कहानी
–अरविंद कुमार
गलीज़ कीड़े! कप्तान बड़बड़ा रहा था. कहीं भी कभी भी मर जाते हैं. स्साले… अब हमें स्वास्थ्य विभाग के नियमों के अनुसार पूरे पोत को विसंक्रमित करना पड़ेगा. हम कम से कम बीस घंटे लेट हो जाएँगे. और धरती पर चालीस दिन अलग रहना पड़ेगा. इस ट्रिप की सारी की सारी कमाई धरीधराई रह गई.. कोई और जगह नहीं मिली थी हरामियों को मरने के लिए!
बा |
ईसवीं सदी के अंत में एक महान वैज्ञानिक क्रांति हुई – राम-स्टीन-पूर्वा अन्वेषण दल ने अंतरिक्ष यात्रा के एक बिल्कुल नए सिद्धांत को जन्म दिया. इस के आधार पर रश्मि-१३ नामक अंतरिक्ष यान बनाया गया…
यहाँ तक लिख कर चंद्रमा नाथ रुक गया. उस ने थकी उंगलियाँ चटकाईं, पानी की चुस्की ली और सिर कुरसी की पीठ से टिका दिया.
हाँ, वह पुराथनपंथी है. तीसवीं सदी में रह कर भी वह बीसवीं सदी के पूर्वार्ध के लोगों की तरह काग़ज़ पर पैन से लिखता है. पर– अब उसे पुराना कहने वाला बचा ही कौन है? कुछ ही देर में वह मानव से नमूना बन जाने वाला है.
उस ने अपनी पुरानी चाल की घड़ी देखी. वह चौंक गया.
आधा घंटा… कुल तीस मिनिट…
अंतिम विभीषिका में कुल तीस मिनिट बाक़ी हैं…
भविष्य इतना अंधकारमय था कि वह फिर इतिहास में खो गया. उस ने क़लम उठा लिया. काग़ज़ों के ढेर को अपनी तरफ़ खींचा, और लिखा:
अब मानव ऐसे अंतरिक्ष यान बनाने में सक्षम हो गया था जो प्रकाश की गति से तेरह गुना तेज़ चल सकें… प्रकाश गति वाले यान तो इक्कीसवीं सदी में ही बन चुके थे. रश्मि-१३ की सहायता से मनुष्य अपनी आकाश गंगा के पार दूसरी गंगाओं के दूरदराज़ कोनों तक जाने में सफल हो गया. वैज्ञानिकों का यह अनुमान सही निकला कि जीव तत्त्व सृष्टि में ओतप्रोत है. स्वयं उस की अपनी आकाश गंगा में अनेक प्रकार के जीवाणु उसे मिले. कुछ नक्षत्रों में सुसंगठित तथा सुसंस्कृत जीव प्रणालियाँ थीं. लेकिन कोई भी प्रणाली मानव के समकक्ष नहीं थी. और उन में से कोई भी जीव पृथ्वी के वातावरण में जीवित रहने में सक्षम नहीं था.
मानव अपने आप को आकाश गंगा का स्वामी मानने लगा — एकमात्र अधिपति, समस्त प्राकृतिक स्रोतों का स्वाभाविक उपभोक्ता… सृष्टि की श्रेष्ठतम कृति…
चंद्र के चेहरे पर विरक्तिपूर्ण मुस्कान खेल गई. उस ने छत की ओर देखा. हीरे की बनी छत और दीवारों से प्रतिबिंबित हो कर स्फटिक की मेज़ पर रखी मणि का शीतल प्रकाश पूरे कक्ष में उजास भर रहा था. इस उजास में विचित्र सी आभा थी. इस अजनबी वातावरण में मानव की हर चीज़ दूर की और छोटी मालूम पड़ती थी.
वह इन लोगों के हीरक यान के एक छोटे से कक्ष में था. एक पृथ्वी वर्ष पहले जब उसे इस यान में लाया गया था तो उस ने इस यान की ऊँचाई का अंदाज़ा लगाया था. कम से कम एक किलोमीटर! और पूरा यान हीरे की किसी एक विशाल चट्टान में से काट कर बनाया गया था. ‘इन’ लोगों की आकाश गंगा के सातवें सूर्य के पाँचवें ग्रह के चाँद विशाल हीरों के बने हैं. उन का उपयोग ये लोग अंतरिक्ष यानों के निर्माण में करते हैं. तीसवीँ सदी का अतिविकसित चंद्रमा नाथ भी ‘इन’ लोगों की तकनीक से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका था.
कुछ ही देर में ‘इन’ लोगों का एक ‘आदमी’ आएगा और मुझे यान के दर्शन कक्ष में ले जाएगा…
"हे भगवान!” चंद्रमा नाथ के मुँह से बीसवीं सदी का एक साधारण सा उद्गार निकल पड़ा.
