फ़ाउस्ट – एक त्रासदी
योहान वोल्फ़गांग फ़ौन गोएथे
काव्यानुवाद - © अरविंद कुमार
४. क्रीड़ा उपवन – सुबह की धूप
सम्राट, दरबारी, उच्च जन और महिलाएँ.
फ़ाउस्ट और मैफ़िस्टोफ़िलीज़ का उपयुक्त रीत्यनुकूल लेकिन दिखावट से हीन पोशाक़ों मेँ प्रवेश. दोनोँ झुकते हैँ.
फ़ाउस्ट
क्षमा कर दिया आप ने? – ज्वाला का चमत्कार!
सम्राट (उसे उठने का संकेत करते हुए)
हम तो देखना चाहते हैँ ऐसे और भी चमत्कार.
अचानक – हम खड़े थे जहाँ था प्रकाश का घेरा.
लगा ऐसे, जैसे प्लूटस और हम हो गए एकाकार.
कोयले सी काली रात मेँ था गहरा काला अँधेरा.
गहरा गह्वर था और था उस मेँ ज्वालाओँ का डेरा.
हज़ारोँ थे छेद. हरएक मेँ से उछलती थीँ लपटेँ कराला.
हमारे ऊपर बुन दिया सब ने मिल कर जगमग विशाल जाला.
ऊपर के गुंबज तक लपलपाती लपकती थीँ ज्वाला.
कभी दिखता था, फिर छिपता था. हैरान था देखने वाला.
लोग आते थे. ज्वाला के महाविशाल चक्र से गुज़रते थे.
भर गया था पूरा चक्र. सब हमारा अभिनंदन करते थे.
देखे हम ने दरबारी, जाने पहचाने, अनुपम था उन का साज.
हम को लगा – जैसे अगन सल्मंडर के हम हैँ अधिराज.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
वह तो आप हैँ ही! महाराज!
आप ठहरे चारोँ तत्वोँ के पूर्णाधिराज!
सिद्ध कर चुके हैँ आप – अग्नि पर है आप का अधिकार.
जहाँ है सागर, जहाँ करती हैँ लहरेँ उच्छृंखल व्यवहार,
मोतियोँ से पटा है जहाँ गहरा तल
एक बार जाएँ तो आप उस मेँ से निकल,
आप देखेँगे – लहरोँ ने पाटा है आप पर दिव्य गुंबदाकार पटोर,
हरीतिमा आभा है जिन की, उत्ताल है तरंग, ऊर्मियोँ की हिलोर
उन से बना है जो भवन, भव्य है. ऊदी है कोर.
जहाँ चाहेँ विचरेँ आप, आप पाएँगे भव्य प्रासाद चारोँ ओर.
अनोखे हैँ प्राचीर. जीवन से भरपूर.
बाणोँ जैसे बिछलते हैँ सागर के जीव, कभी पास, कभी दूर.
घिरते हैँ, उमड़ते हैँ, पाने को अलौकिक उजास.
चाहे जितना करेँ जतन, आ नहीँ पाते पास.
चितकबरे नागराज, स्वर्णिम हैँ उन के शल्क, खेलते हैँ,
मुँहबाए भयानक हाँगर दल उन्हेँ खाने को घूरते हैँ, देखते हैँ.
देख कर उन का निरर्थक प्रयास, विहँसते हैँ आप.
दरबार से घिरे हैँ, शोभामंडित हैँ आप.
आश्चर्य से चकित हैँ सब लोग और स्वयं आप.
मन मेँ है शंका – वंचित न हो जाएँ इस संपदा से आप.
उत्सुक हैँ नाइरीइद अप्सराएँ, चली आती हैँ पास
विलोकती हैँ सागर की शीतल छाँह मेँ कोमल उजास.
जो युवा हैँ, मछलियोँ सी मदमाती शरमाती है उन की चाल.
प्रौढ़ा हैँ जो, सकुचाती हैँ, सोचती हैँ, आतीँ नहीँ पास.
निरीइद थीटिस को जब मिलेगा समाचार,
तो आप को बना लेगी अपना नया पेल्यूस भरतार
कर देगी आप पर चुंबनोँ की भरमार.
आप पा लेँगे ओलिंपस के विशाल क्षेत्र पर अधिकार…
सम्राट
जहाँ तक प्रश्न है वायु का, तेरा ही रहे उस पर अधिकार!
