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फ़ाउस्ट – एक त्रासदी
योहान वोल्फ़गांग फ़ौन गोएथे
काव्यानुवाद - © अरविंद कुमार
१२. उपवन
फ़ाउस्ट की बाँहोँ मेँ बाँहेँ डाले मार्गरेट, मैफ़िस्टोफ़िलीज़ के साथ मार्था. इस छोर से उस छोर तक आ जा रहे हैँ.
मार्गरेट
सचमुच, बड़े उदार हैँ आप.
मुझ अकिंचन पर इतनी मेहरबानी.
हो रही हूँ लाज से पानी पानी.
राह मेँ मिलता है जो कुछ –
पंथी उस से हो जाते हैँ ख़ुश.
नहीँ देख पाते वे किसी के दोष.
आप हैँ – सभ्य शालीन.
आप को उकता देगी मेरी टूटी फूटी बात.
फ़ाउस्ट
कैसी करती हो बात?
तुम्हारा एक बोल, तुम्हारी एक चितवन –
इन के सामने तुच्छ है संसार का ज्ञान दर्शन.
(मार्गरेट का हाथ चूमता है.)
मार्गरेट
छोड़िए भी! कहाँ आप के ये अधर!
कहाँ मेरे ये हाथ – कठोर…
माँ कराती हैँ मुझ से घर के सब काम.
(मंच के पार चले जाते हैँ.)
मार्था
कब तक यूँ दुनिया मेँ भटकते रहेँगे आप!
नहीँ ठहर सकते कहीँ कुछ दिन आप?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
रुकते नहीँ कभी कर्तव्य व्यापार.
अक्सर हम चाहते हैँ बस यहीँ रुक जाएँ, बस जाएँ,
पर ठहरना रुकना होता है बस के बाहर.
मार्था
जब तक जवानी है, ठीक है यह सब –
चाहेँ जहाँ घूमेँ, चलेँ जो राह बुलाए.
पर जब ढलने लगता है वसंत
क्वारोँ को सालने लगता है एकाकीपन
अर्थहीन लगता है जीवन…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
उस दिन की कल्पना सालती है मेरा मन.
मार्था
अभी से सोचिए – आने वाला है वह दिन
(मंच के पार चले जाते हैँ.)
मार्गरेट
चले जाएँगे आप.
भूल जाएँगे आप.
आप के लिए कितना सहज है सभ्य व्यवहार.
कहाँ मैँ अभागिन निपट गँवार!
फ़ाउस्ट
प्रियतम, मानो मेरी बात.
जिसे कहता है वाग्मिता संसार
वह है केवल खोखला दंभी व्यवहार.
मार्गरेट
क्या कहते हैँ आप?
फ़ाउस्ट
यह भोलापन, यह सादगी, ये मीठे बोल –
क्या सचमुच नहीँ जानतीँ तुम अपना अनुपम मोल?
यह विनम्र निरहंकार व्यवहार –
है प्रकृति का दुर्लभतम उपहार.
मार्गरेट
जैसी हूँ मैँ, वैसी ही समझेँ मुझे आप.
होती हूँ अकेली – मेरे साथ होते हैँ आप.
फ़ाउस्ट
होती हो तुम अकसर अकेली?
मार्गरेट
हाँ, छोटा सा है हमारा घर,
फिर भी दौड़ती रहती हूँ दिन भर.
करने होते हैँ सारे काम
घर मेँ नहीँ है कोई नौकर…
खाना बनाना, झाड़ना, बुहारना!
सीना पिरोना. रखना राई रत्ती हिसाब!
माँ मेरी – रखती है पाई पाई का हिसाब.
इतनी कंजूसी न करेँ, तो भी चल सकता है काम…
हम ख़र्च कर सकते हैँ पैसा – जहाँ लोग लगते हैँ छदाम.
बहुत कुछ छोड़ गए हैँ पिताजी…
छोटा सा उपवन, छोटी कुटिया – नगर के बहुत पास.