ऐसे ही वक़्तों पर तब के लोग अपनी भगवान नामक परिकल्पना को पुकारा करते थे. आदमी कितनी ही तरक़्क़ी कर ले, उस के आदिम विश्वास मन के किसी कोने में बचे रह ही जाते हैं.
चंद्रमा नाथ ने फिर लिखा:
मानव ने कई जीव जातियों को सुसंस्कृत करने की कोशिश की. उस ने हर नई जीवजाति की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया. लेकिन हर ओर से उसे मूर्खतापूर्ण संदेह, अविश्वास और विरोध का सामना करना पड़ा.
सच? पहली बार चंद्रमा नाथ के मन में अत्याधुनिक मानव के इतिहास की दंभपूर्ण मान्यताओं के प्रति संदेह उपजा. लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी.
चंद्रमा नाथ के अवचेतन मन पर कई दृश्य उभर आए. वह लिखना भूल कर उन दृश्यों में भटक गया.
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“कमीनो! हरामख़ोरो! जल्दी करो. आलसी कीड़ो, जल्दी करो. देर हो रही है…”
यह पोत कप्तान डीमोज़ एन लाई की आवाज़ थी. वह अपने हाथ में प्रकाशंदूक़ से मृत्यु लहर लहराता डाट फटकार रहा था.
नवपाद जाति के मज़दूर संजीवनी नक्षत्र के दसवें ग्रह पर उस पोत में संजीवनी बूटी की बड़ी बड़ी गाँठें लाद रहे थे.
चंद्रमा नाथ विश्व सरकार की स्कालरशिप पर वहाँ आया था. वह इसी पोत से वापस धरती लौटने वाला था. पास ही खड़ा वह यह सब देख रहा था.
“शांत, कप्तान, शांत!” चंद्रमा नाथ ने कप्तान को सहलाने की कोशिश की. “अब तो काम हो गया समझो. मज़बूत नवपाद लगभग पूरा माल पोत में ले ही जा चुके हैं. इन बूढ़े नवपादों के लिए यह बोझा कुछ अधिक ही है. धीरे धीरे ये भी माल पहुँचा ही देंगे…”
“हुँ! बूढ़े! मट्ठर! चालाक! गाली के बिना इन माँ के यारों पर असर ही नहीं होता!” डीमोज़ एन लाई ने थूक की लार फेंकते हुए कहा.
“फिर भी हमें शराफ़त से काम लेने चाहिए,” चंद्रमा नाथ ने निंदा को अव्यक्तिगत बनाते हुए कहा था. “हम यहाँ मानव संस्कृति के प्रतीक हैं…”
“हुँ!” कप्तान ने चंद्रमा नाथ पर हिकारत भरी नज़र फेंकी थी. “तुम जैसे किताबी कीड़े क्या जानें मानव सभ्यता कैसे चलती है! हमें ही पता है हम काम कैसे पूरे कराते हैं. तुम? स्कालरों को अधकचरे किताबी ज्ञान के अलावा आता ही क्या है! ऊँचे ऊँचे भाषण बखानते हो… और दूसरों के काम में…”
“लो! अब तो सब नवपाद चढ़ गए!” चंद्र ने कप्तान को ख़ुश करने के लिए कहा था. “पर.. अरे! इस एक नवपाद को क्या हुआ? आख़िरी सीढ़ी पर जैसे का तैसा खड़ा है – नौओं सुँडालों पर. अगला सुँडाल दरवाज़े में… क्या हुआ इसे?” चंद्र उस की तरफ़ बढ़ा था.
“रुक जाओ… आगे मत बढ़ना. वह मर गया है.” कप्तान ने हाथ बढ़ा कर चंद्र को रोक दिया था. “कमाल है — इस ग्रह पर संजीवनी बूटी होती है, जिसे खा कर हमारे लोग पाँच सौ वर्षों तक जवान बने रहते हैं. पर इन नवपादों पर हमारा संपर्क महामारी का असर करता है… देखते देखते हज़ारों एक साथ मर जाते हैं… बचिए! इधर हट जाइए… भीतर भी मज़दूर ठंढे पड़ गए मालूम पड़ते हैं. उन की लाशें बाहर फेंकी जा रही हैं…”
कप्तान ने फिर थूका था.
एक लाश चंद्र के पास आ कर गिरी. फिर एक और… सहम कर चंद्र डीमोज़ एन लाई से सट कर खड़ा हो गया.
“गलीज़ कीड़े!” कप्तान बड़बड़ा रहा था. “कहीं भी कभी भी मर जाते हैं, स्साले… अब हमें स्वास्थ्य विभाग के नियमों के अनुसार पूरे पोत को विसंक्रमित करना पड़ेगा. हम कम से कम बीस घंटे लेट हो जाएँगे. और धरती पर चालीस दिन अलग रहना पड़ेगा. इस ट्रिप की सारी की सारी कमाई धरीधराई रह गई.. कोई और जगह नहीं मिली थी हरामियों को मरने के लिए!”
