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फ़ाउस्ट – एक त्रासदी
योहान वोल्फ़गांग फ़ौन गोएथे
काव्यानुवाद – © अरविंद कुमार
३. अध्ययन शाला
कुत्ते के साथ फ़ाउस्ट आता है.
फ़ाउस्ट
छूट गए पीछे वन उपवन, गहरा गई रात.
आत्मा जो थी पावन भयोँ से आक्रांत,
अब फिर से है सुस्थिर सचेतन सुशांत,
चाहती है छूना उच्चतर आकाश.
उन्माद का डंक हो रहा है निष्प्रभाव.
मिट रहा है जो भी था वन्य प्रभाव.
ईश्वर के प्रेम से परिपूर्ण है यह काल.
मानव मेँ मानव का प्रेम भर रहा है आकाश.
पूडल! शांत! इधर उधर मत दौड़…
बार बार क्योँ सूँघता है चौखट.
जा, चूल्हे के पीछे जा. भाड़ के पीछे बैठ!
सब से बढ़िया है मेरा वह गद्दा! जा उस पर बैठ!
पर्वत पर ख़ूब उछला दौड़ा.
अच्छा था वह मनोरंजन.
जा, अब कर आराम. आराम से बैठ!
आज तू अतिथि है मेरा. स्वागत है तेरा!
आले का दीप जब कोठरी मेँ भर दे उजास –
तो आत्मा तक फैल जाता है प्रकाश,
मन की होने लगती है मन से पहचान,
विवेक की वाणी को मिलता है प्राण,
आकांक्षा की कलिका मेँ आता है ओज,
मन मेँ फिर से जागती है आशा.
फिर से मन चाहता है छूना आकाश,
जानना जीवन का उद्गम और परिभाषा.
चुप बैठ, पूडल! तेरा यह शोर!
इस से भंग होता है रस जिस से है सराबोर
मेरी आत्मा का कोर कोर…
जो कुछ भी है मानव की पकड़ के बाहर
हम लोग करते हैँ थू थू उस पर.
शिवं और सुंदरं को मिलती है हमेशा दुत्कार –
क्योँकि वे हैँ हम मानवोँ की सीमा के पार –
क्या उचित है – उन्हेँ मिले कुत्तोँ से भी दुत्कार!
मैँ ने देखा है बार बार –
करूँ कितना ही प्रयास –
जब भी मिलने वाला होता है संतोष
अचानक सूख जाता है उस का स्रोत!
क्योँ सूख जाती है जलधार
मिटाने से पहले मेरी प्यास?
हर बार वही, हाँ, वही तिरस्कार!
हाँ, इस से मिलता है यह ज्ञान –
कुछ है – जो है प्राप्य इहलोक के उस पार.
हमेँ करना है उस परम सत्य का अनुसंधान -
संत जान के गौस्पल मेँ हुआ जिस का दर्शन पहली बार.
एक बार फिर लौटता हूँ मैँ
उस महापाठ की ओर,
फिर करता हूँ उस पर मंथन विचार,
ज्ञान और ध्यान से निकाल कर रहूँगा उस का सार.
मातृभाषा मेँ करूँगा उस का अनुवाद.
(एक पोथी खोलता है और काम आरंभ करता है.)
लिखते हैँ महासंत –
आरंभ मेँ था… शब्द…
यहीँ से आरंभ होती है अड़चन.
क्या लिखूँ मैँ इस का सही अर्थ?
मैँ नहीँ दे सकता शब्द को इतना महत्व.
इसलिए, हमेँ करना होगा नया अनुवाद,
खोजना होगा नया संदर्भ.
कहता है मेरा अंतर्मन,
यदि ठीक है मेरा अनुमान,
कहना चाहते थे वे – आरंभ मेँ था विचार.
ठहरो! अभी सोचना होगा बहुत देर,
करने से पहले इस प्रथम पंक्ति का अनुवाद.
क्या मात्र विचार से हो सकता है सृजन?
कहना चाहिए – आरंभ मेँ थी ऊर्जा.
