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फ़ाउस्ट – एक त्रासदी
योहान वोल्फ़गांग फ़ौन गोएथे
काव्यानुवाद – © अरविंद कुमार
४. अध्ययन शाला
फ़ाउस्ट. मैफ़िस्टोफ़िलीज़.
फ़ाउस्ट
कौन है! आ जाओ!
फिर आ मरा कोई किताबी कीड़ा!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
मैँ हूँ.
फ़ाउस्ट
आ जाओ!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
फिर कहो तीसरी बार.
फ़ाउस्ट
हाँ. हाँ. आ जा!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
यह हुई ना कुछ बात!
ख़ूब जमेगा हम दोनोँ का साथ.
आ गया मैँ मिटाने को ग़म, करने को दुःख दूर.
देखिए मेरा यह लाल सुनहरी परिधान –
यह रेशमी चोग़ा, मुरगे का पंख – टोप मेँ कलगीदार,
और, हाँ, यह नोँकीली तलवार.
यह पहनते हैँ शाही मनसबदार.
आप पर भी ख़ूब फबेगा यह परिधान.
पहनिए आप. हो जाइए मुक्त. तोड़िए हर बंधन.
यही तो है असली जीवन!
फ़ाउस्ट
कैसा भी हो परिधान, लगेगा मुझे बंधन –
सांसारिक राग द्वेष, आशा, आशंका.
बीत गई है खेल की उम्र,
और अभी नहीँ आई वह अवस्था
जब शेष रह जाती है महत्वाकांक्षा.
क्या दे सकता है मुझे संसार?
हर समय एक ही है मेरे मन का राग –
संन्यास! त्याग, परित्याग! –
बीतती जाती है उम्र,
बढ़ता जाता है इस राग का स्वर
जैसे फटे बाँस की पुकार.
नए आतंक लाती है नई भोर.
सुलगता निकलता है हर एक दिन.
दहकने लगती है मन मेँ हताशा.
बीत जाएगा एक और दिन,
पूरी नहीँ होगी एक भी आशा.
गरम हवा के झोँके झुलसा देँगे प्रेरणा के स्रोत.
हृदय पर चढ़ जाती है दुखोँ की परत एक और.
छिन जाता है सृजन का संपूर्ण उत्साह.
जब रात का परदा गिर जाता है पश्चिम दिशा पर
बोझ पड़ जाता है मन पर.
भारी मन से लेटता हूँ बिस्तर पर.
जानता हूँ नहीँ मिलेगा विश्राम रात भर.
झेलने पड़ेँगे फिर नए आतंक.
रात भर घेरे रहेँगे स्वप्न दुर्दांत.
मेरी चेतना पर है भगवान का अधिकार.
लेकिन जो कुछ भी है बाहर का संसार
वह नहीँ करता भगवान के राज्य को स्वीकार.
मेरा संपूर्ण अस्तित्व है बेकार.
जीवन से होती है घिन. मेरी कामना है मौत.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
आसानी से मेहमान भी कहाँ बनती है मौत!
फ़ाउस्ट
वे जन हैँ कितने महान -
जिन के मस्तक पर सजाती है मौत
शौर्य के रक्तरंजित पुष्पहार!
सुखी हैँ वे जन जिन्हेँ अपना लेती है मौत.
डाले प्रेयसि के कंठ मेँ बाँहोँ का हार
नृत्य की महफ़िल से जिन्हेँ खीँच लेती है मौत.
धरती की चेतना,
जब मैँ ने भोगा तेरा प्रसाद पहली बार,
क्योँ नहीँ झुलस गया मेरा मांस, मेरा तन?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
कोई एक था इसी कक्ष मेँ एक दिन
जिस ने कर दिया था इनकार
करने से गाढ़े क्वाथ का पान…
फ़ाउस्ट
जासूस है पूरा?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
सर्वज्ञ नहीँ हूँ मैँ. फिर भी काफ़ी है मेरा ज्ञान!
फ़ाउस्ट
गहन निराशा के चक्रिल भँवर से
खीँच लिया मुझे वापस
बचपन की सुहानी यादोँ ने,
बीते वर्षोँ के छलिया सपनोँ ने.
शाप देता हूँ मैँ –
उन सब मायावी तत्वोँ को
छलते हैँ जो आत्मा को भुलावोँ से
डाल देते हैँ उसे जीवित नरक के इस कारागार मेँ.
शाप देता हूँ मैँ –
उस आकांक्षा को
जिस मेँ फँस कर – स्वयं को सीमित कर
आत्मा अपने आप पर डालती है बंधन.
शाप देता हूँ मैँ –
सृजन की मृगतृष्णा को
जो सताती है हमेँ आजीवन.
