फ़ाउस्ट – एक त्रासदी
योहान वोल्फ़गांग फ़ौन गोएथे
काव्यानुवाद - © अरविंद कुमार
१. मनोहर प्राकृतिक दृश्यावली
धुँधलका.
फ़ाउस्ट फूलोँ भरी घास पर लेटा है. बेकल, बेचैन करवटेँ बदल रहा है, जैसे बहुत देर से सोने का असफल प्रयास कर रहा हो. उस के ऊपर दिव्य आत्माएँ गोलाकार मँडरा रही हैँ. उन के लघु आकार कोमल और सुकुमार हैँ. गति मेँ लय है.
एरियल (योलियन हार्प पर मंत्र सा जाप)
फिर वसंत, पुष्पागम फिर से.
सुमन सुहावन जग पर बरसे.
कानन उपवन श्यामल सुंदर.
मानव का आवाहन फिर से.
देवोँ के दल, परियोँ के दल,
सुख सरसावन नाचे हरषे.
भुले बुरे सब भाग्यहीन जन –
कुशल क्षेम शुभ छाया सरसे.
नभ मेँ मँडराते शुभ देवो,
दिव्य रूप अपना पहचानो.
शांत करो तूफ़ान बवंडर.
त्रासक कंटक खीँच निकालो.
पीड़ित मन का संताप हरो हर.
चार धाम रजनी के लंबे.
शीतल सिरहाना बन जाओ.
तंद्रिल सीकर बरसाओ मन पर.
तन की ऐँठन, जकड़न, फड़कन –
सब हर ले निद्रा. जागे बल पा कर.
देवो, यह होगी सेवा सर्वोत्तम.
आलोक मिले, पाए फिर नव जीवन.
बालदूतोँ का कोरस (कभी एक, कभी दो, कभी सब)
श्यामल शाद्वल कोमल भीना.
सुख सरसावन मलय झकोरा.
गंध देश. छायापट झीना.
झिलमिल सा शबनमी अँधेरा.
हर्षित कलरव – मन मेँ गुनगुन.
फिर से शैशव की किलकारी.
दिन के स्वर्ण कपाट का मुंदन.
नयन पपोटे बोझिल भारी.
चादर फैलाती आई अब रैना.
सूरज डूबा, ताराधिप आया.
गमगम गमक गमकती रैना.
नवल चंद्रिका, नभ चमकाया.
शांत सरोवर. किरणोँ का नर्तन.
मेघहीन कालापन दमका.
विश्राम बने वरदान सुदर्शन
निष्कलंक चंदा पूनम का.
घंटाघट पलछिन अब निश्चल.
हर्ष शोक सब द्वंद्व अगोचर.
खंडहीन संपूर्ण बने तू अविकल
आस्था से नवनिर्मित हो कर.
फिर से जागे विश्वास, नया दिन.
वादी मेँ हरियाली हो फिर.
शिखरोँ पर सुख चैन की चिलमन.
चाँदी सी फहरन फ़सलोँ पर.
मन के अरमान जगेँ अब फिर से.
दमके दूर दिशा – चमकी गौरव से.
जीवन मेँ हो हलकापन फिर से.
मोहनिशा को तोड़, जाग अब फिर से.
चौँके , ताके विस्फृत नयनोँ से जन जन.
साहस का, धीरज का कर फिर से उद्घाटन.
देखे सपने, साकार करे जो बढ़ कर –
उन्नत भाल विजय करता है धारण.
(तुमुल नाद के साथ सूर्योदय का उद्घोष.)
एरियल
सुनो! सुनो! समय की चाप को सुनो!
सुनो! समय की चीख़ती पुकार को सुनो!
देखो! नवजात दिवस का आगमन देखो!
टूट रहे हैँ शिला के कपाट – सुनो!
घनघना रहा है सूर्य का रथ – सुनो!
हो रहा है प्रकाश का विस्फोट – सुनो!
किरणोँ की घंटियाँ सुनो!
ज्योति का शंखनाद सुनो!
चकाचौँध हैँ नैन! विस्मित हैँ कान!
अनसुने को सुन सका है कौन!