यह लिखते लिखते ही लगता है
बदलना होगा मुझे यह वाक्य.
अचानक ही मिल गया वह शब्द
जिस से तुष्ट हो सकता है मेरा मन.
मैँ लिखूँगा – आरंभ मेँ था कर्म.
अगर आप को रहना है मेरे साथ,
तो बंद कीजिए यह घुर घुर, श्रीमान!
बंद कर दीजिए भौँकना, बकवास.
करेँगे आप इस क़दर शोर –
तो निर्णय लेना पड़ेगा कठोर.
हम मेँ से एक को जाना पड़ेगा यहाँ से –
बोलिए, मित्र, जाऊँगा मैँ या जाएँगे आप?
मैँ नहीँ बनना चाहता कठोर.
खुला है द्वार. जा सकते हैँ आप.
(पूडल का आकार बढ़ने लगता है.)
यह क्या! होता नहीँ आँखोँ पर विश्वास.
विराट आकार! सत्य है या माया?
पूडल की हो गई सुविशाल काया.
कुत्तोँ जैसा नहीँ है यह आकार.
किस कुटिल प्रेत का है यह अभिचार.
गैंडे जैसा विशाल आकार!
आँखेँ हैँ या अंगार? दाँत हैँ विकराल.
अब समझा मैँ – नहीँ है मेरी भूल.
यह है सारमेय अवधूत –
यमलोक की संतान….
इस से लड़ने को चाहिए सुलेमान का इंद्रजाल.
कई प्रेत (बाहर से)
फँसा! फँसा! फँस गया भीतर!
फँस जाएगा वो भी – जो गया भीतर!
फँस गया जाल मेँ
जैसे लोमड़ी बहेलिए के जाल मेँ.
मँडाराओ आस पास
आकाश से धरती, धरती से आकाश.
छूटने को मचला –
छूटा! छूटा! निकला!
छोड़ो मत ऐसे – नेता है अपना
मददगार अपना.
फ़ाउस्ट
पहले मैँ करता हूँ तुझ पर
चारोँ तत्वोँ की मार!
अगन सल्मंडर
जल की उंडीन
हवा की सिल्फ़ी
धरती का ग्नोम
साधने होँ भूत पिशाच –
सीखना पड़ता है चार का अभिचार
समझना पड़ता है तत्वोँ का रूप आकार.
अगन सल्मंडर
भस्मीभूत!
जल की उंडीन
लहर मेँ लीन!
हवा की सिल्फ़ी
तारे मेँ टूटी!
इनकुबस! इनकुबस!
सत्यानाश! सत्यानाश!
गए चारोँ बेकार!
दाँत फाड़ता खड़ा है पिशाच!
और भी बड़ी सत्ता को पुकारता हूँ इस बार –
हो जाए तेरा घर, नरक का भाड़!
तो ले! झेल – यह निशान!
टिक नहीँ सकता इस के सामने शैतान!
हाँ, अब सिहरा इस का रोम रोम!
परित्यक्त वीर्य की संतान!
ले सकता है तू क्रूसधारी का नाम,
स्वर्ग के गीत की तान,
ले नहीँ सकता जो कोई इनसान?
(पूडल का आकार धूएँ सा बन जाता है.)
भाड़ के पीछे पड़ा है
गजाकार बढ़ा है
हवा मेँ कुहरे सा, धुएँ सा, चढ़ा है.
रुक! रुक! जा मत छत के पार!
लेट जा, धरती पर.
चाट अपने स्वामी के चरणोँ की धूल!
मेरी ललकार नहीँ है बेकार!
झुलसा गई दिव्य ज्वाल!
चमचम त्रिमूर्ति से बँध गई घिग्घी.
यही है सब से शक्तिशाली अभिचार!
(धुआँ मिटने लगता है. उस मेँ से मैफ़िस्टोफ़िलीज़ घुमक्कड़ विद्वान की वेशभूषा मेँ निकलता है.)
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
क्या है यह अगड़म बगड़म, तमाशा!
क्या है स्वामी की आज्ञा?
