जो दासता लाद दी गई है हम पर,
चीख़ चिल्ला कर कह रही है :
नपुंसक हैँ हम! नपुंसक हैँ हम!
रोम. एक राजमार्ग.
(बिजली. गड़गड़ाहट. एक ओर से कास्का आता है. उस ने तलवार खीँच रखी है, दूसरी ओर से सिसैरो.)
सिसैरो
नमस्कार, कास्का. पहुँचा आए घर
सीज़र को? बदहवास क्योँ हो? आँखेँ
पथराई क्योँ हैँ?
कास्का
होश नहीँ उड़ेँगे
अगर चूल हिल जाए धरती की? मैँ
ने देखे हैँ झंझावात जिन मेँ जड़
से उखड़ जाते हैँ बड़े बड़े
पेड़. देखा है उफनता उछलता
समंदर घुमड़ते घनघनाते
बादलोँ से मिलने को बेचैन. कभी
देखा नहीँ ऐसा तूफ़ान – आकाश
से जिस मेँ बरसती हो ज्वाला. छिड़
गई क्या देवताओँ मेँ लड़ाई?
भर गया क्या हमारे पापोँ का
घड़ा? देवता तुले हैँ मिटाने
को धरती.
सिसैरो
देखा कुछ और अनोखा?
कास्का
अभी अभी देखा मैँ ने एक दास –
आप भी जानते हैँ उसे – हाथ ऊपर
उठा था उस का, जल रहा था बीस
मशालोँ के जैसा. पर न हाथ मेँ
जलन थी, न जलन का दाग़ था. और
सुनो… दुर्ग के सिंहद्वार पर मैँ ने
देखा… तब से तलवार म्यान मेँ नहीँ
डाली मैँ ने… एक महा विशाल
सिंह. मंद मंथर चला आ रहा
था. उस ने मेरी तरफ़ देखा,
मेरी आँखोँ मेँ आँखेँ डाली… और
बस, घूरता चला गया… एक टीले
पर थीँ सैकड़ोँ भयभीत नारियाँ. कह
रही थीँ वे – उन्होँ ने देखे हैँ
सड़कोँ पर चलते धधकते मानव.
कल ही की तो बात है. नगर चौक
मेँ भरी दोपहरी मेँ बोल रहा
था उल्लू… इतने सारे अपशकुन.
कुछ भी कहे कोई – यह यूँ हुआ!
इस कारण हुआ!… मैँ तो बस यही
कहूँगा – अपशकुन हैँ ये. चेता
रहे हैँ हमेँ. आने वाला है
संकट.
सिसैरो
सच! अद्भुत समय है यह. हो
रहे हैँ अनेक और अद्भुत लक्षण.
अपनी इच्छा से लगा रहे हैँ
सब अनोखे से अनोखा मतलब.
कहो तो, सीज़र कल आएगा क्या
संसद मेँ?
कास्का
हाँ! हाँ! ज़रूर! एंटनी से
कहा उस ने – आप को सूचना दे दे.
सिसैरो
चलता हूँ मैँ. ठीक नहीँ यूँ घूमना
इस मौसम मेँ.
कास्का
नमस्कार, सिसैरो.
(सिसैरो जाता है. कैसियस आता है.)
कैसियस
कौन है? कौन है उधर?
कास्का
एक रोमन.
कैसियस
कास्का?
कास्का
बड़े तेज़ हैँ कान!
कैसियस, कैसी है यह रात?
कैसियस
भली है –
भले लोगोँ के लिए.
कास्का
सोचा था
किसी ने – यूँ फट सकता है आकाश?
कैसियस
हाँ, सोचा था उन्होँ ने जो जानते
कितना दूषित है संसार. सीना यूँ
खोले आज रात सड़कोँ पर फिरा हूँ
मैँ. बादलोँ के सीने मेँ पैठती थी
जब बिजली की कटार, तो सामने कर
दी मैँ ने भी छाती.
कास्का
क्योँ ललकारा
आकाश को तुम ने? क्योँ अपने को
ख़तरोँ मेँ डाला? देवता गरजेँ तो
आदमी को चाहिए काँपना, थरथराना.
