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फ़ाउस्ट – एक त्रासदी
योहान वोल्फ़गांग फ़ौन गोएथे
काव्यानुवाद – © अरविंद कुमार
६. चुड़ैलोँ की रसोई
चूल्हे पर बड़ा देगचा चढ़ा है. उस से उठती भाप मेँ कई आकृतियाँ दिखाई देती हैँ. एक बंदरिया बैठ कर देगचे मेँ कलछा चला रही है, ताकि उबाल बह न निकले. पास ही बड़ा बंदर और छोटा बंदर बैठ कर हाथ ताप रहे हैँ. छतोँ से और दीवारोँ से जादुई काढ़े बनाने के विचित्र आकार वाले बरतन लटके हैँ.
फ़ाउस्ट और मैफ़िस्टोफ़िलीज़.
फ़ाउस्ट
जादू टोना, जंतर मंतर, चुड़ैलोँ के टोटके…
नहीँ हैँ मुझे स्वीकार.
मैँ! मैँ? भोगूँगा यह कचरा, यह बकवास!
उम्र से घटाने को तीस साल?
फिर से पाने को खोई जवानी?
आ गई यह नौबत – डाक्टर फ़ाउस्ट
पिएगा चुड़ैलोँ के काढ़े कड़वे?
बुढ़ापे का नहीँ है तुम्हारे पास कोई और उपचार?
मेरी तो आशा थी
होगा क़ुदरत की झोली मेँ
यौवन फिर पाने का कोई और भी साधन.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
ग़लत नहीँ थी वह आस –
क़ुदरत के पास हैँ ढेरोँ उपाय.
मिल सकता है यौवन वापस –
पर वह है एक अलग अध्याय…
फ़ाउस्ट
तो बताओ मुझे यह उपाय.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
ठीक है, कोई क्योँ करे जादू टोना?
क्योँ दे डाक्टरोँ को फ़ीस?
जाइए बाहर – मैदान मेँ दौड़िए, भागिए,
लगाइए उछाल
चलाइए कुदाल.
अफ़रातफ़री से दूर
समाज की रौनक़ोँ से दूर
बिताइए सात्त्विक जीवन
खाइए सात्त्विक आहार.
रहिए जैसे रहते हैँ डंगर
जाइए खुले मेँ दिशा मैदान.
अपनाइए ये विविध विधान –
अस्सी मेँ भी दिखेँगे आप
पूरे ठनाठन नौजवान!
फ़ाउस्ट
यह सब नहीँ किया मैँ ने जीवन भर.
शारीरिक श्रम से रहा हूँ मैँ बहुत दूर -
अब नहीँ बनना है मुझे गँवार!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
इसी लिए तो आए हैँ हम
चुड़ैलोँ के अड्डे पर!
फ़ाउस्ट
क्या करेगी बूढ़ी खूसट चुड़ैल!
तुम नहीँ बना सकते उन के जादुई तेल?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
यह होगा मेरे बाएँ हाथ का खेल!
लेकिन इन कामोँ मेँ लगती है देर –
तब तक हम उड़ कर जा सकते हैँ दूर.
ज्ञान और कला नहीँ हैँ काफ़ी.
इस मेँ दरकार है धीरज काफ़ी –
लगन से घंटोँ घोटो –
तो पकेगी यौवन की घुट्टी.
हरएक के बस मेँ नहीँ है जो जाने –
इस मेँ पड़ते हैँ सैकड़ोँ मसाले.
इन्हेँ जो मिला है ज्ञान –
वह सारा शैतान का है विधान.
लेकिन यह सब बनाना –
नहीँ है शैतान का काम.
(बंदरोँ को देखता है – )
कितने सुंदर वानर हैँ प्यारे.
हुकम की बेगम, चिड़ी के ग़ुलाम,
वाह, मेरे प्यारे – छक्के चिड़ी के,
कहाँ है बेगम – ख़ाला तुम्हारी?
सब बंदर
उड़ गई फुर्र
चिमनी के पार – दूर दूर दुर्र!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
लौटेगी कब तक?
सब बंदर
पंजे हमारे सिँकते हैँ जब तक.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (फ़ाउस्ट से -)
कैसे लगते हैँ ये पशु प्यारे!