फ़ाउस्ट
तो पूडल के भीतर तू था?
घुमक्कड़ विद्वान – कैसा प्रहसन!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
हर्र डाक्टर, स्वीकारेँ मेरा अभिवादन.
सचमुच आप हैँ महाविद्वान.
छुड़ा दिए आप ने मेरे छक्के.
फ़ाउस्ट
क्या है तेरा नाम?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
आप के लिए अर्थहीन है यह सवाल.
आप के मन मेँ शब्द की नहीँ है औक़ात.
आप के लिए निरर्थक है बाहरी टीमटाम.
आप को है बस गंभीर ज्ञान से काम.
फ़ाउस्ट
तेरे जैसोँ के नाम से ही हो जाती है अंतस्सार की पहचान -
जैसे मक्खियोँ का देव, व्यभिचार का देवता, असत्य का भगवान…
तो बोल, कौन है तू?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
मैँ अंश हूँ उस अज्ञात सत्ता का
जो सदा करना चाहती है बुरा
जो सदा कर पाती है केवल भला.
फ़ाउस्ट
यह पहेली है तेरा उलझा उत्तर?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
मैँ आत्मा हूँ अस्वीकार की, नाश की, नकार की.
और ठीक भी है यह – शून्य मेँ हुआ है जो भी
हो कर रहेगा वह अनहुआ.
अच्छा होता – न होना किसी का.
हर वह तत्व जिसे कहते हैँ आप,
सर्वनाश, दुष्ट और पाप –
जो है इन सब शब्दोँ का तत्व
वही है मेरा सत्व.
फ़ाउस्ट
तू कहता है – तू है मात्र अंश.
मुझे लगता है – तू है संपूर्ण.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
मेरा कथन था – सत्य आडंबरहीन.
आत्मछल है मानव का स्वभाव.
मूर्ख समझता है अपने को संपूर्ण.
सृष्टि रचना से पहले जो था – मैँ अंश हूँ उस का.
मैँ अंश हूँ उस मातृसत्ता का, आदिम अंधकार का,
जिस ने गर्भ मेँ धारा था प्रकाश!
मेरा अंधकार छीन कर बैठा है प्रकाश.
नहीँ देना चाहता मुझे रत्तीभर अवकाश!
जीत नहीँ पाएगा कितने भी हाथ पैर मारे प्रकाश.
तत्व का बंदी बन चुका है प्रकाश.
तत्व से जनमता है प्रकाश –
प्रकाश से आलोकित होता है तत्व.
प्रकाश के मार्ग को धारता है तत्व.
इसी लिए मेरा है अविचल विश्वास –
प्रकाश का आधार और स्वयं प्रकाश
शीघ्र हो जाएँगे पूरी तरह नाश.
फ़ाउस्ट
तो! अब समझ मेँ आया – तेरे कर्म का मर्म.
संपूर्ण विनाश है तेरी क्षमता के पार.
इस लिए अंश अंश पर करता है प्रहार.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
मानता हूँ – अभी तक बहुत कुछ नहीँ कर पाए हैँ हम.
जो है यह – अनगढ़ संसार, भारी भरकम,
जूझता है, बचता है, जूझता है अनायास!
बहुविध मैँ ने किए हैँ प्रयास,
अभी तक है सृष्टि का विधान विद्यमान.
मैँ भेजता हूँ – ज्वाला, भूचाल, आँधी, वर्षा, तूफ़ान.
अभी तक हैँ जल थल पहले के समान.
नर वानर पैदा करते रहते हैँ संतान.
कई बार अनेक को हम लगा देते हैँ कष्ट
फिर भी बही आती है नए रक्त की धार.
झुँझला कर नोँचने लगता हूँ मैँ केश.
नमी मेँ, सूखे मेँ, शीत मेँ, ताप मेँ,
जल थल और वायु मिल कर
रचते रहते हैँ जीव निरंतर.
वंध्या ज्वाला को जो न बनाता मैँ निज यान
तो हो जाता मेरा भी बंटाढार.
