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फ़ाउस्ट – एक त्रासदी
योहान वोल्फ़गांग फ़ौन गोएथे
काव्यानुवाद – © अरविंद कुमार
५. लाइपत्सिग मेँ आयरबाख का शराबघर
कुछ मदमाते मस्त नौजवान.
फ्रौश
पीते गाते नहीँ क्योँ आज?
हँसते गाते नहीँ क्योँ आज?
उफनते मचलते हो रोज़
क्योँ मनहूस से बैठे हो आज?
ब्रांडर
क्या हँसेँ खेलेँ? तू ही भूल गया
धमा चौकड़ी, हँसी ठट्ठा…
फ्रौश
तो लो…यह रहा नमूना…
(ब्रांडर के सिर पर शराब उँडेलता है.)
ब्रांडर
पाजी! गधा!
फ्रौश
यही तो चाहते थे ना तुम, मुन्ना!
सीबल
लड़ो मत. लड़ने वाला कर दिया जाएगा बाहर!
सुर निकालो, सुरा ढालो, करो हल्ला गुल्ला…
तो तैयार… हो-ओ-ओे…
आल्टमेयर
कान! फोड़ दोगे मेरे कान!
सीबल
न गूँजे दीवारेँ, न फूटेँ कान –
तो तान की कैसे होगी पहचान!
फ्रौश
वल्लाह! क्या छेड़ी है तान!
नहीँ सुनना है जिसे – चला जाए बाहर
आ टारा लारा आ!
आल्टमेयर
आ टारा लारा आ!
फ्रौश
लो मिल गए सुर. लो मिल गई तान.
टूटी… टूटी… लो टूटी
रोम की सल्तनत टूटी…
ब्रांडर
बकवास है यह तान –
बेसुरी राजनीति का बेसुरा गान.
तेरा भला हो, परवरदिगार,
देश का नहीँ हूँ मैँ अलमबरदार –
मैँ रहता हूँ हरदम शुक्रगुज़ार –
न हूँ मंत्री, न राजा, न राजा का साला!
ठीक है – देश चलाने को चाहिए सरकार –
पर हमेँ इस से क्या सरोकार?
इस से तो अच्छा हम चुनेँ ऐसा नया पोप
जिस मेँ हो सारे सद्गुणोँ की भरमार.
फ्रौश (गाता है.)
कोयल कूके सारी रैना
प्यारी जागे सारी रैना…
सीबल
रहने दे! रहने दे! – अपनी प्यारी के बैना!
फ्रौश
गाऊँगा मैँ तो अपनी प्यारी का गीत.
रहती है व्याकुल – वह सारी रैना –
मैँ ठहरा उस की बाँहोँ का गहना!
(गाता है.)
खोलो कुंडी, आई रैना
खोलो कुंडी, आए सजना
बीत न जाए रैना!
सीबल
गा! गाना है तो गा प्रेम का तराना –
लेकिन जो बीती थी मुझ पर कान खोल सुन ले ना.
एक बार मुझे भी उस से पड़ गया था पाला,
तौबा! तौबा! शैतान की ख़ाला!
हम जैसोँ के बस का नहीँ है – उस के झटके झेलना.
हमेँ तो चाहिए – उस की खिड़की पर ईँट पत्थर फेँकना.
ब्रांडर
सज्जनो! महाशयो! श्रीमान!
अब दीजिए आप सब मुझे कान…
प्रेम का विषय छिड़ गया है महान.
प्रेम मेँ दीवाना है हर नौजवान.
पेश है आप के सामने बिल्कुल नई मदमस्त तान.
जी, हाँ, प्रेम का नवीनतम समूह गान.
आइए, मिल कर गाएँ हम सब यह गान.
(गाता है.)
