फ़ाउस्ट – एक त्रासदी
योहान वोल्फ़गांग फ़ौन गोएथे
काव्यानुवाद - © अरविंद कुमार
२१. साध्वी वालपुरगिस की रात
हार्ट्ज़ पर्वत माला.
शीर्के और एलेँड ग्राम क्षेत्र.
फ़ाउस्ट और मैफ़िस्टोफ़िलीज़.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
आप को चाहिए? – झाड़ू दुमदार
जिस पर रहती हैँ चुड़ैलेँ सवार,
या फिर मेँढ़ा सीँगदार…
बीहड़ है राह, मंज़िल है परलम पार.
फ़ाउस्ट
जब तक है पाँवोँ मेँ दम
यह लाठी नहीँ है कम –
पार करने को घाटी घुमावदार,
चढ़ने को खड़े पर्वत की चुनौतीभरी दीवार.
निर्झर से झरती अग्निकणोँ की बौछार
कर रही है नव जीवन का संचार.
होने दो – होती है देर…
भोगते चलो रस की फुहार.
चीड़ के कण कण मेँ है जीवन की धड़कन.
नई गंध से जाग्रत हैँ देवदार.
होने दो शिराओँ मेँ साहस की सिहरन!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
बकवास! कैसी धड़कन! कैसी सिहरन!
मेरे तन मेँ अब भी है शीत की जकड़न!
यही है मेरे मन की आस –
ओस हो, पाला हो,
अंग अंग ठिठुराने वाला हो!
निकला है चाँद, लाल और काला –
जैसे आधा ख़ाली हो प्याला.
कैसा उदास! जैसे अभी हो मरने वाला!
देर से है उगा है अकेला.
अंधकार है ज़्यादा, कम है उजाला.
पल पल लगती है पत्थर से ठोकर,
बार बार होती है पेड़ोँ से टक्कर.
दलदल प्रकाश को बना लेँ हम राहबर अपना.
वाह, देखिए –
वह रहा अलमस्त चमचम चमकता एक राहबर अपना.
रुको! ठहरो! सुनो, हमदम!
हमेँ जाना है वहाँ ऊपर.
बनो तुम राहबर – कृपा होगी हम पर.
दलदल प्रकाश
मालिक हैँ आप! – आप जानते हैँ सब हाल
तिरछा है मेरा स्वभाव – तिरछी है मेरी चाल.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
तुझ पर है मानव का प्रभाव!
तुझे है शैतान का वास्ता!
जान ले! जान से जाएगा तू
पकड़ ले तू सीधा रास्ता
वरना –
फिर नहीँ टिमटिमाएगा तू!
दलदल प्रकाश
ओ हो! समझा! बड़े मालिक हैँ आप!
श्रीमान! आप का हर कहा करूँगा मैँ.
लेकिन शिला शिला पर है आज माया की छाप!
दलदल प्रकाश हूँ! कुछ तो भटकूँगा मैँ!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
शायद हम कर चुके हैँ प्रवेश
जो है अद्भुत सपनोँ का देश.
जंतर मंतर जादू टोना
मायावी है कोना कोना
दिखला दे सब कुछ हम को, प्यारे!
दलदल प्रकाश
देखिए दौड़ते नज़ारे…
दौड़ती हैँ ये पेड़ोँ की डाल…
शीश नवाती शिला की ढाल…
सुनिए पहाड़ोँ की दहाड़ –
कैसे फाड़ रहे हैँ ये दाढ़!
फ़ाउस्ट
शाद्वल पर, गोल गोल पत्थर पर
बहते हैँ नद नाले निर्झर.
बोल रहे क्या जल के धारे?
गूँज रहे या गीत पुराने
जो प्रेमी देवोँ ने गाए
गा कर जो संदेश सुनाए.
आशा देती है साहस,
प्रेम भरता है जीवन मेँ रस.
गुंजित है शिखर शिखर पर
संदेश पुरातन, गीत अनश्वर.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
हा हा हू हू! – बोले उल्लू
भूरे उल्लू, काले उल्लू.
चमगादड़ दल नाच करंतू.
घूस घुमंतू, मूस चलंतू.
वह लमटंगा तोँदू गिरगिट
घात लगाता करता चिटचिट.
पेड़ोँ की सर्पिल जड़ – पत्थर
को देखो पकड़े है कस कर.
अजगर सी शाखा बल खा कर
राही को पकड़े लहरा कर…
दौड़ रही चूहोँ की छाया!