इधर उधर नज़र दौड़ा कर कप्तान फिर बोला था, “ख़ैर, माल तो लगभग सारा लद ही गया…”
चंद्र को उबकाई आ रही थी – कुछ लाशों के बढ़ते ढेर को देख कर, कुछ कप्तान की बातें सुन कर. “इस मृत्यु ग्रह पर मैं तो फिर कभी नहीं आऊँगा!” उस के मुँह से बेसाख़्ता निकला था.
“पहली बार आए हो सौर मंडल के बाहर?” कप्तान ने पूछा.
चंद्र ने गरदन हिला दी, तो अनुभवहीनों के प्रति अनुभवियों के शाश्वत उपेक्षा भाव से कप्तान ने कहा था, “चले आते हैं माँ के पेट से निकल कर विश्व का अध्ययन करने! प्रौफ़ेसर हैं कि पहले से चेताते भी नहीं…!”
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हे भगवान, मानव पर दया करना.
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चंद्रमा नाथ ने काग़ज़ फिर से अपनी तरफ़ खिसकाए…
लेकिन तभी नीलमणि का आरोप लगाता चेहरा मन की आँखों पर छा गया.
तमाम धरातियों – पृथ्वी मानवों – की तरह चंद्रमा नाथ भी उस दिन बहुत ख़ुश था. वैसी आतिशबाज़ी इतिहास में न पहले देखी गई थी, न कभी बाद में देखी जाएगी.
“चन्न, हम कितने भाग्यशाली हैं जो यह दिन देखने के लिए इस युग में जनमे!” मोना लीसा ने उस का हाथ दबाते हुए कहा था.
वे दोनों अपने निजी अंतरिक्ष यान में थे और पृथ्वी का चक्कर लगाते यह आतिशबाज़ी देख रहे थे. उस दिन अंतरिक्ष में वही अकेले नहीं थे. लाखों मानव उस दिन अंतरिक्ष में थे. हज़ारों यानों में मानव लदे थे. कुछ अपने यानों में थे, कुछ किराए के यानों में. अभूतपूर्व स्तर पर आतिशबाज़ी का प्रबंध किया था. तरह तरह के रंगबिरंगी आभा छोड़ने वाले सुर्रे और फुलझड़ियाँ चंद्रतल से अंतरिक्ष में उछाले जा रहे थे. सूर्य प्रकाश में भी दिखाई दे सकने वाले ये सुर्रे पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगा रहे थे, ताकि सारी मानवता एक साथ इस उत्सव में भाग ले सके. नवविवाहित चंद्र और मोना कुछ ज़्यादा ही दीवाने थे. उन के जैसे अनेक मस्ताने अपने यानों में पृथ्वी के गुरुत्व मंडल के ऊपर मँडरा रहे थे औऱ आगंतुक यान का स्वागत कर रहे थे.
यह सब नीलमणि के स्वागत में था.
धरती से पतली रेखा से दिखाई देने वाले परशु नक्षत्र मंडल के दोहरी सूर्य प्रणाली के चौथे ग्रह का रहने वाला था नीलमणि. विज्ञान की पुस्तकों में इस ग्रह का नाम था प-ग्र-४. वहाँ का वातावरण तरस्विनी (फ़्लूरीन) गैस का था. वहाँ समुद्र केवल ध्रुवों पर थे — द्रवीभूत तरस्विनी के गाढ़े चमचम हिलराते समुद्र. उस ग्रह के ध्रुवों पर बारी बारी से लगभग ६२५.७ पृथ्वी दिन शीतल नीला सूर्य चमकता था, और इतने ही दिन हमारे चाँद से आधे आकार का दूसरा दूधिया सूर्य बैंगनी आकाश में फीका फीका दिखाई देता था. उस ग्रह के चारों चंद्रमा हर आठवें घंटे एक साथ चक्कर लगाते थे – मणि मेखला की तरह.
वहाँ की सर्वाधिक विकसित जीव जाति कुछ मानव जैसी थी. कुछ ज़्यादा चौड़ी चकली, ज़्यादा ठिंगनी और ज़्यादा मज़बूत. सिर बिल्कुल गोल था. नीले प्रकाश में देखने के लिए तीन बड़े बड़े पलकहीन मीन नेत्र – एक समभुज त्रिकोण बनाते हुए. अपने एक प्राचीन देवता के नाम पर धराती उन्हें त्रिनेत्र भी कहते थे.
तरस्विनी के वातावरण वाला वह पहला नक्षत्र मंडल और ग्रह मानव को मिला था. उस ग्रह पर अंतरिक्ष यान उतारने की और उस वातावरण में धरातियों को निरापद रखने की समस्याएँ बेहद विकट थीं. इन से निपटने में मानव को एक पूरी सदी लग गई. लेकिन यह श्रम बेसूद नहीं था. वहाँ के खनिजों के उपयोग से दस वर्ष में ही पूरा व्यय निकल आने वाला था.