फिर भी ठहरा सा लगता है हर क्षण.
हमारे दिन हैँ लंबे और एक समान.
बाहर है मेरा भाई.
सेना मेँ जवान.
थी एक छोटी बहन –
मैँ ने बड़े कष्टोँ से पाली.
नन्हीँ सी प्यारी प्यारी थीँ उस की हथेली.
उस के लिए फिर से कर सकती हूँ मैँ वह सब.
फ़ाउस्ट
तुम्हारे ही जैसी होगी सुंदर सुकुमार.
मार्गरेट
मैँ ने ही पाला था उसे
वह भी करती थी मुझ से प्यार.
उस के जन्म से पहले ही छोड़ गए थे पिताजी संसार.
माँ थीँ बेहद कमज़ोर, बीमार.
उन के बचने की नहीँ थी आशा.
बड़े धीरे धीरे जागी जीवन की अभिलाषा.
पर पालेँ नन्हीँ सी जान
नहीँ थी माँ मेँ इतनी जान.
मैँ ही पिलाती थी दूध, वह थी मेरी ही संतान.
मेरी गोदी का खिलौना, मेरी बाँहोँ का हार.
हँसती खेलती खिलखिलाती थी
फूल सी बढ़ती जाती थी.
फ़ाउस्ट
तुम ने भोगा है वह सुख – वह आनंद
जो है संसार मेँ सर्वोत्तम!
और साथ ही भोगी है पीड़ा चिंता दुर्दांत.
मार्गरेट
हर रात सोती थी वह मेरे साथ.
ज़रा हिलती थी वह, खुलती थी मेरी आँख.
दूध पिलाती थी उसे, छाती से लगाती थी.
बेचैन होती थी, रोती थी वह, तो उठाती थी
बाँहोँ के झूले मेँ सुलाती थी.
रो रो कर वह घर सर पर उठाती थी
मैँ उसे थपथपाती थी, कमरे मेँ घुमाती थी.
भोर होते ही खुले शीतल आकाश के नीचे
मैँ धोती थी रात के गीले कपड़े.
जाती थी करने बाज़ार, पकाती थी खाना.
यही था रोज़मर्रा का ढर्रा.
दिन होते थे एक समान.
पिसती थी, खटती थी, दिन रात…
कभी कभी चुक जाता था जीवन का स्वाद
लेकिन मेहनत से लगता था भोजन बहुत स्वाद,
अच्छा लगता था आराम.
(मंच के पार चले जाते हैँ.)
मार्था
क्या करेगी बेचारी नारी!
कितना ही पटाओ –
आसानी से नहीँ पटते नौजवान.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
तुम जैसियोँ का है यह काम – हमेँ बताएँ,
आने वाली विपदा से अपने को कैसे बचाएँ.
मार्था
नहीँ मिली एक भी, कोई भी, अभी तक!
बोलो, बताओ… आज़ाद है आप का दिल अभी तक –
खुल खेलने को… जवानी के खेल?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
सुना है – घर होता है दुर्ग, घरनी नहीँ होती खेल
वह होती है हीरे मोती से क़ीमती आभूषण.
मार्था
मेरा मतलब था – कभी नहीँ उठती
आप मेँ – यौवन की हिलोर.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
हर गैल मेँ, हर राह मेँ देखी है
नौजवानोँ की हिलोर.
मार्था
मेरा मतलब है – आप का अपना दिल -
अभी तक है – – आज़ाद?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
नहीँ है किसी मर्द को अधिकार
नारी जाति से करे खिलवाड़.
मार्था
अब भी नहीँ समझे आप!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
नहीँ है यह बात!
समझ रहा हूँ
आप किसी भी बात से नहीँ करेँगी इनकार.
(मंच के पार चले जाते हैँ.)