फ़ाउस्ट
सृष्टि की जो सृजन सत्ता है कृपानिधान
सहने को उद्धत अनिष्ट के क्रूर वार
सहने को शैतान का मुष्टिप्रहार,
उपयोग मेँ लाती है वह शाश्वत गति का संविधान.
आदिम भ्रम की अधम संतान!
तुझे बचानी है अपनी जान,
तो निकाल, कोई नई जुगत निकाल.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
देखना होगा क्या कर सकते हैँ हम.
किसी और दिन करेँगे बात.
अभी तो जाना है. आज्ञा देँ , श्रीमान.
फ़ाउस्ट
अब छोड़ दे यह शिष्टाचार!
अब हो चुकी है हमारी मुलाक़ात.
चाहे जब आ जाना बेहिचक, बिना शिष्टाचार.
यह है गवाक्ष. यह रहा द्वार.
और वह है चिमनी – चुन ले कोई सा भी द्वार.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
यूँ ही निकलना नहीँ है मेरे वास्ते आसान.
हर किसी मार्ग से जाने का नहीँ है मुझे अधिकार.
रोक रहा है मेरा मार्ग – वह पंचकोण निशान -
वह – जो बना है चौखट के पास.
फ़ाउस्ट
क्या? डरता है उस सितारे से!
थूक के पूत, पंचकोण ने रोक लिया तेरा मार्ग!
तो भीतर आया तू कैसे?
क्या देख नहीँ पाया तू वह निशान?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
ध्यान से देखिए. अधूरी रह गई है वह रेखा.
ग़लती से खुला रह गया है वह कोना.
फ़ाउस्ट
तो यह है बात! नहीँ जा सकता तू!
मेरा बंदी है तू.
आशातीत हथियार पा गया मैँ अनायास.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
पूडल दौड़ता घुस आया.
नहीँ देखा उस ने यह निशान.
पलट गया पाँसा – फँस गया शैतान.
फ़ाउस्ट
क्योँ नहीँ जाता खिड़की से?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
प्राचीन है नियम. जिस मार्ग से आते हैँ भीतर
उसी मार्ग से हम जा सकते हैँ बाहर.
प्रवेश मेँ स्वतंत्र हैँ हम.
आ गए एक बार तो पालना पड़ता है नियम.
फ़ाउस्ट
तो नरक के भी हैँ नियम!
तो क्या – हो सकता है हम मेँ समझौता –
जैसे होता है दो मानवोँ मेँ समझौता?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
निभाते हैँ हम – वादे जो करते हैँ हम.
बात के धनी हैँ हम.
पर पहले – हो तो जाए कुछ बात.
करेँगे किसी और दिन हम यह बात.
जाना है अब.
जानेँ देँ अब.
फ़ाउस्ट
ठहर कुछ और.
अभी जानना पूछना है बहुत कुछ और.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
जाने देँ मुझे. लौटूँगा फिर.
पूछना है जो – तब पूछना जी भर.
फ़ाउस्ट
मेरा नहीँ था बंधन. आप ही आया था तू.
खुली थीँ आँखेँ जब आया था तू.
कौन जाने देता है जब पकड़ मेँ आ जाए शैतान?
जाने फिर कब मिलता है शैतान?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
रुक जाता हूँ मैँ – आप का है भारी अनुरोध.
कीजिए मेरा पूरा उपयोग.
आप चाहेँ तो दिखाऊँगा मैँ करतब, मनोरंजन.
मिटा लीजिए ऊब!
कीजिए सौंदर्य का उपभोग.
पाइए मनचाहा मनोरंजन.
फ़ाउस्ट
ठीक है! तथास्तु! आमीन!
लेकिन करना मत बोर!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
मात्र एक घंटे मेँ – होगा भरपूर मनोरंजन.
चखेँगे आप अनोखे ऐंद्रिक भोग
साल भर मेँ भी जो आप नहीँ पाते भोग.
प्रेतोँ का संगीत चंचल.
दृश्य माया से विह्वल.
मदमाती गंध विलक्षण.
इंद्रियाँ हो जाएँगी रूप रस गंध से सराबोर.