कली कली के कोश मेँ पैठो.
गहन से गहनतर अंतरतम मेँ बसो.
शिला के भीतर, पल्लव के नीचे –
सुन सके जो तुम, हो जाओगे बहरे!
फ़ाउस्ट
नई धड़कन जगा रही है जीवन का जोश –
करने को झिलमिल उजास का वंदन.
इस रात, धरती, तू थी अकंपित, ख़ामोश.
अब जाग्रत है फिर से भरती नव जीवन.
तेरे हर हर्ष से अभिसिंचित है नवारंभ.
संकल्प से परिपूर्ण है मुझ मेँ अब जीवन.
पाने को चरम उत्कर्ष लालायित है मन.
भोर से विभोर – सामने उघड़ा पड़ा है संसार.
कुंज कुंज मेँ गुंजित है हज़ार कंठ का गान.
घाटी घाटी से उठ रहा है कुहासा.
गहरे गहरे तक पैठा है उजाला.
सोई सोई सी, रात भर, करती रहीँ बयार का इंतज़ार –
अब जाग कर फुनगियोँ ने फहरा दिए परचम हज़ार.
हर रंग पर छाया है नया निखार.
हर पल्लव पर, किशलय पर है मोतियोँ का भार.
हर ओर स्वर्ग है दृश्यमान.
देखो, पर्वतोँ के शिखर – उन्नत महान –
कर रहे हैँ उद्घोष – आया है गौरव काल.
सब से पहले शिखरोँ को होता है सनातन प्रकाश का दर्शन.
धीरे धीरे वह उतरता है नीचे – जहाँ हैँ हम.
आल्प्स के हरियाले ढलानोँ पर, देख भी नहीँ पाते हम,
अचानक उतर आती है एक और किरण.
क़दम क़दम बढ़ती है, पहुँचती है जहाँ है तल.
नहीँ है ताब देख लूँ – सूर्य जो आया है निकल!
फेर लेता हूँ मुँह – चकाचौँध से घायल हैँ नयन.
यही होता है जब –
लालायित आशा और प्रयास के पथ पर बढ़ कर
उच्चतम आकांक्षा सुमधुर सफलता को पा कर
खोल देती है परिपूर्णता का फाटक विशाल.
छोरहीन शून्य से उठती है – प्रशस्ति की ज्वाल
बाढ़ सी फट कर,
विजड़ित हो जाते हैँ हम – भ्रमित से हो कर.
पाने को जीवन की पावन ज्योति की माल
हम ने टटोले तलाशे किरणोँ के जाल,
बड़वानल, ज्वाला के सागर! कैसी थी ज्वाल!
हम रह गए चकरा कर!
क्या है यह! प्रेम! या घृणा! घनघोर!
जकड़ता है हमेँ, करता झुलसाता आलिंगन बरज़ोर!
बारी बारी से परखता है – हर्ष से, दर्द से, तड़पा कर!
तभी तो हम बचते हैँ अपने से – आँखेँ नीची कर
यौवन की पोशाक़ोँ मेँ अपने को छिपा कर!
इसी लिए –
चमकता है, चमकने दो! मेरे पीछे धधकता सूरज!
देखता रहूँ मैँ निरंतर वर्धित हर्ष से छक कर
गहरे गह्वर मेँ झरता निर्झर!
छलाँग दर छलाँग हज़ार लड़ियोँ मेँ पिर कर,
और फिर हज़ार धारोँ मेँ बिखर कर,
छायादार घाटी मेँ फेन सा उफन कर,
बयार मेँ फुहारता बढ़ता निरंतर.
हाहाकार से ऊपर! वह – सतरंगी धनुष का गुंफन.
नमित है वह. परिवर्तन है उस का जीवन –
अभी निखरे हैँ रंग, अभी छा गया धुँधलापन.
बरस रही है कैसी लगातार शबनम!
मानव के प्रयास का नहीँ है कोई अन्य प्रतीक सर्वोत्तम.
सोचिए, समझिए, यह ज्ञान नहीँ है दुर्गमतम –
जीवन नहीँ है प्रकाश. जीवन है रंगोँ का परावर्तन!
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