तो वह दिन तरस्विनी समारोह का दिन था. पहला तरस्विनी मानव धरती पर लाया जा रहा था. सारी आतिशबाज़ी उसी के स्वागत में थी.
धरातियों ने उस पहले तरस्विनी मानव का नाम रखा था – नीलमणि.
धरती पर उस के रहने के लिए तरस्विनी गैस के वातावरण वाला विशेष गुंबदाकार भवन तैयार किया गया था. उस के कक्ष के चारों ओर स्फटिक का गलियारा था, जिस के पार से धरती मानव उसे देख सकते थे. और उस कक्ष में विशेष रूप से बनाए गए तरस्विनी प्रकाश में अपनी तीनों उत्सुक आँखें फैलाए वह उन्हें ताकता रहता, और उन्हें समझने की कोशिश करता.
नीलमणि को शिक्षित करने के लिए विशेष व्यवस्था की गई थी. उसे धरातियों की प्रमुख भाषाओं का ज्ञान कराया गया. महान मानव संस्कृति और गौरवमय इतिहास का पाठ पढ़ाया गया. इतिहास सिखाने का काम सौंपा गया था चंद्रमा नाथ को, जो तब तक विश्व का प्रमुख इतिहासकार और विचारक माना जाने लगा था. सहायिका मोना लीसा के साथ उस ने पृथ्वीतर जीवों की संभावित मानसिकता और उन से मानव संपर्क की समस्याओं पर विशेष शोध की थी. इस कारण वह विश्व के प्रमुख दार्शनिक वैज्ञानिकों में गिना जाने लगा था.
चंद्रमा नाथ की सिफ़ारिश पर ही धरातियों ने नीलमणि को अपना विशेष दूत बना कर प-ग्र-४ वापस भेजा था. उस का काम था प-ग्र-४ के निवासियों को मानव की महान उपलब्धियों के बारे में बताना और धरातियों और तरस्वियों के बीच सांस्कृतिक-राजनीतिक सेतु का काम करना. मोटे मोटे शब्दों में कहें तो कुल मिला कर काम था प-ग्र-४ की भौतिक संपदा पृथ्वीवासियों को उपलब्ध कराना.
उन दिनों प-ग्र-४ पर शासन व्यवस्था नहीं होती थी. वहाँ के लोग समाज में ऊपरी अनुशासन की आवश्यकता से बहुत ऊपर उठ चुके थे. लेकिन धीरे धीरे धरातियों ने वहाँ फिर से शासन की स्थापना की. नीलमणि को प-ग्र-४ का महाशासक बना दिया गया. उस नई व्यवस्था को एक स्वायत्त शासन का नाम दिया गया. अकथित उद्देश्य एक ही था – प-ग्र-४ पर धरातियों की गतिविधि को सहज सुसंचालित करना.
कुछ ही वर्षों में तरस्वियों और धरातियों के बीच मतभेद उभरने लगे थे. अपनी संपदा के अंधाधुंध दोहन से तरस्वी अप्रसन्न थे. धराती न केवल खनिज ले जा रहे थे बल्कि आवश्यकता पड़ने पर तस्विनी गैस भी ले जाते थे. धरती के बाहर का केतु क्षेत्र अनगिनत खोल्काओं से भरा था. उन में से कई के चारों ओर धराती तरस्विनी मंडल बना रहे थे. इस से उन्हें यह लाभ था कि तरस्विनी गैस को आयात करने के लिए हर बार प-ग्र-४ की लंबी और महँगी यात्रा नहीं करनी पड़ती थी. लेकिन प-ग्र-४ पर इस का प्रभाव अच्छा नहीं था. वहाँ वातावरण क्षीण होता जा रहा था.
धरातियों ने मज़बूत नवपादों की एक कृत्रिम जीव जाति विकसित की थी. धराती-निर्मित ये नवपाद तरस्विनी गैस में रह सकते थे. इस जाति का उत्पादन विशेष रासायनिक-जैव संयंत्रों में किया जाता था. यांत्रिक रोबोटों के निर्माण के मुक़ाबले इन के उत्पादन की प्रक्रिया बहुत सस्ती थी. रोबोटों के रखरखाव के लिए धरातियों को प-ग्र-४ भेजना पड़ता था और वहाँ उन के रहने के लिए व्ययसाध्य उपाय करने पड़ते थे जब कि नवपादों के रखरखाव पर कोई ख़र्च नहीं करना पड़ता था. वे प-ग्र-४ की वनस्पति पर जीवित रह सकते थे. इन की विशेषता थी कि ये हर तरह का भारी माल धरा-पोतों में लाद सकते थे. प-ग्र-४ पर उन के रहने के लिए विशेष क्षेत्र नियत कर दिए गए थे. पर वे उस से बाहर निकल कर तरस्वी बच्चों को उठा ले जाते. कई बार तो बड़े तरस्वी भी उन की चपेट में आ जाते. यही नहीं. नवपादों की नवविकसित जाति का जीवन और भी छोटा होता था. देखते देखते उन्हें घातक रोग लग जाते थे. उन के शव सड़ते तो तरस्वियों को नई तरह के संक्रामक रोग होने लगते.
