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हिन्दी समांतर कोश: एक विराट प्रयास

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अक्टुबर 2006 | निधि

हिन्दी समांतर कोश: एक विराट प्रयास

अरविंद व कुसुम कुमार के 20 साल के अथक परिश्रम का परिणाम है यह वृहद कोश

लेखकः अनूप शुक्ला | November 4th, 2006

clip_image004[4]आप किसी भी भाषा प्रयोग करते हों, शब्दकोश से अवश्य परिचित होंगे। शब्दकोश की सहायता से आप किसी भी शब्द का अर्थ जान सकते हैं।

आप कुछ पढ़ रहे हैं और कोई नया शब्द आपने पढ़ा जिसका अर्थ आपको नहीं पता तो आप अपने पास उपलब्ध शब्दकोश में उसका अर्थ देखकर लिखे हुये को समझ सकते हैं। लेकिन यदि आप कुछ लिख रहे हैं और अपने विचार को अभिव्यक्त करने के लिये किसी सटीक शब्द की तलाश में हैं तो शब्दकोश आपकी सहायता नहीं कर पायेगा। शब्दकोश आपको किसी शब्द का अर्थ बता देगा लेकिन बात कहने के लिये अगर आप सटीक शब्द की तलाश में हैं तो शब्दकोश अपने हाथ खड़े कर देगा।

ऐसे में आपको थिसारस की शरण में जाना होगा। हिंदी में थिसारस का पर्याय है समांतर कोश। जानेमाने शब्दविद् अरविंद कुमार नें वर्षों की मेहनत कर इसी नाम से हिंदी के पहले थिसारस का प्रकाशन किया है। लेकिन समांतर कोशके बारे में बताने के पहले आपको थिसारस के बारे में और जानकारी दे दें।

थिसारस क्या है

थिसारस यूनानी शब्द थैजो़रस का हिंदीकरण है। इस का अर्थ ही है कोश। शब्दश: थिसारस भी एक तरह का शब्दकोश होता है क्योंकि इसमें शब्दों का संकलन होता है। वास्तव में थिसारस या समांतर कोश और शब्दकोश एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत होते हैं। किसी शब्द का अर्थ जानने के लिये हम शब्दकोश का सहारा लेते हैं। लेकिन जब बात कहने के लिये हमें किसी शब्द की तलाश होती है, तो लाख शब्दों के समाए होने के बावजूद शब्दकोश हमें वह शब्द नहीं दे सकता, जब कि थिसारस यह काम बड़ी आसानी से कर सकता है।

कैसे काम करता है थिसारस

clip_image006[4]समांतर कोश में किसी भी शब्द के अनेक विकल्प होते हैं। इस का अर्थ यह है कि आप किसी भी ज्ञात शब्द के सहारे किसी अज्ञात या विस्मृत शब्द तक तत्काल पहुंच सकते हैं।

समांतर कोश में किसी भी शब्द के अनेक विकल्प होते हैं। इस सीमित अर्थ में वह पर्याय कोश होता है। लेकिन इससे बहुत आगे जाकर वह हमें उस के विपरीत अर्थों वाले शब्दों तक, और हम चाहें तो उस से संबंधित अन्य समांतर शब्द समूहों तक ले जा सकता है। जैसे कि विवाह के साथ विवाह विच्छेद भी, और विवाह की सगाई, घुड़चड़ी आदि रस्मों तक भी। और क्योंकि विवाह एक संस्कार होता है, इसलिये मुंडन, उपनयन आदि सोलह संस्कारों तक भी। साथ ही विवाह गृहस्थ आश्रम का प्रवेश बिंदु है अतः गृहस्थ आश्रम के साथ साथ संन्यास, वानप्रस्थ और ब्रह्मचर्य आश्रमों तक भी। दो चार पन्ने ऊपर नीचे पलट कर आप विवाह निष्ठा, अनिष्ठा, परनारी, परपुरुष आदि शब्द समूहों की जानकारी हासिल कर सकते हैं, और वेश्या, वेश्यालय, कुटनी आदि की भी।

इस का सीधा अर्थ यह है कि आप किसी भी ज्ञात शब्द के सहारे किसी अज्ञात या विस्मृत शब्द तक तत्काल पहुंच सकते हैं।