फ़ाउस्ट
घिनौने!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
सच, आप ने देखी है दुनिया
बड़ी बड़ी संगत – बड़ी बड़ी संसद…
क्या है अंतर – उस मेँ और इन मेँ?
(बंदरोँ से – )
बोलो, मेरे प्यारे,
क्या घुट रहा है चुड़ैल के घर मेँ?
सब बंदर
कहीँ की जड़ी – कहीँ का बूटा
इस का करकट – उस का जूठा
भानमती ने काढ़ा घोटा…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
बड़ा बिकाऊ है माल!
बड़ा बंदर (मैफ़िस्टोफ़िलीज़ के पास आ कर लुभाते हुए – )
आओ, फेँको पाँसा – देना मत झाँसा.
फेँको रुपया पैसा – सीधा पड़वा दो पाँसा.
दुनिया नहीँ है सुखोँ की खीर.
मिल जाए जो मुझ को दौलत
सुधरेगी दिमाग़ की हालत.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
हर सीधा सादा बंदर
चलाना चाहता है लाटरी का चक्कर.
(इस बीच छोटे बंदर एक बड़ी गेँद से खेलने लगे थे. अब वे उस गेँद को आगे धकेल देते हैँ.)
बड़ा बंदर
हो! बम बम बम भोला
दुनिया है गोला
गोलमाल ढोल पोल, प्यारे
हो! बम बम बम भोला
लो इस को उठाया
लोे उस को गिराया
हार जीत ऊँच नीच, प्यारे
गोल गोल झूल! झूल! प्यारे
हो! बम बम बम भोला
हीरे की दुनिया
काँच की है गुरिया
ठेस लगी – चूर! चूर! प्यारे
हो! बम बम बम भोला
जो दिखता है जीवन
है माया का दर्पण
दूर! रहो दूर! दूर! प्यारे
हो! बम बम बम भोला
सुनो संतोँ का कहना
सब को है मरना
उड़ेगी धूल! धूल! प्यारे
हो! बम बम बम भोला
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
क्या है ये छलनी?
बड़ा बंदर (छलनी उतारता हुआ – )
इसे कहते हैँ चोर-पकड़नी.
करोगे चोरी – पकड़ेगी छलनी.
(बंदरिया के पास जाता है. उसे छलनी मेँ से झँकवाता है – )
छलनी मेँ झाँको – पहचानो चोर
न हो हिम्मत – तो मत लो नाम
घूमेगी छलनी – दिखा देगी चोर…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
क्या है यह हाँडी?
दोनोँ बंदर
मूरख पाजी!
जानता नहीँ हाँडी?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
तुम सब हो पाजी…
बड़ा बंदर
लो मक्खी का फटका –
टिका दो अपनी तशरीफ़ का टोकरा.
(मैफ़िस्टोफ़िलीज़ को बैठने का न्यौता देता है.)
फ़ाउस्ट (अभी तक एक दर्पण को देख रहा था. कभी पास जा कर उस मेँ झाँक रहा था, कभी दूर से – )
कैसा यह मायावी दर्पण?
इस मेँ झिलमिल कैसा यह रूप मनोरम?
प्रेम, स्वप्न के पंख लगा दे मुझ को
उड़ूँ जहाँ यह रूप मनोहर…
साहस है क्या मुझ मेँ इस नश्वर काया को तज कर
जाऊँ उस लोक जहाँ
झिलमिल करता यह रूप मनोरम?
सघन तुहिन जाल झिलमिल अवगुंठन
से चुंबित नारी मुखमंडल अनुपम.
ज्योति कणोँ का पहन आवरण
अधलेटी सी तुम – क्या हो?
सपना हो, माया हो?
मनोलोक की आदर्श कल्पना – सुंदर रूपम
हो सकती है क्या साकार सरूपम?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
हाँ, हो सकती है, ज़रूर हो सकती है…
दिव्य चितेरा छह दिन तक लग कर
गढ़ता है थक कर…
देखो, जी चाहे जितना देखो छक कर…
आँखोँ की नेमत कायाएँ सुंदर –
बिखरी हैँ लाखोँ धरती पर…
घर ले आओ कोई भी चुन कर.
(फ़ाउस्ट दर्पण को निहारता रहता है. मैफ़िस्टोफ़िलीज़ अपनी अनोखी सीट पर पसरता है. हाथ मेँ मक्खी का फटका है, उस से खेलता बोले जा रहा है.)
