त्रिकालज्ञ है, ज्योतिषी है. कह रहा है,
सावधान, मार्च के मध्य से सावधान
नगर मार्ग.
(तूर्यनाद. सीज़र आता है. साथ मेँ हैँ दौड़ के लिए तैयार एंटनी. कैल्पूर्निया, पोर्शिया. डीसियस, सिसैरो, बूटस, कैसियस, कास्का. इन के पीछे आ रही है भीड़. भीड़ मेँ त्रिकालज्ञ.)
सीज़र
कैल्पूर्निया!
कास्का
शांत! बोल रहा है सीज़र.
सीज़र
कैल्पूर्निया!
कैल्पूर्निया
जी, स्वामी?
सीज़र
बीच रास्ते मेँ खड़ी हो जाएँ आप,
जब दौड़े एंटोनियस… एंटोनियस!
ऐटनी
सीज़र!
सीज़र
लूपरकल दौड़ की भागमभाग मेँ भूल
मत जाना तुम कैल्पूर्निया को
छूना! पुरखोँ की परंपरा है –
इस पावन दौड़ मेँ बाँझ को छू दो, तो
दूर हो जाता है उस का अभिशाप.
एंटनी
कैसे भूलूँगा! सीज़र का आदेश है –
अटल है.
सीज़र
चलो, करो आरंभ.
छूट न जाए कोई प्रथा पुरानी.
(वाद्यनाद.)
त्रिकालज्ञ
सी ऽ ज़ ऽ र ऽ…
सीज़र
कौन है? किस ने पुकारा?
कास्का
शोर बंद करो. शांत! सब शांत!
सीज़र
भीड़ मेँ यह किस ने पुकारा?
वाद्यनाद के ऊपर यह पुकार किस की
थी? किस ने कहा : सीज़र. कौन है? बोल,
सुन रहा है सीज़र.
त्रिकालज्ञ
मार्च के मध्य से सावधान!
सीज़र
कौन है यह?
ब्रूटस
त्रिकालज्ञ है, ज्योतिषी है. कह
रहा है, सावधान, मार्च के मध्य
से सावधान.
सीज़र
सामने तो लाओ इसे.
सूरत तो देखेँ इस की.
कैसियस
भगवान के
बंदे, भीड़ से निकल. सीज़र को देख.
सीज़र
बोल, क्या कहता था? फिर से कह एक बार.
त्रिकालज्ञ
सावधान! मार्च के मध्य से सावधान!
सीज़र
हूँ. कल्पना लोक मेँ विचरने वाला
बेचारा… चलो…
(तूर्यनाद. सब चले जाते हैँ. मंच पर रह जाते हैँ ब्रूटस और कैसियस.)
कैसियस
देखने चलेँगे आप दौड़ का समारोह?
ब्रूटस
नहीँ.
कैसियस
चलिए तो सही.
ब्रूटस
आते
नहीँ रास मुझे उत्सव समारोह.
वह उत्साह, वह जीवन, जो एंटनी मेँ
है, मुझ मेँ नहीँ है. आप चलिए,
रुकिए मत मेरे लिए… अच्छा,
चलूँ?
कैसियस
मित्र ब्रूटस, क्या बात है? वह स्नेह,
अपनापन, स्वागत आप के नयनोँ मेँ
अब मुझे नहीँ मिलता, मिलता था
जो पहले कभी. मित्र हूँ
मैँ. आप का हितैषी हूँ. क्योँ कठोर
हैँ आजकल आप इतने?
ब्रूटस
बुरा मत
मानो, मित्र कैसियस, अन्यथा न लो
मुझे. एक धुँधलका सा छाया है
मेरी आँखोँ पर. मन पर छाया है
गहन विषाद. वही छिपाता हूँ
मैँ दुनिया से. कुछ अन्य कारण हैँ जो
परेशान हूँ मैँ. मेरे मन मेँ हैँ
अनेकोँ तूफ़ान, भारी बवंडर.
वे मुझ तक ही सीमित रहेँ – यही
ठीक है. मानता हूँ… मेरा ही व्यवहार
कारण है मित्रोँ से मेरी दूरी
का. मित्र, बुरा मत मानो, यही
समझो… बेचारा ब्रूटस अपने
से लड़ रहा है. परेशान है,
भूल गया है प्रेम का व्यवहार.