सांप छछूँदर का दल आया!
घेर घेर पर्वत वन प्रांतर
दलदल प्रकाश के
दल पर दल आए बढ़ कर –
पथ दर्शाने या भरमाने…
ना मैँ जानूँ ना तू जाने!
फ़ाउस्ट
बोलो – हम चढ़ते हैँ ऊपर
या निश्चल हैँ जैसे पत्थर,
या दुनिया खाती है चक्कर.
झम झम कर, तेज़ी से चल कर
तरुवर पर्वत झलक दिखाते
हैँ बिजली से चलते जाते.
टिमटिम दलदल प्रकाश से बढ़ते जाते…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
डरेँ मत!
मेरा आँचल पकड़ लेँ कस कर
यह है पर्वत का मँझला तल.
देखिए झुक कर –
धन पिशाच मैमन का झलाझल
जगमग वैभव चमाचम.
फ़ाउस्ट
हाँ, हाँ, नीचे के सूनेपन मेँ अजीब सा
नभ प्रकाश का मेघ पटल है तिरता
पौ फटने से पहले उजास सा –
हलका, मद्धम, झीना, उठता, गिरता…
माया का गोला चढ़ता पर्वत पर
कहीँ ओस पर झिलमिल झिलमिल करता
और अचानक बिजली जैसा फट कर
कोना कोना आलोकित करता –
पहले पतली चमचम कटार सा
फिर बहता है धारा विशाल सा
हज़ार वेणियाँ बन पर्वत पर
फिर गुँथने लगता, कोने मेँ छिपता
कभी छिटकता, उड़ता और बिखरता.
आतिशबाज़ी सा कभी उफनता
कभी निढाल सा रेते पर गिरता…
देखो पर्वत की ऊँची प्राचीरेँ
दमकीँ जैसे सोने की दीवारेँ.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
धन पिशाच मैमन ने फैला दी
कैसी यह ज्वाला मायावी!
इस की लपटोँ ने दमका दी
सोने जैसी दीवार दुर्ग की.
था केवल सौभाग्य आप का
जो यह दृश्य आप ने देखा.
मनमौजी अलमस्त टोलियाँ
मैमन के मेहमानोँ की
शोर मचाती बढ़ती आतीँ.
फ़ाउस्ट
कैसा अंधड़! कैसा यह तूफ़ान प्रभंजन!
मेरी गरदन पर पवन पिशाची का
कैसा शीतल बरफ़ानी चुंबन!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
पकड़ लेँ कस कर घाटी का पत्थर.
यह जो पिशाचन है, बड़ी मनमौजन है!
खेल खेल मेँ धकेल देती है
नीचे गहरे मेँ. लिपटी है –
घूँघट मेँ रजनी. सुनिए,
वनोँ की चीत्कार सुनिए.
उल्लू भाग पड़े हैँ डर से!
ये विशाल वृक्ष! उखड़े जड़ से!
वनदेवी का भवन काँपा.
चरमरा उठी हर शाखा.
गिरे पूरे के पूरे वन
ऊबड़ खाबड़ चरमर करते.
भारी झंझावात प्रभंजन
दौड़े गरजते तड़पते
पत्थर उखाड़ते उड़ाते!
ये आवाज़ेँ सुनते हैँ आप?
कभी दूर से, कभी पास से
कभी बहुत दूर. कभी बिलकुल पास.
सुनिए – मायावी सरगम
पिशाचनोँ का उन्मत्त गायन!
पिशाचनोँ का कोरस
चलीँ पिशाचन ब्रौकन पर्वत
पीली है खूँटेँ, सिट्टे हैँ हरियल!
मेला ठेला, भीड़ भड़क्का, धक्कम धक्का
राजा उरिमन का क़ब्जा पक्का
चढ़ चट्टानेँ, चढ़ कगार पर –
पाद मारती हैँ हम सड़ियल
बदबू फैलाते मेढ़े दढ़ियल!
एक आवाज़
आई, बुड्ढी बूबो आई!
सूअरनी पर चढ़ कर आई!
चूहोँ की रानी आई!
प्लेग फैलावनी रानी आई!
कोरस
मान करो! सम्मान करो!
बूबो रानी का मान करो!
सूअरनी वाहन! मान करो
आगे है बूबो! मान करो!
पीछे पूरा दल! मान करो!
एक आवाज़
कौन राह, मैया, तुम आईँ?