शाप देता हूँ मैँ –
सपनोँ के पूत छलावे को
जो करता है हम से निष्कलंक वैभव का वादा –
खेत खलिहान! नौकर चाकर! धन संपदा!
बीवी! बच्चे! ऐश्वर्यपूर्ण जीवन!
शाप देता हूँ मैँ –
धन पिशाच को
जो जोतता है हमेँ श्रम के जूए मेँ.
शाप देता हूँ मैँ –
उन रेशमी गदेलोँ को
जब हम थक कर होँ चूर चूर
तो जिन पर मौज मनाने का लालच देता है धन पिशाच.
शापित है मधुर द्राक्षा हाला!
झुलस जाएँ, गिर जाएँ, झड़ जाएँ
वासना के अंगूर!
अभिशप्त हो आशा!
अभिशप्त हो विश्वास!
इन से भी बढ़ कर –
अभिशप्त हो धैर्य, संकल्प!
अदृश्य प्रेतोँ का कोरस
नाश! नाश! सर्वनाश!
हो ही गया सत्यानाश.
एक वार कर गया
धरती का सौंदर्य नाश.
था वह अर्धदेवता
किया है उसी ने नाश.
चलो दफ़ना देँ लाश
शून्य है जहाँ अकाश.
बहती है अश्रुधार
देख कर सौंदर्य नाश.
फिर से करो…
फिर से करो…
नव शक्ति का संचार.
फिर से करो जीवन दान.
अंतर्मन मेँ फिर से लो
सुंदरतम रूप धार.
फिर से हो…
फिर से हो…
शुभारंभ फिर से हो.
फिर से मिले एक बार
ऊर्जा का महादान.
गूँजे फिर, नभ मेँ गूँजे
पुनरागमन का गान…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
मेरे सिपाही हैँ ये –
नरक के दास – ये छुटभैये.
देखा – कैसे कर रहे हैँ ये
नव उत्साह का संचार.
साहसपूर्ण कारनामोँ की पुकार.
एकांत ने कर दिया
आप की चेतना को कुंद.
रक्त प्रवाह है अवरुद्ध.
इन के गीत से मिट जाएँगे क्लेष
दूर हो जाएँगे मन के रोग.
मेरा निवेदन है –
पालिए मत दुःखोँ के अंबार.
खेलिए मत आत्मपीड़ा से,
दुलराइए मत दुःखोँ का बोझ –
यह गिद्ध खा जाता है मन को, मस्तिष्क को.
जिसे कहते हैँ हम – वर्ग निकृष्ट निम्नतम
उस से भी सीख सकते हैँ हम –
संपूर्ण मानव जाति का अंग हैँ हम.
मेरा मतलब नहीँ है
कि आप हो जाएँ हर ऐरे ग़ैरे नत्थू खैरे जैसे.
न ही मैँ कंधे से कंधा मिलाता हूँ
दरबारी सामंतोँ से, पिट्ठुओँ से.
हाँ, आप बनाना चाहेँ मुझे साथी
मस्ती की डगर पर चलना चाहेँ मेरे साथ
तो तत्पर हूँ मैँ –
आज, अभी, तत्काल.
आप को मिलेगा मुझ से पूरा संतोष.
मैँ बन सकता हूँ आप का दास.
फ़ाउस्ट
बदले मेँ क्या चाहते हो तुम?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
बाद मेँ सोचते रहेँगे यह बात…
फ़ाउस्ट
मतलबी होता है शैतान
भगवान के नाम पर भी बेमतलब नहीँ देता साथ.
ख़तरनाक होते हैँ तुम जैसे दास.
अभी हो जाए साफ़ एक एक बात.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
मेरा वादा है –
मैँ बनूँगा आप के हुक्म का बंदा! आप का दास!
इहलोक मेँ पूरे हो जाएँ जब आप के सब काम,
जब मिलेँगे हम वहाँ – उस पार –
तो मैँ बन जाऊँगा स्वामी,
आप बन जाएँगे दास.
फ़ाउस्ट
होता रहे जो होना है वहाँ – उस पार.
भुगत लेँगे, बाद की है वह बात.
इसी धरती के सूर्य का प्रकाश
मिटा सकता है मेरी पीड़ा का अंधकार.
मेरे सुखोँ का स्रोत है यही संसार.
पूरे होने दो नियति के दान.
पूरे हो जाएँ जब मेरे सब काम,
आए जब इस संसार को त्यागने का काल,
तो नहीँ जानना है मुझे क्या होना है उस पार.
ऊपर है सुखोँ का स्वर्ग, नीचे नारकीय पाताल –
नहीँ जानना है मुझे – क्या देगा अनंत काल –
घोर घिन या असीम प्यार?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
वाह! हो जाने दो यह हमारे क़रार का आधार.
लीजिए मैँ हूँ तैयार.