कैसियस
महानुभाव ब्रूटस, खेद है मैँ आप
को ग़लत समझा. आप से छिपाए
रहा वे तूफ़ान जो मचलते हैँ
मेरे मन मेँ… अनेक महान उच्च
विचार, सामाजिक मनोमंथन.
ब्रूटस, भले आदमी, बताओ तो –
देख सकते हो क्या तुम अपना चेहरा?
ब्रूटस
नहीँ तो, कैसियस. भला आँख कब
देख पाती है ख़ुद को. हम देख सकते
हैँ दर्पण मेँ केवल अपनी छाया.
कैसियस
ठीक कहते हो, मित्र. खेद तो यही
है, ब्रूटस, तुम्हारे पास नहीँ
है कोई ऐसा दर्पण जो तुम्हेँ
दिखा दे वह रूप, जो रोमन गणोँ के
मन मेँ तुम्हारा, बस, तुम्हारा है.
सुनी है मैँ ने अपने कानोँ से
से प्रशंसा. सुना है तुम्हारा वह
गुणगान, जो करते हैँ रोम राज्य के
परम आदरणीय जन महान. नहीँ
है इन मेँ बस एक – सीज़र, हाँ, सीज़र
महान. ये हैँ सभी जाने माने
लोग झेल रहे हैँ जो इस युग
का बोझिल जुआ. सभी सोचते हैँ – काश
होतीँ भोले ब्रूटस को आँखेँ.
ब्रूटस
किन भयानक अँधेरोँ मेँ धकेल
रहे हो मुझे? क्योँ चाहते
हो मैँ देखूँ अपने मेँ वह जो मुझ
मेँ नहीँ है.
कैसियस
भले ब्रूटस, सुनो.
तत्पर हो कर सुनो. तुम मानते हो
तुम अपने आप को नहीँ देख सकते.
बनूँगा मैँ तुम्हारा दर्पण. मैँ
दिखाऊँगा तुम्हेँ जो तुम हो, वह
जो तुम नहीँ जानते कि तुम मेँ है.
भले मानस, मार्क ब्रूटस, झिझको
मत. कोई भांड या विदूषक नहीँ
हूँ मैँ. मित्रता की शपथेँ उठाता
नहीँ फिरता हूँ मैँ. देखा है तुम
ने कभी मुझे चापलूसी करते?
झूठे गुण बखानते? पीठ फिरते ही
फिर किसी की बखिया उधेड़ते?
पानगोष्ठी मेँ तुम ने कभी मुझे
देखा हो मदमस्त, शान बघारते, तो
समझना भयानक मुझे.
(वाद्यनाद और शोर.)
ब्रूटस
जयकार!
क्योँ? किस कारण? भय है मुझ को –
रोमन गण सम्राट बना ना डालेँ उस को!
कैसियस
भय है? नहीँ चाहते तुम यह होना?
ब्रूटस
नहीँ, कैसियस, नहीँ! नहीँ!
लेकिन उसे चाहता हूँ मैँ कितना!
क्योँ रोक रखा है मुझ को तुम ने?
बोलो, क्या कहना है मुझ से तुम को?
है कोई बात अगर जनहित की, तो
एक हथेली पर है आन, मान, सम्मान…
और दूसरी पर धर दो तुम मेरे प्राण.
दोनोँ को तौलूँगा मैँ – एक समान.
गणदेव सभी साक्षी हैँ मेरे. है
प्यारी मुझ को आन, कुछ मोह नहीँ
जीवन का.
कैसियस
हाँ, सभी जानते हैँ यह
बान तुम्हारी… सम्मान, मात्र सम्मान,
कथन है मेरा. नहीँ जानता क्या
है जीवन का मर्म तुम्हारे, जन के,
मन मेँ. अपनी बात कहूँ तो मैँ
बस यही कहूँगा – अपने जैसे से
दब कर रहने से बेहतर है मरना.
मैँ भी, तुम भी, हम सब, सीज़र जैसे
स्वतंत्र जन्मे थे. इस धरती ने
हम को भी पाला है. इसी नदी
ने हमेँ पिलाया पानी. हम भी
सहते हैँ उस के जैसी शीत हिमानी.
