अभी सीज़र है अंडे मेँ सँपोला.
बाहर निकल कर बनेगा नाग.
अच्छा है – अंडा ही कुचल देँ हम.
रोम. ब्रूटस का उपवन.
(ब्रूटस आता है.)
ब्रूटस
लूसियस! लूसियस!
पता नहीँ चलता तारोँ की चाल
से कितनी देर है भोर मेँ. लूसियस!
उठ जाग! काश! मुझे भी यूँ नींद आती.
लूसियस! जाग, लूसियस!
(लूसियस आता है.)
लूसियस
आप ने बुलाया, स्वामी?
ब्रूटस
बैठके मेँ बत्ती जगा. फिर यहाँ आ.
लूसियस
जो आज्ञा, स्वामी.
(लूसियस जाता है.)
ब्रूटस
मौत. हाँ, उस की मौत. मेरा कुछ नहीँ
बिगाड़ा है उस ने. प्रश्न यह है –
सम्राट बनते ही बदल तो नहीँ
जाएगा वह? यही तो प्रश्न है.
सँपोले को दाँत निकलता है
साँप बनने पर. तब सँभल के चलना
पड़ता है सब को. सम्राट बनाएँ
उसे? इस का मतलब होगा – मणिधर
को विषधर बनाना. जब चाहे
वह जिसे डँस ले, समाप्त कर दे.
एकछत्र सत्ता होती है स्वच्छंद.
सच, सीज़र को कभी स्वच्छंद नहीँ
देखा. यह भी सच है – विनम्रता
महत्त्वाकांक्षा की सीढ़ी है. ऊपर
पहुँच कर मन करता है छूने
को आकाश. नीचे की पैड़ी लगने
लगती है और भी नीची. ऐसे ही
बदल सकता है सीज़र भी. रोकना
होगा उसे बदलने से पहले.
प्रश्न ‘क्या है’ का नहीँ है. प्रश्न
है ‘क्या हो सकता है’. हमेँ मानना
होगा अभी सीज़र है अंडे मेँ
सँपोला. बाहर निकल कर बनेगा नाग.
अच्छा है – अंडा ही कुचल देँ हम.
(लूसियस लौट कर आता है.)
लूसियस
बत्ती जला दी है, श्रीमान. मैँ
गवाक्ष मेँ खोज रहा था चकमक,
वहाँ यह पत्र रखा था. कल शाम
नहीँ था यह.
(पत्र देता है.)
ब्रूटस
जा, सो जा. अभी शेष है रात…
कल मार्च का मध्य है ना?
लूसियस
पता नहीँ, श्रीमान.
ब्रूटस
पंचांग मेँ देख कर बता तो.
लूसियस
जो आज्ञा, स्वामी.
(लूसियस जाता है.)
ब्रूटस
टूटते तारोँ से जगमगा रहा
है आज आकाश. इन्हीँ के प्रकाश मेँ
पढ़ता हूँ – क्या लिखा है किसी ने…
(पत्र खोलता है, पढ़ता है.)
‘तू सो रहा है, ब्रूटस! जाग, उठ, जाग!
अपने को पहचान. कब तक यूँ रोमन
गण… उठ, जाग. देश को बचा, ब्रूटस महान!’
‘तू सो रहा है, ब्रूटस! जाग, उठ, जाग!’
उलाहने ऐसे, आवाहन ऐसे,
जहाँ तहाँ मुझे मिलते रहे
हैँ. ‘कब तब यूँ रोमन गण…’
अधूरा छोड़ दिया गया है वाक्य!
क्या कहना चाहता है लेखक…?
कब तक यूँ रोमन गण दबते
रहेँगे?… एक बार रोम को बचाया
था मेरे पुरखोँ ने टारक्विन से… वह
बनना चाहता था सम्राट! खदेड़ा
था उसे मेरे ही पुरखोँ ने… ‘उठ
जाग. देश को बचा.’ मुझे पुकारा
गया है देश के नाम पर? मेरे
देश, मैँ देता हूँ वचन. रोम के
लोगो, ब्रूटस करेगा तुम्हारा उद्धार!