शीघ्र ही वहाँ जाने का हमारा नहीँ है विचार…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
धरती तो है ही आप की, सरकार!
सम्राट
कौन सा था हमारा सौभाग्य जो तुझे ले आया,
अलिफ़लैला की हज़ार रातोँ के देश से चुराया,
दिखाने को हमेँ – नई से नई विलक्षण माया.
कैसा उर्वर मस्तिष्क है तू ने पाया,
शहरज़ाद जैसा है तू ने कहानियोँ से भरमाया.
हम से पाएगा बड़े से बड़े उपहार –
जब उबा दे हमेँ दिन प्रति दिन का सांसारिक व्यवहार
रहना मनोरंजन करने को तैयार.
महाकक्षाध्यक्ष (तेज़ी से आता है.)
महाराजाधिराज! कभी देखा नहीँ था ऐसा सपना.
हो गया है वह जिस की कभी नहीँ की थी कल्पना.
मैँ देने आया हूँ विलक्षण समाचार –
जिसे सोच कर ही बंदा भूले जा रहा है शिष्टाचार –
चला आया यूँ ही बिना पाए आप का आदेश.
आप के लिए मैँ लाया हूँ हर्षद संदेश.
बारंबार कर के देख लिया है हिसाब.
चुकता हो गया है यहूदी का पूरा हिसाब.
अब मैँ हो गया हूँ चिंताओँ से मुक्त
स्वर्ग मेँ भी नहीँ हो सकता और अधिक उन्मुक्त.
महासेनापति (पीछे पीछे आता है)
चुका दिया गया है जो था हम पर सैनिकोँ का उधार.
सेना की भरती हो गई है फिर से एक बार.
सैना मेँ नया मनोबल है.
सुखी और प्रसन्न सामंतोँ का, रखैलोँ का, दल है.
सम्राट
कैसे फूल गए हैँ चौड़े वक्षस्थल तुम्हारे!
कैसे खिल गए हैँ मुखमंडल तुम्हारे!
चाल मेँ आ गई फिर कैसी चुस्ती!
कोशाध्यक्ष (प्रकट होता है)
इन से पूछिए – यह सब है करनी इन की!
फ़ाउस्ट
यह तो काम है महामात्य महोदय का.
महामात्य (धीरे धीरे आगे आता है)
आभारी हूँ वृद्धावस्था मेँ भाग्य के उदय का.
तो सुनिए और देखिए यह भाग्योद्धारक परचा
सुखांत मेँ जिस ने बदला हमारे दुःखोँ का क़िस्सा.
(पढ़ता है…)
ज्ञात हो उसे – जिस को भी है इस से सरोकार –
इस परचे के हर धारक को है – हज़ार क्राउन पर अधिकार.
धरोहरस्वरूप गड़ा है सम्राट के देश मेँ स्वर्ण अपार.
ज़ारी कर दिया गया है आदेश
जैसे ही प्राप्त होगा वह कोश
धारक को दे दिए जाएँगे क्राउन हज़ार.
सम्राट
कौन है यह कूटकार, प्रवंचक, किस ने दिया यह आदेश?
किस ने लगा दिया इस पर हमारा नाम, मुद्रा, संदेश?
कौन है वह अभी तक जिसे नहीँ दिया गया दंडादेश?
कोशाध्यक्ष
स्मरण करेँ, श्रीमान,
कल रात आप ने ही किए थे हस्ताक्षर अपने आप.
महाशक्तिशाली पैन बन कर खड़े थे आप.
महामात्य महोदय ने किया था आप से विनम्र निवेदन –
पाएँ आप आज महोत्व मेँ महान हर्ष और अभिनंदन.
आप की लेखनी की रेख से हर्षित हो सकता है जन जन.
बस, आप ने चला दी थी पंखनाल.
रात भर बना कर प्रतियाँ हज़ार जादूगरोँ ने कर दिया कमाल.
हम ने भी काम किया नहीँ कुछ कम
आप की मुद्रा रात भर लगाते रहे हम.
दस, तीस, पचास, सैकड़ा – सब के नोट हैँ तैयार.
मानेँगे नहीँ आप – कैसे कर रहे हैँ प्रजाजन स्वीकार.
कैसे हो रहा है – देश मेँ समृद्धि का प्रसार.
देखिए – यह नगर था अधमरा सा, सड़ा सा.