सुनो… एक दिन शीत पवन चलता था.
हरहरा रही थी टाइबर नद
की धारा. सीज़र ने तौला मेरी
आँखोँ को. बोला : ‘है हिम्मत, तो चल
कूदेँ इस उन्मत्त सलिल मेँ. देखेँ –
कौन पहुँचता है पहले उस तट पर.’
कूद पड़ा था मैँ जो भी पहने था,
और कहा सीज़र से : ‘हिम्मत है, तो
आ!’ कूद पड़ा था वह भी… लहरेँ ही
लहरेँ लरज रहीँ थीँ. हम ने उन्हेँ
थपेड़ा. बहसाबहसी मेँ हम ने
उन्हेँ धकेला…
लेकिन तट था दूर. सीज़र ने हिम्मत
हारी. वह चिल्लाया, ‘बचा मुझे.
मैँ डूबा!’
पुरा काल मेँ ट्राय दुर्ग
धू धू कर के जलता था. उस ज्वाला
मेँ बूढ़े एंकसीज़ की जर्जर काया
को था इनीयास ने अपने काँधोँ
पर धारा. वैसे ही उन तूफ़ानी
ऊँची लहरोँ मेँ सीज़र की थकी
देह को इन काँधोँ ने ढोया. वही
आज महामानव है. और कैसियस?
हूँ! नाली का कीड़ा! सीज़र का मूँड
हिले, कैसियस को शीश नवाना
होगा. एक बार, स्पेन देश मेँ सीज़र
को ज्वर ने घेरा. जूड़ी चढ़ती थी,
काँप काँप उठता था शिख से नख तक
यह देवा. ज्वरकातर अधरोँ पर रंग
नहीँ था. यही नेत्र, अब जिन से
धरती कंपित होती है, उस दिन
इन मेँ चमक नहीँ थी. इन कानोँ ने
उस का रुदन सुना है. उस की यह
वाणी ओजस्वी, जिस के तेजस्वी
स्वर सब सुनते हैँ, जिस का एक एक शब्द
पुस्तक मेँ लिखते हैँ, उस दिन यह
नारी जैसी रोई, रिरियाई,
‘हाय, टिटीनियस, दो बूँद पिला दे पानी.’
देव! अधिदेव! यही वह कायर! आज
धरा के सकल पदारथ भोग रहा है…
(हर्षनाद. तूर्यनाद. हर्षनाद.)
ब्रूटस
फिर वही शोर! फिर वही नाद!
निश्चय ही सीज़र पर लाद रहे
हैँ और नए सम्मान नगर जन.
कैसियस
भव्य वीरता की विशाल प्रतिमा
बन सीज़र आज धरा को रौंद रहा
हैँ. उस के विकराल डगोँ के नीचे
हम रोमन जन चूहोँ जैसे दुबक
रहे हैँ, काँप रहे हैँ… मानव ही
होते हैँ अपने भाग्य विधाता. यह
पतन हमारा – भाग्य नहीँ लाया,
हम लाए हैँ. देखो – ‘सीज़र’… ‘ब्रूटस’…
‘सीज़र’ मेँ क्या लाल लगे हैँ? क्योँ यह
‘सीज़र’ यूँ बार बार बोला
जाता है? दोनोँ को लिखो. ‘ब्रूटस’
भी वैसा ही सजता है. दोनोँ का
जयकार करो. ‘जय जय सीज़र!’ ‘जय जय
ब्रूटस!’ दोनोँ उतने ही प्रेरक हैँ.
आख़िर सीज़र किस चक्की का खाता
है? क्योँ वह महान बनता जाता है?
आज का युग अंधा है. रोम देश मेँ
नरवीरोँ का काल पड़ा है.
महाप्रलय से अब तक क्या कोई
युग ऐसा आया है – जिस मेँ केवल
एक नाम से रोम नगर जाना जाता
था. क्या यह वही रोम है जिस के चौड़े
प्रांगण मेँ नरवीरोँ के दल सीना
चौड़ा कर चलते आए हैँ? लेकिन
इस अंधे युग मेँ इस मेँ केवल एक
रहेगा! कभी सुना था ऐसा?…
हाँ, सुना है पुरखोँ से आप ने भी,
मैँ ने भी – कभी हुआ करता था एक
और ब्रूटस. शैतान से टकरा सकता
था वह रोम मेँ मनवाने को राजा
के समान अपना सम्मान.