कैसे बना समांतर कोश

हिंदी के लिये उपयुक्त संदर्भ क्रम बनाने के लिये कोई समीचीन आधार नहीं था जिस पर समांतर कोश का ढांचा खड़ा किया जा सके। हिंदी के पहले थिसारस के लिये नयी जमीन तैयार करना आवश्यक था। पहले समांतर कोश का ढांचा रौजेट के अंग्रेज़ी थिसारस के आधार पर खड़ा करने की कोशिश की गयी। लेकिन अंग्रेज़ी के मुका़बले हिंदी थिसारस की आवश्यकतायें बिल्कुल अलग निकलीं। अंग्रेज़ी और हिंदी के भावों की बहुत सी परस्परतायें बिल्कुल अलग हैं। वहां एक शब्द से जो संदर्भ जुड़ते हैं वे हिंदी में नहीं बनते। इसलिये अंग्रेज़ी थिसारस का ढांचा हिंदी थिसारस के लिये अनुपयुक्त पाया गया। साथ ही अंग्रेज़ी में आम तौर पर एक वस्तु का एक ही नाम होता है। आम है तो उस के लिये बस एक मैंगो शब्द है और उस का एक तकनीकी नाम है लैटिन में मांगीफेरा इंदीका। लेकिन हिंदी में आपआम को कितने ही नामों से पुकार सकते हैं। यह हमारी भाषाऒं की विशेषता है जो हमें अपनी बात कहने के लिये बड़े रोचक ढंग देती है। लेकिन इसका एक परिणाम यह हुआ कि समांतर कोश का आकार अंग्रेज़ी के बड़े अंतरराष्ट्रीय संस्करण वाले थिसारसों से कई गुना बड़ा हो गया।

और फिर जब समांतर कोश के लिये अपने प्राचीन अमरकोश को आदर्श बनाने की बात सोची गयी तो थोड़े ही दिनों में मुंह मोड़ लेना पड़ा। वह अपनी किस्म का बेजोड़ ग्रंथ है, लेकिन वर्ण व्यवस्था के उत्कर्ष काल में बना था। उस में मानव क्रियाकलाप को वर्णों के आधार पर रखा गया है। बौद्धिक गतिविधि ब्राह्मण वर्ण के अंतर्गत, युद्ध और शस्त्रास्त्र क्षत्रिय वर्ण के साथ। आज के भारत में इस प्रकार का वर्गीकरण एकदम अस्वीकार्य होगा।

इस तरह हिंदी का पहला थिसारस तैयार करने वालों के पास तरह तरह से हेरफेर कर नये ढांचों पर काम कर के देखने के अलावा कोई चारा न था। कम से कम पांच बार काम का ढांचा बदला गया। कामचलाऊ ढांचा बनते बनते करीब चौदह साल निकल गये। ये साल बेकार गये, ऐसा नहीं हुआ। इस दौरान शब्दों का अंकन कार्ड पर होता रहा। इसलिये सही ढांचे के अभाव में भी थिसारस के लिये शब्द संकलन तो चलता ही रहा। और यह 2,60,000 अभिव्यक्तियों से बडा हो गया था। इन कार्डों पर अंकित शब्द समूहों की पूरी खोज खबर रख पाना थिसारस के निर्माण में लगे लोगों की स्मरणशक्ति  और सामर्थ्य से बाहर हो गया। अत: उनको इसका कम्प्यूटरीकरण करना पड़ा। इससे न सिर्फ यह असंभव सा लगने वाला काम पूरा हो पाना संभव हो सका बल्कि समांतर कोश को बनाने में लगे लोगों का कम्प्यूटर की अद्भुत क्षमता से परिचय आरंभ हुआ और वे असंभव से सपने साकार होने लायक हो गये।

समांतर कोश का पहला संस्करण

कम्प्यूटरी करण के दौरान 2,60,000 शब्दों से बढ़ते-बढ़ते 5,40,000 से अधिक अभिव्यक्तियों का संकलन हो गया। उसमें हर कोटि के बहुविस्तार में जाने का प्रयास किया गया। मान लीजिये, आकाश पिंड। तो हर प्रकार के आकाश पिंड के लिये शब्द जमा हो गये। उसके बाद तारा कोटि के अंतर्गत पहले तारामंडलों के नाम, जहां तक संभव हो सका, हिंदी, अंग्रेज़ी और उनके तकनीकी लैटिन नाम भी। फिर हर तारा मंडल के अंतर्गत आने वाले तारों के नाम, हर मंडल के योग तारे का नाम, और यदि उपलब्ध हो तो उनके पर्यायवाची भी। या राशिचक्र में पहले राशिचक्र के अनेक पर्यायवाची और फिर राशियों के विविध समूहों के नाम, बाद में हर राशि के अंतर्गत उसके अपने पर्यायवाची, हिंदी, उर्दू, अरबी, लैटिन आदि नाम।