अब देखिए – जन जन फिर जीवित है – वैभव मेँ जड़ा सा.
आप के नाम से यूँ तो पहले भी सारा जगत था विभोर
अब बज रहा आप के नाम का डंका चारोँ ओर.
अक्षर ज्ञान की अब नहीँ है किसी को दरकार.
इस परचे से है अब हरएक को सरोकार.
सम्राट
तुम्हारा मतलब है – सोने के बदले – लोग अब लेते हैँ नोट?
दरबार मेँ, लश्कर मेँ, पगार के बदले चलता है नोट?
चलो मान लेते हैँ हम – लगता है अजूबा.
महाकक्षाध्यक्ष
जंगल मेँ आग जैसा फैल गया है नोट.
चलता है सिक्के सा, कोई सकता नहीँ रोक.
महाजन की पेढ़ी पर लगी रहती है भीड़
सोने और चाँदी के बदले नोट लेती है भीड़.
हाँ, थोड़ी सी कटौती तो लगती है
लेकिन सुविधा बड़ी लगती है.
मालिक मकान, क़स्साब, नानबाई –
सब को हो रही है नोटोँ मेँ भरपाई.
आधे से ज़्यादा लोग – मौज मस्ती रहे हैँ भोग.
शेष हैँ जो लोग – सब के सिल गए हैँ नए परिधान
बेचते हैँ बजाज, दरजी काट रहे हैँ थान पर थान.
चढ़ता है जाम पर जाम, बनते भुनते हैँ पकवान,
मधुशालाएँ भरी हैँ, गूँजता है एक ही गान –
जीते रहेँ महाराज, बढ़ती रहे शान.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
बाज़ार मेँ जहाँ है कुछ सूना एकांत – आप अकेले बढ़िए आगे
कोई एक सुंदरी सजीधजी बनीठनी खड़ी है,
आप पाएँगे – किए मोरमंख एक आँख के आगे;
उस की तलाश है नोट – इसी ताक़ मेँ खड़ी है.
जो उसे मिल जाए नोट तो आप पा सकते हैँ प्रेम की सौग़ात,
जी, हाँ, बड़े काम के हैँ नोट!
नहीँ करनी पड़ती आप को सुंदरी से मनुहार
जब पास मेँ होँ नोट!
ढोना नहीँ पड़ता थैलोँ मेँ बोरोँ मेँ सिक्कोँ का भार.
बड़े आराम से जेब मेँ रख सकते हैँ आप नोट.
यही नहीँ चिट्ठी मेँ पत्री मेँ नत्थी कर सकते हैँ आप नोट.
पादरी भी माला की थैली मेँ छिपा सकता है नोट.
फ़ौजी सिपहिया की नौली है हलकी, चले हैँ जब से नोट.
क्षमा करेँ, महाराज, जो मैँ ने की ऐसी बकवास,
जिस से लगता है कर रहा हूँ मैँ नोटोँ का उपहास.
फ़ाउस्ट
आप की धरती मेँ गड़ा है जो अनंत धन
वह सब वहीँ है, सुरक्षित, अनुपभुक्त.
कौन है जो कूत सकता है कितना है वह धन?
बड़े से बड़े मस्तिष्क भी नहीँ हैँ इस के उपयुक्त
जो आँक सकेँ – कितना है कहाँ है धरती के नीचे,
जो पा सकेँ उस की थोड़ी सी भी थाह.
कल्पना की उच्चतम उड़ान भी कैसे वहाँ तक पहुँचे
जो अनंत है, असीम है? विश्वास होता है अथाह.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
स्वर्ण आभूषण हैँ सब के सब बेकार
नोट मेँ सुविधा है अपार.
सब को पता है कितनी है उस के पास संपत्ति.
किसी को अब सौदे मेँ – झिकझिक करनी नहीँ पड़ती.
जब जैसे जो चाहे, सब पीते हैँ प्रेम का, सुरा का, जाम.
जब चाहिए किसी को सोने का सिक्का
महाजन करता है भुगतान. जो नहीँ चला काम,
तो देना पड़ता है हमेँ धरती को एक धक्का.
मिल जाते हैँ सोने के प्याले या ज़ंजीर.
लगा दो बोली, नोट के बदले दे दो जागीर.
चुप हो जाते हैँ अविश्वासी, परिहासी, शंकाशील.
लोगोँ का नहीँ चाहिए अब कुछ और.
