भारतीय महिलाएँ विदेशियों से पाँच गुना सुंदर हैं…
एक अद्भुत प्रयास और एक अद्भुत उपलब्धि
श्री अरविंद कुमार एवं श्रीमती कुसुम कुमार द्वारा निर्मित
अँगरेजी-हि्दी//हिंदी-अँगरेजी थिसारस
के लोकापर्पण के अवसर पर – 4.4.2008
इंडिया इंटरनेशनल सैंटर में उपस्थित सभी विद्वज्जन!
आज का दिन हिंदी जगत में एक ऐतिहासिक दिन है. या कहना अधिक उपयुक्त होगा कि न केवल हिंदी प्रमियों के लिए, बल्कि विश्व भर में भारतीय मनीषा, साहित्य, भाषा, कला एवं संस्कृति के जिज्ञासुओं के लिए भी यह एक ऐतिहासिक ग्रंथ है.
श्री अरविंद कुमार और श्रीमती कुसुम कुमार द्वारा निर्मित The English-Hindi/Hindi-English Thesaurus and Dictionary प्रकाशित हुए हैं जिन का आज लोकार्पण किया गया.
भाषा एवं साहित्य औऱ हमारे जीवन के बीच जो संबंध है, उसे परिभाषित करना सरल भी है और इतना सरल नहीं भी है. भाषा ने संवाद की सुविधा प्रदान की, संवाद ने अभिव्यक्ति का माध्यम प्रदान किया और इस अभिव्यक्ति ने जब लेखनी के जरिए विस्तार पाया तो साहित्य की संज्ञा प्राप्त की.
किसी भी भाषा का साहित्य उस युग के समाज को प्रतिबिंबित करता है. यह एक सनातन सत्य है.
लेकिन आज का युग कुछ विशिष्टताएँ लिए हुए है. एक तो जिस तीव्र गति से यह आगे बढ़ रहा है, वह हम सब को अचंभित कर रहा है. दूसरी ओर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के नए उभरते क्षेत्र–बायोटैक्नोलजी, नैनोटैक्नोलजी, इनफ़ार्मेशन टैक्नोलजी–नए नए शब्द, नई परिभाषाएँ हमारे मानस को अभिभूत कर रही हैं. ऐसी स्थिति में यह सोचना कि साहित्य और प्रौद्योगिकी के बीच किस प्रकार सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है, अतार्किक न होगा.
साहित्य मानव संवेदनशीलता की उपज है. और प्रौद्योगिकी मस्तिष्क की. और यहीं हमारे युग की यह विशेषता हमारे सामने आती है. जहाँ एक ओर तकनीकी विकास तेज़ीी से हमारे जनजीवन को प्रवाहित कर रहा है, वहीं दूसरी ओर भाषा और साहित्य का भंडार निरंतर समृद्ध हो रहा है. साहित्यिक जगत भी इतना ही सक्रिय हो रहा है जितना कि ज्ञान विज्ञान के अन्य क्षेत्र. साहित्यिक सृजन के साथ साथ साहित्यिक गतिविधियाँ भी तेज हुई हैं. नित्य नई साहित्यिक कृतियों का प्रकाशन, विमोचन, लोकार्पण… यानी हमारे जीवन से भाषा एवं साहित्य न कभी अलग हुए हैं, और न ही अलग हो सकते हैं. हमारे जीवन में उन का स्थान स्थायी है.
आज ऐसे ही एक अवसर हम यहाँ उपस्थित हुए हैं. लेकिन यह एक विशेष अवसर है. आज एक ऐसी कृति का लोकार्पण किया गया है जो न साहित्यिक रचना है और न भाषाई. बल्कि इन दोनों को अपने में समाहित करते हुए, इन दोनों की पूरक है.
यह कृति है श्री अरविंद कुमार और उन की धर्मपत्नी श्रीमती कुसुम कुमार द्वारा तीन खंडों में तैयार किया गया, इंग्लिश-हिंदी/हिंदी-इंग्लिश थिसारस ऐंड डिक्शनरी.