देवी देवताऒं या ईश्वर के नामों को लें। हमारी भाषायें इनके पर्यायवाचियों से लदी-पड़ी हैं। स्वयं ईश्वर के हजारॊं नाम हैं। फिर ईश्वर संबंधी मान्यताऒं की कोटियां: जैसे ब्रह्म, साकार, निराकार, भगवान, पुरुष, हिरण्यगर्भ, अल्लाह। इनके बाद त्रिमूर्ति। ब्रह्मा, विष्णु, महेश। अब महेश को लें। शिव के नामों की संख्या 2,317 है। और विष्णु के चौबीस अवतार, दशावतार राम, कष्ण

दैनिक जीवन में भाषा के आम उपभोक्ता को इतने विस्तार में जाने की आवश्यकता शायद ही कभी पड़ती हो। अत: समांतर कोश के पहले संक्षिप्त संस्करण में 1,60,850 अभिव्यक्तियों का संकलन तैयार किया गया है। इसमें अंग्रेज़ी आदि भाषाऒं के केवल वही शब्द रखे गये  हैं, जो बोलचाल का हिस्सा बन गये हैं या जिन से किसी नये हिंदी शब्द का संदर्भ स्पष्ट होता है।

समांतर कोश का उपयोग कैसे किया जाय

समांतर कोश दो भागों में है। एक भाग है अनुक्रम खंड और दूसरा है संदर्भ खंड अनुक्रम खंड में अकारादि क्रम में उन सभी शब्दों की सूची दी है जो कि समांतर कोश में शामिल हैं। आप अनुक्रम खंड में अपने भाव या विचार के निकटतम कोई भी शब्द खोजिये। इसके सामने इनका पता संख्याऒं में लिखा है। अब आप संदर्भ खंड खोजिये। यहां हर शीर्षक और उपशीर्षक की एक संख्या है। आप संदर्भ खंड में अनुक्रम खंड में लिखे पते को खोजिये और आप अपने मनचाहे शब्द तक पहुंच जायेंगे।

इस सब के लिये समांतर कोश यह मानकर चलता है कि आप को जिस भाव के लिये शब्द की तलाश है, उस से संबंधित या विपरीत कोई एक शब्द आपको जरूर याद होगा। मान लीजिये आप को निकाह शब्द की तलाश है, और आपको विवाह शब्द याद है। अनुक्रम खंड में खोज शब्द विवाह के नीचे कई गंतव्य हैं। उनमें से एक है विवाह 799.1। निकाह के लिये स्वभावत: आप संदर्भ खंड में इसी पते पर जायेंगे।

विवाह
गृहस्थाश्रम प्रवेश
235.8
मैट्रिमनी- 798.33
वर्जित दृश्य सूची-463.33
विवाह- 799.1 <=
विवाह उत्सव- 799.2
सोलह संस्कार सूची-798.3
विवाह अनिष्ठा
विवाह अनिष्ठा-
806.1<=

विवाह अभिशून्यन
विवाह लोप-
804.11

संदर्भ खंड में आप देखेंगे कि 799 शीर्षक ही विवाह का है। इसमें उपशीर्षक 1 में विवाह के 39 पर्याय हैं, जिन में से एक है निकाह।

1. सं विवाह, अक़द, अटूट संबंध, अहद, ऊढ़ि, गँठजोड़, गठजोड़, गठबंधन, गाँठ, निकाह, परिणय, पाणिग्रह, पाणिग्रहण, पाणिबंध, फेरे, बरकाज, बियाह, ब्याह, ब्रह्मचर्यांत, मैरिज(अं), रिश्ता, लगन, लग्न, विवाह बंधन, विवाह संबंध, विवाह संस्कार, वैध यौन संबंध, शादी, संबंध, सप्तपदी, सहचर्या, सहबंधन, सात फेरे, सात वचन, साथ, साहचर्य, हाथ पकड़ाई.

