालिके!

मार्गरेट

कई बार मुझे होता है बड़ा खेद…

मुझे नहीँ भाता तुम्हारा साथी.

फ़ाउस्ट

लेकिन क्योँ?

मार्गरेट

                                पता नहीँ क्योँ?

वह – जो रहता है हरदम तुम्हारे साथ –

भीतर ही भीतर मुझे नहीँ सुहाता एक दम.

पहले कभी किसी और से नहीँ काँपा मेरा मन.

फ़ाउस्ट

प्रियतम, उस मेँ नहीँ है कोई डरने की बात.

मार्गरेट

वह होता है – तो लहू जम जाता है मेरा.

संसार मेँ हर कोई लगता है मुझे अपना.

रहना चाहती हूँ मैँ तुम्हारे साथ लगातार.

लेकिन जैसे ही होता है वह नमूदार

काँप जाती हूँ मैँ भीतर ही भीतर.

लगता है – वह पूरा लुच्चा लफंगा.

क्षमा करे भगवान! मैँ क्योँ करूँ किसी की निंदा.

फ़ाउस्ट

संसार मेँ होते हैँ भाँति भाँति के लोग.

मार्गरेट

ऐसोँ के साथ रह नहीँ सकती मैँ!

जैसे ही आता है वह चौखट पर

दिखाई पड़ता है उस की आँखोँ मेँ तिरस्कार

काटता छेदता सा उपहास.

उस जैसोँ के मन मेँ नहीँ जागता अपनापन.

उस के मस्तक पर लिखा है –

संसार मेँ किसी से नहीँ कर सकता वह प्रेम.

तुम्हारी बाँहोँ मेँ मिलता है ढारस,

खुलापन, निश्छल विश्वास…

उस के आते ही मन को जकड़ लेता है

जाने कैसा कँटीला बंधन.

फ़ाउस्ट

                     तुम देवी हो.

होती रहती हो कल्पित चिंताओँ से परेशान.

मार्गरेट

राह मेँ दिख भी जाता है वह –

तो तुम्हारे लिए जो भी है मन मेँ आकर्षण,

वह सब होने लगता है क्षीण.

वह होता है, तो कर नहीँ पाती मैँ ईश्वर का ध्यान.

इस से हो जाती हूँ मैँ बेहद परेशान.

हेनरिख! होता होगा तुम्हारा भी ऐसा ही हाल!

फ़ाउस्ट

चिढ़ हो गई है तुम्हेँ.

मार्गरेट

जाना है मुझे…

फ़ाउस्ट

क्या कभी नहीँ मिलेँगे हमेँ – एकांत के क्षण –

सो जाऊँ तुम्हारे वक्ष पर रख कर मस्तक…

देखता रहूँ… बस, देखता रहूँ तुम्हेँ…

मिल जाएँ एक दूसरे मेँ – हमारे तन और मन…

मार्गरेट

काश, रातोँ मेँ मैँ सोती अकेली –

छोड़ देती खुला द्वार!

लेकिन माँ? जल्दी ही जाती है जाग.

उस ने देख लिया तो – लाज से मर जाऊँगी तत्काल.

फ़ाउस्ट

प्रियतमे, डरो मत!

लो – यह शीशी. तीन बूँद, बस, तीन बूँद, पिला देना.

सो जाएँगी गहरी नीँद…

मार्गरेट

तुम्हारे लिए कर सकती हूँ मैँ सब कुछ.

लेकिन… इस से… बिगड़ेगा तो… नहीँ कुछ?

फ़ाउस्ट

तो फिर देता मैँ तुम्हेँ यह कुछ?

मार्गरेट

तुम्हेँ देखती हूँ… होश खो बैठती हूँ सब कुछ.

करने लगती हूँ – तुम कहते हो जो कुछ.

कर चुकी हूँ इतना – अब बचा ही है कितना?

(जाती है.)

(मैफ़िस्टोफ़िलीज़ आता है.)

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

चली गई बंदरिया!

फ़ाउस्ट

कर रहा था ताक झाँक!

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

सुना है मैँ ने आरंभ से अंत तक – सब कुछ.

महाविद्वान फ़ाउस्ट को दिए जाते सुना प्रवचन.

कितना अच्छा लगता है औरतोँ को

जोतना मर्दोँ को नैतिकता के जूए मेँ…

वे समझती हैँ जो सह सकता है धर्म का बोझ

वह शौक से उठाएगा औरतोँ का बोझ.

फ़ाउस्ट

अरे कुटिल शैतान! नहीँ दिखता तुझे –

वह है निष्पाप, निष्कलंक, भोली भाली कली.

धर्म और पुण्य मेँ आस्था है उस की,

जानती है इन्हीँ से मिलेगी उसे सुख और शांति.

उसे लगता है उस के प्रेम मेँ है कहीँ पाप.

दुखी है, पीड़ित है वह. काँप रही है उस के मन की कोर कोर.

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

तुम हो – तन मन से वासना की टोकरी…

नकेल खीँच रही है बित्ता सी छोकरी!

फ़ाउस्ट

शैतान – ! नरक की नाली मेँ जनमा हैवान!

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

छल और छलावे की है उसे गहरी पहचान.

मैँ होता हूँ पास तो होती है – मन मस्तिष्क मेँ सिहरन!

काँपने लगता है तन मन!

मेरे मुखौटे से उसे नज़र आता है कपट, छल!

समझती है मैँ हूँ पाप का अग्रदूत, नराधम!

आज का रहेगा क्या कार्यक्रम?

फ़ाउस्ट

तुझ से क्या?

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

पाऊँगा मैँ भी रस भोग…

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