वे हो चुके हैँ आदी, नहीँ है कोई संदेहशील.
अब है आप के राज मेँ, सरकार,
रत्न, स्वर्ण और काग़ज़ की भरमार.
सम्राट
तुम्हीँ से मिला है साम्राज्य को यह उत्कर्ष का उपहार.
बदले मेँ मिलना चाहिए तुम्हेँ भी उपयुक्त पुरस्कार!
सँभालो तुम धरती का अधिकार.
इस मेँ छिपी संपदा का तुम्हेँ है ज्ञान,
बनो इस के रक्षक, करो देखभाल.
जब तक न पाए कोई तुम से फ़रमान
खोद न पाए धरती, निकाल न पाए माल.
सुनो, स्वामीभक्त कोशाध्यक्ष, दो कान.
दोनोँ मिल कर सँभालो यह काम –
ऊपर है धरती, नीचे पाताल
दोनोँ मेँ सामंजस्य हो, देश हो मालामाल.
कोशाध्यक्ष
अब कभी नहीँ हिला पाएगा कोई हम दोनोँ का तालमेल,
मैँ हूँ प्रसन्न कर के जादूगर से मेल!
(फ़ाउस्ट के साथ जाता है.)
सम्राट
प्रसन्न हैँ हम. अब हम देँगे सब को उपहार.
बताए हर कोई कैसे भोगेगा वह यह उपहार.
एक सेवक (झुक कर उपहार लेता हुआ)
आज मनाऊँगा मौज मस्ती अनूठी.
एक और सेवक (झुक कर उपहार लेता हुआ)
मेरी चहेती आज पाएगी सोने की ज़ंजीर और अँगूठी.
एक चैंबरलेन (कक्षाध्यक्ष) (स्वीकार करता हुआ)
मेरे गले को तर करेगी अब सुरा और भी अच्छी!
एक और चैंबरलेन (स्वीकार करता हुआ)
मैँ? मेरी जेब मेँ अभी से हिल रही है जुए की गोटी.
एक ध्वजाधारी सामंत (विचारमग्न)
हो जाएगी ऋणमुक्त मेरी माटी की गढ़ी.
एक और ध्वजाधारी सामंत (विचारमग्न)
समृद्ध हो जाएगा मेरा कोश अब और भी.
सम्राट
नए कोश से साजोगे नए काम – सोचते थे हम.
लेकिन करोगे वही – जैसा आप को जानते हैँ हम.
यह महाकोश अब जो पा गए हैँ सब
समझ गए हैँ हम – रहेँगे वैसे ही जैसे पहले थे सब.
विदूषक (आता है)
वाह! वाह! बरसा रहे हो उपहार!
मेरी ओर भी गिर जाए दो चार बूँद.
सम्राट
जीवित है तू! पी डालेगा एक एक बूँद!
विदूषक
जाने क्या जादू सा हो गया था मुझ पर? हो गया दूर.
सम्राट
चल, अच्छा हुआ. क्या करेगा तू? कर देगा बरबाद!
विदूषक
उधर गिर रही हैँ कुछ बूँद; क्या करूँ मैँ?
सम्राट
उठा ले! तेरे लिए ही गिरा रहा हूँ मैँ.
(सम्राट जाता है.)
विदूषक
वाह! क्राउन पूरे पाँच हज़ार!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
पैरोँ पर चलते सुरा के पीपे! ज़िंदा हो गया फिर से एक बार?
विदूषक
भाग्य देता रहा है मेरा साथ. लेकिन ऐसा हुआ पहली बार.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
ख़ुशी से हो रहा है पसीना पसीना!
विदूषक
यह देखिए तो आप! नहीँ मिला कभी इतना ख़ज़ाना!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
इस से बुझ जाएगी तेरी भूख, तेरी प्यास!
विदूषक
ख़रीद लूँ इस से मवेशी, ज़ायदाद, मकान?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
हाँ, हाँ. लगा दे बोली. तेरे होँगे मवेशी, ज़ायदाद, मकान.
विदूषक
गढ़ी, बग्घी, बगिया – और मछलियोँ वाली छलछल नदिया!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
सच, संभव है. पूरी होगी तेरी इच्छा सवा शर्तिया.
विदूषक
तो आज की शाम मैँ बनूँगा ज़मीँदार.
(जाता है.)
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (स्वतः)
कौन कह सकता है – यह भोलू है बस गोलू!
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