लेखक परिचय

clip_image008[4]अरविंद कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश के नगर मेरठ में 17 जनवरी, 1930 को हुआ। 1943 में उनका परिवार दिल्ली आ गया। वे अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. हैं और माधुरी और सर्वोत्तम के प्रथम संपादक। पत्रकारिता में उन का प्रवेश सरिता (हिंदी) से हुआ। कई वर्ष कैरेवान ( अंग्रेज़ी) के सहायक संपादक रहे। कला, नाटक, और फिल्म समीक्षाऒं के अतिरिक्त उन की अनेक फुटकर कवितायें, लेख, कहानियां प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाऒं में प्रकाशित हुई हैं। शेक्सपीयर के जूलियस सीजर के काव्यानुवाद का मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के लिये इब्राहिम अल्काजी के निर्देशन में हुआ। अरविंद कुमार ने सिंधु घाटी सभ्यता की पृष्ठभूमि में इसी नाटक का काव्य रूपान्तर भी किया है, जिस का नाम है विक्रम सैंधव।

श्रीमती कुसुम कुमार का जन्म 8 दिसम्बर 1933 को मेरठ में हुआ। वे बी.ए., एल.टी. हैं। दिल्ली के सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में हिंदी और अंग्रेज़ी पढा़ती रही हैं। दोनों का विवाह 1959 में दिल्ली में हुआ।

हिंदी समांतर कोश से आगे की संभावनायें

हिंदी में समांतर कोश के निर्माण के दौरान कम्प्यूटर की क्षमताऒं से परिचित होने के कारण यह विलक्षण सपना देखा गया कि भारत की सभी भाषाऒं के शब्दों की 18 लड़ियों की एक भव्य मणिमाला तैयार की जाये। भारतमाता के गले की शोभा बनने वाली इस मणिमाला के सहारे हिंदी के समांतर कोश या किन्हीं भी दो या अधिक भाषाऒं के संयुक्त समांतर कोश बनाये जाने की योजना है। यह काम बहुत कठिन है लेकिन आज की कंप्यूट्रर की दुनिया में यह पूरी तरह संभव है। समांतर कोश बनाने वाले अरविंद कुमार और कुसुम कुमार का कहना है-

हमारे पास उसकी योजना भी है, कार्यनीति भी। चाहिये बस एक विराट प्रयास, एक विराट सहयोग, और शुभकामनायें आप की ओर से और हर भाषा के उत्साही कर्मियों की ओर से।

कैसे रचा गया समांतर कोश

हिंदी के प्रथम समांतर कोश के रचयिता अरविंद कुमार मुंबई में 1963 से फिल्म पत्रिका माधुरी के संपादक थे। धीरे-धीरे वे फिल्म पत्रकारिता से ऊब चुके थे और कुछ सार्थक करने को छ्टपटा रहे थे। अन्य भाषा कर्मियों की तरह उन के मन में भी अभिलाषा थी कि हिंदी में भी थिसारस हो।

26 दिसंबर, 1973 को सोते सोते उन्हें अपने जीवन का लक्ष्य सूझा -समांतर कोश की रचना। आरंभिक तैयारी के बाद 19 अप्रैल, 1976 को नासिक में गोदवरी नदी में स्नान करके उन्होंने अपनी कुसुम कुमार के साथ समांतर कोश पर काम करना शुरू किया। मुंबई में केवल सुबह शाम के श्रम से इसे पूरा न होते देख कर वे माधुरी को त्याग कर मई 1978 में सपरिवार दिल्ली पहुंचे और दोनों अपना पूरा समय इसी को देने लगे। दिल्ली की 1978 की बाढ़ से ग्रस्त होने पर वे सपरिवार गा़जियाबाद स्थानांतरित हो गये। जब आर्थिक स्थिति को फिर से मजबूत करने की आवश्यकता आ पड़ी तो अरविंद कुमार ने 1980 में रीडर्स डाइजेस्ट के हिंदी संस्करण सर्वोत्तम का प्रथम संपादक होना स्वीकार कर लिया और पांच साल तक उसके साथ रहे।

समांतर कोश के कंप्यूटरीकरण की प्रक्रिया गाजियाबाद में 20 मार्च 1993 से आरंभ हुई और पहले संस्करण की पूर्ति बंगलौर में 11 सितंबर 1993 को हुई। लेखकद्वय के पास न तो कम्प्यूटर खरीदने के पैसे थे, न उस पर काम के लिये पेशेवर प्रोग्रामरों से प्रोग्राम लिखवा पाने के। इनके बेटे सुमीत ने पेशे से शल्यचिकित्स्क होते हुये भी अपने माता-पिता के उद्देश्य के प्रति निष्ठा से प्रभावित होकर इस कार्य में सहयोग के लिये कम्प्यूट्रर प्रोग्रामिंग सीखी, कंप्यूट्रर खरीदवाया, काम की कार्यविधि ( प्रोग्राम) लिखी, उसे चलाने के लिये आर्थिक संसाधन जुटाये और अंत में डाटा को पाठ में परिवर्तित करने की पेचीदा प्रक्रिया का विशिष्ट समाधान भी निकाला। बिना कंप्यूटरीकरण के समांतर कोश का बनना शायद संभव नहीं हो पाता।

20 वर्षों के अनथक प्रयासों और समर्पण से अंतत: समांतर कोश का निर्माण संभव हुआ और स्वतंत्रता दिवस की स्वर्णजयंती के अवसर पर प्रकाशित हुआ। इस महती कार्य को निरंतर का नमन!