आप भोगेँगे वे सब सुख तमाम –
जो भोग नहीँ पाया कोई इनसान.
फ़ाउस्ट
क्या दे सकता है तू – मुझे? मूर्ख शैतान!
तू और तेरे चर जानते भी हैँ –
क्या हैँ मानव के ऊँचे अरमान?
क्या दे सकता है तू –
अंतहीन आकांक्षा! वे आनंद भोग
जिन से कभी नहीँ मिलता पूर्ण संतोष.
तू जो गढ़ेगा तरल स्वर्ण
तैरेगा हथेली पर पारे के समान!
देगा तू ऐसा खेल –
जिस पर हावी न हो सके इनसान?
दे सकता है तू ऐसी नार
जो झूले मेरी बाँहोँ मेँ और
किसी और पर फेँके चितवन के बाण?
बोल दे सकता है तू मुझे जीत के आनंद का क्षण
जो कौँघता है आकाश मेँ टूटते तारे के समान?
बोल – क्या दे सकता है तू मुझे
वनदेवी की संपदा चिरनवीन
प्रति दिन धारती है जो नव जीवन?…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
दूँगा आप को ऐसा हर उपहार.
मित्रवर, सामने है वह सुंदर मधुर पल –
जब मिल सकता है मनचाहा संतोष.
फ़ाउस्ट
जब कभी मेरे मन पर छा जाए प्रमाद,
हो कर शांत, मैँ करने लगूँ विश्राम
तो हो जाए मेरा अंत…
जब कभी चाटुकारिता से भरमा जाए मेरा मन
मानने लगूँ अपने को पूर्णकाम
हो जाए मुझे पूर्ण संतोष
तो हो जाए मेरा अंत…
जब कभी तेरे आनंद भोग से भर जाए मेरा मन –
तो हो जाए मेरा अंत…
यह है मेरी शर्त…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
मंज़ूर है… मंज़ूर…
फ़ाउस्ट
ठीक है – ले मेरा हाथ –
उड़ते पल से जब कभी मैँ कहूँ एक बार पुकार –
हो गए पूरे मेरे सब काम –
‘कुछ और ठहर, मेरे पल सुंदर’
तो डाल देना बेड़ी,
समझ लेना – मान ली मैँ ने हार,
मौत की गुहा मेँ पदार्पण के लिए हूँ मैँ तैयार.
बजा देना मौत की घंटी.
समाप्त हो जाएगा तेरा दासता का काल.
हो जाएगा तू स्वाधीन, और मैँ पराधीन.
रुक जाएगी घड़ी, रुक जाएगी घड़ी की सूईं
मेरे लिए हो जाएगा काल का अंत…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
सोच लेँ फिर से एक बार –
भूलता नहीँ मैँ जब हो जाता है क़रार.
फ़ाउस्ट
ठीक है! होना भी चाहिए यही.
मैँ भी नहीँ हूँ सामर्थ्य का अवतार.
मुझे तो रहना ही है दास.
क्या फ़र्क़ पड़ता है – मैँ किस का हूँ दास?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
तो ठीक है!
आज है स्नातकोँ का दीक्षांत समारोह.
आज ही से करूँगा मैँ आप के काम.
लेकिन – कोई रुक्का, दस्तावेज, हस्ताक्षर.
है आप को कोई इनकार?
फ़ाउस्ट
तू भी निकला – वही – लकीर का फ़कीर!
हर चीज़ चाहिए लिखत मेँ!
नहीँ है यह पर्याप्त – दिया है मैँ ने कौल?
समय के अंत तक मानूँगा तेरा हर आदेश,
रहूँगा नरक मेँ जो है अंधकार का देश.
बेचैन हलचल से भरा है जनाक्रांत संसार.
रोक सकता है क्या मुझे यह संसार?
तू कहेगा पागल है इनसान,
पर सच है –
अपने पर यह बंधन डालता है शौक़ से इनसान.
पत्थर की लकीर बन जाता है इनसान का कौल.
बाँध लेता है इनसान को इनसान का कौल.
तुझे चाहिए दस्तावेज़! क़ानूनी दाँवपेँच!
दस्तावेज़ मेँ दम तोड़ देता है सम्मान.
ख़ैर! शैतान! जो भी है इच्छा तेरी!
लिखत पढ़त के लिए चाहता है तू
काग़ज़! ताम्रपत्र! शिलालेख!
बोल – क्या बनेगी लेखनी मेरी?
छैनी! पेंसिल! क़लम दवात!
पूरी होगी हर कामना तेरी!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
बढ़ा चढ़ा कर करते हो हर दम बात.
छोटा सा पुर्ज़ा काफ़ी है.
लगा दो लहू की मुहर इस पर.