एक आवाज़
इल्सेंस्टीन हो कर मैँ आई.
राह मेँ उल्लू के कोटर मेँ झाँका –
दो भूरी आँखोँ ने मुझ को ताका!
एक आवाज़
भाड़ मेँ जा! – ऐसी क्या जल्दी!
गिरती पड़ती चल दी!
एक आवाज़
देखा न आव! देखा न ताव!
कर दिए घाव! दुखते हैँ घाव!
पिशाचनोँ का कोरस
चौड़ा है रास्ता! लंबा है रास्ता!
पागल है भीड़ – किया है तंग रास्ता!
चुभती है झाड़ू – अड़ती है सोटी
घुटते हैँ बच्चे! माँ का हाल ख़स्ता!
जादूगरोँ का आधा कोरस
घोँघा बसंत से हम बढ़ते हैँ
धीरे धीरे रह जाते पीछे!
पाप नगर को जब जाना हो
मादा आगे! रह जाते नर पीछे!
जादूगरोँ का दूसरा आधा कोरस
लेकिन हमारा विचार है कुछ और -
चाल है मादा की और – नर की कुछ और
हज़ार डग भरती है मादा जितने मेँ
लगाता है एक छलाँग नर उतने मेँ.
एक आवाज़ (ऊपर से)
तुम? तुम हो फ़ैल्सैंसी के लोग!
लगाओ छलाँग! मिलेँ हम लोग!
आवाज़ेँ (नीचे से)
ऊपर हो तुम, नीचे हैँ हम –
कैसे होगा हमारा संगम?
थूक रगड़ रगड़ कर चमके हैँ हम
नपुंसक हैँ हम –
वंध्या नैतिकता मेँ जकड़े हैँ हम.
दोनोँ कोरस
बुझ गए तारे, मौन है पवन
शोकाकुल चाँद का हो गया है मरण.
गूँज रहा है पिशाची संगीत का स्वर
फूट रहा है जैसे आतिशबाज़ी का अनार.
एक आवाज़ (नीचे से)
हटो! – हटो!
एक आवाज़ (ऊपर से)
कंदरा मेँ से किस ने पुकारा?
एक आवाज़ (नीचे से)
मुझे साथ ले लो! मुझे साथ ले लो!
हुए तीन सौ साल. चढ़ रही हूँ मैँ
अपने बिछड़ोँ को ढूँढ़ रही हूँ मैँ
बार बार नीचे फिसल रही हूँ मैँ…
दोनोँ कोरस
हो जा झाड़ू पर सवार!
हो जा सोटी पर सवार!
हो जा मेँढ़े पर सवार!
चढ़ जा… आज की रात –
न चढ़ी आज की रात
तो रह जाएगी मँझधार.
आवाज़ (नीचे से)
कब से भटक रही हूँ मैँ
ठोकर खाती हूँ, गिरती हूँ मैँ.
सभी निकल गए आगे
निकल नहीँ पाती हूँ मैँ.
न घर पर चैन था, न साहस
न बाहर चैन है, न साहस.
पिशाचनोँ का कोरस
ले यह मलहम! साहस सँभाल!
जोड़ जोड़ चीथड़े बना ले पाल
विमान का काम देती है हर जलधार
न चढ़ी आज की रात तो रह जाएगी मँझधार.
दोनोँ कोरस
लगा कर शिखर के दो एक चक्कर
उतरो नीचे उमड़ कर घुमड़ कर
ब्रोकन पर्वत पर करो धूम धक्कड़
चुड़ैलोँ का मेला हब्बड़ तब्बड़
(नीचे उतरते हैँ.)
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
कैसी भीड़ है, कैसा भक्कड़
अफ़रातफ़री शोर मचक्कड़
बदबू की सड़न, फैल फक्कड़
जले लक्कड़, चले अंधड़
बिछड़ न जाएँ हम – पकड़ लेँ कस कर
कहाँ है आप?
फ़ाउस्ट
यहाँ हूँ मैँ…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
बदअमनी है हद से बढ़ कर!
अभी दिखाता हूँ इन को –
कौन है मालिक! कौन है नौकर!
मैँ हूँ लोकी! शैतान! दूर! बचो! हटो!
आइए, श्रीमान डाक्टर!
यह भीड़ है क़ाबू के बाहर.
झेल नहीँ सकता यह मैँ भी!