नीलमणि से अपेक्षा थी कि वह हर हालत में धरातियों का साथ देगा और विरोधी तरस्वियों को समझाता बुझाता रहेगा. अगर वे न मानें तो उन पर कड़ा अनुशासन रखेगा. लेकिन नीलमणि को भी मानव नीतियाँ पसंद नहीं आती थीं. उस का मन अपने ग्रह के हितों के साथ था. एक दो बार उस ने धरातियों के व्यवहार के प्रति अप्रसन्नता प्रकट की, तो धराती उस के विश्वासघात से चकित रह गए. हमारी बिल्ली हमीं से म्याऊँ! कृतघ्नता का इस से घटिया उदाहरण और क्या हो सकता है? धराती एक दूसरे से पूछते.
प-ग्र-४ पर विरोध के स्वर तेज़ होने लगे. माँग की जाने लगी कि विरोधियों को कठोर दंड दिए जाएँ.
धरती के शांतिवादियों ने सहिष्णुता की अपील की. कुछ दिन विश्व सरकार शांत भी रही. इस से मामला ठंढा नहीं हुआ. विरोध के नारे हिंसक घटनाओं में बदलते दिखाई देने लगे. जब तब धरती पोतों को ध्वस्त किया जाने लगा. इस से धराती उग्रवादियों का पलड़ा भारी हो गया. उन्हों ने माँग की कि तरस्वियों से साथ सख़्ती से निपटा जाए. शांतिवादियों ने फिर दया की अपील की. लेकिन उन की खिल्ली उड़ाई जाने लगी. कंप्यूटर स्क्रीनों पर उन के कारटून उभरने लगे. गलियों में लड़के लड़कियाँ तरस्वियों के ख़िलाफ़ भौंडे गीत बनाने लगे. नीलमणि को विद्रोही तरस्वियों का प्रच्छन्न नेता बताया जाने लगा. उसे काँचमणि कहा जाने लगा.
कुछ तरस्वी विद्रोहियों को मृत्युदंड दिया गया. माँग की जा रही थी कि बलवाइयों को सता सता कर मारा जाए, ताकि दूसरे तरस्वी भय से कंपित हो जाएँ. शांतिवादियों ने फिर दया की अपील की. उन्हें धरती द्रोही क़रार दिया जाने लगा. फिर भी उन के सुझाव पर विद्रोही तरस्वियों की सहज सुख मृत्यु का उपाय ढूँढा गया. धरती की प्राणवायु आक्सीजन उन के शरीर से छुआई जाने लगी. इस स्पर्श से वे तत्काल निर्जीव हो जाते.
तरस्वियों का कहना था कि इस से क्या फ़र्क पड़ता है कि वे कैसे मर रहे हैं. मृत्यु आख़िर मृत्यु है. वे मरने वालों को नायक मानने लगे. उन की प्रशंसा में गीत गाए जाने लगे.
विद्रोह बढ़ता गया. दिन प्रति दिन धरातियों का प-ग्र-४ पर उतरना और वहाँ से खनिज ला पाना कठिन होता गया. मज़बूरन समूची विद्रोही जाति को समूल नष्ट करने की योजना बनाई जाने लगी. आक्सीजन के फ़व्वारों से सुसज्जित एक हज़ार यान प-ग्र-४ के वातावरण में स्थापित कर दिए गए. कमांड यान से एक बटन दबाते ही सारे प-ग्र-४ पर आक्सीजन के बादल फट पड़ेंगे और वह दिन तरस्वियों के जीवन का आखिरी दिन होगा. झगड़े की जड़ ही मिट जाएगी. इस के बाद प-ग्र-४ पर पृथ्वी जैसा वातावरण होगा. जो थोड़ी बहुत तरस्विनी गैस वहाँ बची थी, वह एक विशेष विधि से धरती के निकट उल्का गोदामों में संकलित कर ली जाएगी. अब प-ग्र-४ की संपूर्ण संपदा मानव के लिए निष्कंटक उपलब्ध होगी. आवश्यकता हुई तो वहाँ धरातियों के वास भी बनाए जाने लगेंगे…
विश्व का महानायक बर्नार्ड वोरेंत्सीन स्वभाव से न्यायशील और शांत प्रकृति का था. किसी पूरे ग्रह की संपूर्ण जीव व्यवस्था का नाश उसे पसंद नहीं था. इस विनाश लीला से पहले वह मैत्री का एक और प्रयास कर लेना चाहता था. इस दिशा में उसे धरती के प्रकृति प्रेमियों से पूरा समर्थन मिल रहा था. उस की शह पर ये संरक्षणवादी धरती पर जगह जगह प्रदर्शन कर रहे थे.