फ़ाउस्ट
ठीक है! चल, झटपट कर लेते हैँ यह भी नाटक.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
लहू है दुर्लभतम स्याही.
फ़ाउस्ट
डर मत, नहीँ टलूँगा मैँ कौल से.
मेरी हर कामना वही है जो कहा है मैँ ने –
न ज़्यादा, न कम.
अपने गर्व का शिकार हूँ मैँ.
तुझ जैसोँ ही के योग्य हूँ मैँ.
धरा के देव ने ठुकरा दिया मुझे –
काट दिया प्रकृति के वसंत से…
मेरे विचार के चीथड़े हैँ तार तार…
ज्ञान विज्ञान से हूँ मैँ – बदहाल.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
चलो, खोजते ऐंद्रिक सुखभोग का अनमाप ज्वार
खोजते इंद्रजाल के चमत्कार,
चलो, खोल देँ हम जादुई संसार का द्वार.
चलो, हम चढ़ चलेँ काल के ज्वार पर.
बह चलेँ जहाँ ले जाए समय की धार –
सुख और दुःख, जीत और हार
को करने दो आपस मेँ खिलवाड़.
विश्राम के क्षणोँ मेँ मानव
रहता नहीँ मानव.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
अब नहीँ है कोई सीमा! कोई बंधन.
स्वतंत्र हैँ आप – जी चाहे जहाँ मुँह मारेँ.
त्याग देँ सादगी का व्यापार – भोगिए मनचाहे ऐश्वर्य.
फ़ाउस्ट
मैँ ने कहा था – नहीँ चाहिए मुझे ऐश्वर्य.
मेरी चाह है – क्रूरतम कामना की पूर्ति – आनंद का उन्माद.
मेरी चाह है – प्रेम से उपजी घृणा का उन्माद.
मेरी चाह है – पीड़ा जो बन जाती है प्रेरणा की महान पिपासा.
शांत हो चुकी है मेरी ज्ञान पिपासा.
प्रस्तुत है मन सहने को हर वह पीड़ा.
भोगने को संपूर्ण मानवता का आभोग.
छूना चाहती है मेरी आत्मा
अंतहीन गहराई और अनंत आकाश.
मानव के सुख दुख से परिपूर्ण हो उठे मेरा हर श्वास.
मेरा यह क्षुद्र सीमित अस्तित्व पा रहा है नया विस्तार.
इस मेँ समा रहा है मानव का संपूर्ण संसार.
इस का अंत होगा मानव के साथ. करो विश्वास –
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
मानो मेरी बात –
मैँ ने चबा डाला है हज़ारोँ वर्षोँ के जीवन का कूड़ा करकट.
अभी नहीँ हुआ है एक भी मानव जिस ने पचाया हो यह सब.
भगवान, मात्र भगवान, है जीवन का पात्र.
अनंत प्रकाश है उस के दुर्ग की दिव्य प्राचीर.
हमारे लिए है अंतहीन अंधकार.
हमेँ दे दिया गया था उस के राज्य से निर्वास.
और मानव का भोग हैँ धरती के चार दिन रात.
फ़ाउस्ट
फिर भी मुझे करना है प्रयास.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
वाह! वाह! धन्य है! फिर भी मैँ हूँ भयभीत –
जीवन है भंगुर, कला है कालातीत.
बहुत कुछ है जिस से भरना है आप का मस्तिष्क.
मैँ समझता हूँ – आप शरण लेँ किसी कवि की कल्पना की.
एक दम सीखेँगे आप – धीर और उदात्त है जो भी –
हिरन का वेग – सिंह का हृदय,
इतालियनोँ का उद्दाम क्रोध – उत्तरवासियोँ का धैर्य.
कवि ही सिखा सकता है आप को
कैसे होता है लालच और त्याग का संगम.
कवि ही सिखा सकता है आप को
नौजवान दिल का उमड़ता प्यार.
काश, किसी कवि से होती मेरी जान पहचान.
कवि होते हैँ मानव जीवन के सिरमौर.
फ़ाउस्ट
व्यर्थ हूँ मैँ जो दूर है मुझ से जीवन का सिरमौर.
जीवन उत्कर्ष भोगने को व्याकुल है मेरा पोर पोर.
फिर भी दूर है मुझ से जीवन की बौर.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
अंततः – जो हैँ आप रहेँगे वही.
लगा लेँ रईसोँ के विग – धार लेँ कोई भी रूप आकार.
पहन लेँ फ़र कोट – पहन लेँ जूते ऊँची एड़ीदार.
जो हैँ आप – रहेँगे वही.
फ़ाउस्ट
यह सब ख़ूब जानता हूँ मैँ! अध्यात्म है बेकार.
सूख गए हैँ जीवन रस के स्रोत जो थे भरपूर.