चूहा था मोटा ताज़ा
नित मक्खन रोटी खाता
भंडार मेँ उस का बिल था
था कोट बहुत ही छोटा
था लूथर जैसा मोटा
भंडारी ने ज़हर खिलाया –
कोरस
वह जोश मेँ उछला ऐसे –
जैसे प्रेम अगन हो लागी
ब्रांडर
चूहा कूदा फुदका
ढेरोँ पानी पी डाला
तड़प तड़प कर डोला
यह कुतरा – वह खाया
चैन न फिर भी पाया
यह नोँचा – वह खोदा
पागल सा वह दौड़ा
कोरस
वह जोश मेँ उछला ऐसे
जैसे प्रेम अगन हो लागी
ब्रांडर
सुबह हुई दिन निकला
था चूल्हे पर चूहा मरता
धुक धुक था दिल चलता
था सारा बदन झुलसता
भंडारी हँस कर बोला
अब अंत समय है आया
कोरस
मेरा ज़हर है चढ़ता ऐसे
जैसे प्रेम अगन हो लागी
सीबल
कैसे बेरहम हो!
मरते चूहे पर हँसते हो.
ब्रांडर
क्योँ, तुम्हारे सगे हैँ क्या?
मोटू! पेटू! डरपोक! गंजू!
मरे चूहे मेँ दिखाई देती है तुझे अपनी सूरत.
(फ़ाउस्ट और मैफ़िस्टोफ़िलीज़ आते हैँ.)
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
लो पहला पड़ाव है यहाँ
देखो मदमस्त लोग यहाँ –
इन का जीवन बस खेल तमाशा
बस, इतनी है इन की आशा
दावत, मस्ती और तमाशा.
बुद्धि से नहीँ है कुछ काम,
बस, उछल कूद से इन्हेँ काम.
सुबह उठते हैँ थके माँदे
हैँ हरदम अधूरे आधे,
ना चिंता है ना बुख़ार
जब तक मिलता रहे उधार…
ब्रांडर
आए हैँ ये दो यात्री करने आराम.
अजनबी हैँ – कर रही है वेशभूषा ऐलान.
बस, कुछ देर पहले पहुँचे हैँ आन.
फ्रौश
ठीक पहचाना! लाइपत्सिग की है आजकल शान
हमारे शहर के सामने अब नहीँ है कुछ पैरिस महान.
लोग आते हैँ लाइपत्सिग – पाने को संसार का ज्ञान.
सीबल
कौन हैँ, कैसे लोग हैँ ये!
फ्रौश
छोड़ दो मुझ पर
और शराब पर – यह काम. शराब पी कर
लोग उगल देते हैँ सब कुछ ऐसे
बचपन के दाँत झड़ जाते हैँ जैसे.
ऊँची है नाक! लगते हैँ बड़े लोग.
आसानी से ख़ुश नहीँ होते ये लोग.
लगते हैँ परेशान…
ब्रांडर
मुझे लगते हैँ ढोँगी मेहमान…
आल्टमेयर
शायद.
फ्रौश
अभी घिसता हूँ कसौटी पर, करता हूँ पहचान!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (फ़ाउस्ट से – )
पीठ पर सवार हो शैतान
तो भी नहीँ पहचानता इनसान.
फ़ाउस्ट
गुड ईवनिंग, जैंटलमैन.
सीबल
आप को भी, श्रीमान.
(स्वगत – मैफ़िस्टोफ़िलीज़ को परखते हुए – )
पैर देखो – लगता है लंगड़दीन!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
अनुमति देँ यदि, श्रीमान, हमेँ मिल जाए सम्मान,
हम भी शामिल हो जाएँ आप की महफ़िल मेँ,
बैठेँ घड़ी भर आप के साथ.
इतनी घटिया है यहाँ की शराब –
गले से उतारने को चाहिए आप जैसोँ का साथ.
आल्टमेयर
बड़ा ऊँचा लगता है आप का टेस्ट!
फ्रौश
कहीँ ऐसी वैसी जगह खा बैठे आप! यहीँ कहीँ आसपास!
जैसे किया हो महाभोज हर्र बैरन वानसोकर क्राउट के साथ!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
तौबा! बच गए, जी, इस बार!
