|
|
फ़ाउस्ट – एक त्रासदी
योहान वोल्फ़गांग फ़ौन गोएथे
काव्यानुवाद - © अरविंद कुमार
१५. मार्गरेट का कमरा
अकेली मार्गरेट – चरखा कातते कातते गा रही है.
आवत नाहिँ चैन
पिया बिन आवत नाहिँ चैन
हिया मेँ करक रही है कोर
उमर भर का लागा है रोग
अब रहना है बेचैन
गए कहाँ चितचोर
टूटन लागी जीवन डोर
सूखन लागे दो नैन
दिन रैन रहूँ बेचैन
राह तकूँ दिन रैन
पिया बिन आवत नाहिँ चैन
घूमूँ गली गली बेचैन
भटकूँ कुंज कुंज बेचैन
सूने हैँ मोरे नैन
हँसते थे, खिलते थे फूल
थी नयनोँ मेँ तारोँ की धूल
था मधुर अधर का चुंबन
था बाँहोँ मेँ मादक चैन
अब अंग अंग बेचैन
आज सजन मोहे अंग लगा लो
प्यासे अधरोँ से अधर मिला लो
बाँहोँ मेँ मूँदूँ नैन
उड़ेँ प्राण, मिले चैन
पाऊँ अंतहीन मैँ चैन
Comments