पेड़ जब शीश नवाते हैँ
पात जब गौरव गाते हैँ
हवा सिंहासन पर चढ़ कर
सवारी ले कर आती है
हवा को सब ने देखा है
पतंग जब ऊपर चढ़ता है
ठुमकता है, बल खाता है
हवा तब घुटनोँ पर झुक कर
गीत आशा का गाती है
हवा को सब ने देखा है
तितलियाँ चंचल उड़ती हैँ
गुलाबोँ पर मँडराती हैँ
हवा तब बासंती हो कर
गीत यौवन का गाती है
हवा को सब ने देखा है
पात जब पीले पड़ते हैँ
शाख से नीचे गिरते हैँ
उड़ते, खड़खड़ करते हैँ
हवा बूढ़ी बन आती है
हवा को सब ने देखा है
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©अरविंद कुमार
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