अक्षय ने देखा तस्वीर के आसमान मेँ पराँठा टंगा था… भूख तो लगी ही थी. उस ने पराँठा पकड़ लिया और एक किनारे से उसे खाने लगा. वह तो सारा ही पराँठा खा जाता कि चाँद परी का ध्यान उधर चला गया. वह खिलखिला उठी. ‘अरे शैतान, छोकरे, तू तो चाँद को ही खाने लगा. पूरा खा जाएगा तो चाँद का क्या होगा? रातेँ सूनी नहीँ हो जाएँगी?’
अब ख़रगोश कहने लगा, ‘अच्छा, यह बताओ… मेरा एक भाई था. उस के बदन पर सलेटी धब्बे थे. कई सालोँ पहले हम मोती बाज़ार गए थे. वहाँ वह कहीँ खो गया. उसे मैँ कहाँ ढूँढूँ?’
तन्वी को दूसरी कक्षा मेँ बहुत अच्छे नंबर मिले थे. छुट्टियाँ हो गई थीँ. वह ढाई बरस के अपने छोटे भैया अक्षय के साथ नाना नानी के घर आ गई— कुछ दिन मज़े करने के लिए. उसे तस्वीरेँ बनाने का शौक़ है. वह कंप्यूटर पर भी तस्वीरेँ बनाती है, और काग़ज़ पर भी. इस लिए साथ मेँ रंगोँ का डिब्बा भी ले आई. मन करता तो नाना जी के कंप्यूटर पर तस्वीरेँ बनाती. उस से ऊब जाती तो काग़ज़ पर क्रेयन से. भैया भी उस की देखा देखी काग़ज़ और रंग ले कर तस्वीरेँ बनाने बैठ जाता. तन्वी को कविता करने का शौक भी है. तस्वीरेँ बनाते बनाते वह ख़यालोँ मेँ खो जाती और तुक मिलाने लग जाती है.
उस दिन तीसरे पहर उस ने एक तस्वीर बनाई — पहाड़, झील, झील के पास होटल का बंगला, और उड़ती तितलियाँ. पिछले साल वे दोनोँ मम्मी पापा के साथ गरमी की छुट्टियोँ मेँ पहाड़ पर गए थे. वहाँ ढेर सारी तितलियाँ थीँ. दस बीस नहीँ, हज़ारोँ — एक साथ उड़ती हुई. तन्वी ने वही तस्वीर बनाने की कोशिश की थी. तस्वीर बनाते बनाते वह वहाँ के ख़यालोँ मेँ खो गई… और पता नहीँ कैसे वह तस्वीर के अंदर चली गई.
कुछ देर तन्वी और अक्षय तितलियोँ के साथ साथ भागते खेलते रहे. उन्हेँ पकड़ते नहीँ थे. पापा ने बता रखा था कि तितलियोँ को पकड़ना नहीँ चाहिए. पकड़ने से वे मर जाती हैँ. खेलते खेलते वे भूल गए कि वे कहाँ हैँ. उन्हेँ यह भी याद नहीँ रहा कि वे नाना नानी के घर आए हैँ.
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शाम हो आई. सूरज डूबने लगा. उस की लाली बड़ी अच्छी लग रही थी. आसमान मेँ जो बादल थे वे सब सुनहरी हो गए. अक्षय उन की ओर उंगली उठाता. पहाडोँ की चोटियोँ पर जो बरफ़ था, वह भी सुनहरी हो गया.
पास ही बहुत सारे ख़रगोश थे. वे आ कर तन्वी और अक्षय के साथ खेलने लगे. उन के राजा का नाम शशा था. वह तन्वी से बोला, जानती हो, वहाँ पर्वतों के ऊपर सोन परी रहती है. ‘उसे बुलाऊँ? सोनपरी आ जा, आ जा…’
शशा ने आवाज़ लगाई. नाचती ठुमकती सोनपरी आ गई. उस ने अक्षय के गालोँ को चूम लिया. अक्षय के गुलाबी गाल सुनहरी हो गए. और तन्वी से कहा, ‘एक पहेली बूझोगी?’