वहाँ गए थे हम पिछली बार –
बीसियोँ हैँ बैरन के रिश्तेदार
सब के सब हैँ पूरे ज़ाहिल गँवार.
बैरन करते रहे उन की चर्चा बार बार… बार बार…
हमेँ उन से मिलवाने का करते रहे इसरार…
(फ्रौश की ओर दरबारी अंदाज़ मेँ झुकता है.)
आल्टमेयर (स्वगत – )
समझे, मुन्ना!
सीबल
यह है पूरी तरह चालू होशियार!
फ्रौश
लो, अभी खिलाता हूँ इसे पटखनी दो चार.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
ग़लत नहीँ हूँ तो, श्रीमान, आते आते सुना था गान –
गूँज रहे थे गुंबद मेहराब, छेड़ रखे थे किसी ने सुर और तान.
फ्रौश
तो आप भी हैँ उस्ताद!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
कहाँ, जी!
बस, शौक़ है सुरोँ का. लेकिन गला… बेसुरा है…
आल्टमेयर
तो हो जाय एक तान –
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
देखिए आप ज़िद कर रहे हैँ, तो…
सीबल
एक शर्त है, बिलकुल नया हो गीत…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
बेशक! अभी अभी हम लौटे हैँ स्पेन से.
जी, हाँ, हाला, मधुशाला और मधुबाला के देश से –
(गाता है – )
है हम ने सुनी कहानी
राजा ने मक्खी पाली
फ्रौश
सुना! क्या पाला? मक्खी!
क्या ख़ूब मिला है साथी
क्या ख़ूब मिलाई जोड़ी!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (गाता है – )
है हम ने सुनी कहानी
राजा ने मक्खी पाली
थी साथ उसी के खाती
थी शहज़ादे से प्यारी!
राजा को शौक़ चढ़ा तो
दर्ज़ी को बुलवाया
अपनी प्यारी मक्खी के
कपड़ोँ का नाप दिलाया.
ब्रांडर
दर्ज़ी से कहला दो
बिरजिस बेहद बढ़िया हो.
तंग हुई या ढीली
तो, दर्ज़ी, तेरी गरदन
हो ली, ढीली हो ली!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
साटन का सूट सिला फिर
टोपे मेँ लगा रिबन फिर
तमग़े इतने लटके थे
सालारजंग हो जैसे!
राजा ने मक्खी पाली
मक्खी राजा की प्यारी!
मक्खी के रिश्ते वाले
सब उस के भाई भतीजे
नित बड़े जनोँ से मिलते –
सब को मक्खी ने काटा
मक्खी राजा की प्यारी!
दरबार नरक मेँ बदला
सब को मक्खी ने काटा
बूढ़े जवान हर जन को
सब को मक्खी ने काटा
रानी और सहेली
सब को मक्खी ने काटा
क्या करती रानी बेचारी
मक्खी को मार न पाती
कष्टोँ का अंत नहीँ था
था अंग अंग खुजलाता
मक्खी थी सब की बैरन
मक्खी राजा की प्यारी!
हैँ अच्छे जन साधारण
मक्खी काटे तो मारेँ!
कोरस (जोश ख़रोश से – )
हैँ अच्छे जन साधारण
मक्खी काटे तो मारेँ!
मक्खी काटे तो मारेँ!
मक्खी काटे तो मारेँ!
फ्रौश
यह हुआ कुछ गीत संगीत! वल्लाह!
सीबल
हर मक्खी को मिलनी चाहिए ऐसी सीख!
ब्रांडर
झपटो, हर मक्खी का मारो!
आल्टमेयर
हो जाए एक जाम आज़ादी के नाम!
और एक जाम शराब के नाम!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
जी, हाँ, हो जाने देँ एक जाम आज़ादी के नाम
लेकिन शराब? इस घटिया शराब के नाम –
नो जाम!
सीबल
देखिए हमेँ पसंद नहीँ आया आप का यह बेजा क़लाम…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
मयख़ाने वाला हो नाराज़ –
यह हम नहीँ चाहते, जनाब,
वरना हम पेश करते नायाब
सब की मनपसंद शराब.