मेरे नीचे सिंहासन – हाथोँ मेँ शासन
बस, एक कमी है – मुकुट नहीँ है…
सब बंदर (अब तक वे तरह तरह की हरक़तेँ कर रहे थे. वे एक मुकुट ले आते हैँ और ज़ोर ज़ोर से बोलते हैँ – )
लेँ मुकुट
शीश पर कर लेँ धारण.
ख़ून पसीने से
कर देँ चमचम चमचम.
(वे ठोकर खा कर गिरते हैँ, मुकुट के दो टुकड़े हो जाते हैँ. उन्हेँ हाथोँ मेँ लिए नाचते गाते हैँ.)
चलो! टूट गया!
टूटना था! टूट गया!
टूट गया! टूट गया!
फ़ाउस्ट (दर्पण के सामने – )
चकरा रहा है मेरा सिर…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
फट जाएगा मेरा भी सिर…
सब बंदर
लग गया तुक्का
हमारा काम पक्का
विचारोँ मेँ तुक्के लगाते हैँ हम
यही है हमारा महानतम चिंतन
फ़ाउस्ट (दर्पण के सामने – सपनोँ के लोक मेँ)
देखा कैसा सुंदर रूप मनोहर
भटक रहा है मेरा चेतन मन.
चलो, पहुँचें हम जल्दीे..
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (अपनी धुन मेँ – )
समालोचक हैँ सच्चे –
ये कविता के बच्चे.
एक बात है बिलकुल साफ़ –
ये हैँ आज के शायर बेकार…
(बंदर अब देगची की ओर ध्यान नहीँ दे रहे थे. उस मेँ उबाल आ जाता है. उबाल मेँ से आग भड़क उठती है, और चिमनी से ऊपर की ओर जाती है. उस ज्वाला पर उतरती है चुड़ैल, ज़ोर की चीख़ के साथ…)
चुड़ैल
आँ! ऊँ! फूँ फाँ फूँ!
पाजी सूअर कहीँ के –
जला डाला मुझे! मार डाला मुझे!
कामचोर कहीँ के!
(फ़ाउस्ट और मैफ़िस्टोफ़िलीज़ को देखती है – )
क्या? कौन? कौन हो तुम?
आए तुम क्योँ? आए तुम कैसे?
लो झेलो! सँभालो नरक का शोला!
(देगचे मेँ कलछा डाल कर आग फेँकती है, फ़ाउस्ट, मैफ़िस्टोफ़िलीज़ और बंदरोँ पर.)
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (उस के हाथ मेँ अभी तक मक्खी का फटका था. उसे गदा की तरह घुमा कर काँच के गिलास और बरतन तोड़ता है – )
तोड़म तोड़ – ताड़म ताड़
फोड़म फोड़ – झाड़म झाड़
भड़भड़ भाड़ – ग़ुस्सा झाड़…
खूसट, मुझे नहीँ जानती?
ख़सम को नहीँ पहचानती!
अभी कर दूँगा छू मंतर
तू और तेरे सब बंदर!
मैँ हूँ असुरोँ का राजकुमार!
अभी झाड़ दूँगा तेरे सिर का ग़ुबार.
सिर झुका के कर बात…
क्या पहना है मैँ ने बुरक़ा?
लगा रखा है क्या नक़ाब?
आने से पहले मुझे क्या
पुकारना पड़ेगा अपना नाम?
चुड़ैल
ख़ता हुई है मुझ से, सरकार,
पिलाइए डाट – दीजिए दुत्कार.
लेकिन कहाँ हैँ आप के फटे खुर?
और साथ मेँ नहीँ है काग भुषुंड!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
चल, कर दी तेरी ख़ता माफ़!
मिले हैँ हम बड़ी देर के बाद.
ज़माना बदल गया है बेहिसाब –
आजकल कल्चर का है फ़ैशन.
नई तहज़ीब है – नई पहचान.
पहले लगाते थे शैतान
सिर पर सीँग – बड़े बड़े नाख़ून
पीछे लटकती रहती थी पूँछ.
अब नहीँ रही इस सब की पूछ.
और अब सुनो खुरोँ की तुम बात…
छूट नहीँ सकती वह सौग़ात.
लगा लिए हैँ पैड – ऊपर हैँ शूज़.
