फ़ाउस्ट – भाग 1 दृश्य 13 – उपवन मेँ कुंज

In Culture, Drama, Fiction, History, Poetry, Spiritual, Translation by Arvind KumarLeave a Comment

 

 

 


फ़ाउस्ट – एक त्रासदी

योहान वोल्‍फ़गांग फ़ौन गोएथे

काव्यानुवाद -  © अरविंद कुमार

१३. उपवन मेँ कुंज

आँखमिचौनी सी खेलती हँसती खिलखिलाती मार्गरेट दौड़ कर आती है. दरवाज़े की ओट मेँ छिप जाती है.

मार्गरेट

आ रहे हैँ वे!

फ़ाउस्ट (उसे खोजता आता है.)

        यहाँ छिपी हो! पकड़ ही लिया मैँ ने!

(बाँहोँ मेँ भर कर कस कर चूम लेता है.)

मार्गरेट (उसे बाँहोँ के घेरे मेँ लेती है. चुंबन का उत्तर चुंबन से देती है.)

प्रियतम! मेरे प्रियतम!

तुम्हेँ प्यार करती हूँ, प्रियतम!

(मैफ़िस्टोफ़िलीज़ दरवाज़ा खटखटाता है.)

फ़ाउस्ट (पैर पटक कर – )

कौन है?

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

        एक दोस्त!

फ़ाउस्ट

                                नहीँ, हैवान!

मैफ़िस्टोफ़िलीज़

चलने का समय आ गया – करेँ प्रस्थान…

मार्था

हाँ, हो रही है बहुत देर.

फ़ाउस्ट

मैँ भी चलूँ तुम्हारे साथ?

मार्गरेट

                    मेरी माँ… अल्विदा.

फ़ाउस्ट

तो बिछुड़ना पड़ेगा अब? विदा!

मार्था

अल्विदा.

मार्गरेट

    मिलेँगे फिर…

(फ़ाउस्ट और मैफ़िस्टोफ़िलीज़ जाते हैँ.)

मार्गरेट

कैसा है उस मेँ आत्मविश्वास, हे भगवान!

मेरे हर रहस्य का स्वामी –

मानो उस की मुट्ठी मेँ है जीवन.

केवल – हाँ! ही कह पाती हूँ मैँ.

क्या देखा है उस ने मुझ मेँ –

मेरी ग़रीबी! मेरी सादगी!

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