मैँ अनुवाद कैसे करता हूँ

In Culture, Translation by Arvind KumarLeave a Comment

अभी तक मेरे पास अलमारियोँ मेँ सभी अनुवादोँ के सब ड्राफ़्ट सुरक्षित हैं. हर किताब के ड्राफ़्ट अलग बोरे मेँ बंद हैँ. कभी मौक़ा मिला तो खोलूँगा… पर निकट भविष्य मेँ ऐसा मौक़ा मिलने की कोई संभावना नज़र नहीँ आती.

 

अनुवाद भाषाओँ और संस्कृतियोँ के बीच संगम का काम करता है.

अनुवाद भाषाओँ के परस्पर वार्तालाप का दूसरा नाम है. मानव को आगे बढ़ाता है. अनुवाद से संस्कृतियाँ समृद्ध होती है. मानव एक सूत्र मेँ बँधते जाते हैँ. अनुवाद मेँ भाषा और शब्द सर्वोपरि हैँ.

हम शब्दोँ का, शब्दोँ के माध्यम से वाक्योँ का अनुवाद करते हैँ. जो स्रोत भाषा मेँ किसी ने लिखा है वह हम अपने पाठ को लक्ष्य भाषा मेँ बताते हैँ.

हिंदी ने बहुत सारे अनुवाद किए, कर रही है. हिंदी मेँ एक पूरी पीढ़ी पनप रही थी जो अँगरेजी अनुवादों के माध्यम से संसार के साहित्य से प्रभावित हो रहे थे. उस की झलक रचनाओँ मेँ उभार रहे थे. नए नए वाद जन्म ले रहे थे जिन पर अँगरेजी मेँ पढ़े ग्रीक, रोमन या जापानी साहित्य की झलक नज़र आती थी. अगर हम अँगरेजी के ज़रिए संसार का साहित्य न पढ़ पाते तो हमारा मानस जो आज है, वह शायद न हो पाता.

कहते हैँ, सब से अच्छा अनुवाद वह है जिस मेँ अनुवाद की गंध तक नहीँ हो ताकि पाठक को ऐसा लगे कि वह मूल कृति ही पढ़ रहा है.

यह मेरा भी मूल मंत्र और उद्देश्य रहा है. मैँ ने भी बहुत अनुवाद किए हैँ. पिछले तीस सालों से मैँ ने पेशेवर अनुवादक के रूप मेँ काम नहीँ किया है. थिसारस के लिए डाटा संकलन की ऊब से बचने के लिए ही मैँ अनुवाद करता रहा हूँ. इसी लिए मेरे कई पुस्तकाकार अनुवादों को किए जाने मेँ और उन का प्रकाशन होने मेँ कई साल लग जाते रहे हैँ. मुझे परफ़ैक्शन की तलाश रहती है, भाषा से, शब्दोँ से खेलने मेँ बार बार सुधारने की लंबी प्रक्रियाओँ से गुज़रना पड़ता है. अँगरेजी से या अँगरेजी के माध्यम से मेरे दो बड़े और प्रकाशित काव्य रूपांतर और अनुवाद हैँविक्रम सैंधव (राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय), जूलियस सीज़र: मूल अँगरेजी पाठ सहित हिंदी काव्य (राधाकृष्ण प्रकाशन), फ़ाउस्ट एक त्रासदी पहला भाग (भारतीय ज्ञानपीठ), फ़ाउस्ट एक त्रासदी अविकल अनुवाद (पहला भाग और दूसरे भाग के पाँचोँ अंक). और एक है संस्कृत से हिंदी मेँ गद्य अनुवाद सहज गीता (राधाकृष्ण प्रकाशन).

 

यहाँ मैँ अपनी लंबी अनुवाद प्रक्रिया के बारे मेँ कुछ कहना चाहता हूँ.

1.      पहले मैँ मूल पुस्तक के ज़ैरोक्स प्रिंट निकलवा लेता हूँ. फिर हर पेज के सामने एक दो ख़ाली पन्ने जिल्द मेँ इस तरह बँधवा लेता हूँ कि मूल पाठ बाईँ ओर हो और कोरे पन्ने दाहिऩी ओर. (इस से यह लाभ होता है कि मूल पाठ हमेशा दिखाई देता रहता है.) पहली बार जो भी अनुवाद मन मेँ आए, चाहे कविता हो या गद्य रूप मेँ, वह सामने वाले कोरे पन्ने पर लिखता रहता हूँ. उस के पूरी तरह सही होने की परवा नहीँ करता. पूरी किताब का ऐसा अधकचरा अनुवाद हो जाने के बाद उठा कर रख देता हूँ. (कोई उसे देखे को समझेगा कि मैँ दोनों ही भाषाएँ नहीँ जानता!). कुछ महीने बीतने देता हूँ.

2.      अब शुरू होता है दूसरा दौर. इस बार मैँ अपने अधकचरे अनुवाद का मिलान मूल पाठ से करता हूँ. ढेर सारी ग़लतियाँ होती हैँमूल से मेरे भटक जाने की. ये ग़लतियाँ सुधारता मैँ पूरा पाठ सही सही लिखने की कोशिश करता हूँ. यह रिवीज़न हो जाने के बाद फिर कुछ दिन मैँ दिमाग़ को आराम देता हूँ. फिर से अपने समांतर कोश के डाटा मेँ जुट जाता रहा हूँ.

3.      और फिर तीसरी बार रिवीज़न. इस बार दूसरे ड्राफ़्ट को जाँचता हूँ. पूरी तरह संतुष्ट होने की कोशिश करता हूँ. तीसरा दौर ख़त्म.

4.      इस तीसरे ड्राफ़्ट के आधार पर अब मैँ अपनी स्वतंत्र रचना शुरू करता हूँ.

5.      उस के कई रिवीज़न करता हूँ.

6.      कुछ संतोष होने लगता है तो फिर मूल रचना से मिलाता हूँ.

7.      टाइप कराता हूँ या कंप्यूटर मेँ अंकित करता या करवाता हूँ.

8.      और फिर ठीक करता हूँ.

तभी पाठक को लग सकता है कि वह मूल कृति ही पढ़ रहा है.

 

अभी तक मेरे पास अलमारियोँ मेँ हर अनुवाद के वे सब ड्राफ़्ट सुरक्षित हैं. हर किताब के ड्राफ़्ट अलग बोरे मेँ बंद हैँ. कभी मौक़ा मिला तो खोलूँगा… पर निकट भविष्य मेँ ऐसा मौक़ा मिलने की कोई संभावना नज़र नहीँ आती.

 

मेरे सभी अनुवाद अपने परिशोधित रूप मेँ या भिन्न नाम से अब हमारी बैबसाइट arvindkumar.me पर निश्शुल्क पढ़े जा सकते हैँ. आप का स्वागत है.

आज ही http://arvindkumar.me पर लौग औन और रजिस्टर करेँ

©अरविंद कुमार

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