फिर फौरन ही वह पहेली कहने लगी, ‘ध्यान से सुनो. मेरे शब्दोँ मेँ ही पहेली का उत्तर छिपा है. हिमालय बाबा बताते हैँ कि उन के एक बड़े भाई हैँ. कोई कोई जन उन्हेँ सुमेरु भी कहते हैँ. वहाँ जो लोग रहते हैँ, वे सफ़ेद भालू से बहुत डरते हैँ. भालू से बचने के लिए उन्होंने बरफ़ का घर बनाया. वह कमाल का घर था. उस की छत गोल थी. चारोँ तरफ़ एक एक खिड़की थी. सब की सब दक्षिण दिशा मेँ खुलती थीँ. बताओ वह घर कहाँ था? सही सही उत्तर दोगी तो तुम्हें…’
तन्वी कम होशियार नहीँ थी. उस ने तत्काल उत्तर दिया, ‘मुझे कुछ नहीँ चाहिए. लेकिन उत्तर मैँ जानती हूँ. वह उत्तर ध्रुव मेँ रहने वाले एस्कीमो का घर था, और बरफीले उत्तर ध्रुव के ठीक बीचोबीच बना था. वहाँ हिमालय से भी ज़्यादा बरफ़ होती है. जब सूरज निकलता है तो दूर से वह घर सोने का बना दिखाई देता है. वहाँ केवल एक ही दिशा होती है— दक्षिण दिशा. इस लिए उस घर की हर खिड़की दक्षिण दिशा मेँ खुलती है.’
सोनपरी ख़ुश हो गई. उस ने जादू की छड़ी तन्वी के बालोँ से छुआ दी. तन्वी के सारे बाल सुनहरी हो गए, जैसे सोने के तार होँ.
धीरे धीरे अँधेरा हो रहा था. आसमान मेँ तारे निकलने लगे थे. अब शशा ख़रगोश ने पहेली पूछी, ‘तन्वी जी, बताओ तो…
एक थाल मोती से भरा
सब के सिर पर औंधा धरा.’
तन्वी ने झट से उत्तर दिया— ’आकाश.’
अब ख़रगोश कहने लगा, ‘अच्छा, यह बताओ… मेरा एक भाई था. उस के बदन पर सलेटी धब्बे थे. कई सालोँ पहले हम मोती बाज़ार गए थे. वहाँ वह कहीँ खो गया. उसे मैँ कहाँ ढूँढूँ?’
तन्वी कम चालाक नहीँ थी. इस का उत्तर भी वह जानती थी. थोड़ी देर तो उस ने सिर खुजाया, फिर इधर उधर ऊपर नीचे देखा. सब के बाद मेँ उस ने आसमान मेँ चमकते पूरे चाँद को देखा, और बोली, ‘चाँद मेँ — देखो, वह बैठा!’
यह सुनते ही ख़रगोश भाग गया. जाते जाते कहने लगा, ‘बहुत देर हो गई, खेल खेल मेँ कुछ पता ही नहीँ चला…. ‘
तन्वी ने देखा कि सोनपरी भी अब नहीँ थी. वह और अक्षय अकेले रह गए थे.
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अब तक अक्षय थक गया था. वह निढाल सा हो कर तन्वी का सहारा ले कर बैठ गया. तन्वी उसे ले कर होटल के कमरे मेँ जाना चाहती थी. लेकिन कमरे तो थे ही नहीँ. बस बाहर की दीवारेँ थीँ. कमरे तन्वी ने बनाए कहाँ थे, जो होते… तन्वी परेशान सी होने लगी. वह अक्षय को चाँद दिखाने लगी, देख, ‘अक्कू, चंदा, देख, अक्कू, चाँद परी…’
अचानक क्या हुआ कि चाँद मेँ से एक परी निकली. उस के बाल चाँदी के थे, चाँद जैसे सफ़ेद झिलमिल करते कपड़े लहरा रहे थे. वह उन के पास आ गई. वह बोली, ‘मैँ चाँद परी हूँ. मेरे साथ खेलोगे? झूले का खेल?’