नीलमणि चंद्रमा नाथ को अपना गुरु मानता था. नीलमणि का कहना था कि अगर वह विद्रोहियों के साथ है तो चंद्रमा नाथ से प्राप्त उच्च सिद्धांतों के ही आधार पर. वह मानव इतिहास से ऐसे कई उदाहरण देता था जब धरातियों ने शोषकों के विरुद्ध झंडा उठाया था.
तरस्वियों के विनाश की कल्पना मात्र से चंद्रमा नाथ का कलेजा काँप जाता था. चंद्र को पूरा विश्वास था कि वह नीलमणि को परिस्थिति की नज़ाकत समझाने में सफल हो जाएगा. उस ने महानायक से अपील की कि एक बार उसे अवसर दिया जाए कि वह नीलमणि को समझा सके. वोरेंत्सीन ने इस का लाभ उठाया. उस ने नीलमणि और चंद्रमा नाथ के बीच बातचीत का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया.
उग्र तरस्वियों के विद्रोहियों को कहना था कि धरातियों से किसी प्रकार के न्यायपूर्ण व्यवहार की आशा नहीं की जा सकती. कि धरती का इतिहास छल छद्म और विश्वासघात से भरा है. कि बातचीत के नाम पर नीलमणि को पृथ्वी पर बुलाना मात्र एक बहाना है. धराती उसे बंधक बना लेंगे और तरस्वियों से कहेंगे कि धरातियों की शर्तें मान लेने पर ही वे नीलमणि को छोड़ेंगे. उन का कहना था कि वे अपने प्रिय नेता की बलि देने को तैयार नहीं हैं. उन के दबाव में नीलमणि ने पृथ्वी पर आने से इनकार कर दिया.
इस पर चंद्र ने जान की बाज़ी लगा दी. नीलमणि से मिलने के लिए वह विद्रोही प-ग्र-४ पर जाने को तैयार हो गया. पर पृथ्वीवासियों ने उसे अनुमति नहीं दी. उन का कहना था कि प-ग्र-४ के तल पर उतरना चंद्रमा नाथ के लिए न तो निरापद है न नीति अनुकूल. अगर नीलमणि धरती पर नहीं आ सकता तो बातचीत के लिए किसी धराती का प-ग्र-४ जाना घुटने टेकने जैसा होगा.
तब तय हुआ कि चंद्रमा नाथ आक्सीजन बेड़े के साथ ही प-ग्र-४ के गुरुत्व क्षेत्र के बाहर तक ही जाए. और ऐसा ही हुआ. चंद्र घातक बेड़े के कमांडर के यान में ही था. तय हुआ था कि नीलमणि यहाँ अंतरिक्ष में आ कर उस से मिलेगा.
नीलमणि के यान की प्रतीक्षा की जा रही थी. यान आ रहा था. वहीं से नीलमणि का चेहरा चंद्र के यान के विशाल स्क्रीन पर दिखाई दे रहा था. तभी किसी ने विश्वस्त समाचार दिया कि वास्तव में नीलमणि के साथ साथ जो अंगरक्षक यान आ रहे हैं उन में भयानक उग्रवादी हैं. वे उस के अंगरक्षक के भेस में हैं. पृथ्वी के बेड़े को नष्ट करने के लिए उन्हों ने एक गुप्त अस्त्र विकसित किया है. आते ही नीलमणि के अंगरक्षक यान धरती बेड़े के आसपास बिखर जाएँगे. नीलमणि बातचीत का नाटक करेगा. मौक़ा पाते ही तरस्वी उग्रवादी अपने गुप्त अस्त्र से मानव बेड़े की तमाम आक्सीजन को नष्ट कर देंगे. परिणाम होगा बेड़े के सभी घरातियों की तत्काल मृत्यु.
धरातियों में भय व्याप गया. कहीं कोई तरस्वी यान राह से भटकता तो धराती घबरा जाते. कमांडर चिड़चिड़ा और उत्तेजनशील था. इस बेड़े के नेतृत्व के लिए उसे जान बूझ कर चुना गया था. उस के सिर कई जीव जातियों को नष्ट करने का सेहरा बँधा था. उग्र धरातियों का कहना था कि इस कठिन मिशन के लिए एक ऐसा ही नेता चाहिए जो आवश्यकता पड़ने पर बेहिचक घोरतम क़दम उठा सके. (कुछ धराती शांतिवादी अभी तक मानते रहे हैं कि महानायक बर्नार्ड वोरेंत्सीन के परामर्श मंडल के एक वरिष्ठ सदस्य ने कमांडर को गुप्त आदेश दे रखा था कि जो भी हो उस का काम है तरस्वियों का सर्वनाश.)