Figure 1 श्रीमती मधु गोस्वामी
आज से लगभग 35 वर्ष पूर्व कुमार दंपती के मन में एक विचार उपजा–हिंदी थिसारस तैयार करने का. इस का प्रेरणा स्रोत था रोजट्स थिसारस. 1852 में रोजट्स थिसारस का प्रकाशन अँगरेजी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में एक अद्भुत घटना थी. डाक्टर पीटर मार्क रोजट ने, जो पेशे से एक वैज्ञानिक थे, थिसारस का पहला ड्राफ़्ट 1805 में तैयार किया, जब वह केवल 26 वर्ष के थे. लेकिन इस का प्रकाशन 47 वर्ष बाद 1852 में जा कर हुआ. प्रथम ड्राफ़्ट में केवल 15,000 शब्द थे, हालाँकि उस में इज़ाफ़ा होते होते बीसवीं सदी तक ढाई लाख से ऊपर हो गई.
रोजट्स थिसारस से पहले अँगरेजी में कोश निर्माण के कुछएक प्रयास हुए थे. रोबर्ट कौड्री का टेबल ऐल्फ़ाबैटिकल, जो 1604 में तैयार की गई. इस में मात्र 3,000 शब्द थे. थामस ब्लौंट्स का ग्लौसोग्राफ़िया 1656 में तैयार हुआ. और डाक्टर सैमुएल जानसन का 1755 में प्रकाशित डिक्शनरी आफ़ द इंग्लिश लैंग्वेज ऐसे समय में जब सीमित संख्या वाले शब्दों के कोश लंबे अंतरास में निर्मित किए जा रहे थे, पीटर मार्क रोजट द्वारा थिसारस की संकल्पना साहित्यिक जगत में एक अद्भुत घटना क्रम था. और यही था अरविंद कुमार और कुसुम कुमार का प्रेरणा स्रोत…
दूसरे शब्दों में कहें तो it fired their imagination. और एक विचार जो संभावना के रूप में जनमा, तुरंत एक जुनून में बदल गया. जिस संकल्पना को मूर्त्त रूप देने में दो वर्ष के समय का अनुमान लगाया गया हो, और लगे हों बीस वर्ष, ऐसी उपलब्धि जूनून से ही हासिल हो सकती थी. और एक अनन्य समर्पण भाव जिस की मिसाल कुमार दंपती ने क़ायम की.
अथक परिश्रम
जैसा कि अरविंद जी ने इस प्रकाशन की भूमिका में बताया है, बीस वर्ष के अथक परिश्रम के बाद उन के द्वारा तैयार किया गया थिसारस समांतर कोश के नाम से प्रकाशित हुआ. यह हिंदी का पहला थिसारस था. इस में डेढ़ लाख से भी अधिक प्रविष्टियाँ थीं. लेकिन अरविंद और कुसुम जी उतने से संतुष्ट नहीं थे. उन्हों ने थिसारस को द्विभाषी और अधिक व्यापक बनाने का कार्य आरंभ किया. इस कार्य की अपनी चुनौतियाँ थीं. दो भाषाओं के शब्दार्थों में सामंजस्य बिठाना, अंतरसांस्कृतिक संदर्भों को उजागर करना, शब्दों का सामाजिक, ऐतिहासिक संदर्भों में उल्लेख करना आदि. दस वर्ष की साधना के बाद अंततः तैयार हुआ तीन खंडों में यह थिसारस एवं शब्दकोश. 3,000 से अधिक पृष्ठों में हिंदी और अँगरेजी को मिला कर लगभग 6,00,000 शब्द अथवा ऐक्सप्रैशंस या अभिव्यक्तियाँ हैँ… एक अद्भुत प्रयास और एक अद्भुत उपलब्धि.
मैं ने इन तीन खंडों को देखा, इतने सीमित समय में इस कोश के बारे में, कुछ कह पाना न केवल असंभव होगा, बल्कि इस के प्रति अन्याय भी होगा.