समांतर कोश कहां से प्राप्त करें:

संसोधन और सुझाव:

1100 शीर्षक, 23,759 उपशीर्षक, 1,60,850 अभिव्यक्तियों वाले दो खंडों में 1768 पृष्ठसंख्या के पक्की जिल्द वाले समांतर कोश की कुल कीमत 600 रुपये है।

इसके प्रकाशक का पता है:
निदेशक
, नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया
ए-
5, ग्रीन पार्क,
नयी दिल्ली- 110016.

आप यहां से पुस्तक मंगाने के लिये पत्राचार कर सकते हैं और समांतर कोश में किसी भी संसोधन, सुझाव के लिये निम्न पते पर लिख सकते हैं:

द्वारा श्रीमती मीता लाल,
405,
नीलगिरि अपार्टमेंट्स,
अलकनंदा,
नई दिल्ली – 110019.

टैग: Hindi, Thesaurus

5 प्रतिक्रियाएं
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  1. mitul November 7th, 2006 11:03 am :

शायद विराट शब्द भी इस प्रयास के लिए बहुत छोटा है। सभी योगदान करने वालो को बहुत बहुत बधाई।

  1. प्रेम पियुष November 24th, 2006 10:30 am :

यह पुस्तक मैनें नेशनल बुक ट्रस्ट कलकत्ता से, साल भर पहले खरीदी थी। मैनें इसे खरीदने के बाद जाना कि इस पुस्तक के बिना हम हिन्दी में लिखने वाले कितने अधुरे हैं। सच कहूँ तो मुझे एक विशाल आधार मिल गया है। एक बार आप दोनों से जरूर मिलना चाहूँगा। एक मेरा सुझाव है, इसका ईलेक्ट्रानिक वर्जन आ जाए तो क्या कहना ।

  1. pkjain May 12th, 2007 9:41 am :

kripya anoop shukla jee ka pata denay ka kashta karayn

  1. रविकान्त September 28th, 2007 6:03 pm :

शुक्रिया अनूप. आपको शायद पता हो पर बाक़ी लोगों की जानकारी के लिए बता दूँ कि इस कोश का एक सरल संस्करण भी राजकमल प्रकाशन से आ चुका है, अरविंद सहज समांतर कोश के नाम से जो शब्दकोश और थिसॉरस दोनों जैसा काम करता है. मैं भी अच्छे शब्दकोशों की तलाश में ही रहता हूँ. तो कई साल पहले जब मैंने इसे देखा तो लगने लगा कि इससे काफ़ी चीज़े हल हो जाएँगी. कह सकता हूँ कि थोड़ी सहूलियत तो हुई है. पर मैं अभी भी अपने काम के लिए मैक्ग्रेगर हिन्दी-अंग्रेज़ी कोश इस्तेमाल करता हूँ, साथ ही मुस्तफ़ा ख़ाँ मद्दाह की देवनागरी में छपी उर्दू डिक्शनरी भी. तब भी लगता है कि ज्ञान-विज्ञान के लिए उपलब्ध कोश नाकाफ़ी हैं. हमें यह काम अपने हाथ में लेना चाहिए. बड़ा भला होगा.

लेखक परिचय

clip_image010[4]अनूप शुक्ला

वेबसाईट: http://hindini.com/fursatiya

जन्म: 16 सितंबर, 1963. शिक्षा: बी.ई़.(मेकेनिकल), एम ट़ेक (मशीन डिज़ाइन). संप्रति: भारत सरकार रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आयुध निर्माणी में राजपत्रित अधिकारी। इंटरनेट पर नियमित लेखन। आपका हिन्दी चिट्ठा फुरसतिया खासा लोकप्रिय है। अनूप निरंतर पत्रिका के मुख्य संपादक हैं और चिट्ठा चर्चा करते रहते हैं।

© अनूप शुक्ला

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