नीलमणि कमांडर के यान में आ चुका था. चंद्रमा नाथ के सामने ही एक पारदर्शी केबिन में नीलमणि था, जिस में तरस्विनी गैस का वातावरण था. बातचीत दोनों के बीच रश्मि संकेतों से हो रही थी.
अचानक एक तरस्वी यान कमांड पोत की ओर आता दिखाई दिया. किसी ने ख़तरे की घंटी बजा दी. चंद्र कमांडर को समझाता रहा. पर कमांडर ने मृत्यु का बटन दबा दिया. सब तरस्वी यान समाप्त हो गए. बचा एक नीलमणि जो कमांड पोत में था. बाद में धरती पर उस के विरुद्ध महान मानव सभ्यता को नष्ट करने के कुषड्यंत्र का अभियोग चलाया गया. उसे मृत्यु दंड दिया गया. चंद्र की अपील पर उसे सता कर नहीं मारा गया. जब उसे आक्सीजन का स्पर्श कराया गया तो वह शांत था. उस की तीनों आँखों में अनेक अकथित प्रश्न थे. अभी तक जब तब चंद्र के मन पर उस की प्रश्न करती हैरान आँखें उभर आती हैं.
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हे भगवान, अगर संपूर्ण मानव जाति की कोई एक संयुक्त आत्मा हो तो उस पर दया करना!
हे परमात्मा, अगर नीलमणि जैसे तरस्वियों की कोई आत्मा होती हो तो उसे शांति देना…
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चंद्रमा नाथ गुमसुम बैठा था. नीलमणि की आँखें उस से जो सवाल पूछ रही थीं उन के उत्तर उस के पास नहीं थे.
उस ने घड़ी देखी. कुल दस मिनिट बाक़ी हैं. वह क्या लिखे? कितना लिखे? इतने कम समय में क्या लिखा जा सकता है? पर दस मिनिट काटना तो बहुत भारी है… ये दस मिनिट…
उस का मन बचपन में भटकने लगा…
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अपनी कक्षा के साथ वह शुक्र ग्रह की ऐडवेंचर यात्रा पर गया है. उस का गहरा दोस्त फ़्रैडरिक इकेरस दल का नेता है…
फ़्रैडरिक और वह एक कंदरा में हैं… भाग रहे हैं… टार्च की रोशनी में झबरीले बालों वाले जीव एक कोने में दिखाई देते हैं. उन के लंबे सिंदूरी दाँत चमचमा उठे.
“सात दिन भटकने के बाद लालदंत का गिरोह मिला है. अब मज़ा आएगा,” इकेरस की बाँछें खिल गईं. टार्च हिलाते हुए उस ने गिना… ‘एक, दो, तीन…ग्यारह. एक मादा, आठ नर, दो बच्चे…’
इस से पहले भी इकेरस शुक्र आ चुका था. इसी लिए इस बार उसे नेता बनाया गया है. उसे लालदंत के शिकार का पूरा अनुभव है. वह फिर बोला, “इन के दाँत और हड्डियाँ धरती पर दस लाख डालर से कम तो क्या बिकेंगे!”
चंद्रमा चुप था.
“तो? तैयार!” इकेरस ने अपनी प्रकाशंदूक़ से निशाना साधते हुए कहा.
कोने में लालदंत गिरोह काँप रहा था. सब के सब मादा की ओट में छिपने की कोशिश कर रहे थे. मादा फ़्रैडरिक और चंद्र की ओर चिचिया रही थी.
हुँ! धौंस दिखाती है…! फ़्रैडरिक ने मज़ा लेते हुए कहा था. उस ने प्रकाशंदूक़ तान ली थी.
एक बार फिर चंद्र ने कहा था… “नहीं. इकेरस, नहीं!”
“देखता नहीं इन के भयानक कँटीले ज़हरीले बाल, ख़ूँख़ार आँखें और लाल लाल प्यासे दाँत! हम इन्हें नहीं मारेंगे, तो ये हमें फाड़ खाएँगे!”
“यही तो समझ में नहीं आता, इकेरस. ये इतने भयानक हैं तो हम बच्चों से क्यों डर रहे हैं?” चंद्र ने कहा था.
“इस के डर से!” और अचानक इकेरस की प्रकाशंदूक़ से मौत झपट पड़ी थी. ग्यारहों लालदंतों पर बिजली टूट पड़ी थी…
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हे भगवान! भय असह्य है…
क्या मृत्यु के पार के देश में आतंक नहीं है?
क्या सचमुच आत्मा है? क्या वह अमर है? अजर है? क्या आत्मा को पाप नहीं सुखाता? क्या आत्मा को भय नहीं झुलसाता?