अरविंद जी और कुसुम जी ने कोश की भूमिका में इस कोश को देखने का तरीक़ा बताया है. उस के आधार पर उस तरीक़े को समझते हुए, मैं ने तीनों खंडों को सरसरी तौर पर देखा, थोड़ा सा प्रयोग करना चाहा. कुछेक शब्द चुन कर उन के अर्थ ढूँढने की कोशिश की. जिस किसी भी शब्द को चुना उस की व्याख्या में शब्दों का एक ऐसा ख़ज़ाना पाया कि दंग रह गई. कुछ उदाहरण ज़रूर देना चाहूँगी. थिसारस की भूमिका में ही अँगरेजी का शब्द है flower और उस का हिंदी समानार्थक शब्द ”पुष्प” दिया गया है. अँगरेजी में flower के अंतर्गत फूलों की 63 किस्मों और ”पुष्प” के अंतर्गत 80 फूलों और उन की प्रजातियों की गणना की गई है.
heaven शीर्षक में 53 समानार्थक और दो विलोम शब्द दिए गए हैं, जब कि स्वर्ग शीर्षक अंतर्गत 81 समानार्थक तथा दो विलोम शब्द.
beautiful woman के अंतर्गत अँगरेजी में लगभग 50 समानार्थक और एक विलोम शब्द है, और हिंदी में सुंदर स्त्री के अंतर्गत 273 समानार्थक और एक विलोम शब्द है. यानी हमारी महिलाएँ पाँच गुना अधिक सुंदर.
index संख्या 722 पर प्रजापति शीर्षक के अंतर्गत प्रजापति से लेकर अदिति, दिति, सुरभि, सुरसा, मनु संतति… इतना ही नहीं 14 मनुओं के सूची भी दी गई है.
India के अंतर्गत सार्क देशों के नामों की सूची, भारत के राष्ट्रपिता, प्रथम राष्ट्रपति, प्रथम प्रधान मंत्री, भारतीय शास्त्रीय नृत्य और बहुत कुछ… दो शब्दों में कहें तो truly mind boggling!! सही मायने में यह mini encyclopedia और handbook दोनों ही है.
छोटी छोटी बातों का ध्यान
इतना ही नहीं अरविंद और कुसुम जी ने संदर्भगत छोटी छोटी बातों का ध्यान रखा है. हिंदी शब्दकोश के प्रत्येक दूसरे पृष्ठ के अंत में देवनागरी में हिंदी वर्णमाला दी हुई है, ताकि वर्णानुक्रम से कोश में शब्द खोजने में सुविधा हो तथा अँगरेजी और हिंदी के दोनों शब्दकोशों में प्रत्येक शब्द के साथ उस इंडैक्स नंबर दिया गया है, जिस से थिसारस में शब्द खोजने में सुविधा हो.
हिंदी जगत को यह बहुमूल्य निधि प्रदान करने के लिए देश विदेश के हिंदी स्कालर हिंदी प्रेमी अरविंद जी और कुसुम जी के सदैव आभारी रहेंगे. इस भगीरथ प्रयास में उन के पुत्र डाक्टर सुमीत कुमार और सुपुत्री मीता लाल का योगदान भी चिरस्मरणीय रहेगा.
पेंगुइन बुक्स इंडिया और यात्रा बुक्स ने उत्कृष्ट साहित्य के प्रकाशन तथा प्रकाशन की गुणवत्ता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का प्रमाण देते हुए, इस थिसारस और कोश को प्रकाशित करने में अग्रणी भूमिका निभाई, और भाषा के, साहित्य के, क्षेत्र में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है.
पेंगुइन बुक्स इंडिया, यात्रा बुक्स और नमिता गोखले जी और नीता गुप्ता और उन की टीम के सदस्य, इस सुरुचिपूर्ण प्रकाशन के लिए बहुत बधाई. पेंगुइन बुक्स इंडिया की मैं व्यक्तिगत रूप से आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे इस ऐतिहासिक अवसर में शामिल होने के लिए और इस thesaurus एवं कोश का लोकार्पण करने का सौभाग्य प्रदान किया. अरविंद कुमार और कुसुम कुमार जी द्वारा निर्मित कोश का लोकार्पण कर के मैं बहुत गौरवान्वित महसूस कर रही हूँ. अरविंद जी और कुसुम जी को सपरिवार तथा पेंगुइन बुक्स इंडिया और यात्रा बुक्स को पुनः बधाई, और यहाँ उपस्थित सभी श्रोताओँ को धन्यवाद.
©मधु गोस्वामी
आज ही http://arvindkumar.me पर लौग औन और रजिस्टर करेँ.
Comments