कैसियस
कास्का, कुंद हो चुके हो तुम. हर रोमन
को घुट्टी मेँ मिलता है जो साहस,
जो ओज, क्या सब खो चुके हो तुम? क्योँ
पीले पड़े हो? क्यो पथराई हैँ
आँखेँ? डरा सहमा क्योँ है चेहरा?
ज़रा सोचो, विचारो. आकाश से
क्योँ बरसते हैँ शोले? क्योँ नंगे
नाच रहे हैँ भूत और पिशाच? पशु
पक्षी क्योँ पगला गए हैँ? बूढ़े
बच्चे, गँवार और मूरख – सभी क्योँ
बन गए हैँ शकुनोँ के चितेरे?
प्रकृति क्योँ हो गई है विकराल?
कास्का, विचारो. ये संकेत भेजे हैँ
ऊपर वाले ने – हमेँ चेताने
को, बताने को, भयानक है आज
का युग, विकराल है आज का काल. कास्का,
हमारे बीच है कोई एक मानव.
इस रात जैसा ही भयानक है वह.
दिल का काला है वह,
बिजली सा चमचमाता है.
वज्र सा गड़गड़ाता है.
क़ब्रों को खोलता है वह.
सिंह सा चिंघाडता है,
लेकिन, मित्र, मिट्टी का शेर है वह.
तुम्हारे और मेरे जैसा निर्बल है वह.
बढ़ते बढ़ते बन गया है दानव,
छा गया है सब पर.
कास्का
कौन? सीज़र? क्योँ, कैसियस?
कैसियस
रहने दो उस का नाम. छोड़ो यह बात.
हम अपने को देखेँ. हम रोमन हैँ?
हैँ! बस नाम के. पुरखोँ के जैसे हैँ
हमारे हाथ पैर. लेकिन पुरखोँ मेँ
जो पौरुष था, साहस था, हाय, शोक!
महाशोक! वह अब हम मेँ नहीँ है.
हमारे कंधोँ पर जो जूआ है,
जो दासता लाद दी गई है हम पर,
चीख़ चिल्ला कर कह रही है :
नपुंसक हैँ हम! नपुंसक हैँ हम!
कास्का
सच है! सुना है कल सांसद घोषित
कर देँगे सीज़र को सम्राट. इटली
के बाहर जितने भी गण हैँ, देश
हैँ, सभी का एकमात्र छत्रपति!
मान लिया जाएगा उसे सब का
शाहानुशाहि, चक्रवर्ती सम्राट,
महामहिमामय मुकुटधारी.
कैसियस
जानते हो तब यह कटार कहाँ होगी?
मेरे जिगर के पार. कैसियस को यूँ
आज़ाद कर देगा कैसियस. कास्का,
यही तो वह बल है, जो दिया है
भगवान ने सभी को. यही तो
वह बल है जो निर्बलतम मानव
को बना देता है बलवान, स्वाधीन.
यही वह बल है जिस से हार जाते
हैँ बड़े से बड़े सम्राट. नहीँ
है कोई प्राचीर, नहीँ है कोई
काल कोठरी, कोई लौह कपाट, जंज़ीर –
जो बाँध सके मानव की सत्ता को.
अत्याचारी कितना भी निर्मम हो,
सहने की होती है एक सीमा. हर
दास के हाथ मैँ है अपनी आज़ादी!
अच्छी तरह जानता हूँ मैँ अपनी
यह ताक़त. जब चाहूँ झटक सकता
मैँ अत्याचारोँ का बोझा.
(गड़गड़ाहट रुकती है.)
कास्का
मैँ भी. मैँ ही क्योँ? हर रोमन. हर
दास के हाथ मेँ है अपनी आज़ादी.
कैसियस
तो फिर सीज़र कैसे बन बैठा है
अत्याचारी? भेड़ नहीँ होते हम,
तो भेड़िया बनता वह कैसे? हम
न होते मृग, तो बनता कैसे
वह मृगारि? दावानल भड़कानी हो
तो पहले जलाए जाते हैँ तिनके.