अभी तक बौना हूँ मैँ. अनंत है दूर, बहुत दूर.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
आप भी दूसरोँ से नहीँ हैँ भिन्न.
आप भी देखते हैँ जीवन दूसरोँ की भाँति.
जीवन का आनंद भोग मिटने से पहले
आप को चाहिए धारना नव ज्ञान.
जानते हैँ हम, हमारे हैँ हाथ पैर,
सिर और मलद्वार!
केवल यही नहीँ हैँ हम.
उड़ते पल के मधुरिम भोग भी हैँ हम.
गाड़ी मेँ जुते होँ छः घोड़े – तो उन का बल
क्या नहीँ है मेरा भी बल?
जब सर्राटे से निकलती है मेरी सवारी
तो उन के चौबीस पैर बन जाते हैँ मेरे पैर!
दुम हिलाने लगता है संसार!
उठिए! कर दीजिए हर कामना को आज़ाद!
कर्म की हलचल मेँ डाल दीजिए अपना जीवन.
कूद पड़िए जीवन की दौड़ मेँ.
सुनिए मेरी बात –
अध्यात्म ज्ञान है सूखे रेत मेँ पशुओँ की चराई.
दुष्ट आत्माएँ बाँधे रखती हैँ रस्सी से ढोर.
पशु घूमता है – जहाँ तक है घेरे का छोर.
घेरे के बाहर फैली है दूर तक हरियाली –
उस की पहुँच के पार.
फ़ाउस्ट
तो कहाँ से करेँ आरंभ!
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
पहले तो कर देँ इस समाधिस्थल को नमस्कार.
नरक है यह – जिसे आप करते रहे हैँ नमस्कार.
यहाँ अपने आप को उबाते हैँ आप –
साथ साथ शिष्योँ को उबाते हैँ आप.
आप के पड़ोसी हैँ जो डाक्टर तोँदहिलाऊ,
उन्हीँ पर छोड़ दीजिए यह काम.
फूस होता है निर्बीज. पाने को दाने उसे क्योँ पीटते हैँ आप?
अच्छी तरह जानते हैँ आप –
कुछ भी नहीँ सिखा सकते शिष्योँ को आप.
अरे हाँ! प्रतीक्षा मेँ है आप का एक शिष्य…
फ़ाउस्ट
देखते हो – व्यस्त हूँ मैँ, समय नहीँ है मेरे पास.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
बहुत देर से खड़ा है वह द्वार के पास.
इतने निर्दय न होँ, होगा उसे असंतोष.
अपना चोग़ा और टोप दीजिए तो मुझे आप.
(फ़ाउस्ट का चोग़ा और टोप धारण करता है.)
छोड़ देँ सब मुझ पर – पंदरह मिनिट तक आप.
लंबी यात्रा पर चलने को अब तैयार होँ आप.
तब तक मैँ पढ़ाऊँगा उसे पाठ.
(फ़ाउस्ट जाता है.)
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (फ़ाउस्ट के चोग़े मेँ)
हँसो, विज्ञान पर हँसो.
मानव मस्तिष्क की ऊँची उड़ान पर हँसो.
असत्य के भगवान को बुनने दो
मायावी छल का ताना बाना,
धोखे की टट्टी खड़ी करने दो.
शीघ्र ही कर लोगे तुम मेरी दासता स्वीकार!
(स्वगत.)
नियति ने दी है फ़ाउस्ट को आत्मा बेचैन.
भरना चाहती है वह अनंत तक उड़ान.
उस का प्रयास है –
जाना पार्थिव जीव की सीमित क्षमता के उस पार.
मैँ ले जाऊँगा उसे अपने साथ.
निष्प्रयोजन निरर्थक नीरस खिलौनोँ से बहलाऊँगा.
चिपक जाएगा. भरेगा किलकारी. बच्चोँ सा खेलेगा.
खान पान मस्ती मेँ भटक जाएगा.
इन्हीँ मेँ चुक जाएगी उस की तलाश.
हर मौज मस्ती मनोरंजन है बेकार.
न भी किया होता उस ने मुझ से क़रार,
तो भी उस की आत्मा को होना था भ्रष्ट, बेकार.
मिलना नहीँ था उसे भगवान का प्यार.
(एक छात्र आता है.)
छात्र
मैँ नया हूँ विद्यालय मेँ. करता हूँ सादर प्रणाम.
आप का ज्ञान और व्यक्तित्व हैँ महान.
मुझे करेँ श्रीचरणोँ मेँ स्वीकार.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
उत्तम है तुम्हारा शिष्टाचार
औरोँ जैसा मैँ भी मानव हूँ साधारण.
इस वर्ष कहीँ और भी दिया है आप ने आवेदन?
छात्र
निवेदन है – कर लेँ आप मुझे शिष्य स्वीकार.