(लूसियस फिर आता है.)
लूसियस
श्रीमान, छीज चुके हैँ मार्च के
चौदह दिन!
(नेपथ्य मेँ खटखटाहट.)
ब्रूटस
ठीक है. देख, कौन है द्वार पर?
(लूसियस जाता है.)
कैसियस ने उकसाया है जब से
मुझे सीज़र के ख़िलाफ़, सो नहीँ
पाया हूँ मैँ एक भी रात…
कुछ भयानक करने के विचार से
उस भयानक के किए जाने तक
जो कुछ मानव के मन पर बीतती है
कल्पना का जाल है, स्वप्न विकराल है.
होता रहता है मन और मनोरथ
के बीच वादविवाद, जैसे किसी राज्य
को घेर ले अचानक दुश्मन, वैसे
व्यक्ति का मन रहता है आक्रांत…
(लूसियस आता है.)
लूसियस
स्वामी, आप के भ्राता कैसियस हैँ.
क्या आज्ञा है?
ब्रूटस
अकेले हैँ क्या?
लूसियस
और भी हैँ.
ब्रूटस
पहचानता है तू उन्हेँ?
लूसियस
जी, नहीँ.
कानोँ तक यूँ बँधे हैँ कनटोप.
लबादोँ से छिपे हैँ चेहरे.
नहीँ था पहचानने का कोई चिह्न.
ब्रूटस
आने दे उन्हेँ.
(लूसियस जाता है.)
तो यह होता है षड्यंत्र… जितने
पाप हैँ, बुरे लक्षण हैँ, इस काली
रात मेँ वे सब घूम रहे हैँ खुले
आम. लेकिन षड्यंत्र? तू निकला है
मुँह को छिपाए. षड्यंत्र, कहाँ
छिपेगा तू दिन के उजाले मेँ?
द्रोह, यूँ मुँह मत छिपा अपना. छिपा
ले अपने को दोस्ताने मेँ, मुस्कान
मेँ. नहीँ तो छिप नहीँ सकता तू
गहरे पाताल मेँ.
(षड्यंत्रकारी आते हैँ. इन मेँ हैँ कैसियस, कास्का, डीसियस ब्रूटस, सिन्ना, मेटेलस सिंबर और ट्रेबोनियस.)
कैसियस
यूँ रात मेँ हम आ धमके! नमस्कार
स्वीकार करेँ. आप को हम ने जगा
तो नहीँ दिया?
ब्रूटस
नहीँ, नहीँ. यूँ
घंटे भर से टहल रहा हूँ.
जागा हूँ सारी रात. जानता हूँ
इन्हेँ जो आए हैँ तुम्हारे साथ?
कैसियस
जी, सभी
को जानते हैँ आप. और इन सब के मन
मेँ महान सम्मान के पात्र हैँ आप.
मनोकामना हम सब की है – आप भी
अपने को वही समझेँ जो आप को
समझते हैँ हम रोम के लोग… ये हैँ
ट्रेबोनियस.
ब्रूटस
स्वागत है इन का.
कैसियस
आप हैँ
डीसियस ब्रूटस.
ब्रूटस
मित्र, स्वागत है.
कैसियस
यह कास्का. यह सिन्ना. मेटेलस सिंबर.
ब्रूटस
आप सब का स्वागत है…
कौन सी चिंता है जो करक रही
है आप की आँखोँ मेँ? किस कारण देर
रात तक जाग रहे हैँ आप?
कैसियस
एक पल आप सुनेँगे मेरी बात.
(ब्रूटस और कैसियस के बीच कानाफूसी.)
डीसियस
इधर है पूर्व. क्योँ? यही से तो
फूटेगा दिन का उजाला?
कास्का
नहीँ!
सिन्ना
क्षमा करेँ, मित्र. काले मेघोँ
की कोर पर जो धूमिल सी रेखा है,
वही तो है भोर की दूती.
कास्का
नहीँ!
जिधर है मेरे खड्ग की नोँक, बस,
यहीँ से निकलने वाला है सूर्य.