उन के जवाब की प्रतीक्षा किए बग़ैर चाँद परी ने किरणों की डोरी का झूला बना दिया. उस मेँ चाँदी का पालना लटका दिया. और अक्षय के साथ साथ तन्वी को भी उस मेँ बैठा दिया. परी गाने लगी—
किरणों की डोरी
चाँदी का झूला
जीजी की गोदी
भैया का झूला
थोड़ी देर तो अक्षय चुप रहा. फिर हँसने लगा. उसे बड़ा मज़ा आ रहा था. इतना अच्छा झूला तो उन के घर के पास वाले पार्क मेँ भी नहीँ था.
झील के पानी मेँ चाँद की किरणें लहरा रही थीँ. चाँद परी ने उन्हेँ नावेँ बना दिया. अक्षय को गोदी मेँ ले कर वह एक नाव मेँ जा बैठी. तन्वी भी उन के साथ थी. वह अपने हाथोँ को चप्पू बना कर नाव खेने लगी. नीचे पानी मेँ मछलियाँ अठखेलियाँ कर रही थीँ. तन्वी और चाँद परी उन से खेलने लगे.
अक्षय ने देखा कि तस्वीर के आसमान मेँ एक पराँठा लटक रहा है. उसे भूख तो लगी ही थी. उस ने पराँठा पकड़ लिया और एक किनारे से उसे खाने लगा. वह तो सारा ही पराँठा खा जाता कि चाँद परी का ध्यान उधर चला गया. वह खिलखिला उठी. ‘अरे शैतान, छोकरे, तू तो चाँद को ही खाने लगा. पूरा खा जाएगा तो चाँद का क्या होगा? रातेँ सूनी नहीँ हो जाएँगी?’
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उस ने अक्षय के हाथ से पराँठा छीन लिया. अब चाँद का एक कटा किनारा ही बचा था. इसे दूज का चाँद भी कहते हैँ, और ईद का चाँद भी. लेकिन तन्वी को वह नाव जैसा ही लग रहा था. उस ने चाँद परी से कहा, ‘क्यों न हम इस नाव मेँ सैर करेँ?’
परी ने कहा, ‘हाँ, हाँ, चलो.’
अब वे तीनोँ कटे चाँद की नाव मेँ बैठ कर आसमान की सैर करने लगे.
आसमान मेँ काले बादल घिर आए. परी घबरा गई. वह कहने लगी, ‘अरे, हम तो शिवजी भगवान की जटाओँ मेँ पहुँच गए.’ सब जानते हैँ कि शिव जी के मस्तक पर दूज के चाँद का मुकुट होता है. तन्वी ने देखा कि चारोँ तरफ़ घना जंगल है. उस मेँ एक ओर से गंगाजी बह रही हैँ. तन्वी ने परी से कहा, ‘चलो, इस जंगल मेँ चलते हैँ.’
परी बोली, ‘न, बाबा, न, मैँ नहीँ जाती. शिब बाबा बड़े औघड़ हैँ. उन के जटाजूट मेँ भयानक जानवर भी होँगे. मैँ तो अपने घर मेँ बैठी हूँ, मम्मी ने वहाँ जाने से मना कर रखा है. मैँ शिव जी के जंगल मेँ नहीँ जाऊँगी.’
घर की बात सुन कर तन्वी को अपना घर याद आ गया. उसे यह भी याद आ गया कि अक्षय और वह तो नाना जी के घर आए हैँ. वहाँ नाना नानी को फ़िकर हो रही होगी कि तन्वी अक्षय कहाँ गए. वह बोली, ‘अब हम भी घर जाएँगे.’
परी ने नाव को शिव जी की जटाओं मेँ निकाला और उधर ले चली जहाँ पहाड़ों से बड़ी दूर नाना जी का घर था. वह घर के ऊपर पहुँची तो उस ने किरणों की डोरी के पालने मेँ तन्वी और अक्षय को बैठा कर नीचे उतार दिया. पालना नीचे पहुँचा तो हलकी सी ठेस लगी.
तन्वी ने सिर उठाया तो देखा कि तस्वीर पूरी बन चुकी है. उस मेँ पहाड़ हैँ, मकान हैँ, तितलियाँ हैँ, खरगोश हैँ, चाँद है और चाँद से चाँदी का पालना लटक रहा है. तन्वी और अक्षय उसे देख रहे हैँ.
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आज ही http://arvindkumar.me पर लौग औन और रजिस्टर करेँ
और अपने परिचितोँ को भी बताएँ.
©अरविंद कुमार
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