बहुत उत्सुक हूँ मैँ पाने को आप से ज्ञान.
उत्साह से भी अधिक है मेरे पास धन.
माँ नहीँ चाहती थीँ – छोड़ूँ मैँ घर.
लेकिन मुझे तो पाना है संसार का ज्ञान.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
ठीक! ठीक! सही जगह पहुँचे हो आन.
छात्र
यहाँ से भाग जाने को करता है मन –
यह भी मुझे करना पड़ता है स्वीकार.
दम घोँटते से लगते हैँ यहाँ के कक्ष, यहाँ की दीवार,
ये पुस्तकालय, भाषणस्थल.
हर चीज़ घुटी घुटी सी है…
नहीँ है हरियाली.
दूर दूर तक नहीँ है एक भी पेड़ पत्ता.
बेँच पर बैठ कर लगाता हूँ पुस्तक मेँ ध्यान.
दिमाग़ मेँ घुस नहीँ पाता एक भी अक्षर.
सुन नहीँ पाता एक भी शब्द, एक भी भाषण.
एक पल कहीँ भी टिकता नहीँ ध्यान.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
यह तो प्रश्न है अभ्यास का.
नवजात शिशु को दो माता का वक्ष –
पहले नहीँ लेता वह एक भी घूँट.
फिर देखो – कैसे पीता है गटागट.
सीख जाओगे तुम भी कैसे मिलता है ज्ञान.
जैसे जैसे बीतेँगे दिन – करोगे विद्यादेवी के वक्ष का पान.
छात्र
स्वीकार कर लेँ आप मेरा मार्ग दर्शन.
जहाँ भी जैसे भी होँगे विद्या की देवी के दर्शन –
छोड़ूँगा नहीँ मैँ उस का वक्षस्थल.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
अभी मत बताओ अपने विचार.
पहले तो यह बताओ –
किस विषय की ओर है तुम्हारा रुझान.
छात्र
मेरा स्वप्न है गहन अध्ययन,
समझना – क्या है जीवन.
जहाँ भी हो जीवन – जल मेँ, थल मेँ, नभ मेँ.
मेरा विषय है – संपूर्ण प्रकृति और विज्ञान.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
ठीक चुना है तुम ने मार्ग.
देखना – स्वप्न भ्रष्ट न कर देँ तुम्हारा मार्ग.
छात्र
जी, हाँ, धरती से रहूँगा मेँ चिपक कर.
लेकिन कभी कभार, तीज पर, त्योहार पर
मैँ चाहूँगा कुछ छूट, खेलने कूदने का अवसर.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
एक एक पल को पकड़ोगे कस कर
तो प्रसन्न रहोगे जीवन भर.
अनुशासित रहेगा काल का चक्कर.
मानो कहा मेरा – ले लो तर्क शास्त्र.
तर्क का अनुशासन कठोर है ऐसा
स्पेन के बूट पहनने जैसा.
पैरोँ को जकड़ते हैँ, तड़पाते हैँ,
दर्शन शास्त्र की तंग गली मेँ ले जाते हैँ.
भटका नहीँ सकती दलदल की ज्योति.
जानोगे तर्क शास्त्र मेँ हो कर पारंगत
खाने पीने जैसे कर्म – जो लगते हैँ साधारण, सहज संगत,
वे भी करते हैँ तर्क के मार्ग का त्रिविध पालन.
जानते हो क्या है विचार की बुनाई?
मानो चादर की ठोस हो बुनाई.
एक पैर से उठते हैँ एक साथ हज़ार धागे.
विचार की खड्डी की पुतली तेज़ी से भागे –
इधर से उधर, उधर से इधर.
तब जा कर बुनी जाती है तर्क की चादर.
पुतली वरती है एक साथ हज़ार धागे.
गूँधती है एक साथ हज़ार धागे.
तर्क शास्त्र बताता है हमेँ –
क्योँ होता है यह, क्योँ होता है वह.
पहले होता है हेतु – आधार…
इसे हम कह सकते हैँ ईँट.
पहले रखी जाती है एक ईँट.
फिर दो. फिर तीन. और चार.
अगर नहीँ है हमारे पास आधार,
यदि नहीँ है ईँट नंबर एक –
तो दो, तीन और चार हो जाती हैँ निराधार.
हर छात्र को इस का रखना पड़ता है ध्यान.
जहाँ तक प्रश्न है बुनाई का – जुलाहे देते हैँ हमेँ पिछाड़!
जब भी जीवित पदार्थ का विश्लेषण करने बैठते हैँ विद्वान,
सब से पहले वे निकाल देते हैँ उस की जान.
उन के पास होते हैँ हर पदार्थ के अवयव.
यदि कुछ नहीँ होता उन के पास, तो वह है जान.
रसायन शास्त्र मेँ हम इसे कहते हैँ उपचार.