फ़ाउस्ट
मेरी बन्नो, मेरी सरताज़,
मुझे पहचान लिया था तुम ने
जैसे ही आया मैँ उपवन के द्वार?
मार्गरेट
देखा नहीँ आप ने – झुकी थीँ निगाह,
फिर भी रही थी आप को निहार.
फ़ाउस्ट
कर पाओगी तुम क्षमा
मेरा वह उद्धत व्यवहार –
उस दिन गिरजाघर के पास?
मार्गरेट
उस दिन जो हुआ!
इस से पहले कभी किसी ने नहीँ छेड़ा था मुझे.
घबरा गई थी मैँ. नहीँ है कोई पूरे गाँव मेँ, जो छेड़े मुझे.
तब से मन ही मन लग रहा था डर,
कहीँ समझ न बैठेँ आप मुझे लड़ाकी, उजड्ड, गँवार.
जब आप बढ़े थे मेरी ओर,
मैँ ने सोचा, आप समझे हैँ मुझे सस्ती नार.
पर यह भी सही है – पता नहीँ क्या था
मन मेँ कर रहा था आप को स्वीकार.
झुँझलाहट भी थी मन मेँ,
क्योँ नहीँ डाटा आप को और भी ज़ोर से.
फ़ाउस्ट
प्रियतमे!
मार्गरेट
ठहरिए पल भर –
(एक फूल तोड़ लेती है. एक एक कर के उस की पँखड़ियाँ नोँचती है.)
फ़ाउस्ट
क्योँ? किस लिए? बनाओगी हार?
मार्गरेट
बस यूँ ही – है एक खेल…
जाइए! हँसेँगे आप मुझ पर.
फ़ाउस्ट
क्या जप रही हो मन ही मन
मार्गरेट (आधी स्वगत – )
चाहते हैँ… नहीँ चाहते…
फ़ाउस्ट
स्वर्ग की देवी है! निष्कलंक! निष्पाप!
मार्गरेट (उसी तरह – )
वे मुझे चाहते हैँ… नहीँ… चाहते हैँ… नहीँ…
(बालसुलभ उत्साह के साथ अंतिम पँखड़ी तोड़ती है.)
वे मुझे चाहते हैँ!
फ़ाउस्ट
हाँ, प्रियतम, हाँ…
जो कुछ कह दिया है तुम से इस फूल ने
वह है स्वयं भगवान का वरदान.
जानती हो इस का अर्थ! वह तुम्हेँ चाहता है.
मार्गरेट
कैसा यह कंपन, सिहरन…
फ़ाउस्ट
डरो मत… कह देने दो मेरे नयनोँ को,
मेरे हाथोँ के बंधन को,
वह सब जो नहीँ कह सकते हमारे बोल.
हो जाने दो हमेँ, तुम्हेँ, मुझे, न्योछावर -
अनुभव करो आनंद, आह्लाद, अनंत…
हो गया इस का अंत
तो अर्थ होगा पीड़ा, निराशा गहनतम.
नहीँ होगा इस का अंत
नहीँ होगा कभी इस का अंत…
(मार्गरेट उस का हाथ थामती है, छोड़ती है, और चली जाती है. पीछे पीछे फ़ाउस्ट जाता है.)
मार्था (दोनोँ आते हैँ.)
घिरी आ रही है रात.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
जाना होगा हमेँ अपने ठौर.
मार्था
मैँ तो कहती –
ठहरो, ठहरो – अभी कुछ और.
लेकिन छोटा सा निर्दय है यह गाँव
लोगोँ का है बस एक ही काम –
घुसाना दूसरोँ के जीवन मेँ नाक,
करना ताकझाँक,
बनाना बात जहाँ न हो कुछ बात…
कहाँ गया हमारा हंसोँ का जोड़ा?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
वसंत के पखेरुओँ सा उड़ गया
गाता प्यार का तराना.
मार्था
वह चाहता है उसे, है मेरा विचार.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
वह चाहती है उसे – यही है संसार.
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