निकलेँ यहाँ से, तो बेहतर…
ऊपर वह झाड़ी देखिए -
कैसे चमकती है. आइए,
हम छिप जाएँ इस के भीतर!
फ़ाउस्ट
तेरी कथनी और करनी मेँ है अंतर.
जहाँ चाहे, शैतान, तू ले चल.
बस! भूल गया मैँ हम आए थे क्योँकर…
देखने यह उत्सव. यह मेला चंचल.
अब ले जाता है इस से दूर, बाहर!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
इस कुंज मेँ भी हैँ कुछ अलाव,
औेर है कुछ मित्रोँ का जमाव…
फ़ाउस्ट
इधर ऊपर धधकती है ज्वाला…
मुझे जाना है वहाँ –
अंधकार के सम्राट का बोलबाला है जहाँ.
कई गुत्थियाँ सुलझेँगी वहाँ…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
बेसूद! बेफ़ायदा! – होँगी नई गुत्थियाँ पैदा!
अच्छा है निर्जन अकेला. – दूर से देखो संसार का रेला.
जब से बना है धरती का गोला –
होता है दोस्तोँ के टोले मेँ टोला…
देखिए चुड़ैलेँ जवान –
बिंदास! नंगी! खुले आम!
दिखा रही हैँ अपना हर माल!
देखिए! देखिए! फ़ैशन का कमाल!
जो बूढ़ी हैँ, दीजिए दाद!
परदे मेँ है इन की जायदाद!
आइए, हम सेँकेँ आँखेँ
ये शानदार नज़ारे देखेँ…
देखिए! शरमाइए मत!
यह तमाशा है बेटिकट!
लीजिए छिड़ गया संगीत
बेसुरा! बेताल! घमासान!
चलता है आज यही संगीत
जो फाड़ दे श्रोताओँ के कान.
अजी, मत कीजिए इनकार.
चलिए तो सही, सरकार!
आप मानेँगे मेरा अहसान –
करा दी सब से जान पहचान!
क्या कहा? विशाल है यह हाल?
जी हाँ. इस का आर है न पार.
धूनियाँ रमी हैँ हर ओर…
धूमधड़ाका है, है नाच का शोर…
मस्ती का आलम, शराब का ज़ोर…
नैनमटक्का, चूमाचाटी, समागम, व्यभिचार…
वाह! मानव का निर्बाध व्यवहार!
फ़ाउस्ट
किस भेष मेँ प्रकटेँगे यहाँ आप? श्रीमान!
जादूगर? मदारी? साक्षात् शैतान?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
अकसर मैँ धारता हूँ छद्मवेश.
कुछ अवसर होते हैँ विशेष –
जब नहीँ चलता है छद्मवेश.
ये सब लोग हैँ मेरे अपने.
तमग़े नहीँ हैँ इन्हेँ देखने…
घोँघी! यह नन्हीँ सी जान!
यह भी गई मुझे पहचान!
आप ने देखा इस का यह जोश?
मुझ से मिलने खो बैठी होश!
आइए, चले सब के पास –
सच, नहीँ होँगे आप निराश…
(बुझती धूनी के पास बैठे बूढ़ोँ से)
आप सब बुज़ुर्गवार, श्रीमान,
क्योँ बैठे हैँ गुमसुम, बेजान?
नहीँ बनना था महफ़िल की जान
तो घर सोते आप चादर तान!
कमांडर
बेकार है निष्ठा, आजीवन सेवा,
सच्चे वीर कभी पाते नहीँ मेवा.
छिनाल का मन और सेना की कमान –
पाता है कौन? पाखंडी नौजवान!
मंत्री
बदल गई है अब समय की चाल
हमारा युग था सत्ता का स्वर्णकाल,
तब चला करता था मंत्री का राज.
उठाए सिर! थी किसी की मज़ाल?
प्यादा
तब प्यादे भी नहीँ थे बूदम
जो चाहते हथिया लेते थे हम.
अब? अब टूट गया है सारा निज़ाम
जो कुछ भी अच्छा था, अब है बेकाम.
लेखक
अच्छा साहित्य अब लिखता है कौन?
अच्छा साहित्य अब पढ़ता है कौन?
अश्लील हैँ आज के घटिया लेखक.
रुचिहीन हैँ आज के सस्ते पाठक.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (बूढ़ा बन कर)
झुक गई है ताक़त
आती नहीँ क़यामत!
बेकार है सब रेला पेला ठेला…
अच्छा है बंद हो दुनिया का मेला!