बड़े काम की चीज़ हैँ पैड.
हर जगह फ़ैशन मेँ हैँ पैड.
पैड हैँ आज सज्जनोँ की शान –
कोटोँ के कंधोँ की उठान,
नारी के उभार की पहचान…
चुड़ैल (नाचती है – )
मेरी समझ से बाहर है बात.
आए हैँ ख़ुद शैतान! वल्लाह, क्या बात!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
चुप कर, कमज़ात!
अब उपयोग मेँ नहीँ लाते हम यह नाम.
चुड़ैल
क्योँ? क्या बिगाड़ेगा आप का नाम?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
फ़ैशन के बाहर है यह नाम!
बहुत पहले ही लोगोँ ने कह दिया है –
कपोल कल्पना हैँ हम,
सुनी सुनाई बात हैँ हम.
चूड़ैल
इतना कहाँ मुझ बूढ़ी का ज्ञान?
बहुत है – घर आए शैतान!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
पढ़े लिखे लोग और विद्वान
कर चुके शैतान का काम तमाम.
हमेँ कहते हैँ पुरानी
नानी की झूठी कहानी.
जब से हुआ है शैतान का बहिष्कार
ख़ूब है शैतानियत का प्रचार.
चाहे तो कह सकती है
मुझे – श्रीमान मनसबदार.
लेकिन भूल मत मेरा शाही ख़ानदान.
शक है तो देख यह मेरा निशान…
(अश्लील संकेत करता है.)
चुड़ैल
हाँ! हाँ! बिलकुल नहीँ बदले हैँ, सरकार!
पहले जैसे ही हैँ नटखट, परवरदिगार!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (फ़ाउस्ट से – )
दोस्तेमन, देखा आप ने यह तरीक़ा
यह चूड़ैलोँ का सलीक़ा
हँसी ठट्ठा व्यवहार
शैतान का शिष्टाचार?
चुड़ैल
फ़रमाइए, मेहरबान, पेशे ख़िदमत करूँ कौन सा जाम?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
हो जाए तुम्हारे मशहूर शरबते शैतान का जाम.
बरसोँ से घुट रहा है – ख़ूब रम गया होगा.
ढाल दो पैमाना – ऊपर तक भर दो जाम…
चुड़ैल
लीजिए, यह रहा मेरी पसंद का पैमाना
नहीँ है इस मेँ बू का नामो निशान.
पीजिए जी भर कर आप.
(मैफ़िस्टोफ़िलीज़ से अलग – )
लेकिन जो हैँ आप के साथ
आप ने इन्हेँ कर दिया होगा बाहोश बाख़बर होशियार…
वरना ख़तरे मेँ है इन के दुश्मनोँ की जान.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
ये हैँ मेरे ख़ास दोस्त, अहबाब, यार.
ख़ूब जमेगा इन्हेँ यह जाम.
जो कुछ भी है तुम्हारा माल
उस पर है इन का पूरा अधिकार.
खीँच दो चारोँ ओर रेखा –
लबालब भर दो इन का भी जाम.
(चुड़ैल विचित्र हावभाव करती है, घेरा बनाती है, उस मेँ अजीबो ग़रीब सामान रखती है. इस बीच गिलास अपने आप बजने लगते हैँ, बरतन टनटनाते हैँ. उन से संगीत बन जाता है. घेरे मेँ बंदरोँ को चारोँ ओर बैठा कर उन के हाथोँ मेँ मशाल पकड़ाती है. भारी भरकम ग्रंथ लाती है. फ़ाउस्ट को घेरे मेँ आने का संकेत करती है.)
फ़ाउस्ट (मैफ़िस्टोफ़िलीज़ से – )
क्या होगा इस सब तमाशे से
इस अगड़म बगड़म से
जंतर मंतर तंतर से!
पहले भी देखी है मैँ ने यह रसहीन बकवास!
इसे मेँ करता हूँ अस्वीकार…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
बस दिखावा हैँ जादू टोना टोटका जंतर मंतर तंतर.
लेकिन करने से पहले उपचार
यह सब करता है हर एक सच्चा डाक्टर.
(चुड़ैल के फिर से न्यौतने पर फ़ाउस्ट घेरे मेँ आ जाता है.)