कैसा कूड़कर्कट झाड़झंखाड़ है
रोम, जो जलता है करने को प्रकाशित
सीज़र जैसे नीच का मस्तक… लेकिन
क्या हो गया है मुझे? बक रहा
हूँ प्रमाद मेँ यह सब किस के आगे?
सीज़र के दास तो नहीँ हो तुम? ख़ैर,
कोई बात नहीँ. जानता हूँ क्या
करना है मुझे. तैयार हूँ मैँ.
खतरोँ से खेलता हूँ मैँ.
कास्का
कास्का हूँ
मैँ, चुग़लख़ोर नहीँ हूँ मैँ. लो हाथ!
कुछ करना है, कैसियस, तो चलो,
दुराचार मिटाने चलो. दूर तक
चलूँगा मैँ तुम्हारे साथ.
कैसियस
दो हाथ!
तो सुनो, कई रोमन महानुभाव आ
चुके हैँ हमारे साथ, ख़तरोँ
से खेलने को तैयार. वे बैठे
हैँ मेरी प्रतीक्षा मेँ पोंपेई
की रंगशाला मेँ. भयानक है
यह रात. सूने हैँ मार्ग. हमारा
काम भी भयानक है. इस के लिए
चाहिए थी ऐसी ही रक्तिम रात –
धधकती, भयानक…
कास्का
चुप! आ रहा
है कोई. जल्दी मैँ है…
कैसियस
सिन्ना है.
पहचानता हूँ मैँ यह पदचाप. अपना
(सिन्ना आता है.)
मित्र है. मित्र सिन्ना, किधर?
सिन्ना
तुम्हेँ खोजने. कौन है यह? मेटेलस
सिंबर तो नहीँ?
कैसियस
नहीँ. कास्का हैँ –
हमारे नए साथी. आ गए
सब रंगशाला मेँ?
सिन्ना
स्वागत है, मित्र
कास्का. भयानक है रात. हो रहे
हैँ अनोखे चमत्कार.
कैसियस
सब आ गए
रंगशाला मेँ?
सिन्ना
आ गए, कैसियस,
काश! तुम ला पाते ब्रूटस महान
को भी हमारे साथ…
कैसियस
धीरज धरो.
लो, यह भोजपत्र. यह तुम रख देना…
ब्रूटस की कचहरी मेँ कुरसी पर. उन
की नज़र पड़ जानी चाहिए
इर पर. और यह. इसे तुम
ब्रूटस के घर के गवाक्ष मेँ रखना.
ये पुरजे ब्रूटस की प्रतिमा के
नीचे चिपकाना. फिर पहुँचो तुम
रंगशाला मेँ. वहीँ मिलना. क्या
डीसियस ब्रूटस, मेटेलस सिंबर
भी हैँ वहाँ?
सिन्ना
सब हैँ, नहीँ हैँ बस
मेटेलस सिंबर. गए हैँ तुम्हेँ
खोजने तुम्हारे घर. तो चलता हूँ
मैँ. सभी रुक्के डाल दूँगा जैसे
कहा है तुम ने.
कैसियस
मिलना रंगशाला मेँ.
(सिन्ना जाता है)
चलो, कास्का, अभी बहुत करना
है. रात बीतने से पहले मिलेँगे
ब्रूटस महान से उन के घर पर.
तीन चौथाई तो वे आ चुके हैँ
हमारे साथ, आज की रात वे होँगे
पूरे के पूरे हमारी झोली मेँ.
कास्का
ऊँचा स्थान है उन का जनता के मन
मेँ. हमारा किया माना जाएगा
घोर अपराध. वे साथ होँ हमारे, तो
हमारी करनी बनेगी महान.
कैसियस
कास्का, बड़ी काँटे की पकड़ है
तुम्हारी. सच मेँ, महान हैँ ब्रूटस.
जैसे भी हो, उन्हेँ लाना होगा
अपने साथ. चलो, चलेँ. हो चुकी
है आधी रात. भोर होने से पहले
जगाना है उन को. कल होने से
पहले साथी बनाना है उन को.
(जाते हैँ.)
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