यह काष्ठा है दूर दक्षिण की ओर. और
दो मास पहले इधर, उत्तर की ओर,
निकलता था सूर्य का चमकता गोला.
जिसे कहते हैँ पूर्व इधर है – संसद
की ओर.
ब्रूटस
आप सब हाथ देँ एक एक कर के मुझे.
कैसियस
आइए, मित्रो, हम सब शपथ लेँ.
ब्रूटस
नहीँ, शपथ नहीँ. शपथ से क्या
होगा? हमारी प्रेरणा हैँ जन गण
के व्याकुल मुखमंडल, हमारे मन
की पीड़ा, इस युग का अँधेरा. नहीँ
हैँ ये पर्याप्त किसी के लिए तो,
अब भी समय है, वह छोड़ दे हमारा
साथ. घर जाए, आराम से सो जाए.
अत्याचार को पनपने दे, शासन का
पंजा अपनी ओर बढ़ने दे.
पूरा विश्वास है मुझे. हम सब मेँ
धधकती है सम्मान की ज्वाला. इस
ज्वाला से बनता है इस्पात. नारी
बन जाती है नर. देशवासियो,
रोमनो, मित्रो, बोलिए – देश सेवा
मेँ चाहिए क्या हमेँ शपथ का
सहारा? रोमन वही है जो हार
जाता है प्राण, पर हारता नहीँ है प्रण.
वह कौन सी शपथ होगी सत्य को
जो सत्य से जोड़ेगी? ले कौन सी
बैसाखी युद्ध मेँ डटेँगे हम?
शपथ लेते हैँ पंडे पुजारी.
शपथ लेते हैँ लुच्चे मदारी.
शपथ लेते हैँ डाकू लूटेरे.
शपथ लेते हैँ डरपोक और कायर.
शपथ लेते हैँ वही लोग संदेह
करते हैँ जिन की निष्ठा पर मानव.
मनोरथ महान है हमारा. इस
पर लगाओ मत लांछन. मनोबल
अटूट है हमारा. इस पर उठाओ
मत शंका. सच्चे रोमन हैँ हम.
हर प्रण अटूट है हमारा.
कैसियस
आचार्य सिसैरो को भी क्योँ
न ले आएँ हम साथ? मेरी समझ
मेँ, वे पूरा साथ देँगे हमारा.
कास्का
हाँ, मत छोड़ो उन्हेँ.
सिन्ना
हाँ, मत छोड़ो.
मेटेलस सिंबर
हाँ, हाँ, ठीक है. अच्छा है. हमारी
अनुभवहीनता को मिल जाएगा यूँ
उन के पके बालोँ का सहारा.
पितामह के बड़प्पन से हम को
मिलेगा जनता का आदर सम्मान.
लोग समझेँगे – उन के अनुभव ने
किया होगा मार्गदर्शन हमारा.
ब्रूटस
नाम मत लो उन का. हाँ, उन से
दूर भी मत रहो. दूसरोँ के पीछे
नहीँ चलेँगे वे.
कैसियस
तो फिर छोड़ो
उन्हेँ.
कास्का
सही है. ठीक नहीँ हैँ वे.
डिसियस
अकेला सीज़र मरेगा? या उस
के साथी भी?
कैसियस
ठीक प्रश्न उठाया
डीसियस ने. मैँ तो समझता हूँ
बचना नहीँ चाहिए एंटनी
भी. सीज़र का मुँहलगा है वह.
बहुत चालाक है, समर्थ है वह.
बढ़ा सकता है वह – अपनी ताक़त,
हमेँ सता सकता है वह. ठीक तो
यही होगा – सीज़र के साथ, लगे
हाथ, एंटनी भी…
ब्रूटस
नहीँ. कैसियस नहीँ!
इस से लग जाएगा क्रांति को बट्टा.
पापी और क्रूर कहे जाएँगे हम.
सिर उतारने के बाद काट डालना हाथ!