चुड़ैल (ग्रंथ मेँ से पाठ सा करती है – )
जंतर मंतर – पाठ पढ़ंतर
गिन गिन गिन – गिन गिन गिन
एक से ले कर – दस तक गिन
दो दोफाड़ – हो तकरार
तीन स्वाधीन – ढम्मक ढीन लंगड़दीन
चार चकार – ले कर अरथी – चलो कहार
पाँंच सरपंच – सब खरपंच
छः छक्का – दो धक्का – दो धक्का
आया सात – छूटा साथ
आठ का पाठ – कर लो याद
नौ है नौकर – सब हैँ चाकर
एकम एक – एक के आगे बिंदी एक
दस! दस! दस! – पूरे दस!
बस! बस! बस! – सब परबस!
फ़ाउस्ट
डोल रही है – इसे हो गया क्या सरसाम?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
झूमते झूमते कर देगी शाम…
रटी पड़ी है मुझे यह पोथी
घंटोँ बैठ कर मैँ ने घोटी.
परदे के पीछे छिपा है –
वह सब जो ज्ञान ने दिया है.
क्या जानेँ मूरख और ज्ञानी?
सदियोँ से लगा है इनसान
पाने को एक और तीन का ज्ञान.
ज्ञान को ढाँपे रहता है अज्ञान
ढोँगी करते रहते हैँ जाप
जंतर मंतर अनर्गल प्रलाप
शीश झुकाए जोड़े हाथ
जनता सुनती रहती है पाठ
धारे मन मेँ गहरा विश्वास
शब्द के पीछे छिपा है ज्ञान…
चुड़ैल
सत्य है महान – ज्ञान है महान
बुद्धि से परे – दुर्लभ है ज्ञान
खोजो मत ज्ञान – प्रकटेगा ज्ञान
फ़ाउस्ट
कैसी बकवास है – यह पागल प्रलाप.
चकरा रहा है सिर मेरा – सुन कर यह जाप.
बंद करो भानमती की पिटारा
चूँ चूँ का मुरब्बा! – शोर सारा.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
बस बस, बहुत हो गया, बस बस.
सिबिल, मेरी प्यारी, मेरी जान, निकाल अब अपना यौवन रस.
भर दे ऊपर तक प्याला.
मेरा जो दोस्त है – पूरा रिंद है,
छका है उस ने जीवन का प्याला,
तेरे रस से नहीँ है कुछ उस का बिगड़ने वाला.
(चुड़ैल पूरे रस्मी तरीक़े से एक प्याले मेँ रस उँडेलती है. फ़ाउस्ट प्याला होँठोँ से लगाता है तो उस मेँ से लपट भड़कती है.)
लो, पी डालो इसे – उलट दो पूरा.
हलक़ मेँ जाएगा – गरमा जाएगा कलेजा.
यह क्या? – करते हो शैतान से यारी!
डरते हो जब ज्वाला करती है भड़कने की तैयारी?
(चुड़ैल घेरे को काटती है. फ़ाउस्ट उस के बाहर निकलता है.)
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
अब रुकना नहीँ है यहाँ – चलो, चलेँ.
चुड़ैल
आशा है रंग जमाएगा मेरा रस.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (चुड़ैल से – )
आ रही है पिशाचोँ के कामोत्सव की रात –
दूँगा तुझे मुँहमाँगी सौग़ात.
चुड़ैल
लो यह मंत्र, करो नित जाप – फिर देखोगे इस का प्रताप.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (फ़ाउस्ट से – )
झिझकते क्या हो? पी डालो!
अब ठहरो मत. चलो! चलो!
आने दो खुल कर पसीना – तन बदन मेँ चुभने दो ख़ार
रोम रोम तक होने दो रस का संचार
भड़कने दो नस नस मेँ वासना की आग.
वक़्त आने पर करना आराम.
अभी तो भरने दो मन को उड़ान…
फ़ाउस्ट
दर्पण! वह दर्पण! देख लेने दो फिर एक बार!
वह रूप की देवी! देख लेने दो फिर एक बार!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
नहीँ, मेरे सरकार, वह रूप है केवल विचार
अभी तो आप को चखना है सजीव मांसल प्यार…
(बड़े मीठे कोमल स्वर मेँ – )
पेट मेँ हो यौवन रस की धार – हर नारी लगती है अप्सरा का अवतार…
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