न पढ़ पाया – तो हरि की इच्छा!
धारावती. दुर्ग प्राचीर के निकट मार्ग.
(नारदानंद आता है. वह एक पत्र पढ़ रहा है.)
नारदानंद
विक्रम, शतमन्यु से सावधान. कंक से बच. चाणूर को रख दूर. चंडीचरण पर रहे नज़र. गुणाकर पर भरोसा मत कर. महीधर वर्मन को पहचान. भगदत्त भट्टारक नहीँ है तेरा हितैषी. नागराज मणिभद्र को तू ने पहुँचाई थी चोट. इन सब का एक ही नारा है : ‘विक्रम को हटाओ.’ अमर नहीँ है तू. सावधान. भीतर ही भीतर चल रहा है षड्यंत्र.
शुभ चिंतक - नारदानंद
यहीँ पर खड़ा हो जाता हूँ. विक्रम
आएगा तो आवेदन पत्र की
की तरह पकड़ा दूँगा यह चेतावनी.
क्योँ नहीँ देख पाते संसारी जन
किसी का उत्थान? पढ़ लेगा विक्रम
तो हो जाएगी देश की रक्षा. और
न पढ़ पाया – तो हरि की इच्छा!
Comments