दुकानदार बुढ़िया
ठहरिए मेहरबान, क़द्रदान!
देखते जाइए मेरा माल…
दुनिया के हर कोने से
आया है हर तरह का माल!
नायाब है, बेमिसाल है माल!
शैतानियत से भरपूर, है मालामाल!
आदमीयत का ख़ून है हर माल!
देखिए! देखिए! एक एक माल!
देखिए ढेर सारी कटार –
हर कटार ने बहाई है
मासूम ख़ून की धार!
देखिए – मेरा एक एक प्याला
हर एक मेँ ज़हर गया ढाला!
यह पाजेब! झूमर! यह कंठहार!
हर एक ने ठगी कोई नार!
ये हैँ विश्वासघाती तलवार –
दोस्ती की पीठ पर इन का वार!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
सुनो, मेरी ख़ाला! बेकार –
है तुम्हारी चीख़ पुकार!
जो बात गई – वह बात गई
पुराना है तुम्हारा माल.
लाओ नई चीज़, नया माल!
फ़ाउस्ट
उछल कूद, ठेलम ठेला, रेलम पेला…
अनोखा घन चक्कर है यह मेला…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
यह है संसार की धकापेल -
बड़ा ही अजीबोग़रीब खेल.
भ्रम होता है –
आप रहे हैँ इसे धकेल.
सच तो यह है –
यह रहा है आप को धकेल.
फ़ाउस्ट
कौन है वह?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
देखिए ग़ौर से – लीलिथ है वह.
फ़ाउस्ट
कौन?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
आदम की पहली बीवी.
उस की यह जुल्फ़ जाल फैलाती
लहराती नागन, बल खाती
सँभलिए इस की चाल से
निकलना मुश्किल है इस के जाल से.
फ़ाउस्ट
वह चुड़ैल बूढी. उस के पास चुड़ैल नौजवान…
दोनोँ का नाच – वाह! कैसी शान!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
वाह! लो झूम उठी महफ़िल.
आइए, हो जाएँ हम भी शामिल.
फ़ाउस्ट (नौजवान चुड़ैल के साथ नाचता गाता है)
देखा बिरवा सपने मेँ
बिरवे मेँ लाल लाल दो सेब
मैँ ललचाया सपने मेँ
तना देख कर सेब.
नौजवान चुड़ैल
जब से था बाग़ अदन का
ललचाते मर्दोँ को सेब.
बिरवा मेरी बगिया का!
गदराए हैँ मेरे सेब.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
देखा बिरवा सपने मेँ
बिरवे मेँ चौड़ा चकला छेद!
मैँ ने सोचा सपने मेँ
चलो मिला तो छेद.
बूढ़ी चुड़ैल
खुर-फटे साजना, आओ!
स्वागत मेँ चौड़ा है छेद
उठो! बढ़ो! घुस जाओ!
ज़ोर लगाओ! भर दो छेद!
बंबो मंबो (बुद्धिवादी समालोचक)
भूतो, प्रेतो! यह साहस! यह दम!
बुद्धिवादी हैँ हम.
नहीँ सुना तुम ने – घोषणा कर चुके हैँ हम!
आधारहीन हैँ भूत प्रेत. कोरी कल्पना हो तुम.
चल नहीँ सकते हो तुम
फिर भी मेले मेँ नाचते हो तुम!
नौजवान चुड़ैल
यह आदमी क्योँ आया है मेले मेँ?
फ़ाउस्ट
यह! आलोचक है. निंदा है धंधा.
कला का गला – और इस का फंदा.
रहता है भ्रमित – जैसे हो चकवा.
नाचते हैँ हम – यह देता है फ़तवा.
मनमाने बनाता रहता है नियम
उन के बाहर – ग़लत है हर क़दम.
पार कर देँ हम रेखा, तो कोसेगा.
आगे पीछे ख़ुश हो कर नाचेगा –
बस, हम कह देँ इस से, महानुभाव,
समाज पर महान है आप का प्रभाव!
बंबो मंबो
अभी तक माया जाल! घोर दुराचार!
दूर हो! यह युग है ज्ञान का, विज्ञान का,
अंधविश्वास के नाश का. तर्क की धार –
से क्योँ नहीँ बिगड़ा कुछ शैतान का?
विज्ञान के युग मेँ बर्लिन पर राज है
शैतान का. तोड़ने को अंधविश्वास
था मेरा अभियान. शर्म की बात है
आज भी जीवित हैँ पुरातन विश्वास!