सीबल
उसे भुगत लेँगे हम सब, जनाब.
फ्रौश
आने दो, आने दो, अच्छा सा जाम!
बहने लगेँगे ख़ूब तारीफ़ के जाम!
बहने दो रस की, मधुरस की, धार…
आल्टमेयर (स्वगत – )
कुछ नहीँ, ये हैँ राइन के कलार…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
बोतल खोलने वाला तो दो…
ब्रांडर
उस से क्या होगा? बोतल है? बाहर?
आल्टमेयर
वे रहे! टोकरी मेँ हैँ सब औज़ार…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (फ्रौश के पास – )
तो क्या लेना चाहेँगे आप?
फ्रौश
क्या मतलब? जो चाहूँ माँग लूँ शराब?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
जी, हाँ, पूरा होगा सब का इसरार…
आल्टमेयर
अभी तो बस लिया है शराब का नाम –
लड़खड़ाने लगी फ्रौश की जबान.
फ्रौश
देखिए ज़िद कर रहे हैँ, जनाब,
तो दीजिए मुझे राइन की शराब.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (फ्रौश की मेज़ के एक किनारे पर छेद करता है – )
बना लीजिए मौम की डाट
वरना बहती रहेगी शराब.
आल्टमेयर
मैँ न कहता था – मदारी है मदारी!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (ब्रांडर से – )
और आप? श्रीमान.
ब्रांडर
कुलबुलाती बुलबुलाती छुलछुलाती शैंपेन.
(मैफ़िस्टोफ़िलीज़ छेद करता है. इस बीच मोम की डाटेँ तैयार हो गई हैँ.)
ब्रांडर
स्वदेशी का नहीँ है यह अर्थ
कोसेँ विदेशी माल को हम व्यर्थ…
फ्राँस से नफ़रत करना है हर सच्चे जरमन का धर्म
फिर भी हर जरमन सराहता है फ्राँस की शराब का मर्म.
सीबल (मैफ़िस्टोफ़िलीज़ के नज़दीक जाते हुए – )
मुझे नहीँ भाती शुष्क मदिरा
मुझे दीजिए जो मीठी हो सुरा.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (छेद करते हुए – )
आप के चरणोँ मेँ बहेगी तोके की रसवंती धार…
आल्टमेयर
महाशय! मिलाइए आँख से आँख –
आप समझते हैँ हमेँ मूर्ख गँवार!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
तौबा! मेरी तौबा! श्रीमान!
मैँ पकड़ता हूँ कान…
गुस्ताख़ी! आप से? वाह, जनाब!
ख़्वाब मेँ भी नहीँ है बंदे मेँ ताब.
फ़रमाइए, हुज़ूर, सरकार,
क्या है आप को दरकार?
आल्टमेयर
मुझे पसंद है आप का हर माल.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (सब छेद हो जाने पर जादू मंतर जैसे हावभाव करता है, और साथ साथ बोलता रहता है.)
उपवन अंगूर लता से सजते
बकरे हैँ सीँगोँ से फबते.
रस है नाम सुरा का
बहने दो मेज़ोँ से धारा.
क़ुदरत का देखो खेला.
जादू सर चढ़ कर बोला.
खीँचो, डाट निकालो –
देखो, बह निकली धारा!
सब
जादू सर चढ़ कर बोला –
देखो, बह निकली धारा!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
सावधान! सँभल कर!
बह न जाए फ़रश पर!
(बार बार पीते हैँ.)
सब (गाते हैँ.)
वहशी हम बन जाते – गाते मौज मनाते!
सूअर से कीचड़ मेँ लेटेँ – गाते मौज मनाते!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
लाजवाब चीज़ है इनसान!
शराब बना देती है हैवान!
फ़ाउस्ट
यह महफ़िल नामाकूलोँ की –
लाहौल विला! लाहौल विला!
चलो, चलेँ हम यहाँ से.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
ठहरो पल भर
देखो पशुता का तमाशा – याद रहेगा जीवन भर!