ब्रूटस
तुम मुझे चाहते हो – मानता हूँ. तुम
मुझ से क्या चाहते हो – कुछ जानता हूँ.
मैँ ने बहुत गुना है, सोचा है,
विचारा है. युग की विषमता ने
मथा है मेरा भी मन. वह सब मैँ
बताऊँगा फिर कभी. बस, यही
विनती है – मुझे और मत उकसाओ.
तुम ने जो कहा, उस पर सोचूँगा
मैँ. जो कुछ तुम्हेँ और कहना है – वह
भी सुनूँगा मैँ. कभी कुछ समय
निकालेँगे, मिलेँगे, बैठेँगे
हम. बड़ी बड़ी बातेँ करेँगे,
सोचेँगे हम. तब तक, कैसियस,
बस इतना याद रखना – ब्रूटस को
स्वीकार है रह जाना अधिकारहीन
गँवार, लेकिन होने वाली है रोम
की जो हालत, नहीँ है उस मेँ
स्वीकार ब्रूटस को कहलाना रोम का
पूत.
कैसियस
ख़ुश हूँ, मेरे क्षीण से शब्दोँ से,
मित्र ब्रूटस, आप के मन मेँ छिपी थी
जो ज्वाला उस की झलक तो उभरी.
(सीज़र और साथी आ रहे हैँ.)
ब्रूटस
उत्सव संपूर्ण हुआ. अब लौट
रहे हैँ सीज़र के साथ सब लोग…
कैसियस
यहाँ
से वे गुज़रेँ, तो आप थाम लेँ कास्का
की बाँह. सब सुना देगा वह तत्काल
लंठ शैली मेँ आँखोँ देखा हाल.
ब्रूटस
पर, कैसियस, देखो तो… सीज़र
के मस्तक पर कोप की छाया है. शेष
जन भी सहमे सहमे हैँ. क्लांत है
कैल्पूर्निया का कपोल. देखो,
आचार्य सिसैरो ऊदबिलाव से
चिंतित हैँ – जैसे संसद मेँ किसी
ने काट दिया हो उन का तर्क.
कैसियस
सब कुछ बता डालेगा कास्का.
सीज़र
एंटनी!
एंटनी
सीज़र?
सीज़र
मेरे पास रहेँ मोटे ताज़े लोग,
चिकने चुपड़े, बाल काढ़ने वाले लोग,
रात भर भरनीँद सोने वाले सुखी
लोग. वह जो कैसियस है – सीँक सा पतला.
आँखेँ बेचैन हैँ, भूखी हैँ. सोचता
रहता है हर दम. भयानक होते
हैँ ऐसे लोग.
एंटनी
डरो मत. निरापद
है वह. कुलीन रोमन है, भला है.
सीज़र
काश, वह मोटा होता. डरता नहीँ
मैँ उस से. पर कभी सामना हुआ
भय से, तो, जानते हो? सब से ज़्यादा
दूर रहूँगा मैँ सीँकिया कैसियस
से. बहुत पढ़ता है. निगाह पैनी
है. कर्म का मर्म भाँप लेता है.
उल्लास उत्सव उसे नहीँ भाते.
तुझ से उलटा है वह. संगीत नहीँ
सुनता. हँसता नहीँ. कभी कभार
मुस्कराता है, तो ऐसे – मानो
धिक्कार रहा हो अपने को – क्योँ
मुस्करा बैठा. ऐसे लोग अपनोँ
से बड़ोँ के सामने सहज नहीँ
होते कभी. इसी लिए होते
हैँ ये भयानक. भयानक लोगोँ
के लक्षण गिनाए हैँ मैँ ने. मैँ?
मैँ सदा सीज़र हूँ. आ, इधर दाहिने…
इस कान से कम सुनता हूँ मैँ…
बता कैसियस के बारे मेँ और क्या
सोचता है तू.
(तूर्यनाद. सीज़र और साथी चले जाते हैँ. कास्का रुक जाता है.)
कास्का
तुम ने खीँचा दामन मेरा? कुछ कहना है क्या?
ब्रूटस
अजी, कास्का, क्या हो गया? उदास
क्योँ है सीज़र?