नौजवान चुड़ैल
चुप कर, मरदूद!
बंबो मंबो
सुनो, सब भूतप्रेत –
झुक नहीँ सकता मेरा पौरुषेय.
लेकिन –
क्योँ नहीँ उठता मेरा पौरुषेय?
(नाच चलता रहता है.)
हो गया सब किया धरा चौपट.
फिर भी तुम से चिपटूँगा जीवन भर.
दम लूँगा – मेरा दावा है औघड़ –
हर भूत को, कवि को, दफ़ना कर…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
नाली मेँ लेट कर, हो कर बेहोश
उन्मुक्त होगा इस का ज्ञानबोध.
इस की पिछाड़ी पर चिपटेँगी जोँक
सुरंग मेँ घुस कर सरकेँगी ऊपर
तोड़ने को सनकी के जुनून की झोँक.
(फ़ाउस्ट से. वह अब नाच नहीँ रहा -)
क्या ख़ूब नाची आप की साथिन!
क्योँ छोड़ दी आप ने वह साथिन?
फ़ाउस्ट
मैँ ने देखा –
उस के अधरोँ से बाहर जो निकला
नहीँ था गाना, था लाल लाल चूहा!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
तो? हुआ क्या सितम?
नहीँ था काला – यही है क्या कम?
है प्यार का मौसम – मस्ती का आलम
झूमो और नाचो – भूलो सभी ग़म.
फ़ाउस्ट
और मैँ ने देखा -
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
क्या?
फ़ाउस्ट
देखो तो
वहाँ… दूर… एक बाला… भोली भाली.
अकेली… विपदा की मारी…सर्द, ज़र्द…पीली…
हाथ मेँ हथकड़ी… पैरोँ मेँ बेड़ी…
हाँ, हाँ… मैँ ने देखी ग्रेचन मेरी…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
नहीँ था कुछ भी. सोचो मत.
भूलो सब कुछ. बस, सोचो मत…
कुछ नहीँ है यह. माया है,
भयानक एक छलावा है.
बर्फ़ीली है इस की नज़र
जमा देती है ख़ून. पत्थर –
बन जाता है देखने वाला.
भला नहीँ होने वाला
किसी का. मेडूसा का नाम
सुना है तुम ने! नाग समान
केश वाली माया की बाला –
ग्रीक कहानी क़िस्सोँ मेँ
इस का शीश था पर्सीयस ने काट डाला…
फ़ाउस्ट
ठीक कहते हो तुम – पथराई आँखेँ
थीँ मौत की आँखेँ. खुली थीँ आँखेँ
लेकिन आँचल, वही था पुराना,
ग्रेचन का आँचल, कोमल, सुहाना…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
पागल कहीँ के!
यह मेडूसा है कामरूपा!
धारती है रूप मनमाना.
जो चाहे बन सकती है वह
बन के मनमीत छलती है वह.
फ़ाउस्ट
कितनी सुंदर थी! था कैसा आकर्षण!
कैसा सुख था! थी कैसी तड़पन!
नयनोँ मेँ था मायावी सम्मोहन.
लेकिन –
उस गोरी गोरी गरदन पर क्या था?
धागे जैसी लाल लाल लहू की रेखा?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
हाँ, हाँ, वह मैँ ने भी देखा.
आप नहीँ जानते! मेडूसा
कटा सिर उतार लेती है
फिर बग़ल मेँ थाम लेती है.
बस कीजिए, भूल जाइए…
चलिए, उधर चलिए…
उधर उस पर्वत पर देखेँ -
क्या होता है वहाँ – देखेँ.
हूँ! होने वाला है नाटक -
वाह, वियना से भी बढ़ कर नाटक!
शौक़िया कलाकार
अभी शुरू करेँगे हम नाटक.
बिल्कुल नया है यह नाटक.
संसार का सातवाँ आश्चर्य!
इस से कम हो नहीँ सकता
ग़ैर पेशेवर टीम का उपहार!
हमारा दावा है, श्रीमान,
ऐसे प्यारे हैँ इस के लेखक
ऐसे प्यारे हैँ सब कलाकार
ऐसा प्यारा हूँ मैँ – सूत्रधार…
क्षमा करेँ अब जाना है
जा कर परदा उठाना है.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
वाह! वाह! अति सुंदर –
भूतोँ के पर्वत पर
शौक़िया कलाकारोँ का नाटक!
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