तू है? तो कुछ तो बोल, परमात्मा!
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चंद्रमा नाथ ने अपने आप को एक झटका दिया.
कुल तीन मिनिट बाक़ी थे. उस ने अपने आप को एकत्रित किया. पन्नों को एकत्रित किया. नए पन्ने पर लिखा –
मानव का अंतिम अध्याय
हमारी आकाश गंगा से चौथी आकाश गंगा के तीन सौवें सूर्य के तीसरे ग्रह से…
चंद्र का मन फिर भटक गया.
पूरी आकाश गंगा पर फैले धरातियों की अव्यवस्थित भगदड़ उस के मानस पटल पर कौंध कर बिखर गई. कानों में भयार्त्त आवाज़ें गूँज उठीं. “आ गए! आ गए! चौथी आकाश गंगा के ज़ालिम आ गए…! भागो! भागो! दौड़ो! ये मारते पहले हैं, बात बाद में करते हैं!… हमें लपेटते, घेरते, मारते ये चढ़े आ रहे हैं! भागो! दौड़ो! सब धरती पर चलो. वहीं से इन का मुक़ाबला करेंगे…”
चंद्रमा नाथ को इन्हों ने पृथ्वी के चंद्रमा पर पकड़ा था.
सब नक्षत्रों, ग्रहों और उपग्रहों के मानव धरती पर जा चुके थे. चंद्रमा नाथ ने मोना लीसा को भी ज़बर्दस्ती भेज दिया था. चंद्रमा पर वह अकेला था. एक स्वचालित यान था उस के पास.
इतिहास के भंडार में से अधिकांश सामग्री धरती पर भेजी जा की थी. कुछ और दुर्लभ सामग्री बचा कर पृथ्वी पर ले जाने का मोह उसे रोके रखा था.
इन लोगों का हीरक यान चंद्रमा तल पर उतरा था. जब वे लोग चंद्र के पास पहुँचे तो वह बड़ा शांत था. अध्ययन शाला में था. पता नहीं कैसे उन के पास धरातियों के बारे में सब जानकारी थी. वे उस का नाम और काम भी जानते थे. उन्हों ने उसे मारा नहीं. अपने हीरक यान के एक विशेष कक्ष में बंद कर दिया था. उस से कहा गया था कि वह आकाश गंगा पर अधिकार जमा लेने वाले धरातियों का इतिहास लिखे ताकि सनद रहे कि कैसे एक जीवजाति…
इस काम के लिए चंद्रमा को दिया गया था एक पूरा पृथ्वी वर्ष. यह काल इन के दस दिन के बराबर है. इन के इन दस दिनों में इन की सारी तकनीकी तैयारी पूरी हो जाएगी…
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हीरक यान को चंद्रमा से हटा कर अंतरिक्ष में स्थित कर दिया गया – आवश्यक दूरी पर…
एक अधिकारी उसे हीरक यान के दर्शन कक्ष में ले आया. इस कक्ष के बाहर एक छज्जा बना है… इस कक्ष की दीवारों पर बाहर का चतुर्दिक दृश्य दिखाई दे रहा है. वह सूर्य है, वह चंद्रमा, वह शुक्र, वह मंगल… वह धरती…
चंद्रमा नाथ ने देखा – धरती के चारों तरफ़ रोशनी की रस्सियाँ झूल रही हैं. धरती मानो मकड़ी के जाले में फँसी हो. देखते देखते रस्सियाँ झनझना उठीं. कर्षण, विकर्षण, तनाव, भिंचाव…
एक अजब घनघनाहट… सनसनाहट…
लगा धरती सिकुड़ रही है… समुद्र भाप बन गए… उबलती भाप में धरती ओझल हो गई….
थोड़ी देर बाद देखा गया… हीरक यान के छज्जे में फ़ुटबाल जैसी कोई चीज़ गिरी और गद्दे खाने लगी. धीरे धीरे फ़ुटबाल शांत हो गई…
चंद्रमा नाथ ने देखा जहाँ धरती थी वहाँ अब कुछ नहीं था. चाँद काँप रहा है. मानो चाँद की कक्षा में परिवर्तन हो रहा है. चाँद के पर्वत टूट कर गिरने लगे… धरती की भाप चाँद से लिपट गई…
चाँद अब धरती के नहीं सूरज के चक्कर लगा रहा है…
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उस ने सुना कोई कह रहा है – “आकाश गंगा के स्वामियों के घर इस गोले को सँभाल कर अंदर रख लो. अजायब घर में इस धराती के पास ही इस गोले को रखना होगा. और…”
फिर किसी ने चंद्रमा नाथ से कहा:
तुम्हारी आकाश गंगा के स्वामियों का इतिहास पूरा हो गया. चलो!
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ओऽम् शांतिः शांतिः शांतिः
हरि ओऽम् तत्सत्!
© अरविंद कुमार
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