हत्या कर डालना आवेश मेँ और फिर
बाद मेँ निकालना मन की भड़ास! हम
देश के पुजारी हैँ. बूचड़ नहीँ
हैँ हम. हमारा विरोध सीज़र की
भावना से है. काश, कहीँ मिल जाए
हमेँ सीज़र की भावना. सीज़र के
घात से बच जाएँ. शोक तो यही
है – सीज़र को बहाना पड़ेगा
लहू, सीज़र की भावना की वेदी
पर. सज्जनो, सीज़र को मारना है
हमेँ – साहस के साथ, क्रोध मेँ नहीँ.
बोटियाँ नहीँ काटनी हैँ हमेँ.
हमेँ तो अर्पित करनी है देवताओँ
को बलि. डालने नहीँ हैँ कूकरोँ
को कौर. चतुर स्वामी पहले तो
उकसाते हैँ सेवकोँ का आवेश, फिर
लगाते हैँ आवेश पर नियंत्रण.
मित्रो, यही करना है हमेँ भी.
तब हमारा कार्य माना जाएगा
देश की सेवा. एक भी उँगली नहीँ
उठेगी फिर हमारी नीयत पर.
हत्यारे नहीँ, हम माने जाएँगे उद्धारक.
कोई भी नहीँ कहेगा – मारा है
सीज़र को हम ने ईर्ष्या से. एंटनी?
भूल जाओ उसे. क्या कर सकता है
अकेला एंटनी? कट गया सीज़र
का सिर तो क्या कर लेगा उस का हाथ?
कैसियस
फिर भी मैँ डरता हूँ उस से. उस की
रग़ रग़ मेँ भरा है सीज़र का राग.
ब्रूटस
कैसियस, भूल जाओ उसे. वह
इतना ही रागी है सीज़र का, तो
उस के बिछोह मेँ घुलने दो उसे!
वाह! क्या ही सुंदर अंत होगा राग
रंग प्रेमी का, भोगी विलासी का.
ट्रेबोनियस
उस से भय कैसा? रहने दो उसे!
फिर डूब जाने दो भोग मेँ, विलास मेँ.
(घंटे बजते हैँ.)
ब्रूटस
शांत. घंटे गिनो…
कैसियस
तीन बज गए.
ट्रेबोनियस
तो अब चलेँ…
कैसियस
लेकिन अभी पक्का
नहीँ है – सीज़र आज की बैठक मेँ
आएगा या नहीँ. अंधविश्वासी
सा होता जा रहा है आजकल वह
कुछ. मिथकोँ और सपनोँ मेँ, पुराने
रीति रिवाज़ मेँ होता जा रहा
है उसे विश्वास. आज के अनोखे
शकुन, भयानक लक्षण और उस के
शुभचिंतकोँ की मनुहारेँ – रोक
न लेँ उसे संसद मेँ आने से.
डीसियस
चिंता मत करो. अच्छा लगता है
उसे सुनना – कैसे ठगे जाते
हैँ तृष्णा से मृग, दर्पण से भालू,
खेड़े से हाथी, और कैसे ठगे
जाते हैँ चमचों से नरेश. लेकिन
जब मैँ कहता हूँ, महावीर सीज़र,
आप पर निष्फल हैँ चमचों के तीर!
तो वह कहता है, ‘हाँ.’ और चल जाता
है उस पर चमचागीरी का तीर. उस
के मानस को मोड़ सकता हूँ मैँ. ले
आऊँगा उसे कल संसद मेँ मैँ.
कैसियस
नहीँ. सब चलेँगे उसे लाने.
ब्रूटस
तो फिर सुबह आठे बजे सब…
कैसियस
आठ से देर न हो. कोई चूक न हो.
मेटेलस सिंबर
कायस लिगारियस चिढ़े बैठे
हैँ सीज़र से. जब वे कर रहे
थे पोंपेई का गुणगान, तो फटकार
दिया था सीज़र ने. कमाल है! हम
मेँ से किसी को ध्यान नहीँ आया
उन का…
ब्रूटस
वाह, मेटेलस! मुझे बहुत
चाहते हैँ वे. मैँ ने की है उन की
सेवा. मैँ मना ही लूँगा उन्हेँ.
जाते जाते होते जाना उन के घर.
