फ़ाउस्ट – भाग 1 दृश्य 17 – पनघट पर

In Culture, Drama, Fiction, History, Poetry, Spiritual, Translation by Arvind KumarLeave a Comment

 

 

 


फ़ाउस्ट – एक त्रासदी

योहान वोल्‍फ़गांग फ़ौन गोएथे

काव्यानुवाद -  © अरविंद कुमार

१७. पनघट पर

पानी के घड़े लिए मार्गरेट और लीशन.

लीशन

सुना? बारबरा का?

मार्गरेट

नहीँ तो. क्या हुआ?

घर से मैँ निकलती हूँ कहाँ?

लीशन

मुझे तो सिबिल ने बताया…

लेकिन सच है यह बात…

शर्म से झुक गया है उस का सिर,

कैसे शान से चलती थी – उठा के सिर.

मार्गरेट

क्योँ? क्या हुआ?

लीशन

अब नहीँ है वह एक!

पलते हैँ दो, जब खाती है एक…

समझी…?

मार्गरेट

हे भगवान…!

लीशन

होना ही था एक न एक दिन.

जैसी करनी! वैसी भरनी!

हो गई थी दीवानी!

साथ ले जाता था हर जगह, करता था मनमानी…

गाँव के नाच मेँ! चलती थी जैसे रानी!

पिलाता था मदिरा – खिलाता था क्रीम…

इतराती फिरती थी – रूप की रानी!

बेशर्म, छिनाल, बेझिझक लेती थी उपहार

साथ मेँ पहनाता था – बाँहोँ के हार…

रस के प्याले थे होँठ –

भँवरा चूसेगा कस कर – कुम्हलाएगा फूल!

मार्गरेट

बेचारी!

लीशन

तुझे तरस आता है उस पर?

एक हम हैँ – बैठी रहती हैँ घर!

कातती रहती हैँ चरखे!

माँएँ करती हैँ रखवाली!

वह? – हरदम रहती थी यार के साथ.

कस कर चिपटती थी छैला से

अँधेरी गली मेँ, घर के द्वार पर.

जैसी करनी! वैसी भरनी!

गिरजाघर मेँ पहनेगी पश्चात्ताप का टाट!

मार्गरेट

क्योँ? वह बना लेगा उसे – घर की रानी!

लीशन

पागल नहीँ है वह! बाँका है छैला!

ऐसोँ की होती नहीँ कोई एक.

कभी का हो चुका है वह छू मंतर…

मार्गरेट

हाय! पाजी! कमीना!

लीशन

मिल भी जाता वह छैल छबीला

तो बारबरा को पहनने नही देते गाँव के नौजवान –

कुँवारी वधुओँ का पुष्पहार!

डाल देते उस के दर पर

छिनाल का घासफूस.

मार्गरेट (घर लौटती हुई. स्‍वगत – )

जब किसी बेचारी से होती थी कोई भूल,

डालती थी मैँ भी उस पर निंदा की धूल,

देती थी ताने, मारती थी बोल!

काली करतूत को पोतती थी और भी काला.

करती थी भगवान का गुणगान –

हुआ नहीँ मुझ से अपराध.

और अब? वही है मेरा हाल!

जो भी हुआ, जिस ने भी किया मेरा यह हाल,

मेरे भगवान, सुंदर था वह, शुभ था वह.

पावन था मेरा प्रेम.

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