नहीँ लगती है हमेँ ज़रा भी देर.
हर प्रेत रहता है हरदम तत्पर.
प्रेत
तना हुआ जो
काला तंबू
पवन झकोरे
दे अब खोल.
जाए खुल.
खुल! खुल! खुल!
अंधकार अब
जाए घुल.
घुल! घुल! घुल!
अंबर पट झीना
आकाश चंदोवा
तारे झिलमिल.
चम! चम! चम!
सूरज जोती
खिल! खिल! खिल!
धरती आँगन
सुंदर दिन
हर पल छिन!
रूप सजीला
माया दर्पण
जो वर माँगो
बरसे झर झर.
रिम! झिम! रिम!
हो धरती पर
झिन! झिन! झिन!
उपवन उपवन
जागे नव जीवन
पुष्पोँ के ध्वज
फर! फर! फर!
कुंज कुंज मेँ
छाया शीतल
मोहक सपने
वचन प्रेम के
गिन! गिन! गिन!
लहराती बेलेँ
तरुवर घेरेँ –
मिल! मिल! मिल!
अंगूर लताएँ
फैलाएँ कुंतल
रस की धारा
छनती छन छन.
छन! छन! छन!
धारा निर्मल
बहती चंचल
सुरादेव बकचोस
का निर्झर
पर्वत तज कर –
कल! कल! कल!
शस्य वनोँ का
प्याला हरियल
छल! छल! छल!
लगा अधर से
पी लो जी भर –
छक! छक! छक!
भोर पखेरू
उड़ो जहाँ
ऊषा का आँचल
ज्योतित गह्वर.
लहर लहर मेँ
कंपन सिहरन
करता सागर
उज्ज्वल द्वीपोँ का
कस कर आलिंगन.
सुनो सुनो –
हर्षित वादन गायन.
देखो देखो –
नर्तन.
शाद्वल वन पर
झूम झूम
उन्मुक्त नटी की मोहक थिरकन
आगे बढ़ कर, पीछे हट कर.
देखो -
पर्वत शिखरोँ पर आरोही देखो.
घेरे द्वीपोँ को तैराकी देखो.
साहस का आवाहन देखो.
देखो -
जीवन का अंतहीन सम्मेलन देखो.
तारोँ से झरता प्रेम अनश्वर देखो.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
सो गया. सो गया!
शाबाश, मेरे प्रेतो!
मीठी है तुम्हारी ज़बान
मादक है तुम्हारा गान.
अभी नहीँ है तुझ मेँ दम
जो रोक ले तू नरक का राजकुमार.
स्वप्न के सागर मेँ डूब जाने दो इसे!
सत्य की बैरन कल्पना के लोक मेँ विचरने दो इसे!
लेकिन पहले तो है यह माया जाल काटना.
इस के वास्ते काफ़ी है चूहे का दाँत पैना.
इस के लिए आवश्यक नहीँ है जादू मंतर टोना.
लो! आ गया वह चूहा.
सुनो, मूषक राज, आज्ञा देता है तुम्हेँ
मूषकोँ, मेँढकोँ, खटमलोँ, मक्खियोँ, जूँओँ का राजकुमार.
कुतर दो यह द्वार.
बाहर निकालो मुझे. कर दो छेद.
याद है – मैँ ने किया था तुम्हारा तेल से अभिषेक.
वाह! तुम हो मेरी सेवा को तैयार.
कुतरो! कुतरो, यार!
कुतर डालो – रोक रहा है मुझे, बस, वह कोना –
बस, एक दाँत और – हो गया मेरा काम!
तो, मित्र फ़ाउस्ट, देखते रहो सपना.
देखो, फिर कब होता है मेरा आना.
फ़ाउस्ट (जागता है.)
क्या फिर से छला गया मैँ?
क्योँ नहीँ उस पिशाच को रोक पाया मैँ?
मात्र मस्तिष्क का भ्रम था क्या वह शैतान?
क्या था वह – जिसे रोक नहीँ पाया मैँ?
पूडल, केवल पूडल, मात्र श्वान?
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