भेज देना उन्हेँ मेरे पास. मना
लूँगा मैँ उन्हेँ.
कैसियस
भोर हो आई… अब
चलेँगे हम. मित्रो, सब बिखर जाओ.
लेकिन याद रहे जो कहा है सब ने.
सब दिखा दो सच्चे रोमन हैँ हम.
ब्रूटस
मित्रो, मुखमंडल खिले होँ, थकन
न हो. झलक न हो मुँह पर मनोरथ
की. अभिनेताओँ सा उत्साह हो.
कोई चूक न हो. सब को नया दिन
शुभ हो.
(सब जाते हैँ. मंच पर अकेला ब्रूटस.)
लूसियस, फिर सो गया! भरनींद! सो
ले! भोग ले शबनमी नींद. तुझे क्या
है? न चिंता ज़माने की, न ग़म,
जिन से कुंचित होता है ललाट.
इसी लिए सोता है तू! सो, सो,
जी भर कर सो!
(पोर्शिया आती है.)
पोर्शिया
ब्रूटस, मेरे स्वामी!
ब्रूटस
पोर्शिया, यह क्या? जाग गईँ अभी
से आप? ठीक नहीँ है आप का स्वास्थ्य.
अच्छा नहीँ है आप का यूँ भोर की
शीतल बयार मेँ आना.
पोर्शिया
ठीक नहीँ
है आप का भी स्वास्थ्य. चुपचाप चले
आए आप छोड़ कर मेरी सेज. कल शाम
छोड़ दी आप ने अचानक भोजन की
मेज़. बस टहलते रहे आप सोचते,
आहेँ भरते, हाथ सीने पर बाँधे.
मैँ ने पूछा : क्या बात है? शून्य मेँ
ताकने लगे आप. मैँ ने फिर पूछा,
सिर खुजाने लगे आप, पटकने
लगे पैर. मैँ ने फिर पूछा, रहे
मौन आप. झुँझला कर हिलाया हाथ,
कहा – ‘जाओ!’ - हटी मैँ. चाहा
नहीँ धीरज आप का परखना. आप
को हुआ है क्या? कैसा अवसाद है?
खाते नहीँ आप अब. हँसते नहीँ
आप अब. सोते नहीँ आप अब. कुछ तो
बताइए – आप को हुआ है क्या?
ब्रूटस
कुछ नहीँ हुआ मुझे. स्वास्थ्य
कुछ ठीक नहीँ है.
पोर्शिया
समझदार हैँ आप,
रोगी नहीँ हैँ आप. होता कोई
रोग, तो करते उपचार आप.
ब्रूटस
वही कर
रहा हूँ मैँ. प्रिय पोर्शिया! जाओ,
सो जाओ.
पोर्शिया
श्रीमान ब्रूटस
रोगी हैँ – उपचार है चिपचिपी भोर
मेँ गीली घास पर टहलना! रोगी
हैँ, तभी चोरोँ से खिसक आए
हैँ मेरी सेज से! रात भर टहले हैँ
सनसनाती हवा मेँ!…
नहीँ, प्रिय ब्रूटस! नहीँ, यह
रोग काया का नहीँ है. यह रोग है
आप के मन का. क्या है वह? – बताएँ
मुझे आप. जानना यह सब – अधिकार
है मेरा. निष्ठा के वचन आप
ने दिए थे! तो आप ने कहा था, मुझे
अर्धांगिनी समझेँगे आप. मुझ
से छिपा कर नहीँ रखेँगे मन के भेद.
आप के चरणोँ मेँ झुकी हूँ. कुछ भी
छिपाएँ मत. कौन थे वे लोग जो आज
आए थे? छ : सात जन थे – छिपे थे
चेहरे रात के काले अँधेरे मेँ?
ब्रूटस
झूको मत यूँ, देवी.
पोर्शिया
नहीँ झुकती
यदि पहले जैसे सहज होते आप.
विवाहिता हूँ आप की. बोलिए,
कहाँ तक उचित है – मुझे पता
न चलेँ आप के मन के क्लेश? आप की
आत्मा हूँ, पर मेरी सीमा है
आप की रसोई तक! आप की सेज तक!
