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कोशिश करे इनसान तो क्या कर नहीँ सकता

In Astronomy, Culture, History, Learning, People, Science by Arvind KumarLeave a Comment

कहानी अपंग वैज्ञानिक स्टीफ़न हाकिंग की…

प्रसिद्ध खगोलशास्त्री इतालवी गैलीलियो की मृत्यु के 300वें वर्ष 1942 मेँ ब्रिटेन मेँ जनमे स्टीफ़न हाकिंग आज संसार मेँ अपनी तरह के एकमात्र वैज्ञानिक हैँ.

आइंस्टाइन के बाद भौतिकी मेँ आज हाकिंग का ही नाम लिया जाता है. उन के नाम के साथ जुड़े हैँ अत्यंत प्रख्यात सिद्धांत— ब्लैक होल, क्वांतम ग्रैविटी. वह सिद्धांत कास्मोलजी मेँ अपनी स्थापनाओँ के लिए भी जाने जाते हैँ. उन की सब से बड़ी ख़ूबी है कि वह विज्ञानियोँ को तो क़ायल कर ही सकते हैँ, आम आदमी को भी अपनी बात आसान भाषा मेँ समझा सकते हैँ. उन की छोटी सी क्रांतिकारी पुस्तक ए ब्रीफ़ हिस्टरी आफ़ टाइम — फ़्राम दे बिग बैंग टु ब्लैक होल्स लाखों लोगों ने पढ़ी और समझी है.

बचपन मेँ वह संकोची क़िस्म के थे, लेकिन एक बात मन मेँ साफ़ थी कि विज्ञान पढ़ना है. पचास साल पहले जब कंप्यूटर बनना शुरू ही हुए थे, 1958 मेँ दोस्तों के साथ मिलकर उन्हों ने एक काम चलाऊ कंप्यूटर बना ही लिया. लगन के साथ वह पढ़ाई मेँ और शोध मेँ तरक्क़ी करते रहे. 32 साल की कम उम्र मेँ ही वह रायल सासाइटी के सदस्य बना दिए गए. Lou Gehrig””s disease लू गैहरिग का रोग जैसी मांसपेशियोँ से मन का नियंत्रण हटा देने वाली अपंगकारी बीमारी उन के काम को कभी रोक नहीँ पाई. दसियोँ साल से वे व्हीलचेअर से बँधे हैँ और कंप्यूटर के ज़रिए वॉइस सिंथैसाइज़र (कृत्रिम वाचा उत्पन्न करने का उपकरण) की सहायता से बोलते और भाषण देते हैँ. यह रोग उन्हेँ कैंब्रिज विश्वविद्यालय मेँ छात्र काल मेँ ही लग गया था. कंप्यूतर के कुंजी पटल पर उंगलियाँ नहीँ चला सकते. उन के लिए एक विशेष तकनीक ईजाद की गई है कि आँख के संचलन से कंप्यूटर आपरेट कर सकें…

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व्हीलचेअर पर बैठे कंप्यूटर की सहायता से

नासा की पचासवीँ वर्षगाँठ पर भाषण देते हाकिंग

 

भौतिकीविद हाकिंग ने 14 जुलाई 2008 मेँ घोषणा की कि वह अमरीकी सिद्धांत भौतिकीविद जान पर्सकिल से शर्त हार गए हैँ. यह शर्त उन्हों ने 1997 लगाई थी. सूचना विरोधाभास information paradox का नया हल बताते हुए हाकिंग ने डबलिन मेँ कहा, "मुझे लगता है कि सिद्धांत भौतिकी की एक मेजर (बड़ी) समस्या हल करने मेँ मैँ सफल हो गया हूँ." यह विरोधाभास उन्हीं की 1970 मेँ प्रकाशित पुस्तक मेँ अंतर्निहित था. तब उन्हों ने लिखा था— ब्लैक होल विकिरण के द्वारा घनत्व कम करते रहते हैँ औऱ अंततोगत्वा पूरी तरह उड़ जाते हैँ या तिरोहित हो जाते हैँ. यह सिद्धांत क्वांतम भौतिकी से प्राप्त तथ्योँ से मेल नहीँ खाता था.

अब वह मानने लगे हैँ कि ब्लैक होल मेँ जो सूचना या जानकारी गिर जाती है, वह नष्ट नहीँ होती, बुरी तरह विकृत हो जाती है.

© अरविंद कुमार

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