शब्द रथ है भाव का, विचार का, इस रथ पर सवार हो कर बात एक आदमी से दूसरे तक पहुँचती है. इस रथ पर सवार हो कर ज्ञान और विज्ञान सदियोँ के फासले तय करते हैँ और मानव समाज प्रगति के पथ पर बढ़ता है. भाव के सही संप्रेषण के लिए सही अभिव्यक्ति आवश्यक है. और सही अभिव्यक्ति के लिए सही शब्द का चयन, शब्दोँ का अध्ययन और संकलन की परंपरा वेदों जितनी पुरानी है.
जब भारत मेँ एक प्रगतिशील, सक्रिय और सचेतन समाज था, तब महान वैयाकरण और भाष्यकार हमारी भाषाओँ को भी समृद्ध कर रहे थे. संसार के सब से पहले शब्द संकलन और थिसारस भारत मेँ ही बने. वैदिक युग के निघंटु और निरुक्त संसार के प्राचीनतम थिसारस हैँ. उस महान शृंखला की सशक्त कड़ी है अमर सिंह कृत नामलिंगानुशासन या त्रिकांड, जिसे सारा संसार अमर कोश के नाम से जानता है.
आधुनिक काल मेँ थिसारसों की परंपरा यूरोप मेँ आरंभ हुई, जिसने औद्योगिक क्रांति से संसार को नई गति दी. इंग्लैंड मेँ पीटर मार्क रौजेट के अंग्रेजी थिसारस का पहला संस्करण 1852 मेँ प्रकाशित हुआ. भाषा के इस नए शक्तिशाली उपकरण का महत्व वहाँ के लोगोँ ने तत्काल समझा. तबसे पश्चिम के देशोँ मेँ थिसारसों की शृंखला का विकास और संवर्धन निरंतर हो रहा है.
अब भारत में अरविंद कुमार दंपती के प्रयासोँ के परिणामस्वरूप आधुनिक कोशों और थिसारसों की यह शृंखला फिर से पनप रही है. कुछ उदाहरण हैं समांतर कोश, शब्देश्वरी, सहज समांतर कोश, द पेंगुइन इंग्लिश-हिंदी/हिंदी-इंग्लिश थिसारस ऐंड डिक्शनरी, द पेंगुइन लैंग्वेज ऐक्सप्लोरर (इंग्लिश-हिंदी) और द पेंगुइन लैंग्वेज ऐक्सप्लोरर (हिंदी-इंग्लिश), और अब इंटरनैट पर अरविंद लैक्सिकन…
आज ही http://arvindkumar.me पर लौग औन और रजिस्टर करेँ
©अरविंद कुमार
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