सीबल (उस के प्याले से शराब बिखरती है, ज़मीन पर गिर कर उस मेँ से आग निकलती है.)
हे भगवान! भड़की यह कैसी ज्वाला!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (आग को आदेश देता है – )
शांत! भूतोँ की मणि माला!
(पियक्कड़ोँ से – )
कुछ नहीँ, श्रीमान, स्वाह करने को आप के पाप -
बस, नरक की रत्ती भर ज्वाला!
सीबल
अच्छा! क्या समझा है तू ने हमेँ!
अभी दिखा देते हैँ हम अपने हाथ!
फ्रौश
समझा! भूल जाएगा सारी करामात…
आल्टमेयर
चला जा चुपचाप! बस यही ठीक है…
सीबल
जानेँ चले आते हैँ कहाँ से!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
चुप कर, शराब के पीपे!
सीबल
ज़बान सँभाल कर बोल! पाजी! ढीठ!
ब्रांडर
हो कर रहेगी मारपीट…
आल्टमेयर (मेज़ से डाट निकालता है. उस मेँ उस की ओर आग भड़कती है.)
हाय! हाय! जला डाला!
सीबल
चुड़ैल का ख़सम! पकड़ो! पकड़ो!
(कटारेँ निकाल लेते हैँ. मैफ़िस्टोफ़िलीज़ पर हमला करते हैँ.)
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (गंभीर मुद्रा मेँ जादू मंतर – )
झूठे लोग! झूठे बोल!
सच की सत्ता डावाँडोल!
रुको यहाँ! चलो वहा!ँ
सारी धरती गोलमगोल!
(सब पर सम्मोहिनी छा जाती है.)
आल्टमेयर
कहाँ आ गया मैँ? कौन देश यह अतिसुंदर…
फ्रौश
अंगूर लताएँ फैलीँ धरती पर…
ब्रांडर
सघन कुंज है – तोड़ो,
चाहे जितने फल तोड़ो…
(हाथ बढ़ा कर सीबल की नाक पकड़ता है. शेष सब भी एक दूसरे की नाकेँ पकड़ते हैँ. कटारेँ ऊपर उठाते हैँ.)
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (गंभीर मुद्रा मेँ जादू मंतर दूर करता है – )
माया जाल छू मंतर
भँवरजाल छू मंतर
(फ़ाउस्ट के साथ वहाँ से चला जाता है. शेष सब सम्मोहन से निकल कर एक दूसरे को छोड़ते हैँ.)
सीबल
यह सब क्या है?
आल्टमेयर
क्योँ है?
फ्रौश
अरे, यह तो तेरी नाक थी!
ब्रांडर
और मेरे हाथ मेँ तेरी नाक!
आल्टमेयर
मुझे ग़श आ रहा है
दिल दिमाग़ चकरा रहा है
दुनिया घूम रही है गोलमोल…
मैँ गिरा! कहाँ है कुरसी?
फ्रौश
बताओ तो यह सब क्या है –
हमेँ हुआ क्या है?
सीबल
कहाँ गया, किधर गया – मक्कार!
मैँ पकड़ कर उसे दिखाऊँगा दो एक बार.
आल्टमेयर
देखते हो वह रोशनदान?
इसी मेँ से उड़ गया वह उस पार
हो कर शराब के पीपे पर सवार.
मेरे पैर हो रहे हैँ पत्थर
पहाड़ का भार है इन पर.
(मेज मेँ बने छेद की ओर इशारा करता है – )
हे भगवान! अब फिर निकलेगी शराब?
सीबल
झूठ! फ़रेब! दग़ा! धोखा! सरेआम!
फ्रौश
पर जो पी थी वह सच्ची थी शराब.
ब्रांडर
और वे अंगूर! वे! वे क्या थे, सरकार?
आल्टमेयर
लोग कहते हैँ – नहीँ होते चमत्कार!
वहशी से गाते हम – सूअर से कीचड़ मेँ लेटे.
क्या चीज़ है इनसान!
शराब बना देती है हैवान!
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