कास्का
तुम तो थे वहाँ? तुम नहीँ जानते क्या हुआ?
ब्रूटस
फिर भला मैँ आप से पूछता?
कास्का
अच्छा, तो सुनो, जी. सीज़र को दिया गया था मुकुट. उस ने हाथ से हटा दिया – यूँ! बस, लोग थे कि हो गए ख़ुशी से पागल, लगे चीख़ने चिल्लाने, ताली बजाने.
ब्रूटस
दूसरी बार क्योँ हुआ था हर्षनाद?
कास्का
इसी लिए.
कैसियस
तीन बार हुआ था हर्षनाद, कास्का.
तीसरी बार क्योँ हुआ?
कास्का
इसी लिए.
ब्रूटस
तो तीन बार दिया गया था मुकुट?
कास्का
हाँ, जी, पूरे तीन बार. तीनोँ बार हटा दिया सीज़र ने. पहली बार बड़े जोश से, दूसरी बार धीरे से. और तीसरी बार? और भी धीरे से. जैसे जैसे सीज़र मुकुट हटाता, लोग हो जाते ख़ुशी से पागल.
कैसियस
मुकुट दिया किस ने था?
कास्का
और कौन देता, जी? एंटनी ने दिया था मुकुट.
ब्रूटस
भले मानस, कास्का, बताओ तो
क्या हुआ? कैसे हुआ?
कास्का
भला, जी, कोई बताए इन्हेँ यह सब कैसे हुआ? बस, खिलवाड़ सी थी. मेरा तो ध्यान भी नहीँ था पूरा. अचानक क्या देखता हूँ, जी, एंटनी मुकुट बढ़ा रहा है सीज़र की तरफ़. कोई सचमुच का मुकुट नहीँ था. फूलोँ का मुकुट था, जी… हाँ, तो बढ़ाया एंटनी ने मुकुट. हटा दिया सीज़र ने. मुझ को तो लगा मन भावे मूँड हिलावे. लो, जी, थोड़ी देर बाद फिर बढ़ाया एंटनी ने मुकुट. मुझ को लगा – मुकुट हटाना नहीँ चाहता सीज़र. फिर, तीसरी बार बढ़ा, जी, मुकुट. अब के भी सीज़र ने हटा दिया. बस, जी, जनता ठहरी जनार्दन. हो गई मगन. नादान बजाने लगी ताली, उछालने लगी टोप, करने लगी शोर. पूछो मत – ऐसा शोर उठा, ऐसी गंदी हवा बही – बेचारा सीज़र. गला रुँध गया बेचारे का… ग़श खा के गिर पड़ा. मेरी मत पूछो… मैँ तो मुँह खोल के हँस भी नहीँ सका. मुँह खोलता तो गंदी हवा ना घुस जाती भीतर.
कैसियस
आराम से… सचमुच बेहोश हो गया सीज़र?
कास्का
अजी, हाँ, वहीँ गिर पड़ा चौक मैँ. झाग निकलने लगे मुँह से. बोलती बंद हो गई.
ब्रूटस
हाँ, हाँ. गिरने का रोग है सीज़र को.
कैसियस
गिरने का रोग सीज़र को नहीँ है.
गिरने का रोग है आप को, मुझे और
भले कास्का को.
कास्का
पता नहीँ, क्या कहते हो, जी. मैँ सच कहता हूँ… ग़श खा के गिर पड़ा था सीज़र… और कचरापट्टी लोग बजाने लगे ताली, दे ताली! दे ताली! और मचाने लगे शोर, हो हुल्लड़… जैसा खेल तमाशे मेँ करते हैँ नचनियोँ के नाच पे ख़ुश हो कर… सच कहता हूँ…
ब्रूटस
होश आने पर क्या बोला सीज़र?