जब आप चाहेँ, मुझ से करेँ बात, जब
चाहेँ, दूर कर देँ मुझे. यही है
यदि मेरी सीमा तो मैँ पत्नी
कहाँ हूँ, बस, रखेली हूँ आप की.
ब्रूटस
तुम पत्नी हो मेरी, अर्धांगिनी
हो, संगिनी हो जीवन की. चेतना
हो तुम मेरे विषादमय हृदय की.
पोर्शिया
यदि यह सच है तो मुझे पता
होने ही चाहिए आप के रहस्य.
हाँ, मानती हूँ मैँ नारी हूँ मैँ. पर
वह नारी हूँ मैँ जिसे वरा है
ब्रूटस ने. मानती हूँ मैँ – नारी हूँ
मैँ. पर वह नारी हूँ मैँ जो बेटी
है महावीर कैटो की. ऐसे पति
की पत्नी और ऐसे पिता की संतान
को मानते हैँ आप साधारण नारी!
बताइए मुझे क्लेश निज मन के.
सहेज कर रखूँगी मैँ. निष्ठा का
प्रमाण दिया था मैँ ने जब किया
था जाँंघ मेँ घाव. सह लिया था
वह क्लेश! सहेज नहीँ सकती मैँ
आप के मन का क्लेश?
ब्रूटस
हे भगवान! मुझे इस महान नारी
के लायक़ बना.
(नेपथ्य मेँ ठक ठक होती है.)
सुनो, सुनो, द्वार
खटखटा रहा है कोई. देवी
पोर्शिया, कुछ देर को आप चली जाएँ.
धीरे धीरे बता दूँगा मैँ आप
को अपने मन के गूढ़ रहस्य. किन
उलझनोँ मेँ उलझा हूँ मैँ? मेरे
माथे पर चिंता की रेखा क्योँ है?
अभी शीघ्र चली जाएँ आप.
(पोर्शिया जाती है.)
कौन है द्वार पर, लूसियस?
(लूसियस और लिगारियस आते हैँ.)
लूसियस
कोई जर्जर बीमार पुरुष है यह.
आप ही से बात करने पर अड़ा है.
ब्रूटस
कायस लिगारियस! आप! मेटेलस
ने उल्लेख किया था आप का. दास,
तू जा. कैसे हैँ आप, मित्र
कायस लिगारियस?
(लूसियस जाता है.)
लिगारियस
लेँ नई भोर
का प्रणाम आप एक लाचार रोगी से.
ब्रूटस
कैसे समय धार लिया वीर कायस
ने बीमारी का बाना? काश, आज आप
स्वस्थ होते!
लिगारियस
सदा सर्वदा हूँ
स्वस्थ, ब्रूटस, आप के हर उद्यम के
लिए, महान मनोरथ के लिए…
ब्रूटस
ऐसा ही एक मनोरथ सामने है.
सुनने को स्वस्थ कान हैँ आप के पास?
लिगारियस
साक्षी हैँ देवता! साक्षी हैँ रोमन
गण! त्यागता हूँ मैँ रोग का बाना!
रोम की चेतना है तू!
जन गण का नेता है तू!
पूज्य पितरोँ का वंशज है तू!
तेरे आवाहन ने भगा दिया
मेरा रोग. आदेश दे – क्या करना है?
अनहोनी कर दिखाऊँगा होनी.
ब्रूटस
काम ही ऐसा है जो कर दे बीमार को
चंगा.
लिगारियस
और चंगोँ को बीमार? क्योँ?
ब्रूटस
हाँ,
हाँ. वह भी! जो करना है, जिस के साथ
करना है, उस के पास जाते समय
बताऊँगा सब कुछ.
लिगारियस
तो चलो, आगे बढ़ो.
नवचेतना मन मेँ लिए मैँ चलूँगा साथ.
लक्ष्य जो भी हो नेता अगर तुम हो
चलेँगे सब हमारे साथ!
(मेघगर्जन.)
ब्रूटस
तो चलो,
आगे बढ़ें हम देश को ले साथ!
(जाते हैँ.)
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