छात्र
पूरी तरह समझा नहीँ मैँ यह गहरी बात.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
धीरे धीरे सब हो जाएगा आसान.
पहले हर तत्व को करना होता है निर्गुण,
इस के बाद आता है वर्गण.
छात्र
पूर्णतः भ्रमित हूँ मैँ, श्रीमान,
सुन कर आप का व्याख्यान.
मस्तिष्क के भीतर
चल रहा है चक्की सा चक्कर.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
इस के बाद तुम करो अध्यात्म का चिंतन.
जो भी समझ नहीँ पाता है मानव का मन
घोषित कर दो –
उस के पीछे है उस महान का महान चिंतन.
समझे बेसमझे, बीच बीच मेँ, जब तब उच्चारो गूढ़ मंतर.
पालो हर नियम पहले छः मास.
हर रोज़ पीरियड होते हैँ पाँच.
घंटी बजते ही पहुँच जाओ सीट पर.
फिर से पढ़ो घर पर.
कुछ भी न जाए छूट – इस का रखना तुम ध्यान.
इतने अध्यवसाय के बाद जाओगे ठीक से जान –
अध्यापक क्या करते हैँ – वही बकते हैँ! –
हूबहू – जो लिखा है किताब मेँ.
फिर भी उन की हर बात के लेते रहना नोट,
मानो प्रवचन करने आए हैँ स्वयं भगवान.
छात्र
समझ गया मैँ यह बात.
समय पर लिख लो तो पक्की हो जाती है याद.
घर जा सकते हैँ हम इस के बाद.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
ध्यान से चुनना चाहिए तुम्हेँ अपना विभाग.
छात्र
मुझे लगता है मैँ नहीँ पढ़ सकता क़ानून.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
कोई बात नहीँ! कोई बात नहीँ!
ख़ूब जानता हूँ मैँ उस विभाग की बात.
वरासत का पचड़ा – घर घर यही है झगड़ा.
पीढ़ी दर पीढ़ी – दौलत की सीढ़ी.
विवेक और प्यार को डुबो देती है तकरार.
वारिस पोते की रक्षा करेँ भगवान!
अब तक नहीँ देखा मैँ ने एक भी वकील
जो देता हो मानव के अधिकार की ईमानदारी से दलील.
छात्र
सुन कर आप की बात
वकालत को करता हूँ मैँ डेढ़ हाथ का प्रणाम.
सच, आप के वचन – भरपूर है ज्ञान!
मुझे लगता है मुझे पढ़ना चाहिए अध्यात्म.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
मैँ नहीँ करना चाहता तुम्हेँ गुमराह.
लेकिन नहीँ बताता हमेँ अध्यात्म –
मुमुक्षु को किन ख़तरोँ से रहना चाहिए सावधान.
कौन सा मार्ग ले जाता है असत्य की ओर.
अध्यात्म की नसोँ मेँ अमृत के नाम पर
बहती है विष की धार.
अच्छा यही है, तुम छाँट लो कोई प्राध्यापक.
बन जाओ उस के अनन्य शिष्य.
ध्यान से पकड़ लो उस की एक एक बात,
एक एक शब्द, एक एक अक्षर…
शब्द ही खोलेँगे बुद्धि का द्वार.
ज्ञान के मंदिर मेँ करोगे तुम स्वच्छंद विहार.
छात्र
क्योँ जी, शब्दोँ मेँ क्या नहीँ होना चाहिए कुछ अर्थ.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
हाँ, हाँ. इस मेँ नहीँ है कोई भी कठिनाई,
जब ठोस विचार बन जाए खंडहर दुर्गम
तो चल पड़ो शब्द की डगर पर.
हाथ मेँ हो शब्द की तलवार
तो हर संघर्ष के लिए आदमी हो जाता है तैयार.
बना सकते हो तुम अपने सिद्धांत.
चला सकते हो अपना वाद. चला सकते हो अपना धर्म.
शब्द होँ कितने ही जर्जर वे बन जाते हैँ ढाल.
छात्र
क्षमा करेँ आप का बहुत समय ले रहा हूँ मैँ.
बुझती ही नहीँ मेरी प्यास.
पूछे जा रहा हूँ नई से नई बात.
मैँ जानना चाहता हूँ आप के सारगर्भित विचार.
क्या पढ़ूँ मेँ डाक्टरी?
बहुत लंबा चौड़ा है कोर्स.
मेरे पास हैँ कुल तीन साल.
मिल जाए मुझे मार्ग निर्देशन
तो मैँ टटोल ही लूँगा राह.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (स्वगत)
ऊबा रही है मुझे विद्वानोँ की भाषा.
अच्छा है बन जाऊँ जो हूँ मैँ – शैतान.