कास्का
अजी, पहले तो इस से भी पहले की सुनो. सीज़र ने हटा दिया मुकुट, तो जनता ख़ुश. जनता ख़ुश, तो सीज़र परेशान. मैँ खड़ा था सीज़र के बिल्कुल पास. मेरे सहारे टिक के खड़ा हो गया सीज़र. दम घुट रहा था उस का. मुझ से खुलवा दिया उस ने अपना गरेबान. गरेबान खोला मैँ ने, तो क्या बोला सीज़र? सीज़र बोला जनता से : ‘आप के सामने खड़ा हूँ. काट डालो मेरा गला.’ सच कहता हूँ मैँ – अगर मैँ होता जनता और कहा न मानता सीज़र का, तो नरक न जाना पड़ता मुझे? पर तभी ग़श खा के गिर पड़ा सीज़र. होश आया तो कहने लगा : ‘कोई भूल चूक हो गई हो मुझ से, कोई कहनी अनकहनी कह दी हो मैँ ने, तो क्षमा कर देना कमज़ोरी समझ के.’ मेरे पास खड़ी थीँ तीन चार छोरियाँ. आँखेँ छलक आईँ उन की. कहने लगीँ : ‘बेचारा भला मानस!’ क्षमा कर दिया, जी, उन्होँ ने उसे. मैँ कहूँ – वह उन की अम्माओँ को छुरा घोँप देता, तो भी क्षमा कर देतीँ वे उसे.
ब्रूटस
और उस के बाद उदास सीज़र इधर
चला आया?
कास्का
हाँ, जी.
कैसियस
आचार्य सिसैरो ने क्या कहा?
कास्का
यूनानी मेँ कहा था कुछ.
कैसियस
लेकिन कहा क्या था?
कास्का
मैँ क्या जानूँ यूनानी बोली. हाँ, जो समझे, हँस पड़े थे वे… हाँ, जी, और सुनो! नया, बिल्कुल नया, समाचार. मारूलस और फ़्लावियस की कर दी गई है बोलती बंद… उन का अपराध? अरे, आप नहीँ जानते? सीज़र की मूरत पर से चीर जो उतारे थे उन्होँ ने. अच्छा जी, बंदा तो चला. तमाशे तो और बहुत सारे हुए पर याद नहीँ आ रहे.
कैसियस
आज शाम भोजन पर आ जाओ घर.
कास्का
आज शाम? आज का न्योता है कहीँ और से.
कैशियस
तो कल शाम?
कास्का
हाँ, कल की शाम आई तो. लेकिन देखो न्योत कर भूल मत जाना और भोजन बढ़िया बनवाना.
कैसियस
ठीक है, प्रतीक्षा करूँगा तुम्हारी.
कास्का
ठीक है, जी. आप दोनोँ को बंदे का नमस्कार.
(जाता है.)
ब्रूटस
कैसा लंठ गँवार हो गया है!
पाठशाला मेँ यह कैसा तेज़
तर्रार हुआ करता था.
कैसियस
जनहित मेँ
अभी तक तेज़ है वह. यह तीख़ा
मिर्च मसाला, यह चटखारा, यह सब
ऊपरी अदा है. लोग शौक़ से सुनते
हैँ, पचा लेते हैँ.
ब्रूटस
यह तो है. तो
अब मैँ चलता हूँ. मिलेँगे कल फिर.
कहो तो तुम्हारे घर आ जाऊँ?
या तुम्हीं आ जाना मेरे पास. मैँ
प्रतीक्षा करूँगा.
कैसियस
आऊँगा मैँ.
सोचो तब तक – क्या हो रहा
है ज़माने को?
(ब्रूटस जाता है.)
बड़े हैँ आप, मित्र ब्रूटस.
समझ गया हूँ मैँ – आप को ढाला
जा सकता है मनचाहे साँचे मेँ.
बड़ोँ को चाहिए संगत बड़ोँ
की. बहकाए जा सकते हैँ बड़े
से बड़े भी. सीज़र को सुहाता
नहीँ हूँ मैँ. ब्रूटस ठहरा उस की
आँखोँ का तारा. होता अगर मैँ
ब्रूटस और ब्रूटस होते मेरी
जगह – तो फुसला नहीँ पाते वे
कभी मुझे. आज ही रात लिखूँगा
ज्ञापन, आवाहन, अनेक नामोँ से.
उन सब मेँ होगा रोम की नज़र मेँ
ब्रूटस की महानता का बखान, और
सीज़र की नीयत पर कटाक्ष! देखेँ -
फिर कितनी देर टिक पाता है सीज़र.
हिला देँगे हम उसे या फिर हम
ही सहेँगे दुर्भाग्य की मार.
(जाते हैँ.)
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