(सर्वश्राव्यतः)
आसान है करना डाक्टरी ज्ञान का सर्वेक्षण –
करो रोग का गंभीर और सूक्ष्म विश्लेषण…
फिर होने दो जो हो! भगवान की मरजी!
छूने को ज्ञान की चोटी – छूना नहीँ होता है आकाश.
हम सब सीखते हैँ वही, जो सीख सकते हैँ हम.
अपने ज्ञान की सीमा बनाते हैँ हम.
सफल होते हैँ वे जिन्हेँ होती है समय की पहचान.
मित्र, हृष्टपुष्ट हो तुम, तुम हो जवान.
मन मेँ आत्मविश्वास हो भरपूर
तो बन जाओगे सब के विश्वासपात्र.
तुम नारियोँ को बनाओ निशान.
उन की हर हाँ हूँ, उन का हर इनकार,
उस सब का, तुम जानते हो, है बस एक ही उपचार.
काफ़ी है आधा ईमान.
नाचेंगी तुम्हारे संकेत पर.
डाक्टरी डिगरियोँ मेँ होता है उन्हेँ पूरा विश्वास.
अन्य मर्दोँ के मुक़ाबले वे डाक्टरोँ का समझती हैँ भगवान.
जहाँ नहीँ पहुँच पाते अन्य जन
वहाँ पहुँच जाता है डाक्टर का हाथ.
नब्ज़ देखो तो ज़रा प्यार से दबा दो हाथ.
और हाँ, तुम्हारी चितवन मेँ हो भरपूर प्यास और प्यार.
जब डालो बग़ल मेँ हाथ,
तो ले लो चोली का भी नाप.
छात्र
हाँ, हाँ. समझ रहा हूँ मैँ आप की बात.
यही है कुछ मेरे मन की बात.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
बंधुवर, कोरा सिद्धांत है सूना और उदास.
जीवन का स्वर्ण वृक्ष है हरियल रंगीन.
छात्र
आप की बातेँ लगती हैँ मुझे स्वप्न महान.
अनुचित तो नहीँ होगा –
मैँ आता रहूँ आप के पास बार बार
पाने को ज्ञान इतना शानदार.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
हाँ. हाँ, शौक़ से, उस सब पर तुम्हारा है अधिकार
जो कुछ भी है मेरे पास.
छात्र
अब चलूँगा मैँ.
जाने से पहले बस छोटा सा निवेदन है –
आटोग्राफ़ बुक मेँ आप लिख देँ संदेश.
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
हाँ हाँ, बेशक़.
(मैफ़िस्टोफ़िलीज़ किताब मेँ लिखता है और वापस देता है.)
छात्र (पढ़ता हुआ)
तुम बनोगे भगवान समान,
पाओगे भले और बुरे का ज्ञान.
(छात्र बड़े आदर के साथ किताब बंद करता है और जाता है.)
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
चलो उस राह पर जो दिखाई थी बाग़ मेँ नाग ने.
शीघ्र ही जान जाओगे तुम कैसे हुआ था सर्वनाश
जब हज़रत आदम ने की थी ज्ञान की तलाश.
(फ़ाउस्ट आता है.)
फ़ाउस्ट
तो कहाँ चलेँ अब?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
जहाँ भी जाना चाहते हैँ आप.
पहले देखेँगे हम छोटोँ का संसार
फिर देखेँगे बड़ोँ का संसार.
आप और मैँ करेँगे संसार की सैर
साथ साथ पाएँगे लाभ और मनोरंजन.
फ़ाउस्ट
व्यर्थ है यह प्रयास.
देखते हो यह खिचड़ी डाढ़ी?
मेरे लिए नहीँ हैँ मेले उत्सव, आनंद मंगल.
अजनबियोँ के बीच अकेला हो जाता हूँ मैँ,
सकुचाता हूँ मैँ…
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
बकवास! अपने आप को खेलना है खेल!
आप को चाहिए आत्मविश्वास.
सीखिए उलीचना जीवन को…
आइए, हम चलेँ…
फ़ाउस्ट
क्या बग्घी खड़ी है दरवाज़े पर?
कैसे चलेँगे हम? कहाँ हैँ तुम्हारे नौकर चाकर?
मैफ़िस्टोफ़िलीज़
धरती पर बिछा देँगे हम यह चोग़ा – जैसे चादर –
उड़ेँगे आकाश मेँ इस पर सवार हो कर.
हाँ, हलका और कम हो सामान.
मैँ ने बनाई है एक विशेष गैस.
उड़ा ले जाएगी वह हमेँ ऊपर.
जितना हलका होगा सामान
उतना ही ऊँचा छू पाएँगे आसमान.
जीवन मेँ यह दिन आए बार बार –
आप जन्म ले रहे हैँ आज दूसरी बार.
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